Aag aur Geet - 20 - Final Part in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | आग और गीत - 20 - अंतिम भाग

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आग और गीत - 20 - अंतिम भाग

(20)

साइकी अब उस कमरे में अकेली खड़ी थी । उसी कमरे में एक छोटी सी मशीन लगी हुई थी और लकड़ी के एक तख्ते पर ट्रांसमीटर रखा हुआ था । साइकी की नजरें घड़ी पर लगी हुई थीं और उसके चेहरे से बैचेनी प्रगट हो रही थी । फिर ट्रांसमीटर पर किसी को सम्बोधित करते हुए उसने कहा ।

“तुम उड़ान कर चुके हो ?”

“हां ।” दूसरी ओर से आवाज आई ।

“कितनी देर में पहुंच जाओगे ?”

“आधे घंटे में ।”

“इसका मतलब यह है कि मैं आधा घंटा बाद बेन्टो को सुरंगे उड़ाने का सिग्नल दूं ?”

“हां ।”

उसी समय उसे फायरिंग की आवाजें सुनाई दीं । उसने ट्रांसमीटर का स्वीच आफ कर दिया और कमरे से बाहर निकलना ही चाहती थी कि निशाता अपने बूढ़े बाप के साथ अंदर दाखिल हुई । साइकी ने तेज नजरों से उन्हें देखा फिर खाने वाले भाव में बोली ।

“तुम लोग यहां क्यों आये हो ?”

“बेन्टो की तलाश में ।” बूढ़े ने कहा ।

“तुम कैद से भाग निकले थे मगर फिर भी मैं तुमको क्षमा करती हूं । चले जाओ यहां से ।”

“राजेश कहां है ?” निशाता ने पूछा ।

“ओह ! मेंडकी को भी झुकाम हो गया है !” साइकी ने व्यंग भरे स्वर में कहा फिर पूछा – “तुमको उसका नाम कैसे मालूम हुआ ?”

“तुम्हीं लोगों से उसका नाम सुना था ।” निशाता ने कहा ।

“उसके बारे में क्यों पूछ रही हो ?”

“मैं उससे शादी करूंगी ।”

“शादी !” साइकी ने अट्टहास लगाया फिर बोली “वह तो क़त्ल होने जा रहा है ।”

“उसे कोई नहीं मार सकता । पूरी बस्ती तुम्हारी दुश्मन हो रही है । तुम यहां से जिन्दा बच कर नहीं जा सकती । मेरे बूढ़े बाप को ज़ख्मी किया गया और फिर कैद कर दिया गया । तुम्हारे एक आदमी ने मेरी बेइज्जती करनी चाही थी मगर राजेश ने मेरी इज्ज़त बचा ली । आज और इसी समय मुझे तुमसे बदल चुकाना है ।”

“अच्छा !” साइकी जहरीली हंसी के साथ बोली “जा भाग जा ! तुझे कुछ भेड़ें और कुछ कम्बल ओर दिये जायेंगे ।”

“मुझे यह सब नहीं चाहिये !”

“फिर क्या चाहिये ?”

“यह बता दो कि राजेश कहां है । और अपने तमाम आदमियों को हमारे हवाले कर दो । मेरे साथी प्रतिशोध की आग में जल रहे हैं ।”

“अगर मैं तेरी यह बातें न मानूं तो ?”

“तो फिर मैं तुम्हारा यह सब काठ कबाड़ बर्बाद कर दूंगी और तुमको जान से मार डालूंगी । तुम मुझसे अधिक शक्तिशाली नहीं हो ।”

सैअको ने कुछ नहीं कहा । फायरिंग की आवाजे अब भी उसे सुनाई दे रही थीं । उसने फिर कमरे से बाहर निकलना चाहा मगर निशाता के बाप ने मार्ग रोक लिया और कठोर स्वर में कहा ।

“हम लोग औरतों पर हाथ नहीं उठाते । मुझे फौरन बताओ कि राजेश कहां है ?”

“आखिर राजेश से तुम्हें क्या मतलब ?” साइकी ने झल्ला कर पूछा ।

“उसने मेरी बेटी की इज्ज़त बचाई थी और तुम जानती हो कि हम किसी के एहसान का बदला चुकाने के लिये अपना खून बहा दिया करते हैं ।”

साइकी ने कुछ नहीं कहा । वह बूढ़े को ढकेल कर बाहर निकलना ही चाहती थी कि राजेश और नायक अंदर आ गये ।

राजेश को देखते ही निशाता खुशी से उछल पड़ी । उसके अधरों पर मुस्कान फैल गई थी । वह राजेश की ओर बढ़ रही थी कि राजेश ने उसे रोकते हुए रिवाल्वर निकाल लिया आने साइकी से कहा ।

“अब बोलो !”

