BOYS school WASHROOM - 20 in Hindi Moral Stories by Akash Saxena "Ansh" books and stories PDF | BOYS school WASHROOM - 20

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BOYS school WASHROOM - 20

अविनाश, प्रज्ञा का हाथ थामे जैसे-तैसे उसके पड़ोस के घर, गिन्नी के दरवाजे पर पहुँच ही गया।

उसने कई बार ज़ोर-ज़ोर दरवाजा थप थपाया...तब जाकर गेट खुलते ही एक औरत की आवाज़ आयी-अरे! प्रज्ञा इस मौसम मे तुम सब बाहर क्या कर रहे हो….आओ जल्दी से अंदर आओ!


और तुरंत ही अवि और प्रज्ञा घर के अंदर चले गए।


अरे! ये मोमबत्ती फ़िर बुझ गयी….प्रज्ञा अपनी टॉर्च देना ज़रा।….. वो औरत टॉर्च लेकर गयी और टेबल पर से माचिस उठाकर वहीं रखी मोमबत्ती से सजी लैंप को जलाने लगी।


"नीरजा!....घर मे कोई दिखाई नहीं दे रहा कहाँ है सब? " प्रज्ञा उजाला होते ही घर मे नज़र दौड़ाते हुए बोली।


नीरजा बिना कुछ बोले तुरंत अंदर गयी और कुछ तौलिया लाकर अविनाश की तरफ बढ़ाते हुए बोली- विहान को पोंछ दो नहीं तो बीमार हो जाएगा…और तुम दोनों भी बैठो, मै….मै तुम्हारे लिए कुछ गर्म खाने को बनाती हूँ।


प्रज्ञा-नहीं! नहीं! नीरजा तुम बस विहान का ध्यान रखना हमें यश को ढूंढ़ने जाना है वो अभी तक घर नहीं पहुँचा है…..चलो अवि!


प्रज्ञा तेज़ी से बस इतना कहकर वापस बाहर निकल जाती है।


नीरजा को कुछ कहने सुन ने का मौका ही नहीं मिलता और प्रज्ञा-अविनाश विहान को उसके घर छोड़कर वापस से उस तूफ़ान मे निकल जाते हैँ।


दोनों जैसे-तैसे सीधा स्कूल पहुँचते हैँ….स्कूल का गेट बंद होता है। काफ़ी अँधेरे और बारिश की वज़ह से उन्हें अंदर कुछ दिखाई नहीं दे रहा होता तो अविनाश गेट पर से ही आवाज़ लागता है।


अविनाश-कोई है?..... कोई है यहाँ?


प्रज्ञा-कोई है…..प्लीज़ गेट खोलो?


अविनाश-लगता है यहाँ कोई नहीं है प्रज्ञा?


प्रज्ञा-तो हम अब क्या करें...यश आखिर कहाँ गया होगा...वो बिना बताए कहीं जा ही नहीं सकता अवि!


अविनाश-चलो यहीं पास मे उसके कुछ क्लासमेटस् का घर है….उनके घर चलते हैँ शायद वहां चला गया हो वो।


प्रज्ञा-तुम ठीक कह रहे हो अवि...लेकिन पता नहीं क्यूँ मेरा मन कह रहा है की हमारा यश यहीं है!….हैलो कोई है यहाँ गेट खोलो?प्रज्ञा ज़ोर से आवाज़ लगाती है।


तभी उन्हें एक रोशिनी नज़र आती है जो उनकी तरफ़ ही बढ़ रही होती है।


प्रज्ञा-अवि! अवि!


वो रोशिनी टॉर्च की थी जो स्कूल का वॉचमैन लिए गेट पर आया।


वॉचमैन-क्या हुआ मैडम आपको इस मौसम मे घर मे रहना चाहिए।


प्रज्ञा-तुम...तुम गेट खोलो मुझे अंदर जाना है।


वॉचमैन-अंदर!....अंदर किसलिए मैडम….अंदर कोई भी नहीं है इस वक़्त।


अविनाश-अरे भैया वो….हमारा बेटा अब तक घर नहीं पहुँचा है….शायद वो यहीं है….आप गेट तो खोलो।


