Offering--Part (14) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अर्पण--भाग (१४)

Featured Books
Categories
Share

अर्पण--भाग (१४)

रात का समय,राज अपना मन हल्का करने के लिए बगीचे के झूले में आ बैठी,तभी वहां रधिया काकी आ पहुंची उसने राज को कुछ उदास देखा तो पूछ बैठी___
का हुआ बिटिया? कछु उदास दिख रही हो।।
ना काकी! ऐसी कोई बात नहीं है,बस थोड़ा थक गई हूं,राज ने जवाब दिया।।
तो ठीक है बिटिया! हम तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करेंगे,हम जा रहें हैं तुम आराम करो और इतना कहकर रधिया जाने लगी,तभी राज ने रधिया को रोकते हुए कहा____
रूको ना काकी! जरा थोड़ी देर मेरे संग भी बैठो,
हां! जरूर! तुम कहती हो तो बैठ जाते हैं, लेकिन तुम बताओ चाहें ना बताओ,तुम हमें परेशान दिख रही हो,रधिया ने इतना कहा तो राज रधिया के गले लगकर फूट फूटकर रो पड़ी....
रो लो बिटिया! ऐसे रोकर जरा जी हल्का कर लो, लेकिन बात कह दोगी तो मन और भी हल्का हो जाएगा,रधिया बोली।।
काकी ! अभी तुम्हें बताने का समय नहीं आया है,जब समय आएगा तो बता दूंगी,राज बोली।।
जैसी तुम्हारी मर्जी बिटिया,रधिया बोली।।
ठीक है काकी! अब मैं भीतर जाती हूं,शायद दीदी आ गईं हैं उनकी मोटर की आवाज़ सुनाई दे रही है,राज बोली।।
अच्छा बिटिया! जाओ,रधिया ने कहा।।
और राज भीतर पहुंचीं, उसने देखा कि आज नन्दिनी बहुत खुश हैं और आज मिल से वो बाज़ार चलीं गईं थीं और सबके लिए कुछ ना कुछ तोहफे लाईं हैं।।
उसने एक एक करके सबको बुलाया और सबको तोहफे बांटने लगी,तभी उसने राज को भी सिल्क की साड़ी देनी चाही लेकिन राज का उतरा हुआ चेहरा देखकर वो पूछ बैठी,आखिर बात क्या है ? तुम इतनी उदास क्यों लग रही हो?
कुछ नहीं दीदी! बस थोड़ा सिरदर्द है,आराम कर लूंगी तो ठीक हो जाऊंगी,राज बोली।।
कोई बात हो तो बताओ, नन्दिनी ने फिर पूछा।।
ना दीदी! आप खामखां में परेशान मत होइए, मैं एकदम ठीक हूं,राज बोली।।
उस रात उस घर में एक बहन के मन में तो खुशी ही खुशी थी और दूसरे के मन में दुःख नहीं समा रहा था, दोनों का जीवन ना जाने कौन सा मोड़ लेने वाला था लेकिन दोनों ने अभी तक ना एक-दूसरे को अपनी खुशी का कारण बताया था और ना ही दुःख का,अब राज फैसला ले चुकी थी कि वो अब श्रीधर से कभी नहीं मिलेगी,क्या वो अपनी दीदी पर श्रीधर का प्रेम कुर्बान नहीं कर सकती,ये वही दीदी है जिसने मेरे लिए अपनी खुशियों की कोई परवाह नहीं की,मुझे अच्छा जीवन देने के लिए उन्होंने सब कुर्बान कर दिया, यहां तक कि अभी तक घर नहीं बसाया, उन्हों बचपन से सुख ही कहां मिला,मुझे बड़ा करते करते वो कब मेरी दीदी से मेरी मां बन गई ये पता ही नहीं चला,अब जाकर उनकी जिंदगी में खुशी की एक किरन आई है तो वो भी मैं उनसे छीन लूं,ऐसा कभी नहीं हो सकता, मैं इतनी स्वार्थी कभी नहीं हो सकती।।
और उस दिन के बाद राज़ ने श्रीधर से बिल्कुल भी मिलना बंद कर दिया,इधर श्रीधर को नन्दिनी की बात से इतना बड़ा सदमा सा लगा कि उसने मिल से एक हफ्ते की छुट्टी ये कहकर ले ली कि उसकी तबियत ठीक नहीं है, क्योंकि वो काम के प्रति ईमानदार था तो उसे एक हफ्ते की छुट्टी मिल भी गई,उसकी तबियत का जानकर एक दिन नन्दिनी उसके घर मिलने को पहुंच भी गई___
