Aastha ka dham - Kashi Baba - 1 in Hindi Spiritual Stories by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" books and stories PDF | आस्था का धाम - काशी बाबा - 1

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आस्था का धाम - काशी बाबा - 1

आस्था का धाम काशी बाबा

(श्री सिद्धगुरू-काशी बाबा महाराज स्थान)

( बेहट-ग्वालियर म.प्र)

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त

समर्पण-

परम पूज्यः- श्री श्री 1008

श्री सिद्ध-सिद्द्येशवर महाराज जी

के

श्री चरण-कमलों में।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

दो शब्द

जीवन की सार्थकता के लिये,संत-भगवन्त के श्री चरणोंका आश्रय,परम आवष्यक मान

कर, श्री सिद्ध-सिद्द्येश्वर महाराज की तपो भूमि के आँगन मे यशोगान,जीवन तरण-तारण हेतु

अति आवश्यक मानकर पावन चरित नायक का आश्रय लिया गया है,जो मावन जीवन को

धन्य बनाता है। मानव जीवन की सार्थकता के लिए आप सभी की सहभागिता का मै सुभाकांक्षी

हूं।

आइए,हम सभी मिलकर इस पावन चरित गंगा में,भक्ति शक्ति के साक्षात स्वरूप

श्री-श्री 1008 श्री काषी बाबा महाराज बेहट(ग्वालियर) में

गोता लगाकर,अपने आप को

धन्य बनाये-इति सुभम्।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

श्री सिद्धेश्वकराय,काशी बाबा स्तवन

आनंद कन्दं,सर्वानंन्दं, सदैव वन्द,श्री सदगुरू रूपम्।

सर्व सिद्धि लायक,सर्व मोक्ष दायक,सिद्धेश्वर नायक,नमो नमः।।

शान्ति स्वरूपाय,सर्व दुःख नाशाय,श्री श्री सर्वे सिद्धेश्वराय।

भक्तजन आशाय,सर्वताप नाशाय,श्री श्री सिद्धेश्वराय नमो नमः।।

आगच्छ,दीन नाथाय,सर्वेश्वराय,सतचित आनंदाय,श्री श्री सिद्धेश्वराय।

गृहाण में पूजा-अर्चनाय,सर्व परिकराय,श्री काशी नाथाय सह च।।

परम रम्य भूमाय,सुन्दर वन शोभाय,झिलमिल नद गंगाय,गुफायाम च।

गालब ऋषि अंचलाय,मुरार क्षेत्रे निकटाय,बेहट ग्राम स्थानाय प्रभू।।

नमामि काशी बाबाय,दिव्य श्रैणी विंध्याचलाय,बेहट ग्रामे स्थानाय,संस्थते च।

सर्वजन हिताय,सर्व सुद्ध-सुद्धाय,श्री काशी बाबाय,नमो नमः।।

शान्तं-शुभ्र लोचनाय अनन्त दिव्य देवाय,ज्ञान स्वरूपाय च।

परम रम्य भूमाय झिलमिल तीरे संस्थाय,श्री श्री काशी नाथाय नमो नमः।।

दिव्याम्बुज बदनाय,सूर्य सम्प्रभाय, महाराजा दक्षप्रजापते वंशजाय च।

श्री श्री गंगा-रामप्रसाद आत्मजाय,मंगल मूर्ति रूपाय,श्री काशी बाबाय नमो नमः।।

एतद् काशी बाबा स्तवनाय,यः पठेति प्रियतः स्मरान।

श्री काशी नाथाय पदाम्बुजं आप्नोति,भय-शोकादि बर्जितः।।

एतद् पंच श्लोकाय,योः जनःपठेति,मनः चितः स्थराय।

श्री गुरू पाद पदमं प्राप्नोति,मनमस्त नेति शंश्यम्।।

अर्पण

श्री काशी बाबा चरण,सभी समर्पित भाव।

परम हंस के दरश का,मन में है अति चाव।।

इस पावन से चरित में,अच्छर-अक्षर बास।

कृपा आपकी पांएगे,मन में हैं विश्वास।।

आप जहाँ,सब कुछ वहाँ,अद्भुत लीला आप।

कौन जान सकता प्रभू,कौन सका है माप ।।

सुना रहें हो विश्व को, अनहद नादी नाँद।

सब कुछ तेरा,तुझी को,अर्पित है महाराज।।

है प्रभू तेरा सभी कुछ, है मनमस्त अज्ञान।

कैसे-क्या दरसा रहें,आप ही हो परिमाण।।

धारणा

मन भजो नित काशी बाबा,वे करुण अवतार हैं।

इस विषम संसार से बस, बेहि तारण-हार हैं।।

वे सुखद,गुरुमंत्र पावन,जप सदाँ उनको,मनः।

आत्मा पावन बनेगी,प्यार कर उनसे घना।

हर घड़ी की,घड़ी हैं वे,स्वाँस के आधार हैं।।1।।

वे सभी के पूज्यतम् हैं,प्राण-पन,पूजन करैं।

