आस्था का धाम काशी बाबा 5
(श्री सिद्धगुरू-काशी बाबा महाराज स्थान)
( बेहट-ग्वालियर म.प्र)
वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त
समर्पण-
परम पूज्यः- श्री श्री 1008
श्री सिद्ध-सिद्द्येशवर महाराज जी
के
श्री चरण-कमलों में।
वेदराम प्रजापति मनमस्त
दो शब्द
जीवन की सार्थकता के लिये,संत-भगवन्त के श्री चरणोंका आश्रय,परम आवष्यक मान
कर, श्री सिद्ध-सिद्द्येश्वर महाराज की तपो भूमि के आँगन मे यशोगान,जीवन तरण-तारण हेतु
अति आवश्यक मानकर पावन चरित नायक का आश्रय लिया गया है,जो मावन जीवन को
धन्य बनाता है। मानव जीवन की सार्थकता के लिए आप सभी की सहभागिता का मै सुभाकांक्षी
हूं।
आइए,हम सभी मिलकर इस पावन चरित गंगा में,भक्ति शक्ति के साक्षात स्वरूप
श्री-श्री 1008 श्री काषी बाबा महाराज बेहट(ग्वालियर) में
गोता लगाकर,अपने आप को
धन्य बनाये-इति सुभम्।
वेदराम प्रजापति मनमस्त
23- सबके संकट मैंटन हारे।
सतत साधना बाबा कीनी,श्री गुरू चरण सहारे।
ब्रह्मज्ञान,तत्वांक-वेत्ता,वेद तत्व अनियारे।।
आगम-निगम स्वाँस कीं क्रियाँ,मूलाधार अधारे।
सबकी सुनत,न लौटा कोई,सबको दए सहारे।।
भूँख,प्यास की सबकी सुनते,पकरि बाँह बैठारे।
टेर-टेर कैं,हेर-हेर कैं,सबके दुःख निवारे।।
आर्त अर्चना जिनने कीनी,भऐ-पौ-बारह-सारे।
मनमस्तहु की इस नइया के,वे ही एक सहारे।।
24- भज मन,काशी बाबा,प्यारे।
जिनकी कृपा-दृष्टि पा होते,अॅंधियारे उजियारे।
समधिस्थ हैं-ब्रह्मलीन हैं,काशी नाथ हमारे।।
सिद्ध गुरू चरनन की सेवा,निशि दिन करत निहारे।
जीवन धन्य बनाले अपना,क्यों भटकत,जग दुआरे।।
भटकावे जहाँ मिटत क्षिणक में,ऐसे नाथ हमारे।
हार गयी वहँ नियति परीक्षा,चली न उनके द्वारे।।
आठौ याम भजन कर जिननें,पाऐ मोक्ष दुआरे।
कहाँ सोवै? मनमस्त बाबरे,शरण उन्हीं के जारे।।
25- जीवन करले,अपना धन्-धन्।
विना भजन कोई साध न पूजे,यह जानत है जन-जन।
सचमुच चाहै भरम मिटाना तो सुनि,अनहद टन्-टन्।।
उन्हें समझ ले,ओ नर पामर!क्यों खोता है क्षण-क्षण।
जिनकी वाणी से गुंजित है,वसुधा का,सब कण-कण।।
जीवन पथ का,जो सच साथी,उसे सौंप दे सब-धन।
इन स्वाँसों को करो सार्थक,जो स्वर साधे,धन्-धन्।।
गुरू नाम,अबलम्ब एक है,जिनकी लीला जन-जन।
सदगुरू के,मनमस्त चरण-जा,क्यों भरमाता एहि बन।।
भजनानन्द-
आओ,मिलकर के सभी,गुरूदेव का वंदन करैं।
दिव्य-जीवन-ज्योति जगमग,से तिमिर मन के हरै।।
दिव्य ज्योति के उदय उर,अग्यतम मिट जाऐगा।
आत्म-सुख अनुभूति के संग,ब्रह्म दर्शन पाऐगा।
उर अमिट विश्वास ले,युग-पाद अभिनंदन करैं।।1।।
नित करो गुरूदेव संध्या,सब व्यथा मिट जाऐगी।
