TRIDHA - 9 in Hindi Fiction Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | त्रिधा - 9

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त्रिधा - 9

प्रभात और हर्षवर्धन कॉलेज कैंपस में बने छोटे से गार्डन में बैठे हुए थे।

"भाई तूने अपनी तो सेटिंग कर रखी है, जरा मेरे बारे में भी कुछ सोच, कुछ तो बता मैं आखिर त्रिधा को कैसे समझाऊं?" हर्षवर्धन ने परेशान होते हुए प्रभात से कहा।

"अचानक क्या हुआ?" प्रभात ने हर्षवर्धन से पूछा क्योंकि कल तक तो उसे हर्षवर्धन बिल्कुल ठीक लग रहा था मगर आज उसके चेहरे को देखकर साफ पता चल रहा था कि वह कितना उदास है।

"त्रिधा मुझसे प्यार नहीं करती।" हर्षवर्धन ने मुंह लटका कर कहा।

"उसे थोड़ा वक्त दे हर्ष, हो सकता है कि उसे अभी तेरा प्यार समझ में नहीं आ रहा हो मगर वक्त के साथ-साथ उसे भी एहसास होने लगेगा कि तू भी उसके लिए सही है। मुझे तू त्रिधा के लिए पसंद है मगर तक वह तुझसे प्यार नहीं करती, तुझे अपने प्यार, अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार नहीं करती, तब तक मैं भी क्या कर सकता हूं! आई नो मैं थोड़ा रूड साउंड कर रहा हूं मगर त्रिधा खुशी मेरे और संध्या के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है और साथ ही उसके लिए एक सही इंसान चुनना भी। तू सही है हर्ष, मगर त्रिधा को थोड़ा वक्त दे, उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की जगह उसे यह अहसास दिलवा कि वह अकेली नहीं है, उसकी हर परेशानी में उसके साथ खड़ा रह, उसे तेरा प्यार जरूर समझ आएगा।" प्रभात ने मुस्कुरा कर कहा।

"ट्राइंग" इतना कहकर हर्षवर्धन भी थोड़ा सा मुस्कुराया हालांकि उसकी वह मुस्कुराहट बनावटी थी। हर्षवर्धन की उस बनावटी मुस्कुराहट को प्रभात ने भी भांप लिया था मगर इस मामले में वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था। प्रभात और हर्षवर्धन दोनों ही जानते थे कि किसी से प्यार करना आसान है मगर जिससे आप प्यार करते हो उसके मन में भी आपके लिए प्यार हो यह जरूरी तो नहीं। साथ ही प्रभात यह भी जानता था कि अगर उसने त्रिधा से जबरदस्ती हर्षवर्धन के बारे में सोचने के लिए भी कहा तो त्रिधा उन दोनों से ही दूर हो जाएगी और अब वह त्रिधा को किसी भी हाल में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था।

अगले लेक्चर का समय होने पर प्रभात और हर्षवर्धन दोनों जाकर क्लास रूम में बैठ गए संध्या और त्रिधा तो वहां पहले से ही मौजूद थे मगर उन दोनों को देखकर उन्होंने मुंह बना लिया। संध्या, त्रिधा को देखकर कहने लगी -" आजकल कुछ लोग पढ़ाई के अलावा सब जगह व्यस्त रहते हैं।"

"क्या है न कुछ लोगों को भी थोड़े टिप्स चाहिए होते हैं कि जिस लड़की से वो प्यार करते हैं उसे अपने प्यार का अहसास कैसे करवाएं।अब जिस लड़की से वो प्यार करते हैं वो कुछ लोगों की उन आठ गर्लफ्रेंड्स जैसी नहीं है ना तो इसलिए लड़की से पहले उसके बेस्ट फ्रेंड्स को पटाना पड़ रहा है।" हर्षवर्धन संध्या के पास बैठकर धीरे से कहा। वह नहीं चाहता था कि त्रिधा उसकी बातें सुन और उसके मजाक का कुछ अलग ही अर्थ निकाल ले।

"अच्छा तो यह बात है" चलो बालक करते हैं तुम्हारी कुछ मदद।" संध्या ने हर्षवर्धन से यह कहते वक़्त अपने हाथ को आशीर्वाद की मुद्रा में बनाया और फिर किसी साधु की तरह भाव भंगिमा बनाकर हर्षवर्धन को देखने लगी।

जब से संध्या और हर्षवर्धन आपस में बात कर रहे थे तब से प्रभात और त्रिधा भी आपस में बातें कर रहे थे। प्रभात, त्रिधा से संध्या के साथ अपनी डेट के बारे में सजेशंस ले रहा था और त्रिधा प्रभात को बराबर सजेशंस दिए भी जा रही थी।

कॉलेज खत्म होने के बाद सभी अपने अपने घर चले गए। हॉस्टल में आते ही त्रिधा को फिर से माया की याद आने लगी थी। अब तो माया की याद आना त्रिधा की दिनचर्या में शामिल हो गया था मगर इस बारे में वह कुछ नहीं कर सकती थी। शाम होने पर त्रिधा बच्चों को पढ़ाने जाने के लिए तैयार होने लगे और जब वह प्रभात के घर पहुंची तो देखा प्रभात आज कुछ ज्यादा ही तैयार था तब त्रिधा को याद आया कि आज प्रभात संध्या के साथ जाने वाला है, इतनी बड़ी बात वह कैसे भूल सकती है। यह सोचते हुए उसने अपना सिर पीट लिया।

