शेरसिंह का आदेश सुनकर तीनों पक्षी एकाएक चौंक गए थे.उन्होंने सपने में भी शेरसिंह से ऐसे आदेश की आशा नहीं की थी.
चतुर चील, काले जटायु और गंजी चिड़िया तीनों में खुसर-फुसर होने लगी. ये तीनों पक्षी काले वन के राजा शेरसिंह के दरबार में पिछले चार वर्षों से कार्य कर रहे थे. इन का काम था-राजा की समस्या को सुलझाना और राज्य भर में उड़-उड़ कर चारों तरफ से खबरें ला कर शेरसिंह को सुनाना.
आज राजा शेरसिंह ने उन्हें मालूम करने को कहा था कि वर्षा क्यों होती है?
प्रश्न पेचीदा था. तीन दिन तक दिमाग खराब कर के भी जब कुछ हासिल न हुआ तो उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से तीनों आकाश में ऊंचे से ऊंचा और बदलों तक जा कर मालूम करेंगी कि वर्षा क्यों होती है.
काले जटायु को अपने दिमाग का बड़ा घमंड था. अत: सब से पहले उसी ने उड़ान भरी. किंतु वह सीधा बादलों की ओर नहीं गया, बल्कि वह पहाड़ों की ओर मुड़ गया.
उस ने वर्षा को पहाड़ों की तरफ से आते देखा था. अत: उस का विश्वास था कि पहाड़ों में ऐसा कोई रहस्य जरूर छिपा है, जिस से वर्षा होती है. क्या मालूम वहां वर्षा वाली देवी रहती हो. हां उसकी दादी ने एक बार उसे बताया था कि जब सात मुंह वाला राक्षस थूकता है तो वर्षा होती है.
इसी आशा से काले जटायु ने सारे पहाड़ छान मारे. फिर भी उस के हाथ कुछ न लगा, कुछ भी मालूम न हो सका. उसे निराश लौट कर साथियों को असफलता की कहानी सुनानी पड़ी.
तब चतुर चील ने खोज आरंभ की. चतुर चील का कहना था कि उस से तेज नजर वाला जीव इस दुनिया में दूसरा कोई नहीं है. दुनिया में ऐसी कोई चीज, कोई जगह नहीं है, जहां तक उस की नजर न पहुंच सकती हो. बस, इसी घमंड में वह सभी दूसरी चिड़ियों को चल कानी, हट अंधी कहकर पुकारती थी.
चिलचिलाती धूप वाली एक दोपहर को जब चतुर चील बहुत ऊंची उड़ रही थी तो अचानक ही उस की नजर नीचे तालाब पर पड़ी.
उसने महसूस किया कि पानी का तल सुबह से कुछ नीचा हो गया है. हालांकि इस बात को कोई दूसरा पक्षी महसूस नहीं कर सकता था, लेकिन यह तो चतुर चील की बात थी, उस की आंखों से भला क्या अनदेखा रह सकता था.
चतुर चील का ख्याल था कि तालाब के अंदर अवश्य ही सौ हाथ लंबा अजगर है जो मुंह लगातार पानी पीता रहता है. अभी इस विषय में सोच ही रही थी कि ऊपर बादलों से आई वर्षा की एक झड़ी ने उसे भिगो दिया. इस प्रकार चतुर चील को भी अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ कर वापस लौटना पड़ा.
चतुर चील की भी असफलता की कहानी सुन कर गंजी चिड़िया सोच में पड़ गई. अब सभी कुछ उसी को करना था.
गंजी चिड़िया के बारे में काले वन में यह प्रसिद्ध था कि कोई भी काम शुरू करने से पहले वह बहुत सोचती है. और यही वजह से उस के सिर पर बाल नहीं हैं.
अकलमंद गंजी चिड़िया एक दिन सुबह तालाब के पास जा पहुंची. वहां उस की दोस्ती छतरी के नीचे बैठे मोटे मेंढक और लंबी टांगों वाली टिटिहरी से हुई. दोनों ने ही उस की सहायता की.
मेंढक ने बताया कि तालाब में कोई अजगर नहीं रहता. यह सिर्फ़ एक वहम है. सच तो यह है कि गरमी पा कर पानी भाप बन कर ऊपर उड़ जाता है, तभी तो पानी का तल नीचा हो जाता है.
लंबी टांगों वाली टिटिहरी ने भी काम की बात बताई. उस ने कहा कि जब आकाश में ढेर सारी भाप जमा हो जाती है तो इसी को हम बादल कहते हैं.
गंजी चिड़ियां खुशी से नाच उठी. उसे राजा की समस्या का हल मिल गया था. उसे आकाश में उड़ान भरने की अब कोई आवश्यकता नहीं थी, अत: वह मेंढक और टिटिहरी को धन्यवाद दे कर अपने घर लौट आई.
अगले दिन वह अपने दोनों साथियों के साथ शेरसिंह के दरबार में जा पहुंची और राजा को नमस्कार कर बोली, ‘‘ महाराज, वर्षा होने की छोटी सी कहानी है जो इस प्रकार है- नदी, नालों, तालाबों और समुद्र का पानी सूरज की गर्मी से भाप बन कर उड़ता रहता है और आकाश में बादल के रूप में इकट्ठा होता है. जब ये बादल पहाड़ों से टकराते है तो वर्षा होती है.
बात सीधीसादी थी. सब की समझ में आ गई. राजा शेरसिंह से मुस्करा कर गंजी चिड़िया की प्रशंसा की. उस की बुद्धिमानी के लिए इनाम भी दिया.