कन्हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 18
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज कृत
(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)
हस्तलिखित पाण्डुलिपि सन् 1852 ई.
सर्वाधिकार सुरक्षित--
1 परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति
(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्हर दास जी सार्वजनिक
लोकन्यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्द्री, पिछोर।
सम्पादक- रामगोपाल ‘भावुक’
सह सम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ राधेश्याम पटसारिया राजू
परामर्श- राजनारायण बोहरे
संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)
पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com
प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2045
श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2054
सम्पादकीय--
परमहंस मस्तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्द विभोर कर रहा है।
पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्दी साहित्य में स्थान दिलाने, संस्कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज सम्वत् 1831 में ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्मे।
सन्त श्री कन्हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्हर सागर’’ में पर्याप्त स्थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्त संत श्री कन्हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्तुत कर रहे हैं।
कन्हर पदमाल के पदों की संख्या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्या का प्रमाण--
सवा सहस रच दई पदमाला।
कृपा करी दशरथ के लाला।।
के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्त हो पाये हैं। स्व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्द्र उत्सुक के सम्पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्त्रीय संगीत की धरोहर
तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।
गुरू कन्हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्थ।।
विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्तम श्री कृष्ण का जीवन झांकी से साम्य उपस्यित करने में बाबा कन्हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।
डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्त्रीय संगीत की धरोहर कन्हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी रविवार सम्वत् 1939 को पिछोर में हुआ।
नगर निगम संग्रहालय ग्वालियर में श्री कन्हर दास पदमाल की पाण्डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्वालियर द्वारा पाण्डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्त चन्दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।
पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्हर साहित्य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।
इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।
रामगोपाल भावुक
दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्पादक
राग – अलय्या
स्याम बिना म्हारी या गति भई रे।।
कहियन परति कहौं अब कासौं, ऐसी उर में ठई रे।।
बिछुरत प्रान पयान न कीनौ, मन की मन में रही रे।।
कन्हर फेरि कहौ कब मिलिहै, हिअरा जातु दही रे।।578।।
राग – पीलू
विजय चहय जग विजय गोविंद भजि।।
कपट झपट कह करहौ निरादर, सकल विकार विषय तजि।।
नाम अनूप परम वर सुंदर, अवलोकहु कहो राम नाम भजि।।
कन्हर जुगल प्रिया प्रीतम लखि, मदन मन छवि जाति सकुचि लजि।।579।।