"सॉरी प्रभात मुझे बिल्कुल याद नहीं रहा था कि आज तुम संध्या के साथ जाने वाले हो। सिर्फ आज आज मैं ऑटो करके चली जाती हूं कल से तुम मुझे फिर से छोड़ने चला करना।"

"नहीं मैं ही छोड़कर आऊंगा क्योंकि तुम्हें तो पता है ना दोस्त नहीं मैंने एक छोटा बच्चा गोद ले रखा है जिसका ध्यान मुझे ही रखना है।" प्रभात ने कहा तब त्रिधा को अपना सिर पीटते हुए उसकी बाइक पर बैठना ही पढ़ा।

त्रिधा को वापस हॉस्टल छोड़ने के बाद प्रभात एक बार फिर आइने के सामने खड़ा होकर अपने आपको देख रहा था और फिर वह घर से जाने लगा कि तभी उसकी मम्मी ने उसे रोकते हुए कहा - "आज तो बहुत अच्छा लग रहा है मेरा बेटा।"

"वो मम्मी आज त्रिधा, मैं, संध्या और हर्षवर्धन, हम चारों लोग रेस्टोरेंट जा रहे हैं, हर्षवर्धन की तरफ से पार्टी है।" प्रभात ने झिझकते हुए कहा।

"ठीक है जाओ, वैसे गर्लफ्रेंड के साथ भी जाना हो तो का सकते हो।" मीनाक्षी जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"त्रिधा आई थी?" अपनी मम्मी की बातें सुनकर प्रभात को लगा था कि शायद त्रिधा घर पर आई हो और उसने ही मीनाक्षी जी को बता दिया हो कि आज वह संध्या के साथ डेट पर जाने वाला है।

"नहीं त्रिधा नहीं आई थी, पर एक मां भी तो अपने बेटे को समझती है।" मीनाक्षी जी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर प्रभात के चेहरे पर आए भावों को देखने के बाद जोर से हंस पड़ी। प्रभात झेंपता हुआ घर से बाहर निकल गया।

***

संध्या ने अपने पूरे कमरे में इधर उधर कपड़े फैला दिए थे। वह पिछले एक घंटे से कपड़े ट्राय कर रही थी मगर उसे कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था। इतनी देर में संध्या का छोटा भाई मयंक उसके कमरे में आ गया था।

"मैं कुछ भी ट्राय कर लूं कुछ अच्छा ही नहीं लग रहा।" संध्या ने परेशान होकर कहा।

"अरे जो अच्छा होता है कपड़े भी उस पर ही अच्छे लगते हैं, संध्या दीदी अपनी शक्ल तो देखो गोल आलू जैसी, आप पर कुछ अच्छा नहीं लगने वाला।" इतना कहकर मयंक तो वहां से भाग गया मगर संध्या खिसियानी सी खड़ी रहा गई। आखिर में उसने त्रिधा को फोन किया।

"त्रिधू…. मेरी प्यारी त्रिधु है ना!" त्रिधा के कॉल रिसीव करते ही संध्या ने कहा।

"हां हूं तो सही पर तू काम बता।" त्रिधा समझ गई इतने ज्यादा प्यार का मतलब जरूर कुछ गड़बड़ है।

"प्यारी त्रिधु, मासूम त्रिधु… वो त्रिधा… दरसअल त्रिधा मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या पहन कर जाऊं, तुम मेरी मदद करो ना।" संध्या ने फिर मक्खन लगाने की कोशिश की।

"मैं तुम्हारे सामने थोड़ी हूं जो तुम्हारी मदद कर सकूं। मैं कैसे बता सकती हूं कि इस वक्त तुम पर क्या अच्छा लग रहा है?" त्रिधा ने सपाट लहजे में कहा।

"बता देना यार इतना क्यों भाव खा रही है?"

"रेड कलर की कोई भी ड्रेस पहन ले तुझ पर रेड कलर बहुत अच्छा लगता है और उसके साथ ब्लैक हील्स पहन लेना, बस अब दिमाग मत खा।" इतना कहकर त्रिधा ने फोन रख दिया।

संध्या खुशी खुशी तैयार होकर बाहर जाने लगी। तो उसकी मम्मी ने उससे पूछा - कहां जा रही है संध्या बेटा?

