Taapuon par picnic - 28 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 28

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टापुओं पर पिकनिक - 28

आर्यन के रोंगटे खड़े हो गए।
वह पसीने- पसीने हो गया। वह उठ कर बैठ गया और इधर- उधर देखने लगा। उसने मोबाइल में समय देखा। रात के पौने तीन बजे थे।
चारों ओर नीरव सन्नाटा पसरा हुआ था।
वो फ़ाइल उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर पड़ी थी और उसके पन्ने फड़फड़ा कर अब शांत हो चुके थे। गनीमत थी कि कोई काग़ज़ इधर- उधर नहीं हुआ था और न फटा ही था।
उसे दो- चार मिनट का समय लगा संयत होने में। आधी रात के बाद के इस समय में वहां आसपास ऐसा कोई नहीं था जिसके साथ आर्यन बात करके अपने मन के भीतर मची खलबली को कम कर सके।
वह एक बार फ़िर से उसी फ़ाइल को उठा कर उसके पन्ने पलटने लगा।
दरअसल डॉक्टर साहब ने ये फ़ाइल उसे देते हुए भी यही कहा था कि ये पेशेंट की कॉन्फिडेंशियल हिस्ट्री है जो एथिक्स के हिसाब से कोई डॉक्टर किसी और के साथ किसी भी स्थिति में शेयर नहीं कर सकता।
इसे या तो केस से संबंधित परामर्श लेने के लिए किसी अन्य डॉक्टर को दिखाया जा सकता था या फिर पुलिस के मांगने पर प्रॉपर प्रोटोकॉल के साथ पुलिस अधिकारियों को दिया जा सकता था। इसके लिए भी एक निश्चित स्तर के अधिकारी की अनुमति ज़रूरी थी और इसे पुलिस विभाग द्वारा निर्धारित बोर्ड के समक्ष ही बताया जाना चाहिए था।
किंतु डॉक्टर ने अपने व्यक्तिगत जोखिम पर इसे आर्यन को दे दिया था और आर्यन ने इसे पढ़ डाला था।
ये उसी पागल मरीज़ की हिस्ट्री थी।
वास्तव में तो इस हिस्ट्री को पढ़ लेने के बाद ये तय करना भी संदिग्ध था कि रोगी पागल भी है अथवा नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि एक औरत को जबरन दबाव डाल कर पागल सिद्ध किया गया हो।
ये महिला पेशे से एक नर्स थी किंतु साथ ही इस रिपोर्ट में ये संदेह भी जताया गया था कि शायद इसके पास नर्स होने का कोई जाली दस्तावेज था। इसके पास नर्सिंग की विधिवत शिक्षा लिए जाने का कोई प्रमाण मौजूद नहीं था।
दूसरी बात ये थी कि महिला के साथ सामूहिक बलात्कार ही नहीं हुआ था बल्कि बेहद क्रूर तरीक़े से उसकी ज़िन्दगी ख़त्म करने की कोशिश भी की गई थी।
पुलिस के अभिलेख के अनुसार महिला हमेशा के लिए शहर छोड़ कर दक्षिण में पुडुचेरी जाने हेतु यहां से प्रस्थान कर चुकी थी लेकिन पुलिस को चकमा देकर वह यहीं रुक गई। वह गई नहीं थी।
यहां उस पर कई केस चल रहे थे और वो विभिन्न अवसरों पर न्यायालय से अनुपस्थित बताई गई थी। जबकि पुलिस रिकॉर्ड ये कहता था कि या तो महिला जानबूझ कर उपस्थित नहीं हो रही थी या फिर किसी षडयंत्र का शिकार थी। क्योंकि हर बार कोर्ट द्वारा की गई कार्यवाही के बाद उसके सुधारात्मक उपायों के पर्याप्त सबूत महिला की दिनचर्या में शामिल थे।
