उसके वहा से जाते ही जूही दौडके अपने कमरे मे गई। वहा एक टूटे हुए वाज मे वीर प्रताप के दिए हुए फूल रखे थे। वो पूरी तरह से मुर्झा चुके थे। लेकिन वो फेंकने की चीज़ नही है। वो फूल बोहोत खास थे, है और हमेशा रहेंगे। क्यों ? क्योंकि वो उनकी पहली मुलाकात की याद जो है। जूही ने कुछ देर उन्हे देखा, शायद इतनी ज्यादा देर के उसके आंखो से पानी की कुछ बूंदें गिरी। क्या वो सच मे हमेशा के लिए चला जाएगा ???????
आज सुबह से ही वीर प्रताप ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया था। अपने सामान के रूप मे उसके पा सिर्फ किताबे थी। वो किताबों का शौकीन था। कई सदियों से जमा की गई अलग अलग तरह की किताबें। उन किताबों के बीच से उसने लकड़ी का एक बक्सा बाहर निकाला। इस मे एक पुरानी तस्वीर थी। एक लड़की की तस्वीर। उसने उस तस्वीर को देखा और अपनी पुरानी यादों मे खो गया।
८ दिन की तड़प के बाद जब उसे उसका शरीर इंसानी पिशाच के रूप मे वापस मिला था। उस वजीर को मौत के घाट उतारने के बाद वो सबसे पहले अपनी बहन से मिलने पोहचा। एक कमरे मे खूबसूरत दियो की सजावट कर, अलग अलग तरह की खुशबू मे उसकी लाश रखी गई थी। उसने एक बार अपनी बहन के शरीर को देखा। गुस्सा आसू बन उसकी आंखो मे से छलका। उसने पूरे कमरे को आग लगा दी। एक नीली आग के साए मे महल जलने लगा। वो बहन जो शादीशुदा थी। वो बहन जिसकी लाश को जलाने का हक उसके पति को था। लेकिन उसका वही पति उसके मौत की सबसे बड़ी वजह था। अब उस राजा का उसकी बहन पर कोई हक नही, यही सोच वीर प्रताप ने उस से आखरी हक भी छीन लिया। पूरे महल को जलाते वक्त उसने राजा के अध्यन कक्ष से अपनी बहन की एक तस्वीर ले ली थी। जिसे वो आज भी देख कर रो पड़ता था।
उसने उस तस्वीर को फिर अच्छी तरह से समेट बक्से मे रख दिया। अपनी आंखे पोछि और सामान बांधना शुरू किया।
भरी दुपहरी का वक्त, सूरज महाराज सर पर यूं जमे थे मानो सारा गुस्सा और आग आज ही जमीन पर बरसेगी। यमदूत सबवे से बाहर निकल , ब्रिज पर चढ़ा। ब्रिज पर गहने बेच रही रोजी ने उसे रोका।
" सुनो, यहां आओ। इन्हे देखो कितनी प्यारी चीजे है। अपनी बीवी के लिए कुछ खरीद लो। इस क्लिप को देखो।" क्लिप दिखाने की कोशिश मे उसने यमदूत को आयना कुछ इस तरह दिखाया की कुछ देर के लिए उसकी आंखे चुंधिया गई। जब यमदूत ने आखें खोली, उसकी नजर एक हरी अंगूठी पर रुक गई। उसके बदन मे एक सिरहन दौड़ गई। उसने धीरे से अपना हाथ ऊस अंगूठी की तरफ बढ़ाया। वो उस अंगूठी को छू पाए उस से पहले, एक हाथ ने आगे बढ़ कर उस अंगूठी को अपनी ऊंगली मे बिठा दिया।
" कितनी प्यारी है ! देखो मेरे हाथो में कितनी अच्छी लग रही है।" सनी ने उस अंगूठी को रोजी को दीखाते हुए कहा।
" हा । बोहोत प्यारी! मान लो की ये तुम्हारे लिए ही बनी है।" रोजी ने एक असुरी मुस्कान के साथ कहा।
यमदूत ने उसे देखा,
" ओह..... क्या तुम्हे ये चाहिए थी ???? ये क्या तुम रो क्यों रहे हो ???" सनी ने यमदूत को देख कहा। यमदूत ने अपने चेहरे को छुआ। उसके गालों पर पानी था। उसकी आंखो मे भी पानी था। ये क्या हो रहा है ??? वो क्यो रो रहा है?????
" हे हैंडसम। बताओ ना क्या हुआ ?? क्या तुम्हे ये अंगूठी चाहिए ?" सनी का सवाल सुन अपनी शक्ल ठीक कर यमदूत ने अपनी आंखे पोछी और हा मे सर हिलाया।
" लेकिन अब तो मैंने इसे पहन लिया। अब कुछ नही कर सकते। तुम्हारी गर्लफ्रेंड के लिए चाहिए।" सनी ने पूछा।
" मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।" यमदूत ने आखिर कार अपनी आवाज गले से निकाली।
" ओह... तो बीवी को तोहफे मे दोगे?" सनी।
" मेरा कोई परिवार नही है। प्लीज वो अंगूठी आप मुझे दे दीजिए।" यमदूत ने नम्रता से कहा।
" किसी को देनी नही है तो एक लड़की की अंगूठी ले कर क्या करोगे ? " सनी।
" मुझे एक रिसर्च के लिए ये चाहिए।" यमदूत।
" ह्म....... ठीक है। तो मुझे अपना नंबर दे दो। जैसे ही तुम्हारा रिसर्च पूरा हो जाएगा मुझे ये लौटा देना।" सनी ने उसे देखते हुए कहा।
" मेरे पास फोन नही है। क्यो ना तुम मुझे अपना नंबर दे दो। जैसे ही मेरा काम हो जायेगा में तुम्हे फोन कर लूंगा।" यमदूत।
" पता नही किस जमाने के हो ? जो तुम्हारे पास मोबाइल भी नही है। पर कोई बात नही में तुम्हे अपना नंबर दे रही हु।" सनी ने अपने बैग मे से एक किताब और पेन निकाला। एक पन्ने पे अपना नंबर लिखा। वो पन्ना यमदूत को देते देते उसने वापस अपनी तरफ खीच लिया। " इस हैंडसम से चेहरे के लिए एक किस तो बनता ही है।"
यमदूत बस डर के मारे उसे घुरे जा रहा था ? क्या वो सच मे उसे चूम लेगी। सनी ने उस नंबर लिखे पन्ने को देखा और उसे चूमते हुए अपने होठों की छाप उस पर छोड़ी। फिर उसने अपने बालो को लहराया, अपनी गर्दन थोड़ी टेढ़ी की। एक प्यारी सी शक्ल बनाते हुए, वो पन्ना यमदूत के सामने पकड़ा। " हाई में सनी हुं। और तुम ?"
यमदूत बस उसे घुरे जा रहा था, यमदूत की गलती नही थी। सनी थी ही इतनी प्यारी कोई भी उस पर मर मिटता। गोरा बदन, गोल चेहरा, गुलाबी होठ। पता नही आज तक कोई उसके दिल को धड़का क्यो नही पाया? लेकिन जिसने उसका दिल धड़का दिया। उसकी खुद की धड़कन खोई हुई है।
" सुनो, तुम दोनो ने तय कर लिया इस अंगूठी के पैसे कौन देगा ? " वहा खड़ी रह रोजी कब से ये सारा तमाशा देख रही थी। सनी और यमदूत अभी भी एक दूसरे को घुरे जा रहे थे। " मुझे लगता है, तुम दोनो ही बोहोत बड़ी कीमत चुकाओगे इस अंगूठी की।"