ऐसी उम्र में जब बहुत संभल कर चलना चाहिए तब अगर कोई भी गलती से भी फिसल जाए तो सोचिए उसकी जिंदगी का भविष्य कैसा होगा।
खैर मैं इन सब बातो से अनजान एक मदिरा की एक बूंद जैसे मेरे सूखे होठों के अंदर बैठी जिव्हा ने जैसे ही अस्वादन किया हो और मैं किसी शराबी की तरह नाच रहा हू। ऐसा लग रहा था जब मैं पहली बार उनसे मिल रहा था। अब सिर्फ दिन रात उनका इंतजार और उनकी ही बाते होती थी। प्रेम केवल दो जिस्म का एक होना नही बल्कि उसका प्रथम अहसास और आभाष होना की मुझे किसी से प्रेम है यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि प्रेम प्रत्येक समय नहीं होता है। चलते फिरते किसी को प्रेम हो जाय तो वह प्रेम नही है। जीवन के हर अनुभव में से यह भी एक महत्वपूर्ण अनुभव है।
जिसका वर्णन वेदों में वर्णित है। दूसरा यह कि जीवन बहुत बड़ा है,प्रेम है तो निभाय,नही है तो कोई नही,अपने को कभी भी अगर मर्यादित रखना है तो कभी प्रेम विरह में किसी के समक्ष रोना मत। अंतर मन का घाव नहीं भरता यह सर्वविदित है। क्योंकि सच्चे अर्थों में प्रेम अगर हो गया तो फिर शारीरिक विछोह से कोई फर्क नहीं पड़ता है। केवल महत्वपूर्ण है उर अंतर में उसकी याद का निरंतर होना चाहिए। वियोग में धीरज रखना, खोना मत न उसको और न ही खुद को। जिंदगी ना जाने कौन सा मोड़ पर आकर रुक गई। अब मैं बस उसका होकर रहना चाहता था। धीरे धीरे दिन बीते बाते और भी बढ़ने लगी। बहुत अच्छा लगने लगा। जैसे किसी ने सूखे पौधे में जान डाल दी हो। अब मैं देर रात जादा देर तक पढ़ने लगा। मुझे उनकी आदत हो गई थी। लेकिन मुझे चीजे समझ नही आ रही थी। बस मैं उससे प्रेम किए जा रहा था। और सच्चे दिल से भी। यह बात मैने किसी को भी नही बताई यहां तक कि उसको भी नही। की मुझे उसमे प्यार दिखता है।
एक दिन शाम को वो मेरे कमरे में आती है और मम्मी से कहती है कि भाभी,क्या मुझे थोड़ा सा जीरा मिल सकता है। मुझे अपनी दही बड़े में डालना है। दीदी ने मंगाया है। मम्मी ने कहा, अरे ,इसमें भी कोई पूछने की बात है। आओ बैठो,अभी जीरा लाकर देती हू। अब वो कुछ देर खड़ी रहती है,अचानक मैं उन्हें बैठने के लिए कहता हू। लेकिन तब तक मम्मी जीरा देती है। और वो चली जाती है। उस दिन करवा चौथ का दिन था। जीरा कम पड़ने पर एक बार वो फिर से आती है। जीरा लेने के लिए। वो जैसे ही मांगती है तो इस बार जीरा मैं लाता हूं,और अनायास ही मेरे मुख से निकलता है,की बार बार लेने से अच्छा है की एक बार में ही ले जाओ और ज्यादा नखरे मत दिखाओ ओके। इतना सुनते ही वो शर्मा के वहा से चली गई। लेकिन यह बात उन्होंने अपने जीजा और दीदी से कह दी। उनकी दीदी को यह बात हजम न हुई। ओर वो शिकायत लेकर मेरी मम्मी के पास आती है। मम्मी मुझे डाट लगती है। लेकिन मैं बात को संभालता हू और कहता हू। की मैं तो ऐसे ही बोल बैठा था। मेरी कोई मनसा नहीं थी। उस