Par - Mahesh katare - 1 in Hindi Adventure Stories by राज बोहरे books and stories PDF | पार - महेश कटारे - 1

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पार - महेश कटारे - 1

महेश कटारे - कहानी–पार 1

जान–पहचानी गैल पर पैर अपने–आप इच्छित दिशा को मुड़ जाते थे। हरिविलास आगे था–पीछे कमला, उसके पीछे अपहरण किया गया लड़का तथा गैंग के तीन सदस्य और थे, यानी कुल छह जने। जिस समय वे ठिकाने से चले थे तब सामने पूरब में शाम का इन्द्रधनुष खिंचा था, अतÁ अनुमान था कि सबेरे पानी बरसेगा–‘संझा धनुष, सबरे पाकनी’। ठिकाने पर एक दिन भी सुस्ताते हुए न काट पाए थे कि मुखबिर की खबर आ गई थी–‘‘ठिकाने पर कभी भी घेरा पड़ सकता है। ऊपर का दबाव है इसलिए डी0आई0जी0 भÙा रहा है। दो जिलों की पुलिस का खास दस्ता एक नये डिप्टी को सौंप दिया है। नाक में दम कर रखा है हरामजादे ने।’’

‘‘ऊँ।।।।? कुछ कहा ? ’’ हरिविलास पथरीली पगडण्डी पर ब.ढता हुआ बोला।

‘‘नहीं तो !’’ कमला जाने किस सोच से बाहर आई–‘‘कभी–कभी पहाड़ दूभर हो जाता है।’’

‘‘बूँदा–बाँदी से रपटन ब.ढ गई है। पहाड़ की ऊँचाई तो पहले ही जितनी है।’’ बात को मजाकिया मोड़ देने की आदत है हरिविलास को।

तीन घण्टे में इस कीच–खच्चड़ के मौसम में छह कोस ब.ढ आना कम नहीं है। ऊपर से कंधे पर पाँच–सात सेर वजन बंदूक का रहता है, पीठ के सफरी बैग में जरूरत की चीजें और कपड़े–लत्ते ठुँसे होते हैं। पुलिसवालों के खाने–पीने, गोली–बारूद के इंतजाम में तो पूरी सरकार पीछे होती है। यहाँ तो एक–एक ची.ज खुद जुटानी पड़ती है। सुई सेस लेकर माचिस तक के लिए दहेज–सा देना पड़ता है।

इस बार की पुलिसिया सरगर्मी में कमला के गिरोह ने तय किया है कि पूरब में पचनदा पार कर यू0पी0 में दस–पन्द्रह दिन गुजार लिये जाएँ। खबरे हैं कि उधर की पुलिस और सरकार दूसरी उठा–धराई में उलझी है इसलिए माहौल अनुकूल है। वैसे डाँग ही डाँग ह्यजंगलहृ शिवपुरी की ओर भी निकला जा सकता था या धौलपुर को बगल देते हुए राजस्थान में भी कूदने से सुरक्षित हुआ जा सकता था।

पहाड़ की आधी च.ढाई तक पहुँचते–पहुँचते कमला की पिण्डलियाँ और पंजे पिराने लगे। धाराधार धावे में केवल दो जगह पानी पिया है। चलते–चलते बैठने पर थकान च.ढ दौड़ती है और बागी जीवन में आलस, नींद और खाँसी तीनों खतरनाक हैं। माता की म.ढी बस एक सपाटे–भर दूर है–बीस बाइस मिनिट का रास्ता, पर कमला ने हाथ की टार्च जमीन की ओर झुकाकर दो बार जलाई–बुझाई। इसका मतलब वहाँ कुछ सुस्ताना है।