हृदय-पंकज में विमल-सी,शान्त ही छा जाऐगी।
आत्म सुख-अमृत्व पाने,प्राणपन वंदन करैं।।2।।
सृजक पालक अरू संहारक,विश्व मूलाधार हैं।
नियति-नय सिद्धान्त हैं वे,नाट्य-नट आगार हैं।
जाप-जप,नित-प्रति उन्हीं का,व्यर्थ क्यों क्रदन करै।।3।।
कर सुमन पूजन औ अर्चन,वे अमन-नव द्वार हैं।
सुमिर ले मनमस्त मनसे,भव-बीथियों से पार है।
ध्यान अनुपम और अदभुत,मनमस्त जहाँ निर्झर झरैं।।4।।
2-यूँ ही दिन ढल गया,साँझ होने चली।
पास कुछ भी नहीं,हाथ मलते चली।।
घोर संताप-तापों में,तपती रही।
क्रोध,मद,मोह-मत्सर को जपती रही।
मन की पीड़ा ने,जब-भी,यौं करवट लयीं।
नयन पथ से,अनूठी सी धारा बही।
गाँठ कुछ ना रहा,यूँ ही पल-पल गली।।1।।
श्रेष्ठ नरतन मिला,फिर भी कुछ ना किया।
साधना- की गली का ,न पाया ठीया।
घोर -तृष्णा के बेजोड, जालों कसी।
मूँढता के भॅंवर में, हमेशाँ ,फॅंसी।
घोर अग्यान-अॅंधड ,इसारों पली।।2।।
आई चरणों तेरे,राह दीजे दिखा।
अब तक अंजान थी,जाने क्या है लिखा।
नाम-आधार लेकर,तुम्हें टेरती।
पार कर दो मुझे,बांट-यूं हेरती।
मान-अपमान-अॅंधड,घरौ में पली।।3।।
विन तुम्हारे,ये अॅंधड मिटैंगे नहीं।
तुम-सा दूजा,जहाँ में,न कोई कहीं।
अब तो चरणों का आधार दे दीजिये।
मेरी नइया को,भव पार कर दीजिये।
दाल मनमस्त की तो,कहीं न गली।।4।।
3. धरले गुरूदेव चरणों को, अपने हिए।
पाप मिट जाऐगे,जो भी तुँने किए।।
जाप गुरूदेव का,तूँ किए जा किए।
जिंदगी का सड़ा-वस्त्र,कब तक सिंए।
उनके नामों को,हर क्षण लिए जा लिए।।1।।
वे तो आधार हैं,जग निराधार के।
सच्चे नाविक,उन्हें जान,भव पार के।
उनसे नजदीकी गहरीं,किए जा किए।।2।।
भूलकर के उन्हें,जग में यौंही जिए।
अपने वादों को,तूँने,न पूरे किए।
गुरू के चरणों की सेवा,किए जा किए।।3।।
साथ तेरे न जाए,धरा-धाम भी।
सच्ची दौलत को,तूँ ने यूँ बरबाद की।
अपनी उधड़ी ये,गुदड़ी सिंये जा सिए।।4।।
चेत अवही जरा,काम बन जाऐगा।
नाम उनका जपो,पार हो जाऐगा।
मस्त मनमस्त चरणामृत पिए जा पिए।।5।।
4- जग में,सबसे बड़ा काम,गुरूदेव का।
जग में,सबसे बड़ा नाम,गुरूदेव का।।
नाम सुमिरण किए,दुःख भागें सभी।
नींद गहरी से आतम,ये जागे तभी।
योगी,ऋषि,मुनि जपैं,नाम गुरूदेव का।।1।।
विश्व-विषयों से,मन को हटा ले जरा।
तूँ तो,हो जाऐगा,तप के सोना खरा।
थान,मन में बना,नाम गुरूदेव का।।2।।
राम गुरूदेव है,श्याम गुरूदेव हैं।
ज्ञान-सागर भरे वेद,गुरूदेव हैं।
सुद्ध जीवन,जपो नाम गुरूदेव का।।3।।
प्रेम-प्याले में,गुरू ज्ञान पीते रहो।
अमर हो कें,हमेशां ही जीते रहो।
भजलो,अमृत-पगा,नाम गुरूदेव का।।4।।