दिन मैं बहुत घबराया हुआ था। लग रहा था की जैसे किसी ने जोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया हो। कुछ दिन लड़खड़ाए लेकिन जैसे तैसे फिर धर्रो पर वापस आ गए। ये जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है कि अगर आप किसी से प्रेम करने वाले हैं तो आप अपने आप को मजबूत बनाए। क्योंकि यहां आकर आप फिसलने वाले है ये आपको विधिवत पता होना चाइए। शिवि ने लेकिन दुबारा कभी मेरी शिकायत मेरे इलावा किसी से भी नही की।
क्योंकि शायद उसको मेरे गलती होने का अहसास हो चुका था। वो भी क्या खूबसूरत पल थे। लेकिन मैं अभी भी बड़ा आदर्शवादी हुआ करता था। शील शालीन शांत गंभीर। उन्होंने मुझे समझने में काफी वक्त जाया किया।
लेकिन एक बात कहूंगा। दोस्त,नजर की कीमत उस बन्दे से पूछो जिसने अभी अभी किसी नशीली निगाह से जाम का एक कतरा पिया हो। बस कुछ ऐसा हाल मेरा भी था। मुझे यकीन ही नहीं था की वो मेरे इतने करीब होंगे। खुदा ने क्या दिया और दिया तो ये दिया। वो कई बार अपनी दीदी से पूछा करती थी की मैं इतना गुस्से वाला,धार्मिक,और टफ क्यों हूं,इस पर उनकी दीदी कहती की भैया कुछ ऐसे ही है। उनको समझना आसान नहीं है,वो हंसकर टालती थी बात को। कुछ दिन बीते और धीरे धीरे वो मेरी चीज को अपना समझ कर देखती थी। और इस पर अधिकार जताती थी।
चाहे मेरा कपड़ा हो या फिर कोई कॉपी किताब। यहां तक कि वो मेरे मोबाइल भी चेक करती थी। बस कहानी यही से शुरू होती है। एक हसीन प्यार के दास्तान की। जिसको लोगो ने मजाक मान लिया। आप एक बात ध्यान रखे प्रेम ही नहीं अगर आप कोई भी अच्छा काम करोगे। तो सबसे पहले लोग हसेंगे। इसलिए अपने इस व्यवहार के लिए तैयार रहो। और विषय को कभी भी मजाक मत बनाओ। बहुत कुछ सहकर ,फिर कही प्रेम होता है।
प्रेम केवल मिलन बेला ही नही बल्कि एक वियोग बेला भी है। जिसमें दो पंक्षी की डाल को तोड़ कर अलग किया जाता है। बस यही समझना है।
लेकिन उसमे प्रेम विरह में रोना नहीं बल्कि उसको भी एक अहसास ही समझना है। उनका हंसना कोई आज तक रोक नही सका। वो बहुत हस्ती थी। चाहे कैसी भी बात हो। वो हस्ती थी। और खुल कर हस्ती थी। यह एक खास बात थी उनमें। मेरे पूछने पर कुछ नही बोलती थी। और जवाब अपनी किताब के पिछले पन्नो पर लिख कर रखती थी। और मुझे नजर के इशारे में समझाती थी। की जवाब यहां से प्राप्त कर सकते हो। मुझे उसको पढ़ने का ऐसा चाव रहता था। जैसे किसी कावे को पानी का। मैं उसे पढ़ने के बहाने से उठाकर और जवाब पढ़ लेता था। कभी कागज पे,कभी हथेली पे,कभी कोई इशारा,कभी गुस्से में इतना कुछ कहती थी .लेकिन फिर भी मुझसे डरती थी। विश्वास नहीं होता था। ये सब कुछ देख कर। उनकी आहट,उनकी खनक,उनकी महक, एक अलग अहसास थी मेरे जहां में उनके यहां उनके कई रिश्तेदार भी रहा करते थे। कई तो उनके अपने परिवार ही थे। जो की आपस में बहुत ही क्रमशः।