offering--part (8) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अर्पण--भाग (८)

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अर्पण--भाग (८)

इधर श्रीधर अस्पताल पहुँचा और उसने अस्पताल के बाहर ही खड़े एक बुजुर्ग की रेड़ी से पहले भेलपूरी बनवाई फिर उस बुजुर्ग को पैसे देकर,भेलपूरी को अपने झोलें में छुपाया और राज के कमरें की ओर चल पड़ा,जैसे ही वो राज के कमरें में पहुँचा तो उसने देखा कि राज 'शरतचन्द्र चटोपाध्याय' का लिखा हुआ उपन्यास 'देवदास' पढ़ रही है,राज को ऐसे पढ़ते हुए देखा और श्रीधर ने टोकते हुए कहा.....
अच्छा! तो शह़जादी साहिबा 'देवदास' पढ़ रहीं हैं।।
अरे!श्रीधर बाबू ! आप! कब आए?
राज ने चौकतें हुए पूछा....
जी! तभी जब आप अपनी प्रेमकहानी में डूबीं हुईं थीं....
जी! मैं ! मेरी नहीं देवा और पारो की प्रेमकहानी में डूबी हुई थीं....,राज ने जवाब दिया।
अच्छा!जी! तो आपको भी प्रेमकहानियाँ पढ़ना पसंद है,श्रीधर बोला।।
तो क्या आपको भी प्रेमकहानियाँ पढ़ना पसंद हैं?राज ने चहकते हुए पूछा।।
जी बिल्कुल! मेरा मानना है कि प्रेम से ही तो संसार बँधा है और प्रेम ही एक दूसरे को एकदूसरे से बाँधकर रखता है,श्रीधर बोला।।
सच में,आपको भी ये लगता है,राज बोली।।
जी हाँ! प्रेम के बिना सब नीरस है,श्रीधर बोला।।
जी! मेरा भी यही मानना है,मैं तो चाहती हूँ कि जो भी मुझसे प्यार करें तो वो निस्वार्थ करें,मेरी दौलत और शौहरत से नहीं केवल मुझसे प्यार करें,वो मेरी रूह से प्यार करें,दिल की गहराई से मुझे चाहें...बस...मेरी तो यही तमन्ना है।।
राज ने भावुक होकर अपने मन की बात श्रीधर से बोल तो दी लेकिन जब अपनी बातों का अर्थ समझा तो दूसरे ही पल अपनी पलकें झुका लीं।।
जी! ईश्वर करें कि आपकी इच्छा जल्द पूरी हो,श्रीधर बोला।।
श्रीधर की बात सुनकर राज झेंप गई और बात टालते हुए बोली.....
बहुत भूख लगी है,काश ! कुछ चटपटा सा खानें को मिल जाता।।
अरे,मैं तो भूल ही गया,मैं तो आपके लिए भेलपूरी लाया था,श्रीधर बोला।।
तो जल्दी निकालिए ना! देर किस बात की,राज ने बेसब्र होकर कहा।।
तो मैं दरवाज़े पर खड़ा होता हूँ फिर आप ये भेलपूरी मज़े से खाइए और पेपर भी वापिस मेरे झोलें में डाल दीजिएगा,नहीं तो खाँमखाँ नर्स शक करेंगी,श्रीधर बोला।।
जी !आप बिल्कुल भी चिन्ता करें और इतना कहकर राज भेलपूरी इस तरह से खाने लगी कि जैसे उसने ना जाने कब से खाना ना खाया हो और उसे खाता देखकर श्रीधर को अच्छा लग रहा था,वो लगातार उसके चेहरें की ओर देखें जा रहा था,राज की मासूमियत और भोलेपन ने उसके दिल में एक ख़ास जगह बना ली थी, उसे खाते हुए देखकर वो उसे बस एकटक निहारें ही जा रहा था।।
कुछ देर में राज ने भेलपूरी खतम कर दी और श्रीधर से बोली....