"मां मैं त्रिधा के साथ बाहर जा रही हूं, कल बताया था न… उसके हॉस्टल जाकर उसे पिक कर लूंगी फिर मॉल चले जाएंगे।" संध्या ने बहाना बनाया।

"ठीक है बेटा ध्यान से जाना। और अगर ज्यादा देर हो जाए तो प्रभात को बुला लेना, अच्छा लड़का है तुम दोनों को छोड़ देगा।" संध्या की मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा। अपनी मम्मी की बात सुनकर संध्या मुस्कुराती हुई बाहर चली गई और जब वह घर से बाहर निकली तो उसके गाल शर्म से लाल हो चुके थे।

"मेरे घर वालों को भी पसंद हो तुम तो।" संध्या ने अपने चेहरे को अपने हाथों से छुपाते हुए अपने आप से ही कहा।

***

त्रिधा हॉस्टल के अपने कमरे में बैठी हुई काफी बोर हो रही थी कि तभी उसके दिमाग में एक शैतानी आईडिया आया। उसने तुरंत हर्षवर्धन को फोन लगाया हालांकि उसे थोड़ी सी हिचकिचाहट हो रही थी मगर अब वह पहले के मुकाबले हर्षवर्धन से काफी सहजता से बात कर लेती थी।

"हाय त्रिधा! कैसी हो? सब ठीक तो है न? तुम किसी परेशानी में तो नहीं हो न?" हर्षवर्धन ने एक साथ कई सारे सवाल पूछ लिए क्योंकि उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके पास त्रिधा का कॉल आएगा और इसीलिए जब उसके पास त्रिधा का कॉल आया तो वह काफी घबरा गया था।

"सब ठीक है हर्षवर्धन, मैं बिल्कुल ठीक हूं, कोई भी परेशानी नहीं है। वह दरअसल मैंने तुम्हें किसी काम से कॉल किया था।" त्रिधा ने धीरे से कहा।

"हां बोलो न त्रिधा क्या बात है? क्या काम है? मैं हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं।" हर्षवर्धन ने प्यार से कहा।

"तुम्हें पता है आज प्रभात और संध्या अपनी पहली डेट पर गए हैं, क्यों ना उन लोगों से थोड़ा एंटरटेनमेंट किया जाए।" त्रिधा ने हल्के से हंसते हुए कहा तब हर्षवर्धन ने उसकी बात सुन कर मुस्कुराते हुए कहा - "जो हुकुम मेरे आका" और फिर त्रिधा हर्षवर्धन को आगे की पूरी प्लानिंग बताने लगी।

कुछ देर बाद "ठीक है काम हो जाएगा" कहकर हर्षवर्धन ने फोन रख दिया। वह अपने बिस्तर पर लेटा हुआ धीरे-धीरे मुस्कुरा रहा था। आज दुनिया में सबसे ज्यादा खुश इंसान अगर कोई था, तो वह हर्षवर्धन ही था। उसे खुशी थी कि त्रिधा उसे अपने प्लान्स में शामिल करने लगी है और इसका मतलब है कि वह त्रिधा के करीब आने लगा है, भले थोड़ा ही सही...

***

उस समय संध्या और प्रभात एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे। ब्लैक कलर की शर्ट में प्रभात बहुत अच्छा लग रहा था। संध्या तो बस एक टक उसे ही घूरे जा रही थी और अपने आप पर गर्व कर रही थी कि उसकी पसंद इतनी अच्छी है। प्रभात शक्ल सूरत से लेकर पढ़ाई तक, लोगों की मदद करने से लेकर हर दूसरी लड़की का सम्मान करने तक, हर मामले में प्रभात बहुत अच्छा था।

"इतना मत घूरो संध्या, अब तो मैं जिंदगी भर के लिए तुम्हारा ही हूं, तुम्हारी आंखों के सामने ही रहने वाला हूं, इसलिए फिलहाल खाने पर ध्यान दो।" जब प्रभात ने कहा तो संध्या कहने लगी - "अरे क्यों नहीं घूरूं आखिर मेरी पसंद इतनी अच्छी है। तुम्हें पता है प्रभात मेरे घर वालों को भी तुम बहुत पसंद हो, इसीलिए अब तो मेरा घूरना बनता है।" इतना कहकर संध्या हंस पड़ी।

अभी कुछ ही देर बीती थी। दोनों सामान्य बातें कर रहे थे कि तभी प्रभात के फोन पर त्रिधा का फोन आ गया। जैसे ही प्रभात ने त्रिधा से जल्दी जल्दी बात खत्म की वैसे ही संध्या के फोन पर हर्षवर्धन का फोन आ गया। संध्या ने तुरंत फोन उठा लिया क्योंकि हर्षवर्धन कभी भी उसे फोन नहीं करता था। वह उससे किसी टॉपिक के बारे में पूछ रहा था, तब मन मारकर संध्या को उसे वह टॉपिक समझाना पड़ा। मगर जैसे ही संध्या ने फोन रखा ठीक उसी वक्त प्रभात के पास हर्षवर्धन का फोन आ गया। प्रभात ने अपना सिर पीटते हुए फोन उठाया और हर्षवर्धन से बात करने लगा। हर्षवर्धन से बात करने के बाद जैसे ही प्रभात ने अपना फोन रखा, संध्या के फोन पर त्रिधा का फोन आ गया और वह रोनी सूरत बनाकर उससे बात करने लगी। त्रिधा से थोड़ी देर बात करने के बाद उसने फोन रख दिया। फिर संध्या और प्रभात दोनों मुंह लटकाए हुए एक दूसरे को देख रहे थे।

