Taapuon par picnic - 36 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 36

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टापुओं पर पिकनिक - 36

गनीमत रही कि पार्टी आगोश ने दी थी।
अगर आर्यन ने दी होती तो तमाशा खड़ा हो जाता।
तमाशा तो होता ही... अगर किसी पार्टी में मेज़बान, अर्थात पार्टी देने वाला ही न आए तो भला बेचारे मेहमानों का क्या होगा?
तो उस रात आर्यन पार्टी में पहुंचा ही नहीं। जबकि आगोश ने ये पार्टी अपने दोस्त आर्यन के लिए इसी ख़ुशी में दी थी कि आर्यन को एक बड़े टीवी सीरियल में काम करने का चांस मिल गया था।
काफ़ी देर इंतजार करने के बाद जब सिद्धांत ने कई बार आर्यन को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ आया। सब कोशिश कर- कर के हार गए, पर न आर्यन से बात हो पाई और न ही उसके गायब रहने का कोई कारण ही पता चला।
और ऊपर से ये नई नौटंकी और हो गई।
आगोश ने पार्टी शुरू होने से पहले ही बुरी तरह पी - पी कर अपने को आउट कर लिया।
और सिद्धांत के सामने तो उसने न जाने क्या- क्या उगल भी दिया। सिद्धांत ने और किसी दोस्त को तो पता नहीं चलने दिया कि वो नशे में चूर होकर क्या- क्या कह गया है पर ख़ुद सिद्धांत को तो पता चल ही गया था कि मियां अपने जिगरी दोस्त की कामयाबी पर भीतर ही भीतर सुलग भी रहे हैं।
चाहे नशे की झौंक में ही सही, पर आगोश ने ये ज़ाहिर तो कर ही दिया कि उसे आर्यन की सफ़लता पर कुछ जलन भी हुई है।
वैसे, कहते हैं कि जलन तभी होती है जब हम किसी से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं। आगोश आर्यन का बेस्ट फ्रेंड तो था ही।
पार्टी फीकी- फीकी रही। देर रात तक ज़रूर चली। क्योंकि पहले तो काफ़ी समय आर्यन का इंतजार करने में ही निकल गया। फ़िर सबका मूड ख़राब हो गया। तीसरे, आगोश ने लगातार बेहद आश्चर्यजनक व्यवहार किया। पर खाना तो सबको खाना ही था।
मनप्रीत और मधुरिमा ने जैसे- तैसे करके खाने का ऑर्डर दिया।
हां, आगोश ने बिल पे करने में कोई कोताही नहीं की। कुछ मायूसी के साथ और कुछ डगमगाते हुए सिद्धांत के कंधे पर हाथ रख कर काउंटर पर जाकर आगोश ने अपना कार्ड तो हाज़िर कर ही दिया।
सबने चैन की सांस ली। वरना आगोश की हालत देख कर तो सब मन ही मन ये सोच रहे थे कि कहीं ये पार्टी कंट्रीब्यूट्री पार्टी में न बदल जाए। सबको अपना- अपना बिल ख़ुद भरना पड़े।
मधुरिमा का मूड उखड़ा- उखड़ा रहा। कितने चाव से आई थी यहां। आज उसने ख़ास ऑरेंज कलर की ड्रेस पहनी थी... उसे याद जो था कि एक दिन बातों- बातों में आर्यन ने नारंगी रंग को अपना सबसे पसंदीदा रंग बताया था।
पर सिंदूरी सूरज निकला और ढल गया, देखने वाला आया ही नहीं!
रही सही कसर अब बाहर निकल कर मनप्रीत ने पूरी कर दी। बोली- यार, मुझे तो साजिद छोड़ देगा, ये उधर से ही जा रहा है।
किसी ने ये नहीं पूछा कि साजिद उधर से क्यों जा रहा है, अब इतनी रात को उसे वहां क्या काम है? सब जानते थे।
मधुरिमा को अपनी स्कूटी से अकेले ही जाना पड़ा।
शायद इसी को तो किस्मत कहते हैं... एक सहेली की शाम उदासी लेकर आई तो दूसरी की शाम उसे गुलज़ार कर गई।
साजिद का स्कूटर मनप्रीत ने चलाया। वह पीछे ही बैठा। रात का सन्नाटा, सड़कें ट्रैफिक से लगभग ख़ाली थीं। मनप्रीत कुछ तेज़ी से ड्राइव कर रही थी और साजिद को लग रहा था कि ये रास्ता कभी पूरा ही न हो, सफ़र चलता ही रहे।
सेंट्रल हॉल के पास जैसे ही लाइब्रेरी चौराहे का सुनसान इलाका आया साजिद ने हैंडल छोड़ कर दोनों हाथों से मनप्रीत को पकड़ लिया।
- क्या कर रहे हो? मनप्रीत बुदबुदाई।
- लाइट्स चैक कर रहा हूं, अंधेरा है न..
