Risky Love - 44 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 44

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रिस्की लव - 44



(44)

मीरा और अलीशिया लंदन वापस चली गई थीं। अंजन का मन मीरा के लिए दुखी था। विदा लेते समय मीरा ने उससे कहा था कि वह जा रही है, लेकिन उसे इस बात का इंतज़ार रहेगा कि कब वह अपना सबकुछ वापस हासिल कर उसके पास आएगा।
अंजन के दिल में मीरा के प्रति जो गुस्सा था वह खत्म हो गया था। अब वह भी जल्दी अपना पुराना रुतबा वापस हासिल कर मीरा के पास जाना चाहता था। वह उसके साथ एक नया जीवन शुरू करना चाहता था।
अंजन निर्भय के मकान में ही रह रहा था। मीरा यह कह गई थी कि अंजन उसका खास दोस्त है। निर्भय से बात हो गई है। वह कुछ दिन यहीं रहेगा।
अब अंजन किसी तरह से सिंगापुर से थाईलैंड जाने के बारे में सोच रहा था। वहाँ उसे कुछ सहायता मिलने की उम्मीद थी। पर वह यहाँ रमन सिंह के नाम से आया था। अब उसे लग रहा था कि इस पासपोर्ट पर यात्रा करना खतरनाक हो सकता है। उसे एक नए पासपोर्ट की आवश्यकता थी।
इस सिलसिले में उसके दिमाग में एक नाम अश्विन राहाणे था। कुछ साल पहले अश्विन राहाणे एक मुसीबत में फंस गया था। जिसके कारण वह बहुत परेशान था। अश्विन राहाणे एक लॉज में मैनेजर था। उस पर अपने दोस्त को अगवा करने का आरोप था। तब उसकी माँ के कहने पर अंजन ने अपनी जान पहचान के ज़रिए उसे मुसीबत से निकालने में मदद की थी। उसे कुछ पैसे भी दिए थे। बाद में उसने उसे सूचित किया था कि वह सिंगापुर के एक भारतीय रेस्टोरेंट में काम कर रहा है।
अंजन को उस भारतीय रेस्टोरेंट का नाम याद था। उसने इस कठिन समय में अश्विन राहाणे से मदद लेने का फैसला किया। वह रेस्टोरेंट लिटिल इंडिया नाम की जगह पर था। अंजन कार लेकर उस रेस्टोरेंट के लिए निकल गया।
रेस्टोरेंट के लिए जाते समय अंजन को डर था कि कहीं अश्विन राहाणे ने वह नौकरी छोड़ ना दी हो। ऐसे में यहाँ उसकी मदद करने वाला कोई नहीं होगा। लेकिन उसकी किस्मत ने उसका साथ दिया। अश्विन राहाणे से उसकी मुलाकात हो गई। अंजन ने उसे अपनी सारी बात बताई। उससे कहा,
"आज मेरा बुरा समय चल रहा है। लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि अगर तुम मेरी मदद कर दो तो मैं जल्दी ही अपना सबकुछ वापस पा सकता हूँ। तब मैं एहसान चुकाने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा।"
अंजन ने आड़े वक्त में उसकी जो मदद की थी अश्विन राहाणे उसे अच्छी तरह से समझता था। उसने कहा,
