Taapuon par picnic - 35 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 35

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टापुओं पर पिकनिक - 35

जीवन अजूबों से भरा है। कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब क्या हो जाए।
जिसे आर्यन और आगोश कोई बदतमीज़, पगली, सिरफिरी औरत समझ रहे थे, वो तो देवी निकली, देवी!
"डर्टी एयर क्रिएशंस" की डायरेक्टर उन युवकों को कभी इस तरह मिलेगी, ये तो उन्होंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था।
उस दिन रूफटॉप रेस्त्रां में बैठे आर्यन और आगोश की मुठभेड़ अकस्मात जिस महिला से हो गई थी वो वास्तव में शहर की एक उभरती हुई लोकप्रिय फ़िल्म निर्माण संस्था "डर्टी एयर क्रिएशंस" की डायरेक्टर अरुंधति जौहरी ही थीं।
वो कुछ लोगों के साथ रेस्त्रां में किसी बिज़नेस डिस्कशन के लिए मौजूद थीं। उन्होंने भीतर की केबिन से काफ़ी देर तक वहां खुले में बैठे हुए आर्यन को देखा। लंबा, खूबसूरत, अच्छे चेहरे- मोहरे वाला।
फ़िर देखा...देर तक देखा। और तत्काल अपने दो सहायकों को लेकर तकरार का ड्रामा रचने वहां चली आईं।
वास्तव में वो उस स्मार्ट और ख़ूबसूरत युवक आर्यन का स्क्रीन टेस्ट ही था। वो स्वाभाविक रूप से आर्यन को उकसा कर प्रतिक्रिया देते हुए उस मॉडल जैसे लड़के का नैचुरल सीन कैमरे में कैद कर ले गईं।
बाद में एक दिन आर्यन को बुलाया गया और संक्षिप्त सी बातचीत के बाद उनके दफ्तर में कॉन्ट्रेक्ट तैयार हो गया।
आर्यन को पूरे पचास हज़ार रुपए एडवांस के तौर पर मिले।
ये एक टीवी चैनल पर प्रसारित होने वाला सीरियल था जिसकी शूटिंग कुछ दिन बाद शुरू होने वाली थी।
ये पूरी कहानी जब भीतर आगोश के रूम में बैठ कर आर्यन ने उसे और सिद्धांत को सुनाई तो आगोश ने एक बार फ़िर आर्यन के गले लग कर उसके गाल पर एक गहरा सा चुंबन जड़ दिया।
सिद्धांत आर्यन से बोला- यार, ये सीरियल कुल बावन एपिसोड का है, तब तक तो आगोश तेरे गालों में चाट- चाट कर गड्ढा कर देगा।
- गड्ढे तो हीरोइन करेगी, मैं तो उसके लिए जगह साफ़ कर रहा हूं। आगोश ने कहा।
- चाट- चाट कर...
सिद्धांत बोलता - बोलता रुक गया क्योंकि तभी कमरे में पर्दा हटा कर एक लड़की ने प्रवेश किया जो ट्रे में इन लड़कों के लिए कुछ नाश्ता लेकर आई थी।
- वैसे आज तो... पार्टी बनती है आर्यन! सिद्धांत लड़की के बाहर निकलते ही बोल पड़ा।
जवाब आगोश ने दिया, बोला- आज रात को सेलिब्रेट करेंगे!
शाम को डिवाइन बार में सिद्धांत जब पहुंचा तो एक कौने में बड़ी सी टेबल पर अकेला आगोश चुपचाप बैठा था। इस समय वह काफ़ी सुस्त और गंभीर दिखाई दे रहा था। सिद्धांत ने आते ही हाथ बढ़ाकर उसके बालों को अपनी हथेली से बिखरा दिया और हंसता हुआ सामने बैठ गया।
आगोश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यहां तक कि सिद्धांत ने उसके बाल जो बुरी तरह बिखरा दिए थे उन्हें भी उसने ठीक नहीं किया। वह वैसे ही बेखबर सा बैठा रहा। उसका चेहरा कुछ अजीब सा लगने लगा।
सिद्धांत हंस कर बोला- ज़रा आइने में शक्ल देख तेरी?
- चुप! साले पहले हुलिया बिगाड़ते हो, फ़िर बोलते हो आइना देख! आगोश ज़ोर से बोला।
- तू इतना सीरियस होकर क्यों बैठा है? आर्यन कहां है, वो तेरे साथ नहीं आया? सिद्धांत ने स्वर बदलते हुए पूछा।
- यार, मैं इतनी देर से कुछ सोच रहा हूं...