क्या हुआ श्रीधर बाबू! डाक्टर को दिखाया, नन्दिनी ने पूछा।।
जी दिखा दिया है उन्होंने तीन दिन की दवा दी है,श्रीधर ने झूठ बोलते हुए कहा।।
जी,मर्ज के बारे में कुछ पता चला कि क्या हुआ है? नन्दिनी ने पूछा।।
अरे कुछ नहीं, मामूली सा ज्वर हैं, जल्द ही ठीक हो जाएगा,श्रीधर बोला।।
अगर ठीक ना हो तो मुझे कहिएगा, मैं कमलकान्त बाबू से कह दूंगी,वो आपको देख जाएंगे, नन्दिनी बोली।।
जी,जरूर कहूंगा,श्रीधर बोला।।
ठीक है तो मैं आपके लिए चाय लाती हूं,सुलक्षणा ने नन्दिनी से कहा।।
जी आप नाहक परेशान होतीं हैं, मैं चाय ना पिऊंगी, नन्दिनी बोली।।
परेशानी किस बात की ,आप पहली बार हमारे घर आईं हैं तो, वगैर चाय पिए तो मैं ना जाने दूंगी,सुलक्षणा बोली।।
जी,जैसी आपकी इच्छा, नन्दिनी बोली।।
और नन्दिनी चाय बनाने चली गई और अकेले में नन्दिनी ने श्रीधर से पूछा....
तो आपने क्या सोचा?
जी किस बारे में? श्रीधर ने पूछा।।
जी,जो मैंने आपसे उस दिन कुछ कहा था, नन्दिनी बोली।।
जी,मेरे पास उसका कोई जवाब नहीं है,श्रीधर बोला।।
कोई बात नहीं,जब आप स्वस्थ हो जाएं तो उसका जवाब दे दीजिएगा, नन्दिनी बोली।।
तभी सुलक्षणा भी चाय लेकर आ पहुंची और नन्दिनी की बात पूरी ना हो सकी....
चाय पीकर और कुछ देर दोनों से बात करके नन्दिनी वापस आ गई,उसे देर होने पर राज ने पूछा___
दीदी! आज कहां देर कर दी?
अरे,श्रीधर बाबू की तबियत खराब है,वो छुट्टी पर हैं तो उन्हीं से मिलने गई थी, नन्दिनी ने राज की बात का जवाब देते हुए कहा।।
क्या कहा आपने?श्रीधर बाबू की तबियत खराब है,राज ने चौंकते हुए कहा।।
हां! उनकी तबियत ख़राब है, नन्दिनी बोली।।
तो अब कैसे हैं वो,राज ने पूछा।।
अभी तो ठीक नज़र आ रहे थे, उन्होंने कहा कि मामूली सा ज्वर है ठीक हो जाएगा, नन्दिनी बोली।।
ये जानकर तसल्ली हुई कि वो स्वस्थ हैं,राज बोली।।
तुम भी कल उनके घर जाकर उन्हें देख आना, नन्दिनी बोली।।
जी दीदी! ठीक है,राज बोली।।
लेकिन राज दूसरे दिन श्रीधर से मिलने नहीं गई,श्रीधर के घर पर टेलीफोन भी नहीं था इसलिए श्रीधर भी राज से बात नहीं कर पाया, लेकिन राज के लिए वो परेशान भी था क्योंकि तीन चार दिन से राज उसे मिलने भी नहीं आई थी और ना ही उसने उसकी कोई ख़बर ली थी,यही सोचकर उसका दिल बैठा जा रहा था उसके मन में ऐसे वैसे विचार भी आ रहे थे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि देवनन्दिनी ने राज को बता दिया हो कि वो मुझसे मौहब्बत करती है और राज ने देवनन्दिनी के बारें में सोचकर मेरी मौहब्बत से किनारा कर लिया हो,हो ना हो कोई तो बात जुरूर है जो राज मुझसे मिलने नहीं आ रही है।।
इस बारे में श्रीधर ने सुलक्षणा से भी कहा___
सुलक्षणा बोली__
हां!राज उसी दिन से हमारे घर नहीं आई,कुछ तो जरुर हुआ है, मैं सोच रही थी कि क्यों ना तू उसके घर चला जा और इसका कारण पूछकर आ।।
लेकिन जीजी! वहां देवनन्दिनी जी भी तो होगीं और उनके रहते राज से अकेले में बात करना मुमकिन नहीं,श्रीधर बोला।।
