अध्याय आठ
अक्षरब्रह्म
अनुभव— दादी जी मेरी आध्यात्मिक शब्दावली बहुत बड़ी नहीं है,इसलिए मैं बहुत से शब्दों को, जो मैं मंदिर में सुनता हूँ, समझ नहीं पाता ।क्या आप उनमें से कुछ शब्दों को समझा सकतीं हैं ?
दादी जी— मैं तुम्हें कुछ संस्कृत शब्दों को समझाऊँगी,तुम ध्यान से सुनो । इन शब्दों को तुम शायद इस उम्र में न समझ पाओ ।
जो आत्मा सब जीवों के अंदर रहता है, उसे संस्कृत में ब्रह्म कहते हैं । ब्रह्म (या आत्मा) न केवल सब चीजों का पोषण करता है, उनका आधार हैं, बल्कि सारे विश्व का भी आधार है,पालन कर्ता है ।
परमात्मा अनादि (जिसका शुरुआत नहीं है), अनन्त ( जिसका अन्त नहीं है) ,
शाश्वत (जो सदा रहता है) और
परिवर्तनीय ( जो कभी बदलता नहीं) है ।
अंत: इसको अजर- अमर , अक्षरब्रह्म भी कहते हैं ।
ब्रह्म शब्द से प्रायः ब्रह्मा का भ्रम भी हो जाता है, जो सृष्टिकर्ता है विश्व का, क्रियात्मक ऊर्जा शक्ति है ।
ब्रह्म को ब्रह्मन् भी कहते हैं । ब्रह्मन् शब्द से कभी-कभी ब्राह्मण का भ्रम भी हो जाता है, जो भारत में एक ऊँची जाति का नाम है । ब्राह्मण शब्द को मैं तुम्हें आगे अध्याय अठारह में समझाऊँगी ।
परब्रह्म या परमात्मा को पिता, माता, परमप्रभु आदि भी कहते है जो सब चीजों का मूल है— ब्रह्म या आत्मा का भी।
कर्म शब्द के कई अर्थ हैं । साधारणत: इसका अर्थ क्रिया है, जो हम करते हैं । इसका अर्थ पिछले जन्मों में किये गए कर्मों के जमा हुए फल, भी है ।
ब्रह्म की विभिन्न शक्तियों को देव , देवी या देवता कहते हैं । हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इनकी पूजा करते हैं ।
ईश्वर परमात्मा की वह शक्ति है, जो हर जीव के शरीर में रहकर जीव का मार्गदर्शन करती है और हम पर नियंत्रण भी रखती है ।
भगवान का सीधा-सादा अर्थ है, शक्तिशाली । यह शब्द परमात्मा के लिए भी प्रयोग किया जाता है । श्रीकृष्ण
को हम भगवान कृष्ण भी कहते है ।
जीव या जीवात्मा वे जीवित प्राणी हैं, जो जन्म लेते हैं, सीमित आयु पाते हैं और मरते ( या रूप बदलते ) हैं ।
अनुभव— दादी जी , मुझे प्रभु की याद ( स्मरण, ध्यान) और उपासना कितनी बार करनी चाहिए ?
दादी जी— हमें खाने से पहले, सोने से पहले, प्रात:काल उठने के बाद और काम या अध्ययन शुरू कर ने से पहले परमात्मा को याद करने की आदत डालनी चाहिए।
अनुभव— क्या हम मृत्यु के बाद सदा मनुष्य के रूप में ही अगला जन्म लेते हैं ?
दादी जी— मनुष्य पृथ्वी पर पाई जाने वाली चौरासी लाख योनियों में से किसी भी योनि में मृत्यु के बाद फिर से जन्म ले सकता है । भगवान कृष्ण ने कहा है, “मृत्यु के समय व्यक्ति जिसका भी स्मरण करता है, मृत्यु के बाद वही पाता है । मृत्यु के समय व्यक्ति वही याद करता है,जिसका विचार उसके जीवन काल में ज़्यादा रहता है ।”
अंत: मनुष्य को हर समय प्रभु का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए ।
आत्मा के आवागमन को समझाने के लिए यह कथा मैं तुम्हें सुनाती हूँ ।
कहानी (9) राजा भरत की कथा
जब ऋषि विश्वामित्र अपने ही अलग विश्व की सृष्टि करने में व्यस्त थे, तो स्वर्ग के राजा इंद्र को यह सहन नहीं हुआ । तब इंद्र ने स्वर्ग की सुंदरी नर्तकी मेनका को उनके काम में विघ्न डालने को भेजा । मेनका अपने काम में सफल हो गई और विश्वामित्र ऋषि की एक पुत्री को उसने जन्म दिया, जिसका नाम शकुंतला था । मेनका पुत्री को त्याग कर स्वर्ग चली गई ।शकुंतला को त्यागने के बाद उसका पालन-पोषण कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ ।
एक दिन दुष्यंत नाम के एक राजा ने कण्व ऋषि के आश्रम में प्रवेश किया । वहॉं वह शकुंतला से मिला और उसपर मोहित हो गया । दुष्यंत ने शकुंतला से गुप्त रूप से विवाह कर लिया ।
कुछ समय बाद शकुंतला ने एक बेटे को जन्म दिया,
जिसका नाम भरत रखा गया । वह बहुत सुंदर और बलशाली था,जो बचपन में भी किसी देवता का पुत्र लगता था । जब वह छ: वर्ष का था, तो वह बाघ , सिंह और हाथी जैसे जंगली जानवरों के बच्चों को बांधकर वन में खेला करता था ।
