आभा कुछ देर और मानव , परिधि और उनके बच्चों से बात करती है, फिर फोन कट करके , खाना खा कर अपने स्कूल का कुछ जरूरी काम कर वो सो जाती है। इधर आभा के पापा को जब आज के बारे में पता चलता है , तो उनकी भी आंखें छलक आती हैं । वो सुनीता जी से "ठीक है" कह कर, बात को वहीं खत्म कर देते हैं । सुनीता जी भी उनके शांत रहने से परेशान हो जाती हैं , लेकिन फिर खुद को समझा लेती हैं , कि भगवान सब ठीक कर देंगे । वो भी सो जाती हैं ।
मानव , आभा का बड़ा भाई था । उसकी जॉब छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में लगी थी । वह भी आभा की तरह ही शांत और समझदार था । परिधि से उसकी शादी हुए, लगभग 10 साल हो चुके थे । परिधि भी काफी समझदार थी । अपनी जॉब के चलते मानव को अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था । और उसकी जरूरतों का खयाल रखने के लिए , सुनीता जी ने परिधि को साथ भेज दिया था और अब मानव का छोटा सा परिवार था ,जिसमें वो उसकी पत्नी और उसके दो बच्चे थे । वह उनके साथ, परमानेंटली रायपुर में ही शिफ्ट हो गया था।
अगले दिन आभा रेडी होकर अपने रूम से बाहर आती है , तो उसे अपनी बेस्ट फ्रेंड स्तुती , अपने घर के लिविंग रूम में उसकी मां के साथ बातें करते हुए नज़र आती है । दोनो को बाते करते देख , आभा समझ जाती है कि कल की बातें उसकी मां से , स्तुति को पता चल चुकी हैं । वहीं स्तूति जब आभा को देखती है, तो हल्के से मुस्कुरा देती है । जबकि आभा उसकी इस फीकी मुस्कान को देख समझ जाती है , कि स्तुति को ये सब सुनकर बहुत बुरा लग रहा है । लेकिन आभा इस वक्त अपनी दोस्त से मिलना नहीं चाहती थी , क्योंकि दोबारा वही सब बातें वो दोहराना नहीं चाहती थी । वहीं जब सुनीता जी ने आभा और स्तुति को एक दूसरे को देखते देखा , तो वो चाय लाने का कहकर चली गईं ।
सुनीता जी के जाते ही आभा बिना स्तुति से कुछ कहे , दरवाजे की ओर बढ़ने लगी , लेकिन स्तुति उसके सामने आ गई और उसने आभा का रास्ता रोक कर कहा ।
स्तुति - क्या तू मुझसे बात भी नहीं करेगी...????
आभा ( बिना स्तुति की तरफ देखे ) - सब तो जान चुकी हो तुम....., और मां ने तुम्हें भी हमें समझाने के लिए ही कहा होगा , जैसे उन्होंने कल भैया भाभी को कहा था । लेकिन हम अभी उस मैटर में कोई बात नहीं करना चाहते । कल से लेकर आज तक में , बहुत सोच लिया और समझ लिया, साथ ही सुन भी लीं सबकी बातें । पर बस..., अब हम और नहीं सुनना चाहते ।
स्तुति - लेकिन आभा.....!!!
आभा ( उसकी बात काटकर , उसकी तरफ देखकर बोली ) - हमें देर हो रही है स्तुति....। तुम चलना चाहती हो, तो चलो हमारे साथ....। तुम्हें तो पता है न , कि स्कूल में टाइम का कितना महत्व होता है । अभी कल ही ज्वाइन किया है , दूसरे दिन अगर लेट पहुंचेंगे , तो गलत इंप्रेशन पड़ेगा , स्टाफ और बच्चो पर । जो कि हमारी नौकरी के लिए , ठीक नहीं है....।
स्तुति ( उदास सी ) - जा तू....., मैं तो तुझसे मिलने ही आई थी , लेकिन नौकरी भी जरूरी है तेरी । इस लिए मैं तुझे नहीं रोकूंगी । तू जा...., मैं आंटी के साथ बैठ कर कुछ देर बातें करूंगी , फिर जाऊंगी ।
आभा ने जब स्तुति का उदास सा चेहरा देखा , तो उसे अच्छा नहीं लगा । उसने स्तुति को अपने गले से लगाया , और उसका चेहरा, अपने एक हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए बोली ।
आभा - शाम को स्कूल से आने के बाद , हम पानी पूरी खाने चलेंगे , पार्क के सामने वाले ठेके पर.....। तुम चलोगी न हमारे साथ...???
स्तुति ( खुश होकर ) - ये भी कोई पूछने वाली बात है...!!! मेरी जान...., तेरे साथ वक्त बिताने के लिए मैं तो एक पैर पर चलने के लिए तैयार रहती हूं । और जब तू पानी पूरी के कह रही है , तो भला मैं कैसे मना कर सकती हूं..!!!
आभा ( मुस्कुराकर ) - पता था मुझे , कि तुम कभी पानी पूरी के लिए मना नहीं करोगी । हम शाम को जरूर जायेंगे और हां...., रत्ना को भी बुला लेना , बहुत दिनों से उससे मिले भी नहीं है हम।
स्तुति ( मुंह बनाकर ) - ये गलत बात है यार...., बेस्ट फ्रेंड सिर्फ मैं तेरी रहूं , ऐसा नहीं हो सकता क्या..??? हर जगह उसे लेकर साथ चलना है तुझे...!!!
