सार्जेंट सलीम हर दिन सुबह गीतिका के घर के सामने मौजूद एक चायखाने में बैठ जाता। वहां वह अपनी भोंडी शायरी सुनाता रहता। कभी चाय वाले से खरीद कर सिगरेट पीता तो कभी चाय। चाय वाले की बिक्री होती और सलीम की शायरी की वजह से महफिल जमी रहती तो चाय वाला भी काफी खुश रहता।
सलीम दूसरों को भी चाय पिलाता था। यही वजह थी कि तमाम निठल्ले उस के पहुंचते ही उसे घेर कर बैठ जाते। उसके लिए बाकायदा बेंच साफ की जाती और उसे बाइज्जत बैठाया जाता। सलीम अपने लिए ऐसी जगह बेंच लगवाता जहां से गीतिका के घर का दरवाजा साफ नजर आता। दीपिका का घर डे स्ट्रीट रोड पर दाहिनी तरफ था। उसके ठीक सामने बाईं तरफ यह चायखाना था। सलीम की वजह से इन दिनों यहां का मौसम रंगीन हो रहा था।
सलीम हर दिन वहां सुबह आठ बजे पहुंच जाता। वह तब तक चायखाने पर महफिल जमाए रहता जब तक कि गीतिका के ऑफिस की कार उसे लेकर रवाना न हो जाती। उसके बाद वह भी गीतिका की कार का पीछा करते हुए उसके ऑफिस से कुछ दूर चक्कर काटता रहता। जब बोर हो जाता तो मोटरसाइकिल पर ही लेट रहता। मुंह को हैट से इस तरह ढक लेता कि गीतिका का दफ्तर नजर आता रहे।
आज सुबह सवा आठ बजे वह फिर चायखाने पर आकर डट गया था। कुछ देर बाद उसके ‘फैन’ आ गए और उसके इर्द-गिर्द बैठ गए। सार्जेंट सलीम एक यूनिवर्सिटी स्टूडेंट के रूप में यहां आता था। महफिल जमते ही उसने सबसे पहले एक सिगरेट सुलगाई और बहुत गंभीर मुद्रा बनाकर बैठ गया। मानो कोई शेर जेहन में बुन रहा हो। कुछ देर बाद उसने सबके लिए चाय के आर्डर दिए। उसने अपनी डायरी खोल ली। कुछ पन्ने पलटने के बाद बोला, “हां तो अर्ज किया है...।”
‘फैंस’ की एक साथ आवाज गूंजी, “इरशाद... इरशाद...।”
सलीम ने फिर से भूमिका बांधी, “यह शेर जरा इश्किया है...।”
फिर आवाज गूंजी, “इरशाद... इरशाद।”
“मेरे बोसे के असर से रंग गुलाबी हुआ उनका....।” सलीम ने पहला मिस्रा उगला।
शैदाई एक साथ चीखे... “वाह-वाह... वाह-वाह.... क्या बात है... गजब लाइन मारी उस्ताद... मजा आ गया।”
सार्जेंट सलीम ने फिर से दोहराया, “मेरे बोसे के असर से रंग गुलाबी हुआ उनका....।” बदले में उसके ‘फैंस’ ने चीख-चीख कर फिर से दाद दी।
“मेरे बोसे के असर से रंग गुलाबी हुआ उनका.... जल कर खाक हुआ गुलाब, रंग देख कर उनका....।” सलीम ने शेर पूरा कर दिया और जैसे चायखाने में हंगामा मच गया। इस कदर दाद दी गई कि मेजें तक हिल गईं।
शैदाई वाह-वाह करते रहे और फिर एक साथ आवाज लगाई, “हुजूर एक बार और... एक बार और...।”
सलीम ने पहला मिस्रा फिर से दोहराया, “मेरे बोसे के असर से रंग गुलाबी हुआ उनका....।” और इसके साथ ही सलीम लपक कर चायखाने से बाहर आ गया। उसने गीतिका को घर से बाहर निकल कर पैदल ही एक तरफ जाते देखा। कुछ दूर जाने के बाद वह मैट्रो स्टेशन के बेसमेंट में उतर गई। सलीम ने मोटरसाइकिल चायखाने पर ही छोड़ दी थी और पैदल ही गीतिका का पीछा करते हुए मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियां उतरने लगा।