"तुम समझ रहे हो ना प्रभात यह सब त्रिधा की चाल है, यह इतनी शैतान है कि अब यह मेरी डेट भी स्पॉइल करेगी। पता नहीं यह बेस्ट फ्रेंड कैसी चीज होती है!" इतना कहकर संध्या ने खीझते हुए अपना सिर पीट लिया। तभी प्रभात के फोन पर वापस त्रिधा का फोन आने लगा और इस बार प्रभात ने अपना फोन स्विच ऑफ करके रख दिया।

"तुम सही कह रहे हो संध्या, यह सब त्रिधा की ही प्लानिंग है, वह और हर्षवर्धन साथ मिलकर यह सब कर रहे हैं ताकि वह हम दोनों परेशान हों और हमें परेशान होता देख कर ये दोनों लोग खुद खूब मज़े करें।"

"ठीक ही है ना प्रभात हम लोग तो साथ हैं ही और अगर हमारी डेट स्पॉइल होने से वे दोनों साथ हो जाते हैं, त्रिधा हर्षवर्धन के करीब पहुंचते हैं, तो इसमें हर्ज ही क्या है।" संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

"आय'म प्राउड ऑफ यू संध्या, मुझे अपनी पसंद पर बहुत गर्व है।" प्रभात ने मुस्कुराकर कहा।

"मैं जिंदगी के हर मोड़ पर तुम्हारे साथ हूं प्रभात। मुझे पता है तुम त्रिधा को बहुत मानते हो और उसके लिए बहुत परेशान रहते हो। मैं, त्रिधा का साथ देने में, हमेशा तुम्हारे साथ हूं।" संध्या ने प्रभात के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा।

"कभी कभी मुझे डर लगता था कि कहीं तुम मेरे और त्रिधा के रिश्ते को गलत न समझ लो। मगर अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि तुम कभी ऐसा नहीं समझोगी।"

"मैं ऐसा कैसे समझ सकती हूं, हम तीनों एक दूसरे के लिए क्या मायने रखते हैं यह हम तीनों ही बखूबी जानते हैं। मैं जानती हूं तुम त्रिधा को बहुत प्यार करते हो मगर ठीक वैसा ही जैसा मैं त्रिधा को करती हूं, एक दोस्त जैसा, अपने मन में यह डर कभी मत आने देना।"

"अब खाना खाओ, मैं देख रहा हूं जब से तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनी हो, खाने से ज्यादा मुझ पर ध्यान देने लगी हो।"

"गलतफहमी में मत रहो, मेरा पहला प्यार खाना था, खाना है और खाना ही रहेगा।" इतना कहकर संध्या ने सामने रखे पिज्जा में से एक बड़ा सा बाइट लिया और पूरा मुंह भर लिया जिसे देखकर प्रभात जोर जोर से हंसने लगा।

कुछ देर बाद संध्या और प्रभात अपने घर के लिए निकल पड़े।

***

काफी रात हो चुकी थी और त्रिधा अल्साई हुई से बिस्तर में डुबकी हुई थी कि तभी उसे अपने फोन की रिंग सुनाई दी।

"कौन है इस वक़्त!" अलसाई हुई आवाज़ में त्रिधा ने कहा और अलास में ही चलती हुई अपनी स्टडी टेबल तक गई। उसने फोन अपने हाथ में लिया तो देखा संध्या का कॉल था जो कि उसके टेबल तक पहुंचने तक मिस्ड कॉल में बदल चुका था। त्रिधा ने फोन अपने हाथ में पकड़ा और आकर अपने बिस्तर में वापस दुबक गई। उसने संध्या को कॉल बैक किया।

"बोलो क्या हुआ? इस वक्त कैसे कॉल किया?" त्रिधा ने जल्दी बात खत्म करने के उद्देश्य से सीधे मुद्दे की बात की क्योंकि वह इस वक्त बहुत नींद में थी।

"तुम कैसी दोस्त हो त्रिधा तुम यह भी नहीं पूछोगी कि मेरी डेट कैसी गई?"

"नहीं मुझे नहीं पूछना, मुझे नींद आ रही है।" इतना कहकर त्रिधा ने फोन रख दिया और सो गई। पंद्रह मिनट ही बीते होंगे कि तभी उसके फोन पर प्रभात का कॉल आ गया। फोन की रिंगटोन की आवाज के कारण त्रिधा की नींद खुल गई।

"अब तुम्हें क्या हुआ यार?" त्रिधा ने झल्लाकर कहा।

"कुछ भी नहीं हुआ, मैं बोर हो रहा था तो सोचा अपनी दोस्त से बात कर लूं।"

"नहीं रात में लड़कियों से बात नहीं करते।"

"पर तुम अनजान लड़की थोड़े हो, तुम तो दोस्त हो।"

"गुड नाईट।" कहकर त्रिधा ने फोन रख दिया। वाह वापस सोने की कोशिश करने लगी नींद तो अब खैर उड़ ही चुकी थी।