ये भी तू ठीक कह रहा है, लेकिन एक काम तो हो ही सकता है,सुलक्षणा बोली।।
वो क्या जीजी?श्रीधर ने पूछा।।
क्यों ना तेरी जगह मैं वहां चली जाऊं, मैं राज से अकेले में बात भी कर लूंगी और किसी को कोई एतराज़ भी ना होगा,सुलक्षणा बोली।।
हां,यही ठीक रहेगा जीजी!ऐसा करो ,तुम कल शाम को ही चली जाओ, मैं चाहता हूं कि ये उलझन जल्द से जल्द सुलझ जाए,श्रीधर बोला।।
हां, मैं भी यही चाहती हूं कि ये उलझन सुलझ जाए और तुम दोनों पहले की तरह फिर से एक हो जाओ,सुलक्षणा बोली।।
इधर रात के समय राज अपने अपने बिस्तर पर लेटी थी और ना जाने कितने सारे विचारों ने उसे आ घेरा था,
वो श्रीधर की तबियत को लेकर बहुत परेशान थीं,वो भी उसकी एक झलक पाने को बेकरार थी,वो सोच रही थी कि काश जिन्दगी उसे ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा ना करती।।
क्या करूं? कैसे समझाऊं अपने नादान दिल को, मैं जितना भी श्रीधर से दूरियां बढ़ाने की कोशिश कर रही हूं,ये दिल उतना ही उसकी ओर खिंचता चला जा रहा है,इस मौहब्बत का ना जाने क्या अंजाम होने वाला है? ये कैसा तूफ़ान आया है मेरी ज़िन्दगी में,ना जाने कैसी तबाही फैलाने वाला है ये? यही सोचते सोचते ना जाने राज को कब नींद आ गई।।
दूसरे दिन सुबह हुई___
एक हफ्ते पूरे हो चुके थे श्रीधर की छुट्टी के तो सुलक्षणा बोली___
क्यों रे!आज तो मिल जाएगा ना!
हां!जीजी! बिना छुट्टी के इतने दिन बिमारी का बहाना लेकर घर पर पसरा रहा,अब तो बेवजह ली हुई छुट्टी से बहुत शरम आ रही है,अब तो हालातों का सामना करना ही होगा,श्रीधर बोला।।
हां, सही कहता है,कब तक सच्चाई से ऐसे मुंह मोड़ता रहेगा,सुलक्षणा बोली।।
लेकिन मैं नन्दिनी जी के सवाल का क्या जवाब दूं,कुछ समझ नहीं आता, कैसे उन्हें कहूं कि वो ग़लत समझ रहीं हैं,ऐसा कुछ भी मेरे दिल में नहीं,वो तो मैं इन्सानियत के नाते उन्हें सलाह देता रहा और वो इसे मौहब्बत समझ बैंठीं,श्रीधर बोला।।
अब कुछ भी हो ,कोई ना कोई तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा,उनकी गलत़फहमी दूर करने का तभी कुछ हो सकता है,सुलक्षणा बोली।।
हां! जीजी! लेकिन पहले तुम राज से बात करो,श्रीधर बोला।।
हां! मैं शाम को ही उनके घर जाकर उससे पूछती हूं कि क्या बात है जो वो तुमसे दूरियां बढ़ा रही हैं,सुलक्षणा बोली।।
ठीक है जीजी! तुम मेरा दोपहर का खाना पैक कर दो, मैं मिल के लिए निकलता हूं,श्रीधर बोला।।
ठीक है पैक करती हूं,सुलक्षणा बोली।।
और कुछ देर के बाद श्रीधर मिल के लिए रवाना हो गया।।
श्रीधर दिनभर मिल में छुपा छुपा घूमता रहा कि कहीं नन्दिनी से उसका सामना ना हो जाए, उसके पास नन्दिनी के सवाल का कोई जवाब नहीं था।।
और उधर नन्दिनी भी ये सोचकर परेशान थी कि श्रीधर बाबू मिल तो आएं हैं लेकिन उसके सामने क्यों नहीं पड़ रहें हैं ,अभी नीचे सीढ़ियों के पास मिले थे तो मुझे देखकर दूसरी ओर मुड़ गए और सुबह भी उन्होंने ऐसा ही किया था,बात कुछ समझ नहीं आई, कहीं ऐसा तो नहीं वो इज़हार करने में संकोच कर रहे हों....