5-गुरूदेव सहारा दो मुझको,भवसागर पार उतर जाऊॅं।
तेरा ही सुमरण,वंदन हो,नहीं और किसी के गुण गाऊॅं।।
झाँझरि नौका,पतवार विना,खेवा भी अभी नादान रहा।
लहरो की दिशा का,ठिकाना नहीं,भव-भौंर की ओर,सदाँ ही बहा।
कर्णधार,किनारे लगाना तुम्हे,तज आपको और कहाँ जाऊॅं।।1।।
कितना भटका,भव बीथिन में,यादों का ठिकाना-भी कोई नहीं।
सब साथी मिलें,निज स्वारथ के,सब छोड़ गए,अब कोई नहीं।
बीहड़-पगडंडिन में भटका,विन आपके राह,कहाँ पाऊॅं।।2।।
घनअॅंध,दिशा नहीं दीसे कहूं,गुरू-ज्ञान-प्रकाश की आस खड़ा।
दीनन हितू,दीन दयाल कहे,सब त्याग के,द्वार तुम्हारे पड़ा।
बदनाम तुम्हीं तो होगे प्रभू,सब ओर तुम्हारा हि कहलाऊॅं।।3।।
जो भी,भटका यहाँ,इस दुनियाँ में,भटकों को तुम्हीं ने पार किया।
किस-किस का नाम बताऊॅं तुम्हे,तुमने सबको ही पार किया।
मनमस्त को राहें बता दो प्रभू,पद कंज, सतो रज को पाऊ।।4।।
6-गुरूवर के दर्शन पाने की,हम आस लगा के आए है।
पल-दो-पल का अवसर दे दो,दरबार तुम्हारे आए है।।
जीवन-पथपर,चलते-चलते,सदियाँ ही नहीं,युग बीते हैं।
सत कर्म न कर पाऐ कुछ भी,यौंही-जीवन,बस जीते हैं।
पथ का नहिं अंत मिला अबतक,मन में भारी घबराए हैं।।1।।
तेरा ही पता,हमको गुरूवर,सबने-सब ओर बताया था।
दीनों के दीना नाथ तुम्हीं,गीतों में सबने गाया था।
हम दीन,अधीन दया कर दो,तुम दीन दयालु कहाए है।।2।।
मानव तन पाकर भी मालिक,हम आज तलक नहीं जागे है।
करुणा कर दो,करुणा सागर,हम युगों-युगों के प्यासे है।
जीवन को,जीवन-सा कर दो, इक बूँद की आस लगाए है।।3।।
सबकी झोलीं तुमने भर दीं,आए जो तेरे द्वारे पर।
तुमने ही तारे है गुरूवर,अनगिनते,उनके द्वारे पर।
मनमस्त की नइया पार करो,भव खेवा आप कहाए है।।4।।
7-गुरूदेव,दया इतनी कर दो,दीनों को सहारा मिल जाऐं।
भवसागर-भॅंवर-भयंकर में,नइया को किनारा मिल जाऐ।।
अपना करके,अपना लो मुझे,औरों से सहारा क्यों माँगू।
जब से विछुड़ा,तुम से प्रभुवर,भगता ही रहा,कितना भागूँ।
बर दायक,बरदाता तुमही,बरदान तुम्हारा मिल जाऐ।।1।।
अल्पज्ञ हूँ मैं,सर्वज्ञ प्रभु,अतिदीन हूं,दीन दायलु तुम्हीं।
जो भी आकर,भॅंवरौ भटका,उनकी नइया की, पार तुम्हीं।
मत मंद बना,मनमस्त फिरा,गुरू गयान उजाला मिल जाऐ।।2।।
संसार में आने को मचला,समझाया,मगर मैं माना नहीं।
संसार में आकर के भटका,अबतक तुमको पहिचाना नहीं।
अब तो आया हूँ,शरण प्रभू,दीदार तुम्हारा मिल जाऐ।।3।।
दुर्लभ-सा जीवन भी पाकर,सत कर्म तो कोई कर न सका।
नरतन भी दिया,भव तरने को,द्वारे विशयों के,मैंने तका।
पापों का ठिकाना कोई नहीं,दरबार तुम्हारा मिल जाऐ।।4।।