***

हर्षवर्धन अपने कमरे में आराम से सोया हुआ था। इंसान जब बहुत ज्यादा खुश होता है तो या तो वह बहुत ज्यादा सोता है या उसकी नींद ही उड़ जाती है और हर्षवर्धन उन लोगों में से था जो जब खुश होते हैं तो बहुत ज्यादा सोते हैं। अचानक ही उसके फोन पर कॉल आने से उसके नींद खुल गई। अपनी आंखें मलते हुए हर्षवर्धन ने साइड टेबल पर रखे फोन को पकड़ा और देखा प्रभात का फोन था। उसने अपना सिर पीट लिया। हर्षवर्धन ने कॉल नहीं उठाया और वापस सो गया मगर वापस उसके फोन पर प्रभात का कॉल आने लगा। एक बार... दो बार... तीन बार... उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया मगर फिर से प्रभात का कॉल आने लगता। आखिरकार थक हार कर हर्षवर्धन को प्रभात का कॉल उठाना ही पड़ा।

"क्या है? क्यों परेशान कर रहे हो इतनी रात को?" हर्षवर्धन ने झल्लाकर प्रभात से कहा।

"तू कैसा दोस्त है यह नहीं पूछेगा तेरे दोस्त की पहली डेट कैसी थी?"

"नहीं मैं बिल्कुल नहीं पूछने वाला मुझे पता है डेट पर क्या क्या होता है, तुझसे ज्यादा डेट्स पर गया हूं। तो इसलिए मुझे कोई भी इंटरेस्ट नहीं तेरी डेट के बारे में जानने का। सो जा चुपचाप और मुझे भी सोने दे, तुम दोनों रोज का है।" इतना कहकर हर्षवर्धन ने फोन रख दिया मगर फिर से उसके फोन पर प्रभात का कॉल आने लगा उसने फोन उठाया और प्रभात का नंबर ब्लॉक कर दिया ताकि वह आराम से सो सके। मगर दो ही मिनट बीते थे कि तभी उसके फोन पर संध्या का कॉल आने लगा।

"अब तुम्हें कौन सी परेशानी हो गई?" हर्षवर्धन ने झल्लाकर पूछा।

"मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं तो तुम्हें यह बताने के लिए फोन कर रही थी कि मेरे दिमाग में एक आईडी आया है कि तुम कैसे त्रिधा को पटा सकते हो।"

"नहीं मुझे पता है तुम्हारे पास कोई भी आईडिया नहीं है। जो शाम को मैंने और त्रिधा ने तुम्हारी और प्रभात की डेट स्पॉइल की थी उसका ही है बदला चल रहा है, मुझे सोने दो।" इतना कहकर हर्षवर्धन ने फोन रख दिया मगर संध्या का फोन फिर से आने लगा। हर्षवर्धन ने रोनी सूरत बनाते हुए फोन उठाया।

"क्या है?"

"हां तुम सही पहचाने हर्ष मेरे पास कोई भी आईडिया नहीं है।"

"तो प्लीज मुझे सोने दो न और संध्या प्लीज त्रिधा को परेशान मत करना।"

"इतनी चिंता… वाह वाह… वैसे हर्ष उसे हम ऑलरेडी काफी परेशान कर चुके हैं और अब वह फोन स्विच ऑफ करके सो गई है।"

"ठीक है फिर मुझे भी सोने दो।" हर्षवर्धन ने कहा और उसने भी अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया।

***

अगले दिन रविवार था सभी देर से सोकर उठे। हर्षवर्धन और त्रिधा दोनों के ही सिर में बहुत तेज दर्द था जिसका श्रेय प्रभात और संध्या को जाता था जिन्होंने उन दोनों को रात भर कॉल करते करते इतना परेशान कर दिया था कि उन्हें नींद ही नहीं आई।

त्रिधा अपने हफ्ते भर के कपड़े धो रही थी कि तभी उसे अपने फोन का रिंगटोन सुनाई दिया, किसी का कॉल आ रहा था। उसे लगा कि यह जरूर प्रभात और संध्या में से ही कोई होगा क्योंकि वे दोनों ही उसे फोन करते थे, उनके अलावा तो किसी का फोन आता नहीं था। उसने फोन पर ज्यादा ध्यान ना दे कर कपड़े धोना जारी रखा मगर फिर से उसके फोन पर कॉल आने लगा और बार-बार कॉल आता ही रहा तब जाकर त्रिधा को देखना पड़ा कि आखिर किसका कॉल है। उसने देखा वह एक अनजान नंबर था, उसी नंबर के आठ मिस्ड कॉल्स थे।

त्रिधा ने उस नंबर पर कॉल बैक किया तो वह स्विच्ड ऑफ था।

"अब यह कौन है जो मुझे परेशान करने आ गया… कहीं प्रभात और संध्या में से ही तो कोई नहीं? नया नंबर लेकर मुझे परेशान कर रहे हों।" त्रिधा बड़बड़ाई।

