Ye kaisa sanyog - 1 in Hindi Fiction Stories by श्वेता कर्ण books and stories PDF | ये कैसा संयोग - भाग - 1

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ये कैसा संयोग - भाग - 1


आज फिर वसुधा जी अपनी छोटी बेटी का सिर अपनी गोद में रखकर, किसी सोच में गुम हो गई, "ईश्वर मेरी कितनी परीक्षाएँ लेंगे?
मुझसे ऐसा क्या गुनाह हुआ है जो ईश्वर मुझे ये दिन दिखा रहे हैं।"
इतना सोच कर वसुधा जी अपने अतीत में चली गई...
वसुधा जी जब अनिल जी से विवाह करके उन के जीवन में आई थी तो कितनी खुश थी।
रेलवे के उच्च पद पर आसीन अधिकारी की बेटी थी वसुधा!
दुःख क्या होता है उसने कभी न तो समझा और न ही कभी जाना।
जब वे ब्याह कर अनिल जी के जीवन में आयी तो यहाँ भी, रूपए पैसे, इज्जत, मान-सम्मान और अन्य सभी सुख मिले।
क्योंकि, अनिल जी भी प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर आसीन थे।
शुरु-शुरु में तो वसुधा जी अपने ससुराल में ही रहती थी। बाद में जब अनिल जी का तबादला पास के शहर में हुआ तो वे वसुधा जी को अपने पास ले गये।
समय पंख लगाकर बिना रुके व्यतीत हो रहा था और उनका दाम्पत्य जीवन बहुत खुशहाली से गुजर रहा था।
वसुधा जी अब तीन बच्चों (दो लड़कियों और एक लड़के) की माँ बन चुकी थी।
बच्चे बड़े हुए और अब पढ़ने-लिखने भी लगे!!
वसुधा ने अपने तीनों बच्चों की परवरिश बहुत अच्छे से कर रही थी इस कारण बच्चे भी सज्जन और संस्कारी हुए।
जब बच्चे माता-पिता को समझने वाले हो जाएँ तो वह घर खुशहाली से हर-भरा रहता है।
उन्होंने अपने तीनों बच्चों को समान रुप से शिक्षा दी।
दोनों बेटियाँ भी पढ़ने में बहुत अच्छी थी।
सुधा जो कि बड़ी बेटी थी विवाह के योग्य हो चुकी थी।
अनिल जी ने लड़के की तलाश भी शुरु कर दी थी और साथ ही साथ अपने सगे संबंधियों को भी इस बारे में अवगत करा दिया था कि, "कहीं कोई सुयोग्य वर मिले तो उन्हें जरूर अवगत कराया जाए।"
एक दिन सुबह-सुबह अनिल जी को एक परिचित का फोन आया, "कि एक अच्छा लड़का है और सरकारी नौकरी में है।"
अनिल जी ने उनसे बात आगे बढ़ाने को कहा।
अनिल जी ने अपनी बेटी का फोटो और परिचय भी लड़के वालों को भेज दिया।
लड़के का फोटो भी घर के सभी लोगों को पसंद आया।
फिर एक दिन शुभ मुहूर्त देख कर सुधा और कौशिक का विवाह पूरे रीति-रिवाजों और धूमधाम से संपन्न हो गया।
विवाह पश्चात सुधा अपने ससुराल चली गई...।

कौशिक सुधा से; "सुधा! दो चार दिन में मैं अपने काम पर लौट जाऊँगा। तुम ठीक से रहना और माँ-पिता जी का ख्याल रखना।
सुधा- "जी ठीक...।"
कौशिक जब तक रहा, सुधा को बहुत प्यार करता रहा और ख्याल रखता रहा।
फिर एक दिन कौशिक अपने शहर जहाँ नौकरी करता था चला गया...।

यहाँ घर में सुधा के अलावा उसका देवर सागर और उसके सास-ससुर रह गए।
सुधा उन सभी का बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी।
शहर जाने के बाद कौशिक सुधा को सिर्फ अपने दफ्तर से ही फोन करता था। उसने घर से कभी फोन नहीं किया।
सुधा जब पूछती कि, "मुझे सुबह में और रात में फोन क्यों नहीं करते?"
...तो कौशिक बात को टाल जाता।
हाँ! लेकिन जब कौशिक शाम को घर आता तब घर आने के बाद अपने माता-पिता से जरूर बात करता था।
इधर कुछ दिनों से सरकारी दफ्तरों में छुट्टियाँ चल रही थी तो कौशिक से सुधा की बातें भी बहुत कम ही हो रही थी। जब कभी सुधा फोन लगाती भी तो कौशिक का नम्बर बंद ही आता।
फिर एक दिन सवेरे-सवेरे सुधा ने कौशिक को फोन लगाया और...
सामने से किसी औरत ने फ़ोन रिसीव किया... "हेलो...।"

क्रमशः............

श्वेता कर्ण