सुलक्षणा और श्रीधर दोनों ही दिनभर अपनी अपनी उलझन में उलझें रहे।।
इस तरह शाम हुई और सुलक्षणा तांगा पकड़कर राज के घर को चल पड़ी,कुछ देर में वो और बबलू राज के घर पहुंच गए....
राज ने घंटी बजाई तो रामू ने दरवाज़ा खोला___
रामू ने सुलक्षणा को देखा और पहचानते हुए बोला__
आप श्रीधर बाबू की बड़ी बहन हैं ना!
सुलक्षणा बोली,हां! क्या राज घर पर है?
जी! हां छोटी दीदी शायद अपने कमरे में होगीं,अभी बुलाएं देता हूं,रामू बोला।
रहने दो रामू! मुझे तुम उसके कमरें तक पहुंचा दो और जरा बबलू को मोटर दिखा दोगे,वो मोटर देखने की जिद कर रहा है,मुझे राज से कुछ बात करनीं हैं,सुलक्षणा बोली।।
जी! दीदी! उस ओर सीढ़ियां चढ़ के छोटी दीदी का कमरा है,रामू बोला।।
ठीक है , मैं खुद चली जाऊंगी,सुलक्षणा बोली।।
जी ठीक है, मैं बबलू को बाहर मोटर दिखा देता हूं,इतना कहकर रामू ,बबलू के संग बाहर चला गया और सुलक्षणा ,राज के कमरें में।।
सुलक्षणा ने राज के कमरें के दरवाज़े पर दस्तक दी....
राज ने दरवाज़ा खोला और सुलक्षणा को देखकर बोली...
दीदी आप ! यहां और वो भी अचानक।।
क्या करूं ? तुम इतने दिन से नहीं आई इसलिए आना पड़ा,सुलक्षणा बोली।।
उसकी कोई वज़ह थी , इसलिए ना आ पाई,राज बोली।।
वहीं वज़ह तो जानने आई हूं,सुलक्षणा बोली।।
मैं वो वज़ह नहीं बता सकती,राज बोली।।
तुम्हें बतानी होगा,सुलक्षणा बोली।।
सुलक्षणा और राज के बीच यूं ही बातें चल रहीं थीं कि तभी बाहर नन्दिनी की मोटर आ पहुंची,वो मोटर से उतरी और बबलू को देखकर रामू से पूछा___
क्या सुलक्षणा जी आईं हैं?
रामू बोला___
हां,छोटी दीदी के कमरे में हैं,
तूने उन्हें चाय वगैरह दी या नहीं, नन्दिनी ने पूछा।!
कैसे चाय बनाता,मैं तबसे बबलू के साथ हूं,रामू बोला।।
ठीक है तो मैं राज के कमरें में जाती हूं,तुम चाय लेकर वहीं आ जाना, नन्दिनी बोली।।
ठीक है दीदी! रामू बोला।।
नन्दिनी ने सोफे पर अपना पर्स पटका और राज के कमरें की चली गई,कमरे का दरवाज़ा खुला था, दोनों की आवाज भी सुनाई दे रही थी और नन्दिनी ने जो सुना उसे सुनकर वो खुद को सम्भाल ना सकीं और फ़ौरन चुपचाप नीचे आकर सोफे पर बैठ गई जैसे कि उसने कुछ सुना ही नहीं___

क्रमशः....
सरोज वर्मा....