- क्या.. सिद्धांत ने उत्सुकता से पूछा।
- उस्ताद, मैं क्या बहुत बुरा हूं?
- किसने कहा?
- नहीं मैं सोच रहा हूं कि उस दिन रूफटॉप रेस्त्रां में मैं और आर्यन एक साथ बैठे थे.. साली एक अनजान औरत ने दूर से उसे देख कर हीरो बना दिया.. और मेरी तरफ़ देखा तक नहीं? .. यानी.. टोटल इग्नोर मारा..! मतलब मुझे कुछ समझा ही नहीं... आलतू- फालतू.. उसका चमचा समझा? .. यार माना कि वो लौंडा चिकना है.. सूरत से नमकीन भी दिखता है.. पर.. मैं क्या बिल्कुल.. साला.. साला थोड़ा लम्बा भी है मुझ से..
सिद्धांत एकदम उसकी ओर देखता हुआ, हैरान हो गया। लगता था कि आगोश ने काफ़ी शराब पी रखी थी।
- ओए पार्टी शुरू भी नहीं हुई, पार्टी बॉय अभी आया भी नहीं, और तू टुन्न होकर बैठ गया? सिद्धांत ने थोड़ी सख़्ती से कहा।
फ़िर उसका ध्यान इस बात पर भी गया कि साइड की दीवार से सटी कॉर्निस पर एक बोतल खुली रखी है, उसका ढक्कन नीचे गिरा पड़ा था।
- ... साले पार्टी बॉय की.. क्या मैं इतना बुर.. बुरा..
आगोश की लड़खड़ाती हुई ज़ुबान कुछ और कहती कि तभी सामने से मनन ने प्रवेश किया।
मनन बैठते- बैठते बोला- किसकी बुराई हो रही है यारो।
मनन गौर से आगोश को देखने लगा। फ़िर बोला- नाइस हेयर कट!
आगोश मनन के मज़ाक पर और भी गंभीर होकर एकटक उसे देखने लगा।
मनन अचकचा गया। उसने सिद्धांत की ओर इस तरह देखा मानो पूछना चाहता हो कि क्या माजरा है, फ़िर बोला- इज़ समथिंग रॉन्ग? क्या हुआ!
सिद्धांत ने उसे चुप रहने का इशारा किया। मनन आश्चर्य से इधर- उधर देखने लगा।
आगोश ने अब बोतल उठा कर अपने सामने मेज़ पर ही रख ली।
- छी - छी- छी... ये गंदी वस्तु यहां कौन लाया... मनन ने मज़ाक करते हुए कहा।
आगोश एकदम से भड़क गया। अपने पेट की ओर हाथ के अंगूठे से इशारा करते हुए बोला- ले, तू अच्छी चीज़ ले ले...!
मनन सहम गया। वह समझ गया कि ज़रूर दाल में कुछ काला है। वह बार- बार सिद्धांत की ओर इशारे से देख कर कुछ पूछना चाहता था लेकिन आगोश का मूड देख कर डर गया। उसकी कुछ पूछ पाने की हिम्मत नहीं हुई।
आगोश ने ज़मीन पर गिरे हुए ढक्कन को टटोल कर उठाने की कोशिश की तो उसकी लड़खड़ाहट देख कर मनन को सारी बात समझ में आ गई।
- तो आगोश ने दारू पी रखी है...? वह जानबूझ कर कुछ ऊंचे स्वर में बोला।
आगोश करुण सी नज़रों से उसे देखता रहा पर वो नीचे गिरा हुआ ढक्कन उठा नहीं सका था।
- सॉरी- सॉरी... मनन बोला- आगोश भाई ने दारू नहीं पी रखी बल्कि दारू ने आगोश को पी रखा है.. वह कुछ बोलने जा ही रहा था कि उसे सामने से आता हुआ साजिद भी दिखाई दिया। वह फ़ौरन बात बदल कर बोला- आइए हुज़ूर! आप भी देखिए मंज़रे- आलीशान..!
साजिद ने पास आते हुए सलाम करते हुए दो बार सिर झुकाया।
आगोश एकाएक उठ कर खड़ा हो गया।
साजिद बोला- तो आप हैं आज की दावत के मेज़बान..
साजिद की बात अधूरी रह गई क्योंकि मनन ज़ोर से हंस पड़ा और सिद्धांत ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा।
आगोश बोला- ...तू तो लंबा है न प्यारे.. तू उठाएगा ढक्कन.. हेल्प कर जानेमन..
- किसका ढक्कन खुल गया? साजिद कुछ न समझते हुए बोला।
मनन और सिद्धांत ज़ोर से हंस पड़े।