प्रताप हर माह अपने होटल की आधी इनकम ₹1 करोड वहां के गरीबों के विकास के लिए लगा देता है। महाराज किं- गालू प्रताप के कार्यों से बहुत खुश होते हैं। किंगालू के राज्य में 80% लोग गरीब थे। किंगालू के पास अथाह धन था। वह इसका कुछ हिस्सा गरीबों की मदद में लगा देता है। कुछ ही समय में देश में गरीबों को रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार आदि सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
प्रताप के कहने पर किंगालू एक पाठ्यक्रम, एक ध्वज, एक भाषा, एक समान कानून, एक संविधान, अपने देश में लागू कर देता है। किंगालू परिवार नियोजन द्वारा अपने देश की जनसंख्या स्थिर कर देता है। चकबंदी, कृषि का आधुनिकीकरण, आदि कार्य भी वह करता है। अब किंगालू का देश सुखी व समृद्ध हो जाता है।
अब तक प्रताप को वहां 1 वर्ष हो चुका था। बीच-बीच में वह अपने घर भारत व अन्य जगह किंगालू से अनुमति लेकर जाता रहता था। अब तक वह अफ्रीका का इतिहास नामक पुस्तक लगभग आधी लिख चुका था।
किंगालू ने प्रताप को बताया कि एक आदमखोर शेर लोगों को खा रहा है। चलो शेर का शिकार करें। किंगालू और प्रताप कुछ सिपाहिंयों के साथ शेर के शिकार के लिए जंगल में चले। अचानक आदमखोर शेर ने किंगालू पर आक्रमण कर दिया। किंगालू ने कई गोलियां चलाई। परंतु कोई भी गोली प्रताप को नहीं लगी। अचानक प्रताप निहत्था ही शेर से भिड गया। प्रताप ने हाथ - पैरों से ही शेर को मार - मार कर भर्ता बना दिया। शेर ने दम तोड़ दिया।
किंगालू बहुत खुश हुआ। उसने अपने प्राण रक्षक प्रताप को बहुत -2 धन्यवाद दिया। किंगालू ने प्रताप को समुद्र में बने एक बहुत बड़े द्वीप को गिफ्ट में दिया। तथा साथ ही साथ बहुत से रुपये, सोना, चांदी, जवाहरात माणिक आदि भी दिये। किंगालू ने प्रताप को उस द्वीप का राजा बना दिया। साथ ही 5000 लोगों की एक सैन्य टुकड़ी दी।
प्रताप ने उस द्वीप का राजा बनते ही स्वयं को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया। उस द्वीप पर दो लाख लोग फटेहाल हालत में रहते थे। प्रताप ने सर्वप्रथम जनसंख्या नियंत्रण कर चयनित जनन करवाया। अब दीप की आबादी 2लाख पर ही स्थिर हो गई। प्रताप ने सारे द्वीप को आधुनिक मशीनों से समतल करवाया और वहां खेत - बगीचे, एक आधुनिक स्मार्ट शहर बसाया। प्रताप ने द्वीप के 200000 आदिवासियों को नवनिर्मित शहर में बसाया। उन्हें रोजगार रोटी, कपड़ा, मकान,शिक्षा, दवाई व अन्य सुविधाएं प्रदान की।
प्रताप ने अपनी नई प्रजा के सभी वयस्क लोगों को आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण भी दिया। वहां 50000 बच्चे व बूढ़े थे। डेढ़ लाख लोग वयस्क थे। अब प्रताप के पास डेढ़ लाख से भी ज्यादा की विशाल फौज हो गई। इसमें स्त्री-पुरुष दोनों थे। प्रताप ने अपनी प्रजा को विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध करवाई। आर्मी, नौसेना, नभ सेना, पुलिस, सीमा सुरक्षा दल आदि की स्थापना की। व्यापार को बढ़ावा दिया।
द्वीप में सोने - चांदी की खानों से प्रताप ने बहुत धन कमाया। आधा धन द्वीप के विकास में तथा आधा तहखाने में सुरक्षित रखा गया। समुद्र से मोती निकाले गये। कुछ ही समय में यह देश आर्थिक और सामरिक दृष्टि से एक महाशक्ति बन गया। प्रताप ने यहां की एक सुंदर लड़की से शादी कर द्वीप वासियों से अपना रक्त संबंध जोड़ दिया। प्रताप ने इस देश का नाम प्रतापलैंड रख लिया।