अपने कामों से फ्री होकर त्रिधा अख़बार लेकर बैठ गई। उसने देखा कल तो उनके कॉलेज का रिजल्ट आने वाला था। जब से नया सेशन शुरू हुआ था वह पढ़ना, पढ़ाना, हर्षवर्धन, संध्या, प्रभात और माया इन सब में इतनी उलझ गई थी कि उसे बिल्कुल याद ही नहीं था कि उनका फर्स्ट ईयर का रिजल्ट अभी नहीं आया है।

आम स्टूडेंट्स की तरह त्रिधा को अपने रिजल्ट की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि उसे पता था कि वह क्या लिख कर आई है और उसके अनुसार उसे कितने अंक मिल सकते हैं वह आराम से अपने बाकी के काम निपटाने लगी। वहीं दूसरी तरफ अखबार पढ़कर संध्या की हालत खराब थी उसे बहुत चिंता होने लगी थी कि ना जाने उसका रिजल्ट कैसा रहेगा। प्रभात और हर्षवर्धन दोनों ही रिजल्ट के बारे में सोच रहे थे मगर किसी को भी घबराहट नहीं थी।

***

अगले दिन जब सभी लोग कॉलेज पहुंचे तो वहां सभी लोगों को प्रोफ़ेसर्स ने ग्राउंड में ही रहने के लिए कह दिया था। उन्होंने कहा था कि 'कोई इंपॉर्टेंट अनाउंसमेंट होने वाली है' सभी समझ गए थे कि रिजल्ट के बारे में ही कोई अनाउंसमेंट होगी और शायद के टॉपर के बारे में बताया जाएगा।

कुछ देर बाद ही स्टेज पर माइक पर घोषणा हुई - “बी.ए. फर्स्ट ईयर के साथ ही फर्स्ट ईयर के टॉपर का नाम है 'संध्या भारद्वाज' , साथ ही बी ए फर्स्ट ईयर में सेकंड पोजिशन पर हैं प्रभात मुद्गल और त्रिधा शर्मा, थर्ड पोजिशन पर हैं हर्षवर्धन सिंह राठौर।”

"क्या???" अनाउंसमेंट होने के बाद, सभी एक साथ हैरानी से बोले क्योंकि किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि संध्या कॉलेज टॉप कर जाएगी यहां तक कि प्रभात और त्रिधा भी हैरानी से आँखें फाड़े संध्या को घूर रहे थे।

"यह कैसे हुआ?" प्रभात ने हैरानी से त्रिधा को देखते हुए पूछा।

"मुझे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है प्रभात, हो सकता है किसी ने इसकी कॉपीज चेक करने में गलती कर दी हो क्योंकि यह बुद्धू और टॉप पर जाए, इंपॉसिबल... इंपॉसिबल…" त्रिधा ने भी चेहरे पर हाहाकारी भाव लिए हुए संख्या को देखते हुए प्रभात से कहा।

"खैर ये तो हुई मजाक की बातें मगर अब जब इसने टॉप किया ही है तो चलो अपनी पार्टी का इंतजाम हो गया।" प्रभात ने मुस्कुराकर कहा। एक स्टूडेंट होने ने कारण प्रभात को संध्या के मार्क्स पर उसे हैरानी जरूर हुई थी मगर वह संध्या से प्यार करता था, उसकी खुशी में खुश कैसे न होता।

"सही कह रहे हो प्रभात, वैसे भी अपनी दोस्त ने टॉप किया है, खुशी की तो बात ही है।" त्रिधा ने कहा। त्रिधा के साथ भी प्रभात जैसे ही हालात थे, एक स्टूडेंट होने के कारण त्रिधा को संध्या के मार्क्स से हैरानी थी मगर संध्या उसकी दोस्त थी इसीलिए वह उसके लिए खुश थी।

त्रिधा से बात करने के बाद प्रभात हर्षवर्धन के पास चला गया।

"सदमा लगा" प्रभात ने हर्षवर्धन से हंसते हुए पूछा। उसने देखा कि हर्षवर्धन हक्का बक्का सा खड़ा हुआ था और संध्या को ही देख रहा था जिसकी सभी प्रोफेसर्स तारीफ कर रहे थे।

"हां बिल्कुल लगा। मुझे बिल्कुल नहीं लगा था कि यह टॉप करेगी, मुझे लगा था तुम या त्रिधा में से ही कोई टॉप करेगा।" हर्षवर्धन ने प्रभात को देख कर कहा। फिर वह खुद ही आगे बोला - "पर मैं संध्या के लिए खुश हूं क्योंकि एक वही तो है जो मेरी दोस्त है इस पूरे कॉलेज में।"

"अच्छा तो मैं कौन हूं?" प्रभात ने तुरंत कहा।

"त्रिधा का बेस्ट फ्रेंड।" हर्षवर्धन ने छोटा सा जवाब दिया और जब प्रोफेसर्स से बात करने के बाद संध्या लौटकर आ रही थी थी तब सबसे पहले जाकर उसे कॉंग्रेचुलेशंस बोल दिया। प्रभात और त्रिधा हैरानी से एक दूसरे को देख रहे थे।

