Taapuon par picnic - 27 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 27

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टापुओं पर पिकनिक - 27

आर्यन की ड्यूटी यहां लगी, बाक़ी लोगों को बाद में बताने के लिए कहा गया।
हां, सिद्धांत को भी वेटिंग में रोक लिया गया।
असल में ये इंफॉर्मेशन उनके पुराने स्कूल से आई थी, और स्कूल वालों ने उनके पास दर्ज़ मोबाइल नम्बरों पर ही संपर्क किया था।
एक एनजीओ ने कॉलेजों और स्कूलों से ऐसे बच्चों के नंबर मांगे थे जो वृद्ध और अकेले बीमार लोगों को अपना कुछ समय दे सकें।
इसके लिए युवाओं को प्रमाणपत्र दिया जाता था जो उनकी डिग्री में एक उपलब्धि के रूप में दर्ज़ होता था। छात्रों को ऐसे लोगों के घरों या हॉस्पिटल्स में निर्धारित समय तक इन बुजुर्गों के साथ रहना पड़ता था और इस बीच उनके किसी परिजन या मित्र की भांति ही उनकी तीमारदारी करनी होती थी।
इसमें उन्हें पत्र - पत्रिकाएं पढ़ कर सुनाना, दवा देना, नाश्ते- खाने को परोसना, उनके कपड़े बदलवाना, उनसे बातचीत करना जैसे साधारण काम शामिल रहते थे। ये छात्र उनके बाज़ार के छोटे- मोटे काम भी संपन्न करते थे।
लेकिन आज आर्यन को एक विशेष चुनौती मिली थी। उसे एक डॉक्टर अपने साथ शहर के प्रसिद्ध मानसिक चिकित्सालय में ले आए थे।
उनके साथ कुछ अन्य सहायक भी थे जिनमें सभी तरह के कार्य करने वाले लोग थे।
आर्यन को एक नई जानकारी आज यहां मिली।
आज शरद पूर्णिमा थी।
उसे एक युवा मेडिकल छात्र ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात को अक्सर मेंटल हॉस्पिटल में कुछ रोगियों को काफ़ी तकलीफ़ हो जाती है। वो कुछ समय के लिए बहुत उपद्रवी और अस्थिर हो जाते हैं।
ऐसे में हॉस्पिटल के वार्डों में कई रोगियों पर दो- तीन लोगों का सीमित स्टाफ ही होने से रोगियों को संभाल पाने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी आ जाती है।
ऐसी स्थिति में विशेष ख़तरनाक रोगियों को चिन्हित करके उन्हें विशेष देखभाल में रखने की कोशिश की जाती है।
आर्यन को ये सब सुन कर थोड़ा आंतरिक भय तो सता रहा था किंतु उसे युवावस्था का स्वाभाविक कौतूहल भी था कि ये सब क्या होता है, क्यों होता है और कैसे संभाला जाता है।
आर्यन ने आज रात भर डॉक्टर साहब के साथ रह कर ड्यूटी देने की सहमति दी थी। इसके लिए उसे प्रशंसा पत्र के साथ- साथ कुछ नकद राशि भी दी जानी थी।
रात के नीरव सन्नाटे में उसे एक छोटे से गैलरीनुमा कक्ष में भेजा गया था जहां दोनों ओर बाहर की ओर दो मरीजों को लगभग बांध कर रखा गया था। डॉक्टरी भाषा में इन दोनों को ही ख़तरनाक चिन्हित किया गया था।
उससे कुछ दूरी पर थोड़ा घूम कर एक गलियारे में एक दूसरा लड़का भी था और यही बात इस ख़तरनाक रात में उसका सहारा थी।
आसपास से तरह- तरह की आवाज़ें आ रही थीं। अधिकांश रोगी सो चुके थे अथवा अपने -अपने बिस्तर पर सोने या लेटने की प्रक्रिया में थे।
इस ख़तरनाक मुहिम में आर्यन जैसे बिना अनुभव वाले कमउम्र युवक को लगाने के पीछे भी एक ख़ास कारण था।