"आपने मेरी जो मदद की थी उसे मैं भूला नहीं हूँ। अगर उस समय आपका साथ ना मिला होता तो मैं उस केस में फंस गया होता। इसलिए मैं आपकी मदद ज़रूर करूँगा। लेकिन मेरे जैसा छोटा आदमी आपकी क्या मदद कर सकता है।"
"अश्विन इस समय छोटी सी मदद भी बहुत बड़ी होगी। मैं किसी भी तरह से सिंगापुर से बाहर निकलना चाहता हूँ।"
"पर आप सिंगापुर से निकल कर कहाँ जाना चाहते हैं ? इंडिया वापस जाना तो खतरनाक होगा।"
"मुझे थाईलैंड जाना है। पर मुझे एक नया पासपोर्ट चाहिए। क्या तुम इस विषय में मेरी मदद कर सकते हो।"
उसकी बात सुनकर अश्विन ने कहा,
"मुश्किल काम है। पर मैं एक आदमी को जानता हूँ जो ऐसा कर सकता है।"
"तुम उससे मेरी मुलाकात करवा दो।"
अश्विन राहाणे ने कुछ सोचकर कहा,
"आप कुछ देर इंतज़ार कीजिए। मैं अपने मैनेजर से इजाज़त लेकर आता हूँ।"
कुछ देर के बाद अश्विन उसे उस आदमी से मिलने के लिए ले गया जो अंजन को नया पासपोर्ट बनवा कर दे सकता था। अंजन ने उस आदमी से कहा कि उसे एक नया पासपोर्ट बनवाना है। उस आदमी ने कहा कि पासपोर्ट बन जाएगा। लेकिन अच्छे पैसे लगेंगे। अंजन राज़ी हो गया। उस आदमी ने दो दिनों के बाद उसे आने के लिए कहा।
सागर खत्री के घर से निकलते समय अंजन को पैसों के साथ एक महंगा ब्रेसलेट, हीरे जड़े कफलिंक और दो अंगूठियां मिली थीं। उन्हें बेंचकर वह मतलब भर का पैसा एकत्र कर सकता था।
अंजन ‌अब आगे के बारे ‌में सोच रहा था। थाईलैंड में काम बन जाने की उसे कुछ उम्मीद थी। हालांकि जिनकी भी उसने मदद की थी उन्होंने उसे समय आने पर धोखा ही दिया था। सिवा अश्विन राहाणे के। जो उसकी मदद करने को तैयार हो गया था। लेकिन थाईलैंड वह एहसान मांगने के लिए नहीं जा रहा था। बल्की अपना हिस्सा लेने जा रहा था
सोम आर्य का थाईलैंड में होटल बिज़नेस था। उसमें अंजन की भी तीस फीसदी हिस्सेदारी थी। वह उसके आधार पर सोम आर्य से कुछ रकम लेना चाहता था। जिससे अपने लिए कुछ नया काम शुरू कर सके।
अंजन जानता था कि उसे अब एक नए सिरे से सबकुछ करना होगा। यह आसान नहीं होगा। उसने सोचा था कि सागर खत्री की तरह एक नए नाम के साथ कहीं दोबारा अपना नया अस्तित्व तलाश करेगा। एक बार अपनी नई पहचान बनाने के बाद कोशिश करेगा कि भारत में उसने जो कुछ भी खोया है दोबारा पा सके। फिलहाल तो उसे फिर से शुरुआत करने के लिए कमर कसनी थी। वह मन ही मन अपने आप को एक नए संघर्ष ‌के लिए तैयार कर रहा था।

