Mystery of Rambhala - Part 3 in Hindi Mythological Stories by Shakti Singh Negi books and stories PDF | रंभाला का रहस्य - भाग 3

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रंभाला का रहस्य - भाग 3

प्रताप मंगल ग्रह पर



प्रताप का अंतरिक्ष मिशन जोरों पर चल रहा था। नासा और इसरो के साथ मिलकर प्रताप ने मंगल पर बस्तियां बसाने का काम शुरू किया। प्रताप ने अपने देश के 5000 मानवों को मंगल ग्रह पर बसाया। हजार - हजार के ग्रुप में 5 जगहों पर मंगल ग्रह पर इनकी बस्तियां बसाई गई।


अचानक हरे रंग के बौने मंगल मानवों ने प्रताप के लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया। प्रताप ने उन्हें हराकर एक तरफ खदेड़ दिया। एक बस्ती इन के लिए बनाकर प्रताप ने सभी हरे रंग के बौने मंगल मानवों को एक निश्चित क्षेत्र में बसा दिया। प्रताप ने इनकी जनसंख्या नियंत्रण कर के स्थिर कर दी। अब इन लोगों ने प्रताप से मित्रता कर ली। इनकी संख्या चार हजार के करीब थी। प्रताप ने इन की रानी कुटिपिया से विवाह कर लिया।


मंगल पर भी प्रताप ने एक सेना का निर्माण किया। इसमें 500 हरे मंगल मानव व 2000 उसके अपने सैनिक थे। अब मंगल का सम्राट प्रताप व कुटिपिया साम्राज्ञी थी। इन से एक पुत्र बेब्रुवेन उत्पन्न हुआ। प्रताप ने इसे मंगल का युवराज बना दिया।


मंगल पर कृत्रिम वायु मंडल बनवाया गया। खेत, नहरें, उपवन आदि भी बनाए गए।


इसके बाद प्रताप ने चंद्रमा पर भी 5000 मानवों की बस्तियां बसाई। इसी तरह प्रताप ने सौर मंडल के सभी ग्रहों पर बस्तियां बसाई। केवल शुक्र ग्रह छूट गया था। शुक्र ग्रह पर शुक्राचार्य के निर्देशन में 20 अरब भयंकर विशाल दानव रहते थे। प्रताप ने केवल अत्याधुनिक एक हजार सैनिकों के साथ शुक्र ग्रह पर आक्रमण कर दिया। दानवों की विशाल सेना मैदान में आ डटी। परंतु प्रताप के रण कौशल व युद्ध टेक्नोलॉजी के सामने दानव टिक नहीं पाए। कुछ ही घंटों में अधिकांश दानव सैनिक मारे गए। दानवों ने हार मान ली। प्रताप ने शुक्र ग्रह पर कब्जा कर लिया और कुछ दानवों को छोड़कर बाकी सब की नसबंदी कर दी गई। दानवों को ग्रह के एक कोने की तरफ धकेल दिया गया। दानव उसी कोने में बस गये। प्रताप ने दानवों की राजकुमारी से विवाह कर लिया। इस से उसे एक खटोत्कुच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रताप शुक्र ग्रह का भी सम्राट बन गया। इस पुत्र को प्रताप ने शुक्र ग्रह का युवराज बनाया।


इसी बीच प्रताप की बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित होकर पृथ्वी के सभी देशों ने मिलकर प्रताप को अपना सम्राट स्वीकार कर लिया। अब प्रताप सौर मंडल के सभी ग्रहों का सम्राट बन चुका था। अचानक इसी समय कुछ विचित्र मानव प्रताप की सेना पर आक्रमण करने लगे। यह मानव अग्नि द्वारा निर्मित थे। कुछ अग्नि मानव पकड़े गए। इन पर प्रताप के वैज्ञानिकों ने रिसर्च की। प्रताप के गुप्तचर विभाग ने अग्नि मानवों से पूछताछ की तो पता चला कि यह लोग सूर्य पर गुप्त रूप से रहते हैं। प्रताप के वैज्ञानिकों ने सूर्य पर जाने के लिए स्पेशल यान व कपड़े बनाए।