उसे बताया गया था कि उसे एक महिला रोगी के साथ लगाया गया है।
आम तौर पर महिला रोगियों के साथ नर्स या किसी अन्य महिला को ही लगाया जाता था लेकिन इस महिला का पुराना रिकॉर्ड देख कर कोई महिला या लड़की इसके साथ रहने को तैयार नहीं होती थी।
इस महिला को पागलपन के ऐसे दौरे पड़ते थे जिनमें ये बुरी तरह बड़बड़ा कर चिल्लाते हुए बेहद भद्दी गालियां दिया करती थी।
जब किसी पिशाच या भूत की तरह आंखें लाल करके, बालों को बिखरा कर नौंचते हुए वो बेहद गंदी- गंदी गालियां देती तो उसकी संभाल या तीमारदारी में लगी महिला उसके वीभत्स रूप से कांप जाती। यहां तक कि अनुभवी नर्सें तक उसकी देखभाल से कन्नी काटते हुए भाग जाती थीं।
इस संकट के हल के रूप में उसके साथ कभी पुरुषों को लगाया गया परन्तु ऐसा देखा गया कि कुछ लोग महिला की इस स्थिति का शारीरिक लाभ उठाने से भी नहीं चूके। बीमार मानसिकता के कुछ ऐसे पुरुष महिला के शरीर से और भी खिलवाड़ करते हुए पकड़े गए। सूनी अकेली रात उन्हें उकसाती कि वो अपने मन की कर गुजरें।
इस तरह के बर्ताव से महिला का इलाज कर रहे चिकित्सक का कहना था कि रोगी को और भी अधिक नुकसान हुआ तथा उसकी हालत ज़्यादा बिगड़ गई।
ऐसे में कम उम्र के पढ़े- लिखे समझदार युवकों को रखने से स्थिति थोड़ी काबू में रहती थी।
यहां एक बात ये अच्छी थी कि रुग्णालय की लाइब्रेरी से आर्यन पढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री भी ले आया था। उसे बैठने के लिए एक लकड़ी की बेंच दी गई थी जहां वो सब कुछ ठीक और काबू में रहने पर थोड़ी बहुत देर के लिए कमर सीधी करने को सो भी सकता था।
रुग्णालय की कैंटीन रात भर खुली रहती थी। इस जन शून्य वीरानी के बारे में कोई नहीं कह सकता था कि कब कौन सा बखेड़ा खड़ा हो जाए और पागलों के शोर शराबे से आधी रात भी कोलाहल में तब्दील हो जाए।
शरद पूर्णिमा को ये स्थिति विशेष संवेदनशील होती थी।
आर्यन ने अभी- अभी एक किताब में पढ़ा था कि पागल खाने को इसीलिए "ल्युनेटिक असाइलम" कहा जाता है क्योंकि चंद्रमा के ग्रहण अथवा विचलन को लेटिन भाषा में ल्यूनर एकलिप्स कहा जाता है, और इसी के प्रभाव से धरती पर समुद्र की लहरों में उथल- पुथल भरा आलोड़न होता है।
यही प्रक्रिया अगर इंसानी दिमाग़ पर होने लगे तो आदमी पागल हो जाता है।
ये दिलचस्प जानकारी आर्यन को बहुत रुचिकर लग रही थी और वो इस किताब में खोया हुआ था। उसका ध्यान इस आश्चर्यजनक तथ्य पर भी अब तक नहीं गया था कि वो रोगी स्त्री भी चुपचाप आर्यन को एकटक देखे जा रही थी जिसके उपद्रवों को नियंत्रित करने के लिए आर्यन वहां बैठा हुआ था। औरत लेटी हुई ज़रूर थी पर अब तक सोई नहीं थी।
उसकी मोटे खद्दर की कैदियों जैसी साड़ी ऊपर से एक एप्रिन डालकर पतली जंजीरों से बांधी गई थी ताकि वो एकाएक उठ कर कहीं भागने न लगे।
ये रात भी आर्यन की ज़िन्दगी में कुछ नया जोड़ने वाली थी।
उसने एक बार सिद्धांत को फ़ोन मिलाया पर सिद्धांत को जहां भेजा गया था वो जगह यहां से कई किलो मीटर दूर थी।