****

शाम को वे चारों एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे और मज़े से खाने का लुत्फ उठा रहे थे। यह पार्टी संध्या के टॉप करने कि खुशी में प्रभात की तरफ से थी, संध्या के घर पार्टी अगले दिन थी। संध्या को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वह टॉप करेगी क्योंकि नर्सरी से लेकर ट्वेल्थ क्लास तक, इतने सालों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ था कि उसने कभी टॉप किया हो इसीलिए वह बहुत ज्यादा खुश थी और इसीलिए सब उसकी खुशी के लिए सेलिब्रेट कर रहे थे।

अगले दिन शाम को संध्या के घर पर पार्टी थी और उसने अपने दोस्तों के साथ साथ अपने सभी सहपाठियों को भी बुलाया था। पार्टी से पहले काफी सारी तैयारियां करनी थी इसीलिए त्रिधा, संध्या के साथ कॉलेज से सीधे उसके ही घर चली गई थी ताकि वह तैयारियों में उसकी मदद करवा सके।

प्रभात जब अपने घर पहुंचा तो वह कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रहा था। उसे देखते ही उसकी मम्मी ने कहा - "क्या बात है आज तो बहुत खुश नजर आ रहे हो प्रभात?"

"मम्मी वह एक्चुअली आज मुझे संध्या की पार्टी में जाना है और मैं काफी टाइम बाद किसी पार्टी में जा रहा हूं तो शायद इसीलिए ही खुश हूं।" प्रभात ने बात बदलते हुए कहा।

"वैसे संध्या को मेरी तरफ से भी बधाई देना, मेरे पास भी इनविटेशन आया था मगर तुम्हें तो पता है आज शाम की शिफ्ट है तो मैं नहीं जा पाऊंगी।" प्रभात की मम्मी ने कहा तो प्रभात ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया और कहने लगा - "मैं समझता हूं मम्मी आपकी ड्यूटी सबसे पहले है और होनी भी चाहिए आखिर एक डॉक्टर का काम भी तो यही है सबसे पहले उसके लिए उसके पेशेंट्स होने चाहिए, यह सब तो होता रहेगा, आप आराम से जाकर आइए, संध्या के यहां मैं चला जाऊंगा और आपकी तरफ से उसे बधाई भी दे दूंगा।"

"और मेरी तरफ से यह भी दे देना।" इतना कहते हुए प्रभात की मम्मी ने एक बॉक्स प्रभात के हाथों में पकड़ा दिया।

"जी" कहकर प्रभात अपने कमरे में चला गया।

अपने कमरे में जाकर प्रभात संध्या की पार्टी में जाने के लिए कपड़े निकालने लगा। वह बार-बार एक शर्ट निकालता और पसंद ना आने पर दूसरी शर्ट पहन कर देखता फिर उस शर्ट को उतारता और फिर दूसरी शर्ट पहन कर देखता ऐसे करते-करते प्रभात ने कई सारी शर्ट वहां पे फैला ली थीं और आखिर में उसने हल्के नीले रंग के जीन्स के साथ एक काले रंग की टीशर्ट और उस पर काले रंग की ही जैकेट पहन ली जिस पर छोटे-छोटे स्टार बने हुए थे। हालांकि प्रभात ऐसे कपड़े बहुत कम ही पहनता था उसे सिर्फ शर्ट और जींस ही पसंद थे मगर आज वह संध्या की पसंद के लिए ये कपड़े पहन कर जा रहा था।

दूसरी तरफ हर्षवर्धन के पास जैकेट्स और टीशर्ट का ढेर था जिसे उसने पूरे कमरे में फैला रखा था। जब उसके पापा उसके कमरे में आए तो उसके कमरे को देखकर हैरान रह गए वे उससे कहने लगे - "यह तुमने क्या किया हर्ष? इतना सारा सामान क्यों फैला दिया? क्या हो गया? कुछ ढूंढ रहे थे क्या?"

"नो डैड एक्चुअली मैं संध्या की पार्टी में जा रहा हूं तो मैं सोच रहा था कुछ सिंपल पहन कर जाऊं।" हर्षवर्धन ने कहा।

"सिंपल कपड़े और तुम…. तुम कह क्यों नहीं देते हर्ष कि त्रिधा की पसंद के कपड़े ढूंढे जा रहे हैं।" हर्षवर्धन के पापा ने जब हंसते हुए कहा तो "मैं मॉल से कुछ खरीदने जा रहा हूं डैड" कहता हुआ हर्षवर्धन अपने कमरे से बाहर निकल गया।