महिला की कहानी संक्षेप में इस प्रकार थी- महिला किसी ऐसे व्यक्ति या गिरोह के चंगुल में फंस कर अवैध कार्यों में पड़ गई थी जिसका नेटवर्क देश के बाहर तक फ़ैला हुआ था। महिला के साथ भयंकर यौनाचार हुआ था जिसके बारे में ये नहीं सिद्ध हो सका था कि ये कोई बाहरी लोगों का दुष्कर्म के रूप में अचानक आक्रमण था अथवा महिला की सहमति से ही साथी कर्मियों द्वारा निरंतर किया जा रहा देहशोषण था।
महिला ने दो बार विदेश यात्रा भी की थी और गैर कानूनी रूप से एक ऐसे शल्य क्रिया ऑपरेशन में भी उसने सहयोगी के रूप में भाग लिया था जहां भारी रकम के बदले शरीर के अंगों को बेच देने का मामला जुड़ा हुआ था।
लेकिन इस सब के बाद महिला पागल हो गई। इस परिस्थिति में पुलिस ने ये शक भी जाहिर किया था कि वस्तुतः रुपए के लेनदेन में बेईमानी के कारण हुए ज़बरदस्त झगड़े से ऐसी स्थिति आई होगी। ये साथियों के बीच पैसे के बंटवारे से उपजा विवाद भी हो सकता है जिसके कारण महिला को अकेली पड़ जाने पर वीभत्स यौनाचार द्वारा रास्ते से हटाने की कोशिश हुई हो। महिला अविवाहित थी।
इस बात का पर्याप्त सबूत दर्ज़ था कि महिला ने अपने गिरोह के लिए एक बेहद सम्मानित विदेशी नागरिक को वांछित अंग की गुप्त बिक्री संपन्न की थी। और ये मामला उस देश के मीडिया में भी उछला था।
जो आर्यन कुछ दिन पूर्व एक लाइब्रेरी में मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली का ये शेर पढ़ कर झूम उठा था कि -
"मेरे दिल के किसी कौने में बैठा एक वो बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!"
वही आज आधी रात के इस चटक चांदनी के साम्राज्य में तन्हा बैठा कांप रहा था।
आश्चर्य की बात ये थी कि जिस अमानुषिक अभागी महिला की आपबीती पढ़ कर आर्यन की आंखें फटी रह गई थीं वो ख़ुद भी कुछ ही दूरी पर ज़ंजीरों में बंधी चैन से सो रही थी।
आज इस तथाकथित पगली ने पागलपन का कोई भी लक्षण इस पूरी रात में प्रदर्शित नहीं किया था।
पौ फटने वाली थी और बैंच पर करवटें बदलते आर्यन को घोर अचंभा था कि महिला गहरी नींद में शांति से सोई पड़ी थी। दुनिया से बेखबर।
सुबह के धुंधलके में आर्यन के दिमाग़ में एक अजीबो- गरीब ख्याल आया कि अगर आज उसके साथ आगोश या सिद्धांत इस समय यहां होते तो वो गहरी नींद में सोई इस स्त्री को निर्वस्त्र करके एक बार पीछे से पहचानने की कोशिश ज़रूर करते कि क्या ये औरत सचमुच वही है जो उस रात उन सब ने आगोश के घर में देखी थी! शायद वो पहचान भी लेते।
छी- छी.. ये क्या सोच बैठा वो, उसने ज़ोर से भींच कर आंखें बंद कर लीं और अपने विचार शून्य मस्तिष्क को ढीला छोड़ दिया। वह सो गया।
उसे नींद में सपने में ही घनी छांव में चलती हुई मधुरिमा दिखाई देने लगी। वो मधुरिमा से कहने लगा कि तुम भी मेरे सपने में आना और ज़रा देख कर बताना कि मुझसे थोड़ी दूर पर सोई पड़ी ये छिन्नमस्ता कहीं तुम्हारे घर में रह कर जाने वाली तुम्हारी किरायेदार तो नहीं है?
नींद में भी आर्यन ने अपनी आंखों को और भी ज़ोर से भींच लिया क्योंकि मधुरिमा अब उसे डांटने लगी थी। कहती थी- किसी स्त्री को निर्वस्त्र देख कर तुमने आंखें बंद क्यों नहीं कर ली थीं?