मुंबई पुलिस से अंजन के डीटेल्स मिलने के बाद से ही सिंगापुर पुलिस भी एक्टिव हो गई थी। उन्होंने पता कर लिया कि अंजन रमन सिंह के नाम से सिंगापुर आया था। उन्होंने उसकी तलाश तेज़ कर दी थी।
भारतीय मूल का सीनियर इंस्पेक्टर राजेंद्र सेल्वाराज इस केस को देख रहा था। उसने अंजन की तस्वीर के साथ अपने कुछ साथियों को अलग अलग हिस्सों में भेजा था। वह अंजन के बारे में पूँछताछ कर रहे थे।

एसीपी सत्यपाल वागले चार लोगों की अपनी टीम के साथ सिंगापुर पहुँचा। उसने अंजन के केस के संबंध में सीनियर इंस्पेक्टर राजेंद्र सेल्वाराज से मुलाकात की। सीनियर इंस्पेक्टर राजेंद्र सेल्वाराज ने उसे बताया कि उसकी टीम अलग अलग इलाकों में नज़र बनाए हुई है। जल्दी ही अंजन का पता ‌लग जाएगा।‌
एसीपी सत्यपाल वागले पर उनके डिपार्टमेंट का दबाव था कि जल्दी ही अंजन को गिरफ्तार करके लाए। सिंगापुर आते समय अंजन का समर्थन कर रहे कुछ लोगों ‌ने एयरपोर्ट पर एसीपी सत्यपाल वागले और उसकी टीम के साथ बद्तमीजी की थी।‌ एसीपी सत्यपाल वागले के लिए यह ज़रूरी हो गया था कि किसी भी कीमत पर अंजन को कानून के शिकंजे में लाए।
वह जानता था कि उसके अपने डिपार्टमेंट के ही कुछ लोग हैं ‌जो नहीं चाहते हैं कि अंजन गिरफ्तार हो। उन्हें डर था कि अंजन के गिरफ्तार होने पर उनके और अंजन के बीच के रिश्तों का खुलासा हो जाएगा। एसीपी सत्यपाल वागले यह भी जानता था कि राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों का भी अंजन के काले कारनामों में हिस्सा है। सारे लोग मिलकर यही चाहते थे कि अंजन या तो कानून की गिरफ्त से दूर रहे या मारा जाए। एसीपी सत्यपाल वागले उन सबको भी बेनकाब करना चाहता था। लेकिन यह तभी संभव हो सकता था जब अंजन उसकी पकड़ में आए।
सिंगापुर के एक फ्लैट के कमरे में नागेश गुप्ता नाम का एक आदमी शराब पी रहा था। उसका फोन बजा। उसने सामने रखी ऐशट्रे में सिगरेट बुझाई। फोन रिसीव कर स्पीकर पर डाल दिया। उधर से आवाज़ ‌आई,
"नागेश.... एसीपी सत्यपाल वागले भी सिंगापुर में है। कोई चूक ना करना। अंजन उसके हाथ नहीं लगना चाहिए।"
नागेश ने शराब का एक बड़ा घूंट भरा। उसके बाद बोला,
"मैं अपने काम में माहिर हूँ। चूक शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं है। उस एसीपी से पहले यहाँ आ गया था। शिकार पर मेरी नज़र है। एसीपी की नज़र पड़ने से पहले शिकार का शिकार हो जाएगा।"
कहकर नागेश ने फोन काट दिया।
उसने अपने लिए एक और पैग बनाया और बड़े इत्मीनान के साथ पीने लगा।‌ कुछ देर में कमरे के दरवाज़े की घंटी बजी। वह मुस्कराया।‌ दो आदमी खड़े थे। इनमें से एक अश्विन राहाणे था। दूसरा आदमी उसे अंदर ले आया। नागेश दरवाज़ा बंद करके वापस सोफे पर बैठ गया। उसने अपने आदमी से कहा,
"पॉल बता दिया इसे क्या करना है।"
"हाँ सर.... यह भी बता दिया है कि बात मान ली तो तुम्हारा फायदा। नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा।"
अश्विन राहाणे घबराया सा खड़ा था। नागेश ने उससे कहा,
"क्या चाहते हो ? पैसा या गोली।"
अश्विन राहाणे ने कहा,
"मुझे अपनी जान प्यारी है। वही करूँगा जो कहा है।"
नागेश मुस्कुरा कर बोला,
"समझदार हो....अब वही करो जो कहा गया है।"
अश्विन राहाणे ने अपना फोन निकाला और अंजन को कॉल किया। फिर एक कोने में जाकर बात करने लगा।
नागेश ने पॉल को इशारा किया। वह उसके इशारे को समझ ‌गया। अश्विन राहाणे बात करके लौटा तो नागेश ने कहा,
"उसे अच्छी तरह से समझा दिया था।"
"हाँ सब समझा दिया।"
"तुम्हारी बात मानेगा ना ?"
"बिल्कुल मानेगा। उसने कहा था कि वह फौरन निकल रहा है।"
नागेश एक बार फिर मुस्कुराया। उसने कहा,
"जाओ.... जो तय हुआ था पॉल तुमको दे देगा।"
पॉल ने उसे अपने साथ आने का इशारा किया। वह अश्विन राहाणे को एक एकांत स्थान पर ले गया। पॉल वहाँ से चला गया। अश्विन राहाणे की लाश वहीं पड़ी थी।