- बेशरम!... क्यों, टॉर्च में सेल नहीं हैं क्या? मनप्रीत बोली।
- चैक कर के देख ले, सेल भी हैं और करेंट भी...बेशरम...! साजिद ने भी उसकी नकल करते हुए कहा।
उधर सिद्धांत को ये चिंता हो रही थी कि आगोश ने आज कुछ ज़्यादा ही पीकर अपनी हालत ख़राब कर ली, जाने गाड़ी कैसे ड्राइव करेगा?
मनन बोला- चिंता मत कर, अब ये उसकी आदत ही हो गई है।
इस चौराहे से तीनों को अलग- अलग होना था। मधुरिमा अपने घर की ओर मुड़ गई और मनन व सिद्धांत अपने- अपने रास्ते निकल गए।
अगले दिन सुबह जाकर ही उन सबको ये पता चल पाया कि आर्यन रात को पार्टी में क्यों नहीं पहुंच पाया।
उसे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ा।
अरुंधति जौहरी की गाड़ी उसे लेने आई और उनके ड्राइवर ने तभी आर्यन को बताया कि शायद कोई लोकेशन देखने जाने के लिए आपको बुलाया है, शाम तक वापस आ जाएंगे।
आर्यन उसके साथ चला गया।
जाते- जाते वो अपनी मम्मी को कह गया था कि अगर उसे आने में देर हो जाए तो वो आगोश को बता दें कि उसे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ा है।
मम्मी भूल गईं।
उधर आर्यन जहां था वहां नेटवर्क ही नहीं मिल रहा था। वह भी फ़ोन करने की कोशिश करता रहा और परेशान होता रहा।
उसने सोचा कि चलो, मम्मी ने तो उन लोगों को कह ही दिया होगा।
वैसे भी, नए बॉस के साथ होने पर बार- बार अपने ही फ़ोन पर बिज़ी रहना शिष्टता के ख़िलाफ़ बात होती। पहला ही दिन तो था।
आर्यन का डिनर अरुंधति जी के साथ ही हो गया।
अगले दो दिन आर्यन के बहुत व्यस्तता में बीते।
उस दिन रात को वापस लौटते समय अरुंधति जी ने उसे एक स्क्रिप्ट कॉपी दी थी।
- तुम इसे इंटेंसिवली पढ़ लो एक बार! अच्छी तरह से पढ़ लोगे फ़िर हम लोग मीटिंग रखेंगे। जान जाओ, कि तुम्हें करना क्या है? ये कॉमन रूटीन रोल नहीं है। हम इसे तुम्हारे लुक्स के सहारे ही खींचेंगे।
आर्यन उनकी बात सुन कर कुछ शरमा गया।
उनकी बात सुन कर वो कुछ विचलित तो हुआ पर वह एकाएक उनसे कुछ पूछ नहीं सका। उसने सोचा कि पहले कहानी पढ़ डालना ही सही रहेगा।
एक बार पूरी कहानी का खाका उसके दिमाग़ में बैठ जाए फ़िर तो छोटी- छोटी डिटेल्स पर बात की जा सकती है।
आर्यन के लिए टीवी के सामने एक्टिंग का ये पहला मौक़ा ही था पर इस क्षेत्र में आने की ख्वाहिश रखने वाले हर महत्वाकांक्षी लड़के की तरह बहुत सी बातें उसने सुन - पढ़ कर ही जान ली थीं।
वह स्कूल- कॉलेज में भी नाटकों व कार्यक्रमों में रुचि लेता रहा था।
उसके कई साथी तो उससे कहा करते थे कि हमें एक बार तो तुझे स्टेज पर खड़ा करना ही है, चाहे कुछ भी कर। एक बार तो एक लड़की ने टीचर के सामने ही उसे 'सेक्सी- चॉकलेट' कह दिया था।