अहर्निशि कर जाप उनका,सुद्धत्तम् तन-मन करैं।

जप उन्हीं का मंत्र ओ मन!,तार के-वे तार हैं।।2।।

समर्पित होजा उन्हीं के,सुखद सब हो जाऐगा।

यह नियति क्रम ही तुझे,बस मोक्ष तक,ले जाऐगा।

मोक्ष-पथ की साधना में,प्यार के उपहार हैं।।3।।

छोड़ सब,दुनियाँ के झॅंझट,गुरु चरण आधार हो।

छूटजा-मनमस्त- बंधन, सत्य बेड़ा पार हो।

आओ सब,गुरु की शरण हौं,वहाँ खुला दरबार हैं।।4।।

ध्यान-स्मरण

श्री काशी बाबहि नमन,धरुँ हृदय में ध्यान।

प्रकटे जन कल्याण हित,प्रणवऊॅं गुरुवर मान।।

श्री गुरु विना न ग्यान है,गुरुवर ज्ञानाधार।

विना गुरु के पा सके,को भव-सागर पार।।

सिद्धेश्वर पद वंद कर,काशी को शिर नाय।

जिनकी किरपा कोरसे,निश्चय भव तर जाय।।

बुद्धि विशारद,ज्ञाननिधि,मुक्ति के दातार।

रक्षा गुरुवर कीजिऐ,पड़े आपके द्वार।।

दास जानि अपनाइऐ,प्रणवऊॅं बारम्बार।

दो विवके मनमस्त को,पडा हुआ दरबार।।

श्री काशी बाबा-शतक

सम्पुट -मंगल भवन,अमंगल हारी।

जय काशी बाबा भय हारी।।

चौ. जय काशी बाबा करुणाकर।

दिव्य,दयानिधि ज्ञान प्रभाकर।।

वेद आपके पार न पाये।

नेति-नेति कह निशिदिन गाये।।

भव भय हरण-करण अवतारा।

जय-जय-जय गुरुदेव उदारा।।

बाबा तपनिधि रुप बनाया।

जीव चराचर दुःख नशाया।।

मानव हित सब कही कहानी।

आगम-निगम वेद बुघ वाणी।।

जीवन सुखद,सुयश पग धूरी।

सकल कामना होबहिं पूरी।।

जन हितार्थ निज शक्ति जगाई।

जलते प्रकट किया धृत भाई।।

नित-प्रति ध्यान अर्चना कीजे।

श्री बाबा चरणा अमृत पीजे।।

दोहा- बाबा पद रज शीश धरि,तप अॅंजन दृग आज।

अष्ट याम सुमिरण करो,ध्यान धरो मन माँझ।।1।। मंगल...........

चौ- हेतु अनेकन रुप बनाए।

ऋषि-मुनि वेदहु जान न पाए।।

धर्म धरा के पालन हारे।

सत्य-सुधा के हो रखवारे।।

जो जन जबहिं सुमिर तब नामा।

पूरण होंये तिनहुँ-सब कामा।।

घर-घर दीप आरती होईं।

श्रद्धा-शक्ति पाव सब कोई।।

ग्राम-ग्राम हैं धाम तुम्हारे।

आठौ याम होंय जयकारे।।

भाव-साधना कर सुख पावै।

जीवन लाभ पाय हरशावै।।

भय के भूत भगैं सुन नामा।

अलख ज्योति जलती हर ठामा।।

सबके रक्षक हो गुरुदेवा।

अपना लेते हो विन सेवा।।

दोहा-सुन लेते हो अर्जियाँ,घोर निशा के बीच।

तन-मन ताप मिटात हो,प्रेम सुधा मन सींच।।2।। मंगल---------

चौ. बाबा ध्यान मोह मद जाई।

काम क्रोध का अन्त कहाई।।

जेहि पर कृपा करैं गुरुदेवा।

सकल मोक्ष सुख पावहिं सेवा।।

केहि विधि अर्चन करहिं तुम्हारा।

विश्व-बंध तब रुप-उदारा।।

षट विकार के मेंटन हारे।

अग-जग-जीवन के रखवारे।।

शंकट नाशक रुप तुम्हारा।

भक्तन सुखद,विवके-विचारा।।

अशरण-शरण आप जगमांही।

आप कृपा भव-पंथ सिराही।।

अगम कृपा तब जीवन दायनि।

भव-शंकट की मोक्ष रसायनि।।

बाबा शतक गाय जन जोई।

तन-मन-धन पावन सब होई।।

दोहा-बुद्धि-सुद्धि गुरुमंत्र है,मन विकार मिट जाँय।

सकल विश्व कल्याण प्रद,काशी पद जो ध्याय।।3।। मंगल-------

चौ. जग मंगलमय रुप तुम्हारा।

सिद्ध-सनातन-सा उजियारा।।

सकल सिद्धियाँ तब पद सेवैं।

कर जोरित तुव आशिश लेवै।।

आश्रम रज पावन अति होई।

शिर धारत त्रय तापन खोई।।

बडभागी बदरी तरु प्यारा।

कल्यवृक्ष-भा चरण पखारा।।

फल श्रुतिसार भए जगमांही।

भाग्यवान जन जो जेहिं पांही।।

कवन पुण्य फल बदरी पावा।

भाग्य सराहिं-देव यश गावा।।

पीपल-पाकरि-जम्ब-ुरसाला।

तिनकर छाँव सुखद सब काला।।

जो जन-जीव आश्रम बासी।

धन्य भाग्य पावन सुख राशी।।

दोहा-झिल-मिल नंद है भागवत,जो बाबा पद सेब।

सुरसरि-सा पावन बना,दरस परस सुख लेव।।4।। मंगल-------