राग – भैरौ
सीताराम दीन के दानी।।
सेवत सुर निज लोक लोक तजि, तन मन आनंद बानी।।
बन्दीजन गंधर्व गुन गावत, रघुकुल सुजस बखानी।।
कन्हर चरन सरन तकि आयौ, रामचन्द्र रजधानी।।580।।
सुंदर सीयराम रूप निरखि दृगनि हारी।।
क्रीट मुकुट चन्द्रिका पर कोटि चन्द्र वारी।।
श्रवन कुंडल करनफूल लसत लाल प्यारी।।
मुक्त माल षट प्रकार हृदयै हार वारी।।
मुख सरौज चन्द्र वदन उपमा अधिकारी।।
स्याम अंग पीत बसन गौर सुरंग सारी।।
नूपुर दुति प्रति विचित्र पायल पगधारी।।
कन्हर जुगल रामसिय सुमरि रहौ नर – नारी।।581।।
सुरति आली दीनी हरि ने बिसराई।।
आज बिसराय फिरि पतिअन भेज, निसि – दिन मन भरमाई।।
वे बातें अब कह जे बातें, कहत न कोई समझाई।।
कन्हर हूलहि येकि हमारी, कब हरि है अरि आई।।582।।
सुरति म्हारी हरि कब करिहैं।।
वह अवसर आली कब आहै, आनंद उर भरिहैं।।
छिन – छिन कल्प व्यतीतत, हमकौं कब उर दुख हरिहैं।।
कन्हर के प्रभु धीर न आवति, कबै पांइ परिहैं।।583।।
सामरे म्हारे दृग सरसानि ।।
बिसरी सुरति खबरि नहिं तन की, पर तन मघ पहिचानि।।
मारग जात मले री आली, मंद – मंद मुसिक्यानि।।
कन्हर वह छवि निरखि लाल की, तब तै मन भरमानि।।584।।
मोसौ दीन हरि काहे न हेरौ।।
मैं तो जतन कितन करि हारौ, धारौ न टेरौ।।
तुम बिन नाथ कौन निरवारे, उलझौ जाल उरझेरौ।।
काम क्रोध मद लोभ मोह, के इनके वास बसेरौ।।
भ्रमत चहूं दिस सुभत भयौ अब, बहुतनि त्रास त्रसेरौ।।
कन्हर नाम सुनौ हरि तुम्हरौ, भव सागर मह बेरौ।।585।।
राग – परज काल गड़ा
सखी री स्याम सुघर हेरै।।
बिसरी सुरति खबरि नहिं, तन की चंचल दृग फेरै।।
तब ते भई बावरी डोलौं, सुरति न मन मेरै।।
कन्हर के प्रभु कृपा करीजै, बसीभूत तेरै।।586।।
राग – झंझौटी
हरि बिन जीवन ही निस्तारा।।
काम क्रोध मद लोभ मोह मंह, उरझि – उरझि निस्सारा।।
करनी समझि – समझि उर लागत, बीच और भव धारा।।
कन्हर राम नाम हित बोहित, जात लगावत पारा।।587।।
राग – देस, तार – लूंम
सियावर रूपनिकाई बरन नहिं जाई।।
सुख आसीन कमल सिंहासन, अधिक मनोहरताई।।
मंदिर रचित विचित्र चित्रवर, सुंदर सुखद सुहाई।।
फूलबाग के चिमन चारि तंह, लता लूंमि झुकि छाई।।
मारूति लाल वीर बलि बंका, संका जाति पराई।।
कन्हर राम सिया लछिमन जपि, मन न रहै मलिनाई।।588।।
सियावर पार करे बहुतेरे।।
अपनाये सरनागत कीनै, नाम जपत निरवेरे।।
सबके हेत सेत भव कीनौं, चहे जात तै फेरे।।
नाम लेत अघ रेत होत है, सगरे पाप विदेरे।।
मन के भरम नाम जपि भाजै, अरज सुनै सुनत नहिं फिर टेरे।।
कन्हर बार लगा नहिं विन कह, तिनि तन रघुवर हेरे।।589।।
राग – धनाश्री
राम नाम जपि सुरझे ते।।
बहु जन्मनि के फंद बंद मंह, पार परे भव उरझे ते।।
भाजे भ्रम स्रम छिन नहिं लागा, आदि दिननि के सरके ते।।
भय सभीत जनु सीत तरून लखि, कठिन गठन गठि मुरके ते।।
स्रमत निमृत त्रेताप आय ते, सिमिटि झिमिटि रह जुर जेते।।
कन्हर नाम कहत सब भाजे, बसत बास तन पुर तेते।।590।।
सखी री देखौ स्याम अनेरौ।।
रोकत म्हारी डगरि बगरि कह, मानत कहौ न मेरौ।।
निकसन कस अब होई कहौ री, करत रहत वह फेरौ।।
कन्हर रोक टोक नित गृह में, कहा लगावति देरौ।।591।।
राग – धनाश्री, ताल – त्रिताल
राम जपै न झपै जा जग मैं।।
स्रम भ्रम तम कबहूं नहिं लागत, आवत नहिं तन मैं।।
करत न सोच असोच पोच कह ते न परत जम फग मैं।।
निरभय रहत गहत सुभ मारग, रंगे रहत वा रंग मैं।।
मगन रहत हरि के गुन गावत, लागत ना अघ संग मैं।।
कन्हर राम नाम की निस दिन, लगी चोट जा अंग मैं।।592।।
बात वही म्हारी राम सम्हारी।।
परी धार भव भौंर भरम महं, निज कर करनि उबारी।।
दूजौ दीनदयाल न ऐसौ, करौ अभय भय टारी।।
कन्हर प्रभु पद जपत रहत, जेते जन – जन मनहारी।।593।।