8-गाते रहहना भजन,होके मन में मगन,मिल के भाई।
कितने जीवन बिताकर मैंने,आज गुरू की,दया दृष्टि पाई।।
ऐसा शुभदिन,प्रभू ने मिलाया,आज गुरू के चरण पास आया।
आत्मा भी मगन,हॅंस रहा है गगन,चाँद से चाँदनी की मिलाई।।
आज----------------
भेद,वेदों ने जिसका न पाया,नेति-नेति,कहकर ही गाया।
लेखिनी बन रची,सप्त सागर मसि,फिर भी,गरिमा,नहीं लेख पाई।।
आज---------------------
विश्व रचना है गुरू की निशानी,जानो मनमस्त,न नानी कहानी।
गुरू के चरणों पड़ो,भागय लेखन गढ़ो,भूलना ना,कभी सत्य साँई।।
आज--------------------
9-मैं जो अज्ञान हूँ,जानता कुछ नहीं,पंथ संसार का,मोह माया सना।
आस पूरी करो,दर्श देदो मुझे,तेरे दीदार का,मैं भिकारी बना।।
देखा तुमको कभी?फेर कहीं ना दिखे,साथ होते हुए,दूर मैं ही रहा।
तुमसे वादे किए,जो ना पूरे किए,साथ होते हुए,दूर मैं ही रहा।
रहस्य जाना नहीं,आज तक भी प्रभू,कौन सा पुण्य मेरा,जो मानव बना।।1।।
ऐसा संसार तेरा,मैं जाना नहीं,जो भी कीना यहाँ,सब खता ही खता।
सत्य जीवन की राहें,तेरे हाथ है,कौन सी राह जाना है,मुझको बता।
घोर अॅंधियार है,रोशनी बस तूँ ही,पाप की पॅंक में तो,गले तक सना।।2।।
पैर जो भी धरे,कुछ भी करने यहाँ,कुछ भी पाया नहीं,बस छला ही छला।
सिर्फ तेरे ही चरणों में जादूगरी,तारने पापियों को,अनूठी कला।
पतित पावन तूँ ही,भक्त वत्सल तूँ ही,फेर मनमस्त काहे को,इतना तना।।3।।
तेरे संसार को,जानता जो अगर,मैं तो भूले औं भटके भी आता नहीं।
पार होने का साधन बताता नहीं,विधाता रहा,तूँ विधाता नहीं?
खैर,जो कुछ हुआ,तेरी जो भी रजा,मेरी विगड़ी का मालिक भी,तूँही बना।।4।।
10-त्रिगुण रूप गुरूदेव हमारे,त्रिगुणतीत कहाते है।
इनका सुमिरण कर ले वंदे,वंधन सब कट जाते है।।
मृत्युलोक में जीवन पाया,वेद मार्ग कुछ यूँ कहता।
माता-पिता-गुरू,तीनों का,ऋणी हमेशां जन रहता।
सतगुर, तीनों की ही सेवा,उऋण हेतु बतलाते है।।1।।
मन,वाणी,तन को कस बाँधो,पावनता के बंधन में।
ज्ञान,कर्म,ईश्वर उपासना,क्रिया सूत्र-अनुबंधन में।
पावन-जीवन के मारग का,भेद-वेद दरसाते है।।2।।
अहंकार,मद,मोह आदि रिपु,जीवन मारग बाधक हैं।
इनको त्याग,भक्ति रस पी ले,प्रभु पद मुक्ति साधक है।
उन्नत कर मनमस्त तत्व त्रय,गुरूजन राह बताते हैं।।3।।
11-भरोसे,रह तूँ गुरूवर के,कभी धोखा नहीं होगा।
मिटैं भटकाव जीवन के,हमेशां चैन से सोगा।।
ये जीवन,धूप-छाया सा,कभी सुख हैं,कभी दुःख हैं।
उजालों की तरफ चल दें,अॅंधेरा फिर नहीं,धुप हैं।
गुरू की,जा शरण प्यारे,जीवन शान्तमय होगा।।1।।
कभी सोचा तूँने रहवर,विना गुरू,ग्यान पाऐगे?
