मीरा से मिली एक वार्निंग के बाद मिस्टर पटेल ने बोहोत सोचा। किसी और के लिए भला वो अपनी बेटी को अपने खिलाफ क्यों करे ? और लक्ष्मण को तो वैसे भी अब मीरा के डिपार्टमेंट मे नौकरी मिल गई थी। तो क्यों ना से नो टू स्वप्निल की जगह से येस टू लक्ष्मण वाला मिशन पूरा किया जाए ? हा यही सही रहेगा। मीरा के दिल मे स्वप्निल के लिए नफरत जगाने की जगह लक्ष्मण के लिए प्यार जगाना आसान होगा। ये बाद पक्की कर उन्होंने उस हिसाब से अपना मिशन शुरू किया।
लक्ष्मण को मीरा के ऑफिस मे एक महीना हो चुका था। मिस्टर पटेल ने उसे अच्छे से पढ़ा लिखा कर भेजा था। उसे हर बार नया प्लान तैयार कर के देते। ताकि वो मीरा के पास जा सके। पर ना तो लक्ष्मण को मीरा उस तरीके से पसंद थी ना मीरा को लक्ष्मण। मिस्टर पटेल की सारी खबरे लक्ष्मण मीरा तक पोहचाता। मीरा उसे अपने छोटे भाई जैसा समझने लगी थी। जैसे ही मिस्टर पटेल को शक हुआ की दोनो की तरफ से हर बार उनका प्लान क्यो पीट रहा है। उन्होंने अपनी भौए चढ़ाते हुए, मामले को गहराई से देखा।
मिस्टर पटेल जैसे अनुभवी इंसान को गड़बड़ समझने मे ज्यादा वक्त नहीं लगा। जब अपना मित्र ही शत्रु बनने पे तुला हो, ऐसे वक्त मे भला कोई क्या कर सकता है। उन्होंने अपने प्लान बदले और तय किया की अब से लक्ष्मण को भी उसका भला बुरा समझाना बंद कर दिया जाए। लेकिन उन दोनो को बिना बताए उन्हे पास लाना भी मुश्किल काम है, खैर देखा जायेगा।
मीरा हमेशा की तरह अपने काम मे मशगूल थी। तभी स्वप्निल उसके डेस्क पर आया। मीरा ने बस आंखे ऊंची कर उसे देखा। अपना फोन आगे करते हुए उसने मीरा को फोन उठाने का इशारा किया।
" हेलो।" मीरा ने पूछा।
" हेलो। कैसी है आप ? में उस होटल का वेटर बोल रहा हु जहा आपने वाइन फाइट की थी ???" शेखर ने आवाज बदलते हुए कहा।
" हा... हा.... हा। इतनी जल्दी आपने काम बदल लिया शेखर भैय्या।" मीरा ने हंसते हुए पूछा। उसकी हसी देख स्वप्निल समझ गया की ये बाते काफी लंबी खीच ने वाली है। उसने वहा से जाने मे ही समझदारी समझी।
" धत मीरा। इतनी जल्दी भला कौन पहचान लेता है?? अच्छे भाई बहन की तरह थोड़ा नाटक करते। एक दूसरे की टांग खींचते। तुम्हारे उस सड़े से बॉस की बुराई करते। तब मज़ा आता ना। " शेखर ने सामने से कहा।
" सीरियसली। बॉस के मोबाइल पर कॉल कर के आप उन्हीं की बुराई करना चाहते है। अगर उन्होंने फोन रिकॉर्डर पे रखा होगा तो ?? बिल्कुल नही। आप तो दोस्त है। यूं बच जाएंगे। मुझे उनका पूरा लेक्चर सुनना पड़ेगा।" मीरा।
" चलो मतलब तुम ये तो मानती हो, तुम्हारा बॉस सड़ा हुवा है।" शेखर ।
" ह.... म सड़ा हुवा नही कह सकती। लेकिन हा अकडू, खडूस और थोड़े बोहोत गुस्सैल जरूर है भाई।" मीरा।
" अच्छा बहना, तो बताओ अपने इस भाई को ऐसे इंसान के साथ तुम एडजस्ट कैसे कर सकती हो ??" शेखर ने अपनी आवाज मे दर्द लाते हुए कहा।
" यही मेरी जिंदगी की अधूरी कहानी है। इस दिल के कोरे कागज पर किसीने सुनहरे अक्षरों से अपना नाम इस तरह लिखा, के हम दिल दे चुके भैय्या।" मीरा ने भी वही दर्द अपनी आवाज मे लाने की कोशिश की।
" उस जुल्मी बादशाह को लेकर कृष्णा कॉटेज पर अगले फ्राइडे से 5 दिन के लिए आ जाना। तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा भाई अपने जीवन की आखरी गलती को आओ गले लग जाओ कहने जा रहा है।" शेखर।
