सुनीता जी अपने आखों के किनारे साफ करती हैं और फिर स्तुति से बताती हैं ।
सुनीता जी - तुम्हारी दोस्त ( आभा ) छः महीने की थी बेटा ... । हम उसे लेकर अपने मायके गए हुए थे , उससे जुड़ी पसनी की रस्म करने के लिए । जिस दिन वो रस्म की जानी थी , उसके एक दिन पहले हमारी छोटी बहन ने हमारे साथ मार्केट जाने की जिद की । हमने मना भी किया , तो उसने कहा कि वह गुड़िया के लिए कपड़े खरीदना चाहती है । हमने उसे अकेले या फिर भाई को साथ ले जाने के लिए कहा , पर उसने कहा कि वह मेरी पसंद के कपड़े लेना चाहती है गुड़िया के लिए । वो बहुत जिद करने लगी , और हम असमंजस में थे , कि गुड़िया को छोड़ कर हम आखिर कैसे जाएं...???? उसी समय हमारी देवरानी और उसके मायके वाले भी आए हुए थे , क्योंकि हमारी देवरानी, हमारी ही चाची की लड़की थी , और तुम्हें तो पता होगा। उस समय में शादियां कम उम्र में ही हो जाया करती थी । हमारी देवरानी मात्र , 12 साल की थी और उसका एक छोटा भाई था , जो कि 5 साल का था । देवरानी थोड़ी समझदार थी , तो उसने मुझे विश्वास दिलाया कि वह गुड़िया का खयाल रखेगी । हम नहीं माने , तो हमारी मां ने हमें आश्वस्त किया , कि हमारी देवरानी गुड़िया का खयाल रख लेगी । हमारा तब भी मन न माना , तो हमने मानव को भी गुड़िया का खयाल रखने को कहा, ये सोचकर कि भले ही मानव छोटा है , लेकिन अपनी बहन से बहुत प्यार करता है, वह उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा और फिर हम अपनी बहन की जिद पर चले गए ।
हमारे पीछे से , वो सभी गुड़िया का खयाल रख रहे थे और गुड़िया उन सभी के साथ खुश थी । तभी मानव जो कि लगभग 4 साल का था , उसने हमारी देवरानी से पानी पीने की जिद की , तो देवरानी उसे गुड़िया का खयाल रखने का कह कर जाने लगी , कि मानव भी उसके पीछे आ गया , और साथ में चलने की जिद करने लगा । देवरानी का भाई भी , वहीं मानव और गुड़िया के साथ खेल रहा था , तो उसने अपने भाई को गुड़िया का खयाल रखने के लिए कहा और फिर मानव का हाथ पकड़कर किचेन में चली गई । बाकी सभी बड़े , अगले दिन की रस्मों की तैयारी में लगे थे और सभी आंगन में जमा हुए बैठे थे ।
विवेक ( देवरानी का भाई ) गुड़िया के साथ खेल रहा था । शाम का समय था , तो उस समय चिमनी ( पुराने जमाने में, रोशनी करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली वस्तु ) हमारे घर में उपयोग में लाई जाती थी । शाम के समय में मौसम खराब होने की वजह से लाइट चली गई , तो किसी रिश्तेदार ने चिमनी जलाकर , विवेक और गुड़िया के पास रख दी, ये सोचकर कि कहीं अगर कमरे में अंधेरा रहा , तो बच्चे कहीं डर न जाएं । वो रिश्तेदार चिमनी रखकर चली गई । अचानक से गुड़िया रोने लगी , तो विवेक उसे चुप कराने के इरादे से उसकी ओर बढ़ा , लेकिन तभी उसका हाथ गलती से चिमनी पर लगा और वह चिमनी पास में रखे होने की वजह से गुड़िया पर गिर गई.........।
( ये बताते हुए सुनीता जी फूट - फूट कर रोने लगती हैं । और स्तुति की आखों में भी आंसू आ जाते हैं और आखिरी लाइन सुनकर उसका दिल धक् से रह जाता है । मात्र छः महीने की बच्ची के साथ ये सब......, और वो भी एक छोटे मासूम से बच्चे की वजह से , जिसे खुद पता नहीं होता , कि आखिर वहां हुआ क्या.....??? उनके साथ ये सब.......। सोचकर ही स्तुति की रूह कांप जाती है । तभी उसकी नज़र सुनीता जी पर जाती है, जो बेतहाशा रोए जा रही थी । वह खुद को किसी तरह संभालती है और सुनीता जी को चुप कराती है । सुनीता जी खुद के आसुओं को किसी तरह रोककर , शांत होती हैं । तो स्तुति उन्हें एक बार फिर उम्मीद भरी नजरों से देखती है । वे उसकी नजरों से समझ जाती हैं , कि आज स्तुति सब कुछ जानकर रहेगी । वे अपने दिल को कड़ा करतीं हैं और फिर स्तुति का हाथ कसकर थामें उससे आगे कहती हैं । )