अब प्रताप ने सूर्यलोक पर आक्रमण कर दिया। सूर्य लोक पर अग्नि मानव रहते थे। परंतु वे प्रताप की सेना से हार गये। प्रताप ने कुछ हजार अग्नि मानवों को छोड़कर सब की नसबंदी करवा दी। वे अब वहां पर एक कौने में रहने लगे। वहां की राजकुमारी से प्रताप को सुधर्मा नामक पुत्र प्राप्त हो गया। प्रताप ने इसे सूर्यलोक का युवराज घोषित किया।


अब प्रताप पूरे सौरमंडल का सम्राट बन चुका था। अतः प्रताप ने सर्व सम्राट की उपाधि धारण की। और अपनी इकलौती पुत्री रिषिका को सर्व युवराज बना दिया। सुधर्मा को प्रताप ने सूर्य व अन्य ग्रहों पर ढाई - ढाई हजार सैनिकों की अत्याधुनिक सैनिक टुकड़ी रखी। और 5000 - 5000 अन्य मानवों की बस्तिसां बसाई।


उसने सभी ग्रहों व सूर्य पर उन्नत गाय - भैंस भेजे। वहां उन्नत खेती करवाई। हर ग्रह व सूर्य का चुस्त प्रशासन रखा। पूरे सौरमंडल में आनंद व समृद्धि की लहर दौड़ गई। अब प्रताप का लक्ष्य सौरमंडल व आकाशगंगा ही थी। उसके वैग्यानिक वहां जाने की संभावना पर रिसर्च करने लगे।









ब्रह्मांड पर विजय


प्रताप ने एक 5000 सैनिकों की टुकड़ी बनाई। यह टुकड़ी अत्याधुनिक सैनिक टुकड़ी थी। इसके यान प्रकाश की गति से भी तीव्र गति से चलते थे। प्रताप ने खटोत्कुच के पुत्र बर्बर को इसका सेनापति बनाया। बर्बर के नेतृत्व में यह सेना ब्रह्मांड विजय पर निकल पड़ी। अनेक सौरमंडलों और आकाशगंगाओं पर इस सेना ने कब्जा कर लिया। रास्ते में देवलोक पडा। बर्बर ने उन से मित्रता पूर्वक संधि कर ली। फिर रास्ते में काल लोक पडा। बर्बर ने काल को शीश झुकाया। अंत में ईश्वर धाम पड़ा। बर्बर ने ईश्वर के प्रेम पूर्वक चरण स्पर्श किसे। ईश्वर ने बर्बर को अपना आशीर्वाद दिया।


बर्बर संपूर्ण ब्रह्मांड विजय कर वापस लौटा। प्रताप ने अपने पोते बर्बर को गले से लगाया। अब प्रताप के संपूर्ण ब्रह्मांड राज्य में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। प्रताप ने ब्रह्मांड सम्राट की उपाधि धारण की। प्रताप प्रताप देव कहलाने लगे। देवराज ने अद्भुत अमृत का पान भी महाराज प्रताप देव को करवाया। देवराज ने अनेक स्वर्गिक भेंटें भी अपने परम मित्र प्रताप देव को प्रदान की। इनमें कामधेनु की प्रतिमूर्ति सामधेनु, कल्प वृक्ष की प्रतिमूर्ति झल्पवृक्ष, आदि थी। इस प्रकार प्रताप देव सारे ब्रह्मांड के देव, दनुज, मनुज व अन्य प्राणियों के ब्रह्मांड सम्राट बने। प्रताप देव ने परमेश्वर को प्रणाम कर अपने पद को सबका महा सेवक पद मानकर परमेश्वर का धन्यवाद किया।

प्रताप ने पृथ्वी लोक पर भी जनसंख्या नियंत्रण कर यहां की आबादी भी सीमित कर दी। इन कार्यों से परमेश्वर की शक्ति 'प्रकृति देवी' प्रताप व उसकी प्रजा पर बहुत प्रसन्न हुई।