गीतिका स्टेशन पर पहुंच कर एक तरफ जाकर खड़ी हो गई। उसने किसी को फोन मिलाया और कुछ देर बात करने के बाद फोन पर्स में रख लिया। कुछ वक्त गुजरते ही मेट्रो आ गई और वह उसमें सवार हो गई। सलीम भी उसके बगल वाले डिब्बे में सवार हो गया।
सार्जेंट सलीम दो डिब्बों के बीच की जगह में आकर खड़ा हो गया। मेट्रो में हाशना पहले से मौजूद थी। उसने गीतिका को अपने बगल की सीट पर बैठा लिया। दोनों आपस में कुछ बात कर रही थीं। वह बातचीत सार्जेंट सलीम सुन नहीं सका।
तकरीबन आधे घंटे के सफर के बाद दोनों उतर गईं। सलीम भी अपने डिब्बे से बाहर आ गया। वह एक निश्चित दूरी बना कर उनका पीछा कर रहा था। दोनों मेट्रो स्टेशन से निकल कर बाहर आ गईं। कुछ दूर पैदल चलने के बाद वह दोनों एक पार्क में जा कर एक सीट पर बैठ गईं।
सलीम को उनकी गतिविधियां बड़ी अजीब लग रही थीं। सुबह नौ बजे इतनी दूर कोई पार्क में क्या करने आएगा। वह मेंहदी की बाड़ के उस तरफ से दोनों पर नजर रखे हुए था। कुछ देर बाद एक आदमी उनके पास आकर बैठ गया। तीनों में कुछ देर बातचीत होती रही। बातचीत खत्म होने पर गीतिका ने अपने पर्स से कुछ रुपये गिन कर उस आदमी के हाथ पर रख दिए।
उस आदमी ने रुपये अपनी जेब में रखे और चला गया। उसके जाने पर हाशना और गीतिका उठ गईं और फिर उसी तरह से मैट्रो स्टेशन पर पहुंच कर मैट्रो में सवार हो हुईं। गीतिका अपने स्टेशन पर उतर कर घर की तरफ चल दी और हाशना डिब्बे में ही बैठकर कहीं चली गई।
सलीम दूरी बना कर गीतिका का पीछा कर रहा था। उसने सड़क की पटरी बदल रखी थी। गीतिका घर का ताला खोल कर अंदर चली गई और सलीम चायखाने में। अंदर पहुंचते ही चाय वाले ने पूछा, “कहां चले गए थे उस्ताद?”
“थोड़ा पेट गड़बड़ है। मैट्रो स्टेशन पर फ्रेश होने गया था।” सलीम ने कहा और जा कर अपनी ‘मसनद’ संभाल ली।
सलीम ने चाय का ऑर्डर दिया और सिगरेट सुलगा ली। अपने गेटअप की वजह से वह जानबूझ कर पाइप नहीं पी रहा था। सभी उसे फिर से घेर कर बैठ गए। शेर की फरमाइश पर उसने बहाना बनाते हुए कहा, “अभी मूड नहीं है।”
चाय पी कर उसने पैसे अदा किए और अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। घड़ी की सुई दस बजा रही थी और गीतिका की ऑफिस की कार आने ही वाली थी। सभी के लिए ऑफिस टाइम दस बजे था, लेकिन गीतिका को साढ़े दस बजे ऑफिस जाना होता था। यह स्पेशल छूट भी गीतिका को हैरान-परेशान करती थी।
ठीक टाइम पर गीतिका के लिए कार आई और वह उसमें सवार हो कर दफ्तर के लिए रवाना हो गई। शाम तक सलीम ऑफिस के आसपास ही जमा रहा। कहीं कोई खास बात नहीं हुई। उसके बाद उसने गीतिका का उसके घर तक पीछा किया। गीतिका जब अंदर चली गई तो सार्जेंट सलीम कोठी की तरफ रवाना हो गया।
सलीम रोज-रोज के इस पीछा करने के चक्कर से परेशान हो गया था। सबसे मुश्किल होता था गीतिका के ऑफिस के बाहर घंटों खड़े रह कर टाइम निकालना। जब वह कोठी पर पहुंचा तो इंस्पेक्टर सोहराब नहीं था।