" ये पूरा मेरे सर के ऊपर से चला गया। लेकिन बोहोत अच्छे मतलब हमारी अच्छी जमेगी। कभी कभी यकीन ही नहीं होता आप बॉस के दोस्त है।" मीरा
" अरे जब तुम्हे उसके साथ देखा था ना , में भी समझ नही पाया के आखिर ये लड़की के साथ घूम क्यो रहा है। पर अब समझ गया। तुम बिल्कुल मेरे जैसी हो। रॉकिंग। उसका नसीब अच्छा है। उसकी जिंदगी में हम जो है। लेकिन अब मेरी बात ध्यान से सुनो।" शेखर।
" जी बोलिए।" मीरा।
" अगले फ्राइडे से मेरी और पूनम की शादी के सारे प्रोग्राम शुरू हो रहे है। तुम्हारे पास एक हफ्ता है। फटाफट पैकिंग करो। शादी मेरे अलीबाग वाले कॉटेज पे है। स्वप्निल और समीर तुम्हे साथ ले आयेंगे। समझी।" शेखर।
" मुझे सोचना पड़ेगा।" मीरा ने हिचकिचाते हुए कहा।
" इसमें क्या सोचना, चलो भी मीरा। मेरी और पूनम की शादी है। ठीक है, हम एक बार मिले है। पर हम ने कितना अच्छा वक्त बिताया साथ मे। सोचो तुम्हे अच्छा लगेगा में और पूनम अगर तुम्हारी शादी पे नही आयेंगे तो। या फिर तुम इतनी जल्दी हमारी मुलाकात भूल भी गई।" शेखर
" नही भाई। में कुछ नही भूली हु। फिलहाल यहां काम में कुछ परेशानियां चल रही है। शादी में वो बला भी होगी। में बस आपकी शादी में कोई तमाशा नही चाहती। मेरा दिमाग बोहोत गरम है और उसे देख कर और गरम हो जाएगा। इसीलिए मना कर रही हुं।" मीरा।
" अरे मेरी जान। वो बला खुद एक तमाशा है। अगर तुम आई ना तो उस पर लगाम रहेगी। अगर स्वप्निल अकेला आया, जो की वो आएगा। तो ज्यादा बड़ा तमाशा होगा। तुम बस यहां पोहचो और पूरी गैंग से मिलो। फिर देखो, उस तमाशे की बैंड। अरे में सिर्फ अकेला भाई नही हु तुम्हारा और ६ - ७ है। तुम बस पोहोचो। तो क्या में तुम्हारी चुप्पी को हा समझू ?" शेखर।
" मेरी तरफ से हा है। फिर भी में एक बार बॉस से पूछ कर आप को बतादूंगी।" मीरा।
" ये हुई न बात। उसके पास से मेरा नंबर ले कर मुझे अभी मैसेज करो। में तुम्हे ऑनलाइन इन्विटेशन भेजता हु। ठीक है।" शेखर।
" कुल। बाय एंड शादी की बोहोत बोहोत मुबारक बात। पूनम को भी बता दीजिए गा।" इतना कह मीरा ने कॉल कट कर दी। उसके बाद नंबर लेकर शेखर को मैसेज किया। फिर वो स्वप्निल को मोबाइल देने उसके केबिन मे गई।
" थैंक यू बॉस।" उसने फोन स्वप्निल को पकड़ाते हुए कहा। उसे समझ नही आ रहा था बात कहा से शुरू करे। स्वप्निल ने भी बस गर्दन हिला कर मोबाइल ले लिया। मीरा वही खड़ी रही। वो बस उसे देखे जा रही थी। " कैसे है ये ??? बीवी सामने खड़ी है पर कोई फर्क ही नहीं। कही इन्हे भूलने की बीमारी तो नही। जो बार बार हमारी शादी को भूल जाते होंगे।"
मीरा अपने ख्यालों मे खोई हुई थी, तभी केबिन के अंदर समीर आया। उसने मीरा को स्वप्निल को घूरते हुए देखा। अपने ख्यालों मे वो आंखे छोटी बड़ी कर रही थी। स्वप्निल उसके थोड़ा पास गया, उसने उसे आवाज लगाई। कोई जवाब नही। वापस आवाज लगाई कोई जवाब नही। यहां तक स्वप्निल भी अपने काम मे इस कदर खोया था, के उसे उसके आस पास लोग है इस बात का कोई एहसास नहीं था।
लेकिन जल्द ही उसका केबिन ऊपर से नीचे हो गया, जैसे ही समीर ने पीछे से मीरा के कंधे पर हाथ रखा।
ये धप मीरा ने उसे कंधे से उठा कर सीधा स्वप्निल के टेबल पर सुला दीया। तीनो के लिए वक्त वही रुक सा गया।