वॉचमैन-पर साहब अंदर इस वक़्त कोई नहीं है, ऊपर से बिजली भी नहीं आ रही….सब बच्चे लोग तो तूफान आने से पहले ही निकल गए थे…..अब कोई भी नहीं है अंदर बस हम ही हैँ।


प्रज्ञा-तुम गेट खोलो बस...मुझे खुद देखना है।


अविनाश भी ज़ोर देते हुए-भैया आप बस हमें एक बार देख लेने दीजिये….हम इस तूफ़ान मे यूँही नहीं घूम रहे हैँ….एक बार चेक कर लेने दीजिये शायद वो डर के मारे यहीं अंदर बैठा हो।


वॉचमैन दोनों की बातों पर गौर करता है और टॉर्च की रोशनी उनके मुँह की तरफ़ घुमाकर वो उनके परेशान चेहरे देखर आखिर गेट खोलने को मान ही जाता है….और अपनी जेब से चाबी निकालकर गेट खोलते हुए बोलता है…


वॉचमैन-साहब आप जल्दी से देख लीजिये….अगर प्रिंसिपल सर को पता चला की हमने आपको अंदर जाने दिया तो हमारी नौकरी चली जाएगी।


अविनाश-उसकी चिंता मत करो हम बस अपने बेटे यश को यहाँ तलाशने आये हैँ।


प्रज्ञा-चलो अवि जल्दी से….मै राइट साइड से सब क्लासेस चेक करती हूँ...तुम कोरिडोर के एन्ड से देखना शुरु करना…...वॉचमैन भैया आप अपनी टॉर्च मुझे दे सकते हैँ क्या?


वॉचमैन-ये लीजिये मैडम!...मै दूसरी टॉर्च लेकर आता हूँ….और पीछे ग्राउंड मे एक बार देख लेता हूँ।


प्रज्ञा और अविनाश दोनों फटाफट से अंदर भागते हैँ और वॉचमैन दूसरी टॉर्च लेने।


प्रज्ञा और अविनाश एक के बाद एक क्लास देखते हुए…."यश! यश तुम यहाँ हो क्या?" आवाज़ लगा कर भाग रहे होते हैँ। जिनकी आवाज़ें बारिश की वजह से उन खाली कमरों मे गूंज तक नहीं रहीं होती।


दोनों एक के बाद एक ऊपर-नीचे सभी क्लासों को चेक कर लेते हैँ लेकिन वहां ना उन्हें यश मिलता है ना ही और कोई…..आखिर मे हारकर दोनों हाँफते हुए झीने पर जाकर बैठ जाते हैँ और तभी वॉचमैन भी वहां आकर उनसे कहता है….


वॉचमैन-साहब! पूरा ग्राउंड देख लिया पानी के सिवा वहां और कुछ नहीं है।


अविनाश-हमने भी सभी क्लास चेक कर ली हैँ….हमें भी यश कहीं नहीं मिला।


वॉचमैन-हम तो आपसे कहे थे मालिक यहाँ से सब बच्चे मौसम बिगड़ने से पहले ही निकल गए थे।


प्रज्ञा- ऑडिटोरियम!...ऑडिटोरियम मे चलकर देखते हैँ अवि!


प्रज्ञा तुरंत उठकर ऑडिटोरियम की तरफ़ भागती है और अविनाश और वॉचमैन उसके पीछे-पीछे।


प्रज्ञा ऑडिटोरियम का गेट खोल अंदर घुसती है और चारों तरफ़ टॉर्च घूमती हुई…. यश! यश!...चिल्लाते हुए देखने लगती है…..लेकिन वहां उनको सिर्फ फेयरवेल पार्टी के बिखरे सामान के आलवा और कुछ नहीं मिलता….प्रज्ञा और अविनाश दोनों बुरी तरह हताश हो जाते हैँ।


प्रज्ञा वही बैठकर रोना शुरु कर देती है। अविनाश उसे संभालता है और उठाकर वहां से बाहर ले आता है।


थोड़ी देर वो वही वॉचमैन से यश के बारे मे पूछताछ करते हैँ….और वॉचमैन को यश के बारे मे बताते हैँ। लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिलता…


अविनाश-प्रज्ञा तुम यहीं रुको ज़रा मे वाशरूम यूज़ कर के आता हूँ।


ये कहकर अविनाश वाशरूम की तरफ़ बढ़ने लगता है….