सलीम ने वाशरूम में जाकर शावर लिया और फिर गाउन पहन कर बाहर आ गया। कुछ देर वह यूं ही पाइप पीते हुए इधर-उधर टहलता रहा। उसके बाद लॉन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसे घोस्ट आती हुई नजर आई। सोहराब घोस्ट को पार्किंग की तरफ ले कर चला गया। सोहराब भी आ कर सलीम के पास एक कुर्सी पर बैठ गया।
“कॉफी के लिए कहा है?” सोहराब ने पूछा।
“नहीं... मैं आप का इंतजार कर रहा था।”
सोहराब ने किचन के नंबर डायल किए और कॉफी के लिए कह दिया। उसके फोन स्विच ऑफ करते ही सलीम बोल पड़ा, “अब मैं गीतिका की निगरानी नहीं करूंगा। बोर हो गया हूं।”
“ठीक है।” सोहराब ने सिगार सुलगाते हुए कहा।
सोहराब के इस तरह से अचानक मान जाने पर सलीम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे तो लगा था कि सोहराब मानेगा ही नहीं।
“तीन दिन की रिपोर्ट।” सोहराब ने पूछा।
“इन तीन दिनों में मुझे कोई भी खास बात नजर नहीं आई। गीतिका की न तो कोई निगरानी कर रहा है और न ही कोई उसका पीछा करता हुआ मुझे नजर आया। मैंने बराबर उसका पीछा किया और आसपास भी नजर बनाए रखी थी।” सलीम ने कहा।
“ओके।” सोहराब ने कहा।
इसके बाद सलीम ने आज सुबह की घटना के बारे में उसे विस्तार से बता दिया। पूरी बात खामोशी से सुनने के बाद सोहराब ने कहा, “तुम से एक गलती हो गई।”
“कैसी गलती?” सलीम ने पूछा।
“तुम्हें गीतिका की जगह उस आदमी का पीछा करना चाहिए था।” सोहराब ने कहा।
“मुझे लगा गीतिका ज्यादा अहम है।” सलीम ने कहा।
“गीतिका ही अहम है, लेकिन जब दो दिन में कुछ भी पता नहीं चला था तो जब आज कुछ नया हुआ था तो तुम्हें उस नए सिरे को पकड़ना चाहिए था। बहरहाल...।” सोहराब ने बाद अधूरी छोड़ दी और किसी का फोन मिलाने लगा।
उधर से आवाज आते ही सोहराब ने कहा, “रिपोर्ट।”
कुछ देर तक दूसरी तरफ की बात वह ध्यान से सुनता रहा उस के बाद फोन काट दिया। उसने सलीम से कहा, “पार्क में मिलने आने वाला आदमी प्राइवेट डिटेक्टिव है।”
“प्राइवेट डिटेक्टिव!” सलीम ने आश्चर्य से दोहराया।
“हां... उसे हाशना ने गीतिका से मिलवाया है। हो सकता है उन्हें लगा हो कि हम उनके इस पर्सनल मैटर में इंट्रेस्ट न लें, इसलिए उन्होंने प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवाएं ली हों।”
“आप को यह सब कैसे पता चला?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।
“हमारे लिए गीतिका अहम थी, इसलिए तुम से उस की निगरानी करा रहा था। मेरा एक आदमी हाशना की भी निगरानी कर रहा था।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने जवाब दिया।
“तो क्या आप इस केस को लेकर इतना ही सीरियस हो गए हैं!” सार्जेंट सलीम ने आश्चर्य से पूछा।
“जब बात शहजादे सलीम की इज्जत की आन पड़े तो मैं पीछे रहने वालों में नहीं हूं।” सोहराब ने गंभीरता से कहा।
“फिर एक बात बताइए?” सलीम ने सोहराब के अच्छे मूड को देखते हुए पूछा।
“पूछिए।”
“आपको यह कैसे पता चला कि गीतिका के नाना का नाम विक्रेंद्र कुमार था?”