जगत माया के ये बंधन,तुझे नहीं बाँध पाँऐगे।
गुरू के ग्यान रंग रंगजा,स्वप्नवत्,जगत ये होगा।।2।।
गले तक,पंक में डूबा,खडा जग के निशाने पर।
मगर चिंता न कर वंदे!,गुरू की शरण जाने पर।
सुखों के गुरू अगम सागर,किनारे बैठ,नहिं रोगा।।3।।
बादे याद तो करले,कर के आया जो,प्यारे।
उनसे विछुड़ जाने पर,कष्ट ही कष्ट हैं सारे।
जरा कुछ सोच ले अब भी,नही यूँ ,बैठ कर रोगा।।4।।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा,वे सब कुछ माँफ कर देगे।
उन्हीं की शरण तो आओ,वे,बेडा पार कर देगे।
समय,मनमस्त नहीं खोओ,जगजा,कब तलक सोगा।।5।।
12-गुरू जी शत-शत वंदन,करैं केहि विधि अभिनंदन।
तुम्ही हो ग्यान के दाता,तुम्हीं पानी औ चंदन।।
वस्तु सब सीमित जग कीं,अपरिमित हो तुम स्वामी।
लघु,ब्रह्माण्ड सभी है,विराटी हो,बडनामी।
विश्व में,कहीं न,कोई,मिले उपनाम के चंदन।।
सभी पुहपों की महकन,तुम्हारीं स्वाँस कहानी।
जगत सब खण्डित गुरूवर,अखण्डित आप रवानी।
तुम्हारा दिव्य कलेवर,तुच्छ सुमनों के नंदन।।
तुम्हीं,महाभोग गुरूजी,फेर-क्या भोग लगाऊॅं।
प्रकट भए वेद तुम्हीं से,ऋचाऐं,कवन सुनाऊॅं।
हृदय पावन गृह ब्राजो,करै मनमस्त ये,वंदन।।
13-गुरूदेव,दया इतनी कर दो,हमको भी,तुम्हारा प्यार मिले।
नहीं चाहत में,कोई चाहत है,केवल दर्शन अधिकार मिले।।
भटका,इस मारग पर चलते,सदियाँ ही नहीं,युग बीते हैं।
कुछ भी तो,रहा नहीं गाँठ मेरे,ये हाथ सदा ही रीते हैं।
दुनियाँ को मिले दुनियाँ,लेकिन-मुझको तेरा दरबार मिले।।
नफरत होती इस जीवन से,कितना-कैसा यह जीवन है।
दर्दो से भरा,तन का पिंजड़ा,हर पोर-पोर में टीभन है।
करूणाकर,करूणा बरसाओं,जीवन-जीवन आधार मिले।।
जिसने तुमसे जो कुछ माँगा,मुँह माँगा देते रहते हो।
पल-दो-पल की नहीं देर करो,उसको अपना कर रहते हो।
मन मंदिर आनि,विराजो प्रभू,मनमस्त को दर्श-बहार मिले।।
14- दर,छोड़कर तुम्हारा,किस दर पै,नाँथ जाँऊ।
सुनता नहीं है कोई,किस-किस को,क्या सुनाऊॅं।।
तुमसे विछुड के प्रभुवर,गुमराह हो रहा हूँ।
मद,मोह दलदलों में,जीवन को ढो रहा हूँ।
पापों का पार नइयाँ,तुमसे भी-क्या छुपाऊॅं।।
चारौ तरफ ही दौड़ा,दुनियाँ का बोझ लादे।
भूला हुआ हूँ सब कुछ,पहले किए जो वादे।
शर्मिन्दगा हूँ इतना,कैसे मैं,मुँह दिखाऊॅं।।
हम हैं अनाथ,मालिक तूँ नाथ है हमारा।
सब कुछ ही छोड़ आया,चरणें का ले सहारा।
बस,कोर हो कृपा की,मनमस्त दर्श पाऊॅं।।
15- दुनियाँ को बनाने बाले हैं,गुरूदेव की महिमा क्या गाऊॅं।
चरणों में समर्पित जीवन हैं,दीदार कहाँ,कैसे-कैसे-पाऊॅं।।
तुमने तो जहर के प्याले पी,दुनियाँ को नया जीवन दीना।
संसार की रक्षा के कारण,खुद का कण्ठा नीला कीना।
गुरूदेव-नीलकण्ठेश्वर हैं,उनकी भी कहानी क्या गाऊॅं।।
स्नेह की दरिया से लेकर,प्यारों के समन्दर तक जानो।
उनकी तो कहानी है अदभुत,तर्कों को तजो,मन से मानो।
अपनों के लिए,जो हैं अर्पित,उनसा-अब और कहाँ पाऊॅं।।
दुनियाँ के चमन के रखबाले,हकदार वही,सरकार वही।
सब खेल निराला है उनका,इस पार वही,उस पार वही।
मनमस्त चरण रज,पा करके,औरों की शरण,अब क्यों जाऊॅं।।