वह पगडण्डी के पत्थर पर बैठ गई तो गिरोह आसपास सिमट आया। अपहत यानी ‘पकड़’’ छीतर बनिया का पन्द्रह सोलह साल का लड़का है। पखवारे पहले गाँव के बाहर से गिरोह ने धर लिया था। हँगने आया था–पूँजी के नाम पर वही लोटा उसके पास है। दो लाख की फिरौती माँगी गई है। बिचौलिया एक पर लाना चाहता है। कहता है कि बनिया जरूर है जाति से, पर दम नही है उसमें। गाँव–गाँव फेरी लगाकर परिवार पालता है। गाँठ की कुल जमा चार बीघा जमीन बेच–बाचकर ही एक लाख की रकम जुटा पाएगा। खरीदार भी तो ऐसे बखत औनी–पौनी कीमत लगाते हैं।

कमला डे.ढ लाख पर उतरकर अड़ी है। गरीब सही, पर है तो बनिया ! हाथी लटा दुबला होने पर भी बिटौरा सा होता है।

‘‘इधर आ रे मोंड़ा !’’

कमला की कड़क से सहमता लड़का उकरूँ आ बैठा। थकान से वह भी टूटा हुआ था। कमला उसे लद्दू बनाए थी। लद्दू यानी लादनेवाला। छह कोस से वह कमला का बैग और बंदूक ढो रहा है। अपनी ग्रीनर दोनाली कमला को बेहद प्रिय है, पर लंबे कूच में वह केवल पिस्तौल लटकाती है।

‘‘तेरी फट क्यों रही है ? पास आ।।।।।के !’’

मर्दो की तरह गंदी–गंदी गालियाँ कमला के मुँह से शुरू–शुरू में लड़के को बहुत भद्दी लगती थीं, पर अब जान चुका है कि यह सब काम मर्दो की नकल पर करती है। वैसे ही कपड़े, जूते, व्यौहार, ठसक और डाँट–डपट बदहवासी से बलात्कार तक।।।।

कमला ने लड़के की ओर पाँव पसार दिए। लड़का कुछ और सरककर पिंडिलियाँ दबाने लगा। पैरों पर सिपाहियों जैसे किरमिच के बूट च.ढे थे।

‘‘बाबा के पास चून धरा हो तो आज रात माता के मंदिर में काट लें ? आसपास गीधों की तरह बैठे साथियों से कमला ने सलाह ली।

‘‘रात–रात में ही पार होना ठीक रहेगा। डर के मारे वह खुद भी रात को सटक लेता है।’’ दूसरे ने मत प्रकट किया।

‘‘नदी का पता नहीं कि चढी है या पाट है। चढी मिली तो औघट पार कौन करेगा ?।।।।ये पिल्ला अलग से संग बँधा है–भो.....का !’’

‘‘अपने आदमी कुछ न कुछ इंतजाम करेंगे ही.....।’’

‘‘वो बम्हना भी तो होगा वहाँ। महीने–भर में ही तबादला थोड़े हो गया होगा उसका। इधर आने को कोई तैयार नहीं होता सो तीन साल से मजा मार रहा है हरामी। लैनेमेन की तनखा झटकता है। काम क्या है ।।।।? बिजली का तार इधर से उधर, उधर से इधर। सो भी बिजली चली गई तो अट्ठे पखवारे–भर पड़ा–पड़ा पादता रहेगा। इन साले बाम्हनों को तो लैन में खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए। सब सीटों पर जमे बैठे हैं।’’

कमला ने चिड़चिड़ाकर लड़के पर लात फटकार दी–‘‘भैंचो...... हाथों में जान नहीं है क्या ? अभी छूट दे दो तो भैंस को गाभिन कर देगा।’’

आकस्मिक प्रहार से लड़का गुलांट खाता हुआ लु.ढक गया। दर्द से कराहता हुआ वह आँसूस बहाने लगा। पकड़ को इसी तरह रखा जाता है। भूख, मार और दहशत से इतना तोड़ दिया जाता है कि अवसर मिलने पर भी निकल भागने का साहस न कर सके।

लड़के की दुर्दशा पर कोई न पसीजा। यह तो होता ही है– ‘‘उठ बे ! साले ठुसुर–ठुसुर की तो गोली मार के घाटी में फेंक दूँगी।’’ कहते हुए कमला की निगाह घाटी की ओर घूम गई।