“अभी तक वहीं अटके हुए हो...” सोहराब ने हंसते हुए कहा, “अगर अक्ल का इस्तेमाल करते तो इसका जवाब कल खुद ही पा जाते।”
“मैं अब भी नहीं समझा।”
“हाशना और गीतिका जब यहां आई थीं... उस वक्त तुम सो रहे थे। वह पहले मुझ से ही मिली थीं। तभी उन्होंने सारी बातें मुझे भी बताई थीं।”
सोहराब की बात सुन कर सलीम झेंप सा गया। इतनी साधारण सी बात नहीं समझ आई... उसने सोचा। उसने बात बदलते हुए कहा, “वैसे मैं तीन दिन तक निगरानी करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि गीतिका को पैरानॉयड पर्सनाल्टी डिसऑर्डर है।”
“बहुत काबिल हो गए हो।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।
“सच कह रहा हूं फादर सौरभ!” सलीम ने कहा, “यह एक शक की बीमारी है। इसके मरीज को महसूस होता है कि कोई उसका पीछा कर रहा है।”
“हो सकता है कि तुम सच कह रहे हो... लेकिन वही बातें फिर कहूंगा कि बाकी जो सवाल हैं... उनके क्या जवाब हैं तुम्हारे पास।” सोहराब ने गंभीरता से कहा।
“वह सारी बातें भी गीतिका ने ही तो हमें बताई हैं। हो सकता है कि वह सारी बातें भी मनगढ़ंत हों।”
“तुम्हारी यह भी बात मान ली, लेकिन कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब तो चाहिए ही हैं।”
“कौन से सवाल?”
“जो कुछ उस ने अपने ऑफिस के बारे में बताया है।”
“वह भी निगरानी वाली बात की तरह झूठ ही होगा।”
“चेक करने में क्या हर्ज है।”
“करा लीजिए। कैसे चेक कराएंगे?”
सोहराब ने कहा, “इसके लिए तुम्हें गीतिका के ऑफिस में नौकरी करनी होगी।”
“ठीक है। मैं तैयार हूं।” सलीम ने जोश से कहा। सलीम इस पेशकश से खुश हो गया था। उसे वहां लड़कियों से फ्लर्ट करने का मौका मिलने वाला था।
सोहराब ने उसके इरादे भांप लिए। उसने कहा, “बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है। वहां आप को चपरासी बन कर जाना होगा।”
“मैं चपरासी बन कर एकदम नहीं जाऊंगा।” सलीम ने सख्ती से कहा।
“बेटे अक्ल का इस्तेमाल किया करो। वह एक सॉफ्टेवेयर कंपनी है और आपको सॉफ्टवेयर की ‘एस’ भी नहीं आती है।” सोहराब ने उसे समझाते हुए कहा।
सोहराब के इस तर्क पर सलीम खामोश हो गया। सोहराब ने किसी के नंबर डायल किए और कुछ देर बात करने के बाद कहा, “वहां का चपरासी कल से एक महीने की छुट्टी पर जा रहा है। उसकी मां बीमार हैं। तुम्हें वहां कल से ही जाना है।”
“ऊपर वाले तूने मेरी किस्मत में गधा बनना ही क्यों लिख रहा है।” सलीम ने दोनों हाथ जोड़ कर घिघियाते हुए कहा।
क्या गीतिका को वाकई पर्सनाल्टी डिसऑर्डर था?
सलीम ने गीतिका के ऑफिस में क्या गुल खिलाए?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ का अगला भाग...