जापर कृपा रहत सियावर की।।
सुख संपदा रहत तिनके गृह, ज्यों सरिता निधि सर की।।
सो जन अभय रहत जा जग मैं, आस करत नहिं नर की।।
कन्हर भनत रहत रघुवर गुन, बसत छांह निज कर की।।594।।
राग – गौरी
फिरि – फिरि बिसरि गयौ वे बातैं।।
आवत जाति पात – पात ज्यों, स्रम भ्रम भयौ तातैं ।।
चारि दिना कौ जग कौ मेला, समुझि समझि यातैं।।
कन्हर कामु राम सौं परिहैं, भूलौ मति नातैं।।595।।
राग – भोपाली
भ्रम बस जस बिसरौ नर हरि कौ।।
छिन सुख लागि बहुत दुख पावत, त्रास नहीं अघ अरि कौ।।
मोह द्रोह मद कसि – कसि बांधौ, भूलौ पथ वा घर कौ।।
कन्हर कोई- कोई कोटिनि मैं, ध्यान धरौ रघुवर कौ।।596।।
राग – काफी
हरि मोई चरन सरन कब राखौ।।
भूलौ जीव सीम को उलघत, लोक लाज ना राखौ।।
को राखत मरजाद नाथ अब, तन मन अघया कौ।।
कन्हर राम नाम सबकौ हित, जग में को काकौ।।597।।
हरि सुमिरन बिन नहिं तन बेस।।
भरमत जनम – जनम पुनि लेवत, क्यों न भजे अवधेस।।
बिन हरि जपै भ्रमै भ्रमना, तू जनमि गमायौ सेस।।
परी खबरि अवरि कह तोकौ, सुधि न रही लवलेस।।
भूलि गयौ सठ नीच मीच कह, फिरि चलिहैं वाही देस।।
कन्हर प्रभु बिन कौन छुटाहै, जब जम पकरै केस।।598।।
राग – देस
जाकौ रघुवीर कौ बल सांचौ।।
सो भव कूप श्रूप नहिं पावत, आवत जात न नांचौ।।
मगन ध्यान जग तग नहिं आवत, जो साचौ मन रांचौ।।
कन्हर प्रभु पद निरखि हर्षि करि, निर्भय पद जन जांचौ।।599।।
कृपा करि राम दरस म्हाने दीजो जी।।
पीडि़त जीव परौ भव माही, दीन जानि किंकर मोहि कीजौ जी।।
करम भरम बहुत भरम भुलानौ, लोभ कील हरि तन मन भीजौ जी।।
कन्हर अरजु सुनहु रघुनन्दन, अबकी बार खबरि फिर लीजौ जी।।600।।
रघुवीर हमारी पीर हरिहैं।।
नाम जपत सबकौ हित हो गयौ, हमरौ कब करिहैं।।
अब तौ नाथ भरोसौ भारी, सुमिरत अघ टरिहैं।।
कन्हर प्रभु की ओर होय जो, सोई सोई भव तरिहैं।।601
सुमिरौ सीताराम नाम जन्म जात बीता।।
सकल भरम भरम छांडि़ मानि कह मीता।।
चलत बार समझि मूढ़ कौन संघ कीता।।
कन्हर तकि नाम सार नहीं जाय रीता।।602।।
यह बानि ठानि कह ठानी, तूं राम नाम जप प्रानी।।
ना संग आना ना संग जाना, झूठा जग कह जानी।।
रहा न कोई रही न कोई, ताते कह बहु तानी।।
कन्हर कह हरिनाम जपौ मन, हरष हृदे मह आनी।।603
राग – अड़ानौं, ताल – त्रिताल
सुरि सुमिरौ जी नर नहीं व्यार।।
तन मन चरन सरन सरनागत, जस जीवन जग सार।।
बहता रहत लोभ मोह क्यों, जाकौ आर न पार।।
कन्हर भजौ सिया रघुवर कौ, नहिं बीधौ भ्रम जार।।604।।
राग – झंझौटी
निपट अभागी कुपथ पथ लागी।।
नाम सुधा रस को ना पीवत, विषय वारि उर पागी।।
कुटिल मोह बस कहा न मानत, झूठौ राग तन रागी।।
कन्हर जपौ सिया वर सुन्दर, करम भरम कह त्यागी।।605।।
राम न जाना सो नर बहुत भुलाना।।
हरि बिन कौन सहाइ करैगो, ता दिन होइ बुलाना।।
बिसरौ फिरत खबरि नहिं तन की, मन भ्रम फिरत डुलाना।।
कन्हर बिना भजन रघुवर के, फंदनि ते न छुड़ाना।।606।।
राम जपति तौ जग कौ तरना।।
स्वांस पास फिरि आवति जावति हौ, क्योंकरि भ्रम परना।।
मन तू वहा-वहा मति डोलौ, वृथा जनम नहिं करना।।
कन्हर तकौ चरन रघुवर के, जम भय से नहिं डरना।।607।।
हरि बिन कौन करै हित मेरौ।।
सब स्वारथी हेत स्वारथ कंह, निसि वासर मोहि घेरौ।।
स्वारथ जात बात न बूझत, तातै समुझि सलेरौ।।
कन्हर राम नाम कह सुमिरत, होत न सार बसेरौ।।608।।
हरि बिन और न दीसत कोई।।
सबके देखत बांधि लेत जम, स्वारथ हित सब रोई।।
ऐसी समझि समझ नहिं आवति, फिर – फिरि वह मग जोई।।
कन्हर फिरि पछितात अभागौ, राम विमुख अस होई।।609।।
राग – देस, ताल – एकतारौ
हरि भजि तन कह तनक निरासा।।
आसा वासा पासा मन तजि, छिन मह होत निकासा।।
चलती बार खबरि फिरि आवति, भिन्न होई तन स्वासा।।
कन्हर तातै समझि बसेरौ, झूठौ जग कह बासा।।610।।