“बोलूं क्या !” साइकी ने मुस्कुरा कर कहा “इस खिलौने को जेब में रख लो । यहां हलका सा धमाका भी तुम सब ककी मौत का कारण बन जायेगा ।”

“तुमने आग का स्नान किया था । क्या यह सच है ?” राजेश ने पूछा ।

“बिल्कुल सच है ।”

“वह कैसे ?” राजेश ने पूछा । वह वास्तव में साइकी को बातों में लगाये रखना चाहता था । उसे यह भय था कि कहीं साइकी मशीन का हैन्डिल न घुमा दे । वह मशीन देखते ही समझ गया था कि इसी से सुरंगें उड़ाई जाने वाली हैं । उधर साइकी कह रही थी ।

“वह कोई खास बात नहीं थी । वह आग भी रासायनिक थी और मैंने अपने शरीर पर ऐसा लोशन लगा रखा था जिस पर वह रासायनिक आग प्रभाव नहीं डाल सकती थी ।”

“तुम उस रासायनिक आग का फार्मूला मुझे बता सकती हो ?” राजेश ने पूछा ।

“हां, मगर इस शर्त पर कि तुम मेरा साथ देने का वचन दो । तुम्हारा यह साथी बिल्कुल ही निकम्मा और बोदा साबित हुआ ।”

अचानक राजेश मशीन की ओर झपटा, मगर उसके मशीन तक पहुंचने से पहले ही साइकी ने एक जगह अंगुली रख दी । धमाके की आवाज सुनाई दी और राजेश ठिठक गया ।

“तुम इस मशीन तक नहीं पहुंच सकते, राजेश । तुमने यह समझा था कि यह धमाका यहीं हुआ है इसलिये ठिठक गये थे, मगर यह धमाका दूर हुआ है ।”

“तो क्या तुमने सुरंगें उड़ा दीं ?

“नहीं । ऐसे कई बम पहले फटेंगे । फिर मैं सिगनल दूँगी । मेरे आदमी सिगनल पाकर वहां से हट जायेंगे फिर में इस मशीन द्वारा सुरंगें उड़ा दूँगी । मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि सब कुछ जान लेने के बाद भी तुम कुछ न कर सके ।”

“तुम भी तो मुझे क़त्ल नहीं कर सकी !” राजेश ने चिढ़ाने वाले भाव में कहा ।

“तुम्हें जिन्दा रखने का एक कारण था ।” साइकी ने कहा और फिर ख़ुद ही कारण बताने लगी – “तुम्हारा एक आदमी जो यहां कैद था उसके पास अत्यंत मूल्यवान कागजात थे । मगर उसने कहा था कि वह कागजात हवाई दुर्घटना में नष्ट हो गये । मैं यह जानती थी कि उन कागजों में जो था वह तुम्हें मालूम है इसीलिये तुम्हें जिन्दा रहने दिया ताकि तुमसे पूछ सकूं ।”

इतने में जोर का धमाका हुआ । साइकी एक दम से चौंक पड़ी फिर अपने आप बडबडाने लगी ।

“पता नहीं क्या हो रहा है । इससे पहले फायरिंग की आवाजें सुनती रही थी और अब यह जोरदार धमाका । कुछ समज में नहीं आ रहा है ।”

“शायद सुरंगें उड़ा दी गई हैं ।” राजेश ने उस राड को देखते हुए कहा जो साइकी के हाथ में दबा हुआ था और उसे साइकी ने उस समय हाथ में उठा लिया था जब राजेश मशीन की ओर झपटा था ।

“सुरंगें केवल यहीं से उड़ाई जा सकती हैं । इसी मशीन से ।”

उसी समय बाहर से शोर की आवाजें आने लगीं और निशाता के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई ।

“यह शोर कैसा है ?” राजेश ने साइकी से पूछा ।

साइकी ने कुछ कहने के लिये होंठ खोले ही थे कि बेन्टो हांफता कांपता अंदर दाखिल हुआ । उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था । बौखलाहट और बदहवासी में उसकी नजर राजेश पर नहीं पड़ी थी । वह साइकी को कहने लगा था ।

“हमारे सब साथी मार डाले गये मादाम !”

“क्या !” साइकी चौंक कर बेन्टो की ओर देखने लगी ।

“हां मादाम । और यहां बाहर कबायली इकठ्ठा हो रहे हैं । वह मेरे और आपके खून के प्यासे हैं ।”

यही अवसर राजेश के लिये लाभदायक सिद्ध हुआ था । साइकी का ध्यान बेन्टो की ओर हो गया था और राजेश मशीन के पास पहुंच गया था । उसने मशीन का हैन्डिल उल्टा घुमाना आरंभ कर दिया था । फिर उसने एक बटन पर अंगुली रख दी । मशीन से एक शोला निकला और राजेश उछल कर पीछे हट गया । उसी समय साइकी की नजर पड़ गई और वह कहती हुई राजेश की ओर झपटी ।

“अरे शैतान ! यह तूने क्या किया ।”