इस देश को संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता मिल गई। प्रताप ने एक धर्म, एक भाषा, एक संस्कृति, एक देश, एक कानून, एक संविधान, एक झंडा, एक पाठ्यक्रम, एक मुद्रा अनिवार्य कर दिया। सभी को यूरोपियन ढंग से रहने व यूरोपीय पोशाक धारण करना अनिवार्य कर दिया। बाहर के वैज्ञानिकों को भी इस द्वीप में बसाया। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भी इस देश ने बहुत उन्नति की।
किंगालू प्रताप के कार्यों से बहुत खुश हुआ। उसने भी अपने देश में प्रताप का अनुकरण किया। किंगालू ने अपनी पुत्री का विवाह भी प्रताप से कर दिया। प्रताप बीच-बीच में अपने घर भारत आता - जाता रहता था। इसी बीच किंगालू के प्रयासों से ही प्रताप को अफ्रीकन देशों के संघ का अध्यक्ष बना दिया गया। इस बीच प्रताप अपनी पुस्तक लगभग पूर्ण कर चुका था। अब पुस्तक में एक चैप्टर जोड़ना ही बाकी था।
पुलुपुलु में एक रहस्यमई किला था रंभाला। रात्रि में एक चारभुजा वाला व्यक्ति उस किले में घूमता रहता था। वह वहां से गुजरने वाले मनुष्य और जानवरों को वह मारकर खा जाता था।
प्रताप व किंगालू अपने साथ 10 सैनिकों को लेकर किले की तरफ चले। सैनिक तीर - धनुष, भाले, तलवार, बंदूक से सुसज्जित थे। वे किले के मुख्य द्वार पर पहुंचे। अचानक एक चमगादड़ों का झुंड आया और उसके सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। सैनिकों ने जवाब में तीर, भाले, गोलियां चलाई। कुछ चमगादड़ मारे गये। बाकी भाग गये। किंगालू के 2 सैनिक भी चमगादडों के हमले में मारे गए। पूरा किला जंगली झाड़ियों व पेड़ों से घिरा हुआ था। बाकी लोग आगे बढ़े। दूसरे दरवाजे पर अचानक बहुत से सांपों ने हमला बोल दिया। सैनिक तीर व गोलियां चलाते हुये आगे बढ़ने लगे। 2 सैनिक यहां भी सांपों के काटने से मारे गए।
अब कुल 6 सैनिक किंगालू व प्रताप बचे थे। तीसरे दरवाजे पर पहुंचते ही एक 10 फुट के काले रंग के व्यक्ति ने हमला बोल दिया। इस व्यक्ति के चार हाथ थे। शरीर सिर से नीचे उसका मनुष्य जैसा ही था। सिर की जगह उसका शेर का सिर था। सभी व्यक्ति उस दानव को घेरकर प्रहार करने लगे। दानव एक - एक कर सैनिकों को मारने लगा। अचानक किंगालू ने एक भाला दानव के दिल में घोंप दिया।
बचे सैनिक दानव पर गोलियों व तीरों की बारिश कर रहे थे। परंतु उस पर कोई खास असर नहीं हो रहा था। अचानक प्रताप ने तलवार का प्रहार उछलकर दानव की गर्दन पर किया। दानव की गर्दन कट कर दूर जा गिरी। दानव गिरकर मर गया। अब केवल 2 सैनिक, किंगालू व प्रताप ही जीवित बचे थे। चारों ने मिलकर सूखी घास, लकड़ी आदि जमा की और दानव के शरीर को आग लगाकर भष्म कर दिया।
अब चारों बाहर आए। अब किंगालू ने अपने अन्य सैनिकों को इस पुराने किले को ध्वस्त करने का आदेश दिया। सैनिकों ने फावडे, सब्बल आदि लेकर किले को कुछ ही घंटों में ध्वस्त कर दिया। चार भुजाओं वाला सिंह मुखी दानव वास्तव में एक विलुप्त प्रायः आदिमानव की जाति से था। इस दानव के अंत के साथ पूरे देश मैं खुशी की लहर दौड़ पड़ी। प्रताप ने रंभाला का रहस्य भी अपनी पुस्तक में जोड़ा और पुस्तक पूर्ण कर ली।
यह पुस्तक भी एक प्रतिष्ठित प्रकाशन से प्रकाशित हुई और प्रताप को बहुत सा धन रॉयल्टी के रूप में मिला। किंगालू पुस्तक के पूर्ण होने पर बहुत प्रसन्न था। इस खुशी में उसने बहुत बड़े जश्न का आयोजन किया।