आभा ( स्तुति के गाल खींच कर ) - तुम दोनों ही हमारी बेस्ट फ्रेंड हो । हां ...., वो अलग बात है , कि एक पूरब तो दूसरी पश्चिम है । लेकिन हमारे लिए दोनों ही बराबर हो और दोनों ही जान से भी ज्यादा प्यारी हो ।
स्तुति ( अपने गाल उससे छुड़ा कर ) - हो गया..., हो गया मास्टरनी जी...। ज्यादा मक्खन बाजी न करो मेरे साथ । जाओ अब , वरना सच में लेट हो जाओगी । मैं बता दूंगी उसे...., तुम्हारी प्यारी रत्ना को ।
इतना सुनकर आभा उसके गाल पर प्यार से हाथ रखती है और फिर उसे बाय बोलकर चली जाती है । आभा के जाते ही स्तुति की सारी मुस्कान गायब हो जाती है और अब उसे भी आभा की चिंता सताने लगती है , जैसे आभा की मां और परिवार वालों को सता रही थी ।
सुनीता जी तब तक चाय लेकर आती है , लेकिन आभा को जाते देख वो स्तुति से कहती हैं ।
सुनीता जी - अरे, उसे रोको स्तुति बेटा...., उसने आज चाय भी नहीं पी है , और न ही कुछ खाया है ।
स्तुति ( सुनीता जी के हाथ से चाय का कप लेकर ) - रहने दीजिए आंटी जी...., वो लेट हो रही थी , इस लिए नहीं रुकी । और उसे रोकने का कोई फायदा भी नहीं है , आप जानती है न, अगर एक बार उसने कह दिया कि बीती बातों का जिक्र वो नहीं करेगी , तो फिर वो उसके लिए उसकी कही बात, पत्थर की लकीर बन जाती है ।
सुनीता जी ( उदास होकर ) - यही तो समस्या है बेटा , कि वो अपनी जिंदगी अंधेरे में ही गुजारना चाहती है , उजालों से जैसे उसे नफरत सी हो चुकी है ।
स्तुति ( सुनीता जी को अपने सामने रखे सोफे पर बिठाकर ) - वो अपनी जगह गलत भी तो नहीं है न आंटी जी....., और उसके ऐसा करने की वजह तो आप जानती हैं ।
सुनीता जी - सच कहूं बेटा....., उसकी ऐसी हालत की सबसे बड़ी वजह तो मैं हूं ।
स्तुति - नहीं आंटी जी...., ऐसा मत कहिए। मैं अच्छे से जानती हूं , आपने ऐसा कुछ नहीं किया होगा , जिसकी वजह से आभा की ये हालत हुई है । मैने आभा से इस बारे में कई बार पूछा हैं, लेकिन उसने हमेशा मेरी बात टाल दी है .....।
सुनीता जी - बेटा....., तुम्हारी दोस्त अपनी तकलीफ सिर्फ अपने तक रखना ही पसंद करती है । वह कभी अपनी तकलीफें किसी से भी साझा नहीं करती । एक वक्त था , जब वह अपनी भाभी से सब कुछ बताती थी , पर अब तो वो भी दूर चली गई , इस लिए वह अपनी समस्याएं अपने दिल में ही रखती है और घुट - घुट कर हमेशा जीती रहती हैं, लेकिन कभी किसी से कुछ नहीं कहती । अपने भाई की सुनती है , समझती है उसकी बातें , इस लिए उससे कई बार समझाने के लिए कहा है मैंने। लेकिन कल तो वो भी विफल हो गया , पता नहीं मेरी गुड़िया की किस्मत में और कितने दुख तकलीफें लिखी हैं ।
स्तुति - देखिएगा आंटी , एक दिन उसकी तकलीफें खत्म होंगी । वो भी खुश होगी , अपनी कमियों को एक्सेप्ट कर खुश होगी वो और आप जो चाहती हैं , वो भी होगा । लेकिन आंटी मैं आज वजह जानना चाहती हूं , कि ये सब कब हुआ और क्यों हुआ...??? आभा से मैने जब भी इस बारे में पूछा , तो उसने सिर्फ इतना ही बताया , कि वो हादसा तब हुआ था , जब वह छः महीने की थी , इससे आगे उसने कभी इस बारे में बात करना तो दूर , मेरी इस बारे में की गई बातों को सुना तक नहीं है । आज मैं जानना चाहती हूं आंटी जी , कि आखिर क्या हुआ था मेरी दोस्त के साथ ऐसा , जो उसकी वजह से मेरी बेस्ट फ्रेंड की जिंदगी ऐसी बन गई है , जिसमें वह बिल्कुल भी खुश नहीं है । हर वक्त उसे जिल्लते सहनी पड़ती हैं, हर किसी की । कोई उसे कुछ , तो कोई कुछ कहता है । ऐसे - ऐसे शब्दों से उसे नवाजतें हैं लोग , कि मेरे तो कान ही नहीं सुनना चाहते वो शब्द....। मैं आज अपनी दोस्त की जिंदगी से जुड़े उस सारे सच को जानना चाहती हूं , जिसका आज तक उसने कभी किसी से जिक्र नहीं किया । शायद मैं उसकी उस तकलीफ को दूर करने की वजह बन सकूं ।
सुनीता जी - उसकी तकलीफ कोई दूर नहीं कर सकता बेटा , ( प्यार से स्तुति के गाल पर हाथ फेर कर ) लेकिन हां....., उसे अपनी तकलीफों को इग्नोर कर , खुशी - खुशी जीने के हिम्मत जरूर दी जा सकती है । अगर तुम ऐसा कर सकती हो , तो मैं तुम्हें सब कुछ बताने के लिए तैयार हूं ।
स्तुति - मैं अपनी दोस्त की खुशी के लिए , सब करूंगी आंटी जी । आप बस मुझे वजह बताइए ....।
सुनीता जी की आंखों में हल्की सी नमी आ जाती है , स्तुति का आभा के लिए प्यार देखकर......।
क्रमशः