एक दिन एक बाग में एक फूल पर एक काले चींटे और लाल मधुमक्खी की मुलाकात हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. ढेर सारी बातें हुई और जब लौटने का समय आया तो लाल मधुमक्खी ने कहा, ‘‘ चींटे भाई, कुएं के सामने वाले नीम के पेड़ पर मेरा घर है. कभी वहां आओ तो तुम्हें शहद खिलाऊंगी.’’
चींटे ने भी कहा, ‘‘ जरूर आऊंगा. और हां मैं थोड़ी बहुत सिलाई जानता हूं. सो कभी पंखों पर खरोंच आ जाए, कपड़े फट जाएं तो बेखटके चली आना.’’
‘‘ अच्छा,’’ लाल मधुमक्खी ने कहा.
फिर दोनों ने एक दूसरे से विदा ली.
एक दिन काले चींटे ने अनजाने में कोई कड़वी चीज खा ली. वह थूकता-थूकता परेशान हो गया. जब वह मेंढक डॉक्टर के पास गया तो उसने कहा, ‘‘ जीभ को थोड़ा शहद में डुबो कर रखो, तो जायका सुधर जाएगा.’’
काले चींटे को लाल मधुमक्खी की याद आई. वह उससे मिलने के लिए चल दिया. मधुमक्खी का छत्ता काफी दूर था. लेकिन चींटे को उस ओर जाता एक टिड्डा भी मिल गया, जो उसे अपनी पीठ पर बिठा कर मधुमक्खी के छत्ते तक ले गया.
लेकिन छत्ते तक पहुंचकर भी क्या लाल मधुमक्खी से मिलना आसान था. छत्ते में नौ हजार नौ सौ निन्यानवे घर थे और हर घर में एक मधुमक्खी रहती थी. इतने घरों में घूमघूम कर लाल मधुमक्खी का पता पाना मामूली बात न थी. फिर भी काले चींटे ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने सौ घरों के दरवाजे खटखटाए और उन से लाल मधुमक्खी का पता पूछा. लेकिन किसी को भी लाल मधुमक्खी का पता मालूम न था.
निराश चींटा छत्ते से बाहर आ गया. तो उसकी नज़र एक दूसरे छत्ते पर पड़ी. वह छत्ता लौकी जैसा लंबा था.
उस छत्ते में घुस कर वह हैरान रह गया. पूरा छत्ता जैसे गंदगी का भंडार था.
उसमें पड़ी पीली ततैया ने आंखें खोलीं और चींटे की ओर ताकते हुए कहा, ‘‘ दोस्त यहां कुछ भी नहीं है. मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती.’’
‘‘ तुम कौन हो? काले चींटे ने पूछा.
‘‘ मैं एक आलसी, बेबस ततैया हूं, जो पहले कभी बहादुर थी.’’ ततैया ने दु:ख भरे शब्दों में कहा.
‘‘ लेकिन बेबस क्यों?’’
‘‘ क्योंकि मेरे पंख बेकार हैं, ये फट गए हैं.’’
‘‘ बस इतनी सी बात.’’ काले चींटे के पास सिलाई का सामान सदा साथ ही रहता था. उसने झटपट ब्रश निकाला, पीली ततैया के शरीर की धूल साफ की और तब जुट गया उसके फटे पंखों को जोड़ने.
काम कठिन था, पर काला चींटा कोई छोटा कारीगर थोड़ा ही था. थोड़ी देर बाद पीली ततैया ने उड़ने के लिए पंख फटकारे तो हैरान रह गई. अब तो वह बिल्कुल पहले की तरह उड़ सकती थी. पीली ततैया ने तुरंत एक उड़ान भरी और छत्ते के बाहर धूप में भूखे लटक रहे चमकीले मकड़े को यह खुशखबरी दी.
चमकीला मकड़ा धागे का पुल बना कर उससे मिलने आया. काले चींटे ने मकड़ी का सुनहरा धागा देखा तो दंग रह गया. उस ने धागे की तारीफ की तो मकड़ा उदास हो गया और बोला कि ऐसे धागे का क्या फायदा जिससे कपड़ा ही न बन सके.
‘‘ क्यों न हम तीनों मिल कर कपड़ा बनाएं?’’ एकाएक पीली ततैया ने प्रस्ताव रखा.
‘‘ सुनो, तुम धागा बनाना, मैं करघे से कपड़ा बुनूंगी और काला चींटा उसे काट-सिल कर कपड़े तैयार करेगा.’’ पीली ततैया ने सुझाया.
‘‘ लेकिन करघा कहां है?’’ काले चींटे ने पूछा.
‘‘ वह मैं पत्तों से बनाऊंगी.’’ पीली ततैया ने जोश में आ कर कहा.
देखते ही देखते पीली ततैया ने छत्ते की सफाई की. करघा बनाया गया. फिर तो एक तरफ चमकीला मकड़ा रंगबिरंगे धागे निकालने लगा तो दूसरी तरफ पीली ततैया उस की तरह-तरह के कपड़े बनाने लगी और तीसरी तरफ काला चींटा उन से नए-नए डिजाइनों की पोशाकें तैयार करने लगा.
फिर तीनों ने मिल कर नीम के नीचे ही एक छोटी सी दुकान खोली. सब वहां कपड़े खरीदने आने लगे. कपड़ों के बदले कोई फल देता तो कोई अनाज. हां, मधुमक्खी सदा शहद ही देती.
एक दिन लाल मधुमक्खी भी अपने बच्चों के साथ वहां कपड़े खरीदने आई. वह तो काले चींटे को वहां देख कर हैरान ही रह गई. दोनों बड़े प्यार से लगे मिले. लाल मधुमक्खी को यह सुन कर बड़ा दुख हुआ कि शहद के चक्कर में उसे काफी परेशानी उठानी पड़ी.
देर तक बातें करने के बाद काले चींटे ने एक बहुत सुंदर पोशाक अपनी दोस्त लाल मधुमक्खी को भेंट की.
कुछ दिनों बाद लाल मधुमक्खी भी काले चींटे को अपने घर ले गई और उसे अच्छी-अच्छी चीजें खिलाई.
नीम के नीचे वह सब नजारा आज नहीं है. लाल मधुमक्खी, पीली ततैया, काले चींटे और चमकीले मकड़े के बारे में भी कोई नहीं जानता. पर मधुमक्खी के छत्ते में आज भी वह शानदार पोशाक टंगी हुई सच्ची दोस्ती की कहानी कह रही है.