मगर राजेश तक पहुंचने से पहले ही निशाता और उसके बाप ने उसे पकड़ लिया । निशाता के हाथ में दबे हुए राड से चिंगारियां निकल कर निशाता के बाप पर पड़ीं और वह चीख मार कर गिर पड़ा और निशाता भी उसे छोड़ कर दूर हट गई ।

उधर बेन्टो भी राजेश की ओर झपटा था मगर उसे नायक ने बीच में ही रोक लिया था । मगर बेन्टो ने शीघ्र ही नायक को बेकार कर दिया और फिर राजेश की ओर झपटा । इतनी देर में राजेश ने मशीन को पूरी तरह तबाह कर दिया था और साइकी वाला ट्रांसमीटर उठा कर पटक दिया था ।

बेन्टो राजेश से गुथ गया था । राजेश उससे लड़ भी रहा था और यह भी देख रहा था कि साइकी फिर निशाता की ओर बढ़ रही है और निशाता बेन्टो का पैर पकड़ कर खींच रही है । वह इस प्रयास में सफल भी हो गई । बेन्टो नीचे गिर पड़ा और राजेश उसके सीने पर सवार हो कर उसका गला दबाने लगा ।

साइकी ने जब यह देखा तो वह निशाता का ध्यान छोड़ कर राड उठाए हुए राजेश की ओर झपटी मगर निशाता ने फिर साइकी को पकड़ लिया । साइकी के राड से चिंगारियां निकल कर उस पर पड़ीं मगर उसने साइकी को छोड़ा नहीं । उसका राड छीन कर एक ओर फेंक दिया मगर साथ ही चीख मार कर ख़ुद भी गिर पड़ी । उसके कपड़ों में आग लग चुकी थी और उसका सर फट गया था । उसने हाथ उठाया । मुंह से ‘राजेश’ निकला और वह हमेशा के लिये मौन हो गई ।

इतनी देर में राजेश ने बेन्टो का काम तमाम कर डाला था और उठ कर निशाता को देखने लगा था जो सूखी लकड़ी के समान जल रही थी । थोड़े ही फासिले पर निशाता का बाप जल रहा था । राजेश की आंखों में खून उतर आया । वह साइकी की ओर झपटा और साइकी अपना राड उठाने के लिये झपटी ।

“खबर्दार ! आगे न बढ़ना ।” चिंघाड़ती हुई मोबरानी अंदर दाखिल हुई – “मुझे सब कुछ मालूम हो चुका है और बहुत कुछ मैंने देख भी लिया है ।”

साइकी जो मोबरानी को देख कर एक क्षण के लिये रुक गई थी फिर राड उठाने के लिये झपटी मगर मोबरानी ने उसे पकड़ लिया और उठा कर पटक दिया । राजेश ने जल्दी से राड उठाया फिर नायक को उठाया जो ज़ख्मी था । उसके बाद दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गया । बाहर निकलते समय उसने मुड़ कर देखा था ।

निशाता की लाश के शोले मंद पड़ते जा रहे थे और मोबरानी साइकी का गला घोंट रही थी ।

***

मैदान ही में एक जगह राजेश को मदन इत्यादि मिल गये और मदन बताने लगा ।

“कबायली अत्यंत क्रोध में हैं । कुछ ही क्षण पहले एक हेलिकोप्टर आया था जिसे उन्होंने पत्थर मार मार कर नष्ट कर दिया ।”

“हमें इसी समय यहां से चल देना है इसलिये जितनी जल्द हो सके छोलदारियों पहुंचने की कोशिश करो ।” राजेश ने कहा – “मगर हम अपने पैरों से नहीं चल सकते । तुम लोगों को हम दोनों को लाद कर ले चलना होगा ।”

फिर मदन ने राजेश को और माथुर ने नायक को लादा और तेजी के साथ सब लोग चल दिये ।

छोलदारियों के पास पहुंचे तो मेकफ ने लपक कर राजेश को मदन की पीठ पर से उतारा और पूछा ।

“क्या हुआ बास ?”

“कुछ नहीं । बस थक गया था ।” राजेश ने कहा – “जल्दी से छोलदारियां उखाड़ो और यहां से चल दो ।”

काम आरंभ हो गया । छोलदारियां उखाड़ उखाड़ कर खच्चरों पर लादी जाने लगी और ठीक आघा घंटा बाद पूरी टीम वहां से रवाना हो गई ।

राजेश एक खच्चर पर आंखें बंद किये पड़ा था । उसको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मोबरानी चीख चीख कर कह रही हो कि – राजेश ! तुम कहां हो ? आ जाओ । मैं तुमको मोबरान बनाउँगी । मैंने उस सफ़ेद कुतिया को मार डाला है ।

और उसके जेहन में रह रह कर निशाता की सूरत उभर रही थी । भोली, मासूम चरवाही जिसने उसकी जान बचाने के लिये अपनी जान दे दी ।

उसने आंखें खोल दीं । आंखों से दो कतरे आंसू टपके और उसने फिर आंखें बंद कर लीं ।

(समाप्त)