विवेक तो जैसे वहीं पर जम सा गया , उसे कुछ समझ ही नहीं आया , कि ये हो क्या रहा है …???? 5 साल का बच्चा , क्या समझ उसे कि आग क्या होती है और आग से किसी को बचाना कैसे है। बेचारे की आवाज़ ही हलक में अटक जाती है । तभी गुड़िया दर्द और जलन को महसूस कर रोने लगती है और विवेक जलती हुई गुड़िया की ओर बढ़ जाता है , वहीं गुड़िया की रोने की आवाज़ सुनकर , मेरी देवरानी आरती भागकर मानव के साथ उस कमरे में आती हैं, और वहां का नज़ारा देख उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है , वो जोर से चीख पड़ती है, जिससे अचानक से हुई आवाज़ से विवेक डर जाता है और रो पड़ता है , लेकिन तब तक गुड़िया को चुप कराने की जद्दोजहत में उसके खुद के हाथ हल्के से झुलस चुके होते हैं । वहीं आरती चीखने के बाद, वहीं दरवाजे पर , वहां का सारा नज़ारा देख , सहम कर बेहोश होकर वहीं गिर पड़ती है । एक बारह साल की बच्ची से कोई उम्मीद भी क्या कर सकता है । आरती के लिए इस उम्र में ये सारा नज़ारा देखना , किसी सदमे से कम नहीं था । नई - नई शादी हुई थी उसकी , वह तो अभी सब सीख ही रही थी और इसी बीच ये सब हो गया । ऊपर से उसने ही हमसे कहा था , कि वो हमारी बच्ची का ध्यान रखेगी , यही सोचकर शायद वो बेहोश हो गई थी । मानव ये सब देखकर सहम जाता है और वो भी रोने लगता है ।
वहीं बाहर जब सभी आरती की चीख सुनते हैं तो भागकर वहां आते हैं , और वहां का नज़ारा देखकर हर कोई हैरान हो जाता है । सभी का दिल धक से रह जाता है । एक पल को कोई समझ ही नहीं पता है , कि ये हुआ क्या और कैसे हुआ....। अगले ही पल सभी को तीनों बच्चों की रोने की आवाज़ आती है, तो सभी होश में आते हैं । चाची जल्दी से विवेक को खुद के पास खींचती है और मां जाकर गुड़िया के ऊपर पानी डालती है , साथ ही कुछ लोग कंबल से गुड़िया पर लगी आग बुझाने की कोशिश करते हैं , लेकिन तब तक गुड़िया रो - रो कर बेहोश हो चुकी थी । चाची विवेक और मानव को लेकर दूसरे कमरे में जाती हैं और उन्हें शांत करवाती हैं । आरती को भी दूसरे कमरे में सुलाया जाता है और अगले 3 घंटे तक उसको होश नहीं आता। वहीं गुड़िया को तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाया जाता है । मां का तो रो - रोकर बुरा हाल था । वहीं हम ,हमारी बहन और गुड़िया के पापा इन सबसे अनजान थे ।
जब हम घर पहुंचे , तो घर में पसरी शांति को देखकर हमें और हमारी बहन को बहुत अजीब लगा । हम घर के अंदर आए , तो हमें हॉस्पिटल जाने के लिए कहा गया । हमने गुड़िया और मानव के बारे में पूछा , तो किसी ने कुछ जवाब न देकर हमें जबदस्ती हॉस्पिटल भेजा । वहीं डॉक्टर ने घर आकर विवेक के हाथों में पट्टी कर दी थी , और चाची ने दोनों बच्चो को किसी तरह सुला दिया था । दोनों ही रोते - रोते सो गए थे । यहां हम दोनो हॉस्पिटल पहुंचे , और वहां जब मां को रोते बिलखते देखा, तो हमारा दिल किसी अनहोनी के डर से धड़कने लगा । हम और हमारी बहन बहुत हिम्मत करके मां के पास पहुंचे , और जब मां ने हमें देखा, तो तुरंत हमें गले लगा लिया और रोने लगी । हमने कारण पूछा , तो उन्होंने रोते - रोते सब कह सुनाया , जो भी उन्होंने देखा था । हमारी तो, काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई थी । अपनी छः महीने की बेटी की ऐसी हालत सुनकर तो हमारे प्राण पखेरू उड़ चुके थे । हमारी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और हम वहीं बेहोश होकर गिर पड़े । जब 2 घंटे बाद हमें होश आया , तो हमने गुड़िया से मिलने की जिद की , पर हमें मिलने नहीं दिया गया । तब तक गुड़िया के पापा भी वहां आ चुके थे और सब कुछ जानकर उनके सीने में एक आग सी दौड़ गई थी...... ।
क्रमशः