दुष्यंत की मृत्यु के बाद भरत राजा बना । भरत देश का सबसे महान राजा था । आज भी हम हिन्दुस्तान को भारतवर्ष या राजा भरत का देश के नाम से पुकारते हैं । राजा भरत के नौ बेटे थे, किंतु उनमें से कोई भी ऐसा नहीं लगा जो उसके बाद राजा बनने के योग्य होता । इसलिए भरत ने एक योग्य बच्चे को गोद लिया, जिसने भरत के बाद राज्य को सँभाला । इस प्रकार राजा भरत ने प्रजातंत्र की नींव डाली ।
भरत नाम के और भी कई शासक हुए हैं, जैसे भगवान राम के अनुज ( छोटे भाई) भरत और महाराजा भरत ।
महाराजा भरत की एक कथा इस प्रकार है —-
ऋषिराज ऋषभदेव के बेटे भगवान के भक्त महाराजा भरत ने भी हमारी धरती पर शासन किया ।उन्होंने बहुत समय तक राज्य किया, किंतु अंत में एक संन्यासी का आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए सब कुछ त्याग दिया ।
यद्यपि भरत महान राज्य का त्याग करने में समर्थ थे, किंतु उन्हें एक शिशु हिरण के प्रति गहरा मोह पैदा हो गया ।
एक बार जब हिरण कहीं ग़ायब हो गया । महाराजा भरत बहुत दुखी हो गये और उसकी खोज में निकल पड़े ।
हिरण की खोज करते हुए और उसकी अनुपस्थिति से शोक में डूबे महाराजा भरत गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई ।
चूँकि मृत्यु के समय उनका मन पूरी तरह हिरण के ध्यान में डूबा हुआ था, उन्होंने एक हिरणी के गर्भ से अगला जन्म लिया ।
यही है आत्मा के आवागमन ( आने-जाने का चक्कर)का सिद्धांत जिसमें हमारा विश्वास है ।कुछ पश्चिमी लोग भी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं ।पुनर्जन्म का सिद्धांत ऐसा मानता है कि मानव-आत्मा मनुष्यों के ही रूप में पुनर्जन्म लेती है, पशुओं के रूप में नहीं ।आवागमन का सिद्धांत पुनर्जन्म के सिद्धांत से अधिक व्यापक है ।
अनुभव— यदि प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र में लगे रहते हैं, तो सूरज, चॉद, धरती और दूसरे नक्षत्रों की क्या गति है ? क्या उनका भी जन्म और क्षय होता है ?
दादी जी— सारी सृष्टि का अपना जीवन-काल होता है। जो संसार हमें दिखाई देता है ।जैसे- सूरज, चॉद , तारे आदि नक्षत्र और ग्रह , उनका जीवन काल 8.64 अरब वर्ष है । इस काल में सारे दिखाई देने वाले सृष्टि का विनाश होता है । किंतु ब्रह्म अविनाशी है, शाश्वत है । उसका कभी क्षय नहीं होता ।
अनुभव— यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद इस संसार में वापिस नहीं लौटते,तो उनका क्या होता है? क्या वे स्वर्ग जाते है और सदा वहीं रहते हैं?
दादी जी— जो मनुष्य इस धरती पर अच्छे कर्म करते हैं, वे स्वर्ग में जाते है, किंतु स्वर्ग का सुख भोग कर उन्हें वापिस धरती पर आना पड़ता है ।
जो लोग दुर्जन और दुष्कर्मी रहे है , वे दण्ड स्वरूप नरक में जाते हैं । वे भी धरती पर वापिस लौटते हैं । जिन मनुष्यों ने निर्वाण पा लिया है, वे फिर जन्म नहीं लेते । वे परमात्मा के साथ मिलकर एक हो जाते हैं और परमधाम को जाते हैं।
अनुभव— हम परमधाम कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
दादी जी— जिन्होंने परमात्मा का सच्चा ज्ञान पा लिया है, वे ब्रह्म ज्ञानी कहलाते हैं और परमधाम को जाते हैं ।उनका अगला जन्म नहीं होता, इसे मुक्ति कहा जाता है ।
मुक्ति उन अज्ञानी व्यक्तियों को नहीं मिलती जो अच्छे गुणों—जैसे जप , तप , ध्यान, भगवान में विश्वास और ब्रह्मज्ञान
आदि से वंचित हैं, जो ब्रह्मज्ञानी नहीं है , किंतु जिन्होंने अच्छे कर्म किये हैं, वे अपने अच्छे कर्मों के कारण स्वर्ग जाते हैं और पुनः धरती पर जन्म लेते रहते हैं, जब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर लेते और आत्मज्ञानी नहीं बन जाते।
अध्याय आठ का सार— इस अध्याय में कुछ संस्कृत शब्दों की व्याख्या की गई है, जो तुम बड़े होने पर अच्छी तरह समझ सकोगे । इसके साथ ही आवागमन और विश्व की सृष्टि और प्रलय को भी समझाया गया है ।
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति का एक सहज और आसान तरीक़ा है— प्रभु को सदा याद रखना और अपना कर्तव्य करते रहना ।
क्रमशः ✍️