Taapuon par picnic - 22 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 22

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टापुओं पर पिकनिक - 22

बेकरी के अहाते के पिछवाड़े वाले गेट पर ही मनप्रीत ने साजिद को स्कूटी से उतारा और तेज़ी से चल पड़ी।
उसकी धड़कन थोड़ी बढ़ी हुई थी क्योंकि एक तो थोड़ी ज़्यादा ही देर हो गई थी, दूसरे साजिद ने आज उसे छू दिया था। वह साजिद के "बाय" कहने का जवाब भी ठीक से नहीं दे पाई कि स्कूटी उड़ चली।
लेकिन बेचारी मनप्रीत कहां जानती थी कि उसके रवाना होते ही पीछे से घरघरा कर एक बाइक और उसके साथ - साथ रवाना हुई है।
मेन रोड पर तो ट्रैफिक में साथ - साथ चलने वाली गाड़ियों का कोई अहसास नहीं होता लेकिन जब भी कोई थोड़ी सूनी सी सड़क आती मनप्रीत को लगता कि सड़कछाप शोहदे छेड़खानी के इरादे से उसके साथ लग गए हैं। दो- चार बार इधर - उधर घुमा कर निकलने के बाद मनप्रीत समझ गई कि उसका पीछा किया जा रहा है।
वह डर गई।
उसने तत्काल अपने घर की ओर जाने वाला रास्ता छोड़ दिया। वह इन लंपट से दिखने वाले लड़कों को अपने घर का पता नहीं देना चाहती थी।
लेकिन एक पल में ही बाइक को बिल्कुल करीब लेकर जब एक लड़के ने धीरे से कहा- मैडम डरिए नहीं, हमें आपको घर तक छोड़ कर आने के लिए साजिद सेठ ने ही भेजा है। आप अकेली जा रही थीं न इसलिए।
मनप्रीत की जान में जान आई।
लड़कों से बोली- अच्छा - अच्छा, मेरा घर आ गया। फ़िर उन्हें कहा- थैंक्स। जाओ, मुझे पहले ही बता देते।
लड़के गाड़ी स्टार्ट करके चले गए।
मनप्रीत ने लड़कों से तो कह दिया कि मेरा घर आ गया है पर हकीक़त ये थी कि वो डर कर अपने घर से काफ़ी दूर निकल आई थी। उसका घर यहां से काफ़ी दूर पीछे ही छूट गया था।
अब मनप्रीत ने स्कूटी स्टार्ट की तो हुई ही नहीं। उसने कई बार कोशिश की। पर न जाने क्या हुआ था, वो स्टार्ट होकर ही नहीं दे रही थी।
शायद मशीनें भी समझ जाती हैं कि उनका मालिक किसी भय या असमंजस में है, तो वो भी सहम जाती हैं।
इधर- उधर देखने पर नज़दीक की ही एक दुकान पर लगे बोर्ड से उसे समझ में आया कि वो किस एरिया में है। वो अपनी किसी फ्रेंड को फ़ोन करने लगी। उसका अनुमान था कि वह आसपास यहीं - कहीं रहती होगी।
संयोग से उसका घर एकदम पास ही निकला। वो आ गई और मनप्रीत को अपने साथ अपने घर ले गई।
फ्रेंड के घर पहुंच कर जब फ़ोन से ही मनप्रीत ने अपनी मम्मी को बताया कि स्कूटी ख़राब हो जाने से उसे देर हो गई है तो उसकी मम्मी ने पहले तो उसे थोड़ा डांटा पर फ़िर बताया कि वो किसी को भेज नहीं सकतीं क्योंकि आसपास कोई है नहीं। घर पर आज उसके पापा भी नहीं हैं, कहीं बाहर गए हैं।
मनप्रीत की सहेली मधुरिमा ने जब ये सुना तो उसने झपट कर फ़ोन मनप्रीत के हाथ से छीना और फ़ोन पर ही बोली- "आंटी चिंता न करो, ये मेरे घर है, इसकी स्कूटी बिगड़ गई है, कल मिलेगी। तो ये कल आ जाएगी।"
मनप्रीत की मम्मी ने थोड़ी ना - नुकर की, पर फ़िर ज़ोर देने पर मनप्रीत को आज वहीं रुकने की परमीशन दे दी। आज पापा तो घर में थे नहीं, डिसीजन मम्मी को ही जो लेना था। मम्मी ने सोचा, चल पुत्तर, तू भी क्या याद रखेगी। तेरी बात रख ली।
रात को सोते समय मनप्रीत का दिल चाहा कि वो मधुरिमा को आज दोपहर का वाकया बता दे। आज साजिद ने पहली बार उसे छू दिया था। उसे अपनी छातियों पर साजिद की अंगुलियों की गुदगुदाहट अब भी महसूस हो रही थी।
कितना भोला- भाला दिखता है.. पर बात करते हुए चलते - चलते अपना हाथ एकदम से गले की ओर से उसकी टीशर्ट में घुसेड़ दिया। निशाना ऐसा कि सीधा... अभी भी थोड़ी सिहरन बाक़ी थी। मरोड़ जो दिया। गनीमत रही कि बटन नहीं टूटा। खुला हुआ रहा होगा शायद।
मधुरिमा ये तो भांप रही थी कि मनप्रीत कुछ चहक सी रही है पर उसे ये अंदाज़ नहीं था कि वह क्या गुल खिला कर आई है।
मधुरिमा अपने घर की छत पर बने इस कमरे की दास्तान मनप्रीत को सुनाने लगी।
ये साल भर से ख़ाली ही पड़ा था। उससे पहले तो काफ़ी दिनों से एक नर्स ने ये किराए पर लिया हुआ था।
- अब वो चली गई? मनप्रीत ने पूछा।
- चली क्या गई, हमने ही निकाला। मधुरिमा ने किसी रहस्य की तरह बताया।
- क्यों?
- अरे, उसकी तो अजब - गजब कहानी निकली। मधुरिमा रस ले- लेकर बताने लगी- वो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में काम करती थी। सुनने में आया कि इल्लीगल अबॉर्शन करती थी। बल्कि डाउट तो ये था कि ऑर्गंस की तस्करी में भी इन्वॉल्व थी कहीं।
- कैसे मालूम पड़ा? मनप्रीत को ये कहानी उसकी अपनी कहानी से ज़्यादा असरदार लगी। वह अपनी बात भूल कर इसी में रस लेने लगी।
मधुरिमा बोली- बाद में उसका ख़ुद का रेप हो गया। उसी के साथ काम करने वाले लड़कों ने कर दिया। वो साउथ में कहीं चली गई। बल्कि एक तरह से तो बच गई। पकड़ी जाती तो उसके कारनामों पर यहीं लंबी जेल हो जाती। बाद में तो पागल सी हो गई थी। पगली की तरह व्यवहार करती।
दोनों सहेलियां रात देर तक बातें करती रहीं।