Prem Nibandh - 5 in Hindi Love Stories by Anand Tripathi books and stories PDF | प्रेम निबंध - भाग 5

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प्रेम निबंध - भाग 5

उनके अपने ही परिवार की संख्या अधिक थी। कोई यहां तो कोई वहा रहता था। अब वो तो पहली बार आई थी। तो घर के लोग कभी इनके यहां तो कभी उनके यहाँ पर उनको ले जाते थे। और मुझे डर लगता था कि मैं स्कूल से घर जाऊं और वो कही दूसरी जगह न हो। इस मरे कभी स्कूल में मन ही नही लगता था। अब तो सब वही है। ऐसा लगता था। हृदय बहुत कमाल की चीज है। जिसमे आपके और हमारे कई राज छुपे है। जिनको बयान करना इतना आसान नहीं है। इसलिए उनको छुपाते फिरते है। बस हृदय उनको संजो के अपने कमल आसन पर विराजमान करके रखता है।
मेरी और उनकी बातो का क्या चरित्र है। यह हमको भी नही पता। अब इतना विश्वास हुआ की उनका भी दिल कही न कही मेरे में ही लगा रहता है और मैं तो पागल था। एक चीज मुझे अब कटती है। की इंसान को दिल से कभी नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि मैंने दिल से सोचा और पागल भी होकर सोचा। ये एक बड़ी भूल थी। खैर बाद में बताएंगे। अभी तो आलम ये था की उनका मेरे बिना रहना अब शायद कही संभव नहीं था। और फिर भी मैं सोचता था जब मैं अपनी ड्रेस को देखता था। तो लगता था की यार क्या है ये सब मैं अभी बहुत छोटा हूं। लेकिन साहब प्रेम छोटा बड़ा उच्च नीच भेद भाव घृणा मित्र कुछ अगर देखता तो वो प्रेम नही कहलाता इसलिए वो इन सबको छोड़ कर फिर आगे बढ़ जाता है। इसलिए वो प्रेम कहलाता है। सिर्फ इंसान से ही नही चीट, कीट,पतंग, खग,मृग, वृंद,वन,रोग,जानवर,नदी,और अन्य चीजों से भी प्रेम हो जाता है इस हृदय को। ईश्वर को भी नही छोड़ते ये जीव हृदय। अब मैं स्कूल से आता और धीरे से भाग के अपने कमरे में हो लेता था। क्योंकि बहुत गर्मी के कारण मैं पसीने से लथपथ रहता था। और सामने जाने को शर्माता था। इसलिए मैं कुछ देर घर के अंदर ही रहता था। ताकि वो मुझे देख न पाए। और जब मैं तरो ताज़ा होकर तब उनसे मुलाकात होती थी वह भी नजरो में ही होती थी। क्योंकि उनसे मिलना बहुत मुश्किल होता था। तब भी हमारी बाते पेपर पर लिखकर ही हुआ करती थी। मुझे धार्मिक भजनों का बहुत शौक था। तो वो मुझसे लेकर वो भजन सुना करती थी। और फीडबैक में उसको अच्छा ही बताती थी। और मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी। उनके घर के लोग होटल में काम करते थे। जहा से उनके यहां खाना भी आता था। तो कभी कभी वो मुझे देती थी। वो बहुत हस्ती थी। एक बार तो की बात है। जब अटल जी का देहांत हुआ था। तब उस दिन हम सभी घर की छत पर बैठ कर के उनका कार्यक्रम को लाइव देख रहे थे। अचानक इनके दांत मे कुछ फस गया और फिर एक चिल्लाने की आवाज आती है। ये कहती है की कुछ फशा हुआ है। कोई देखो और उसे निकालो प्लीज़। इतना सुनते ही हम दौड़े और देखा तो दांत में एक छोटा धागा फंसा हुआ था जो की ये उसके साथ खेल रही थी। तो मम्मी ने तुरंत ही उसको निकाला और बहा दिया। पूछने पर बताती है की वो बस दांतो पर रगड़ रही थी। और कैसे हुआ कब हुआ कुछ भी पता ही नही चला पाया। और तेज तेज से हसने लगी। हस्ते हस्ते लोट पोट हो गई। तो उनको शायद हंसना बहुत पसंद था। उनकी ये अदा मुझे उनकी और खीच कर ले जाती थी। शाम का समय था सब लोग उनके घर आए हुए थे। और मुझे नही पता था। की घर में किसी का बर्थडे था। उस दिन मैं अपनी नजरे ही नही उठा पा रहा था इतना सौंदर्य किसी के मुख मंडल पर इतना नेचर किसी की हथेलियों पर। मासल्लाह बला की खूबसूरत थी वो जिसको एक झलक देखना ही मेरा पेट पूजा हो जाती थी। मैं भाग कर दुकान गया और जिसका बर्थडे था। उसके लिए कुछ उपहार लाया। ताकि उपहार देकर उनको इंप्रेस कर सकू। और यही हुआ। वो बहुत खुश हुई। जीवन ऐसे हो गया की लगता था। हम और वो एक है।और मिलकर विचार विमर्श कर रहे थे। की कैसा है। लेकिन बड़ी सावधानी से ताकि कोई देख न ले। केक काटने का वक्त आया तो सबको केक दिया गया और जब मुझे दिया तो उसमे से इन्होंने थोड़ा सा चख लिया फिर केक मुझे दिया। और कहा खा लो प्यार बढ़ता है। मैं भी उसको बड़े चाव से खाया। और उसको तोहफा भी दिया। जिसका जन्मदिन था। बहुत कुछ है इस प्रेम श्रृंखला में कभी प्यार,कभी नाराज,कभी नटखट,कभी बालपन। मैं इस जीना चाहता था। जो की अपने आप में एक अद्भुत दिन,प्रसंग का हिस्सा था। अब जिंदगी की और मन की एक उलझन सबसे बड़ी थी की मैं उन्हे कही भी कभी भी खो न दूं। पहली बार इनसे मैं 11वी की क्लास में मिला और उस वक्त से लेकर आज तक इनका मेरा साथ बहुत अद्भुत था।
जैसे किसी भक्त का अपने ईश्वर के प्रति, वो जब सुबह जल चढ़ाने जाती थी तो मैं उससे मिलने के लिए उनसे पहले ही तैयार होकर छत की दहलीज पर बैठ जाता था और जब वो जल चढ़ाने आती थी। तब जी भर के नजदीक से ईश्वर की अद्भुत प्रतिमा को निहारता था। और जब वो जाती थी तब उनका हाथ पकड़कर रोक लेता था। और कहता था की अभी मत जाओ ना थोड़ी देर और देखलू जी भर के नही तो मैं स्कूल चला जाऊंगा। और तुम फिर अकेली हो जाओगी। इतना सुनकर वो बोलती की कोई नही अभी कलाई दुख रही है छोड़ो दीदी बुला रही है। और मेरे नाक की बीच में अपनी टमाटर की तरह लाल उंगलियों से हाथ फेर कर चली जाती थी। अब नहीं रहा जाता था उनके बगैर। ना दिन ना रात कुछ समझ नहीं आता था। की करू तो करू क्या। बस मैं उनका और वो मेरी हो जाए यही एक कामना बची थी। ना जाने की ईश्वर की माया थी जिसको वो रच रहा था। लेकिन जो हो रहा था वो मेरे ऊपर से जा रहा था बस कुछ पल के लिए मैं
क्रमशः