शाम को हर्षवर्धन और प्रभात तय समय पर संध्या के घर पहुंच गए अभी तक ज्यादा मेहमान नहीं आई थी मगर फिर भी काफी लोग आ चुके थे। जब संध्या ने प्रभात को देखा तो कुछ देर के लिए तो उसे देखती ही रह गई क्योंकि वह वाकई बहुत अच्छा लग रहा था फिर अगले ही पल संध्या ने अपना सिर पीट लिया। दूसरी तरफ हर्षवर्धन की निगाहें त्रिधा को ही ढूंढ रही थी। जब उसने त्रिधा को देखा, वह बहुत खूबसूरत लग रही थी और फिर हर्षवर्धन ने भी संध्या की ही तरह अपना सिर पीट लिया। दरअसल हुआ यह था कि संध्या ने आज बहुत सिंपल और ट्रेडिशनल कपड़े पहने हुए थे क्योंकि उसे लगा था कि प्रभात भी ऐसा ही कुछ पहन कर आएगा और वह आया भी तो कैसे… यही सोचकर संध्या ने अपना सिर पीट लिया। दूसरी तरफ हर्षवर्धन सिंपल कपड़े पहन कर आया था क्योंकि उसे पता था कि त्रिधा सिर्फ ट्रेडिशनल कपड़े ही पहनती है मगर त्रिधा ने घुटनों तक लंबा एक काले रंग का चमकीला सा वन पीस पहना हुआ था, यही देखकर हर्षवर्धन ने अपना सिर पीट लिया था।

यह पहली बार था जब प्रभात संध्या के पेरेंट्स से मिल रहा था। उसे देखते ही संध्या की मम्मी ने कहा - "तुम प्रभात हो ना बेटा।"

"जी आंटी" प्रभात ने मुस्कुराकर कहा और फिर आगे बढ़ कर संध्या की मम्मी के पैर छूते हुए कहने लगा - "आपने कैसे पहचाना?"

"अरे बेटा वो क्या है न कि संध्या तो सारा दिन तुम्हारे और त्रिधा के बारे में ही बातें करती रहती है, तो बस इसीलिए पहचान लिया।" संध्या की मम्मी ने प्रभात के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा।

"अच्छा" प्रभात ने कहा और तभी हर्षवर्धन उसके पास आकर उससे बातें करने लगा। संध्या भी त्रिधा के साथ वहीं आ गई और प्रभात और हर्षवर्धन से बातें करने लगी।

"प्रभात तुम और त्रिधा इतने क्यों सिमिलर हो यार। कभी मार्क्स, कभी नेचर, कभी कपड़े… उफ्फ या तो तुम दोनों भाई बहन होगे जो बिछुड़ गए होगे या पक्का पास्ट लाइफ के कपल।" संध्या ने अपनी बकवास जारी रखी।

"शट अप बेवकूफ! तुम जब भी बोलती हो उल्टा सीधा ही बोलती हो। सबसे ज्यादा सिमिलेरिटी पक्के वाले दोस्तों में ही होती है।" त्रिधा ने संध्या को हल्का सा थप्पड़ लगाते हुए कहा।

"डेकोरेशन बहुत अच्छा किया है त्रिधा।" हर्षवर्धन ने हल्की मुस्कुराहट के साथ त्रिधा को देखते हुए कहा।

"थैंक्स हर्ष।" त्रिधा ने मुस्कुराते हुए कहा और वहां से चली गई।

कुछ देर बाद त्रिधा आराम से संध्या के साथ घूमती हुई उसके बाकी दोस्तों से मिल रही थी इस बात से अनजान कि हर्षवर्धन इतनी देर से चुपचाप उसे ही देख रहा है। हर्षवर्धन अनजान था कि प्रभात उसे देख कर काफी देर से धीरे धीरे मुस्कुरा रहा था।

लगभग दो घंटे बाद पार्टी खत्म हो गई थी और अब घर में संध्या के घरवालों के अलावा त्रिधा, प्रभात और हर्षवर्धन ही बचे थे। प्रभात, त्रिधा के साथ ही जाने वाला था और हर्षवर्धन को प्रभात ने ही रोक लिया था ताकि वह त्रिधा के साथ कुछ और वक्त बिता सके और उसे समझ सके। सभी साथ ही बैठे हुए थे कि तभी त्रिधा वहां से उठकर संध्या के कमरे में चली गई और वहां से काफी सारा सामान पकड़े हुए बाहर निकली।

"यह सब क्या है?" संध्या से हैरानी से त्रिधा से पूछा जोकि अपने जितनी ही लंबाई का एक टेडी बेयर और कई सारे गिफ्ट्स पकड़े हुई थी।

"क्या है यह सब? पागल हो क्या तुम इतना सारा सामान लेकर कोई आता है क्या?" संध्या ने हैरानी से त्रिधा को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा।

"अरे पागल संध्या आज तुम्हारे लिए इतना बड़ा दिन है तो इतने से गिफ्ट तो बनते ही थे ।" इतना कहकर त्रिधा मुस्कुराती हुई अंदर आ गई और फिर जितने भी गिफ्ट्स त्रिधा लेकर आई थी उन्हें ले जाकर संध्या के कमरे में रख दिया और फिर मयंक को आवाज दी। त्रिधा को देखते ही मयंक खुशी से भागता हुआ उसके पास आ गया और उसके गले लग गया।

"मेरे लिए क्या लाई हो त्रिधू दीदी?" मयंक ने हंसते हुए पूछा तब त्रिधा ने एक बॉक्स मयंक की तरफ बढ़ा दिया मयंक से लेकर चला गया।

कुछ देर संध्या और उसके पैरेंट्स से बात करने के बाद प्रभात, हर्षवर्धन और त्रिधा भी अपने अपने घरों के लिए निकल पड़े।

क्रमशः

आयुषी सिंह