शहज़ादे !अब आप आराम से कुर्सी पर बैठ सकते हैं ,आपको अब पहरेदारी करने की कोई जुरूरत नहीं है,
मेरे अहोभाग्य जो मैं आपके कुछ काम तो आ सका,श्रीधर बोला।।
मेहरबानी तो आपकी हम पर हुई है शहजादे साहब! जो आप हमारे लिए इतनी ज़ायकेदार भेलपूरी बनवाकर लाए,राज बोली।।
तभी तो आपने हमारे लिए एक दाना भी नहीं छोड़ा,श्रीधर ने छेड़ने के इरादे से राज से कहा।।
माफ़ कीजिए! श्रीधर बाबू! मुझे पता नहीं था कि वो भेलपूरी आपको भी खानी थीं,राज ने श्रीधर से अफ़सोस जताते हुए कहा।।
ना...ना...शहजादी साहिबा! आप अफ़सोस ना करें,मैं तो मज़ाक कर रहा था,श्रीधर बोला।।
तब तो बड़ा बेरहम मज़ाक था,हमारे खाने की कमजोरी को आप मज़ाक का नाम देकर अच्छा नहीं कर रहे ,राज बोली।।
शहज़ादी साहिबा को जब हमसे इतनी शिकायत है तो फिर लीजिए,हम कल से अब अस्पताल नही आएंगे,श्रीधर बोला।।
ना श्रीधर बाबू! ऐसा बदला मत लीजिए,इतने भी बेरहम मत बनिए,राज ने फिर बिना सोचे समझें बोल दिया और फिर से शरमाते हुए पलकें झुका लीं।।
तो इसका मतलब है कि हमारा अस्पताल आना शहजादी साहिबा को पसन्द है,श्रीधर बोला।।
मैंने ऐसा तो नहीं कहा था,राज शरमाते हुए बोली।।
तो इसका मतलब है कि हमारा आना पसन्द नहीं है,श्रीधर ने कहा।।
मैनें ऐसा भी तो नहीं कहा,राज बोली।।
तो आप कहना क्या चाहतीं हैं,जरा खुलकर बताएं शहजादी साहिबा जी!श्रीधर ने चिढ़ाते हुए कहा।।
आप तो खाँमखाँ में हमें अपनी बातों में उलझा रहें हैं,राज शिकायत करते हुए बोली।।
तो फिर मैं क्या समझूँ,जरा आप ही बता दीजिए,श्रीधर बोला।।
हमें नहीं मालूम,राज बोली।।
तो फिर हम जाते हैं,श्रीधर बोला।।
जी,आप तो छोटे बच्चे की तरह जिद़ करते हैं,राज बोली।।
जी!ज़िद ही सही,श्रीधर बोला।।
जी,आपके आने से अकेलापन महसूस नहीं होता और बस...राज बोली।।
ये हुई ना बात! आपकी दीदी ने कहा है कि उनके पास ज्यादा समय नहीं रहता तो मैं ही अस्पताल में आकर कुछ देर आपसे बातें करके आपका अकेलापन दूर करूँ और कोई बात नहीं है,श्रीधर बोला।।
तो ये तो बहुत अच्छी बात है अगर दीदी ने मेरे मन की समझ ली है,राज बोली।।
वो क्यों नहीं आपके मन की बात समझेंगीं,वो आपकी बड़ी बहन हैं,श्रीधर बोला।।
जी,शायद आप सही कहते हैं लेकिन उनसे अपने मन की बात करते हुए डर लगता है,राज बोली।।
शायद,दुनियादारी सम्भालते सम्भालते उनके अन्दर एक गम्भीरता आ गई हैं और आपको उनकी इसी गम्भीरता से डर लगता है,श्रीधर बोला।।
शायद ,यही सही है,राज बोली।।
लेकिन,समय मिले तो कभी आप उनके बारें में भी तो सोचें कि कैसे काम की वजह से उनकी दुनिया सिमट कर रह गई है,जब कभी उन्हें भी कोई तनाव या तकलीफ़ होती होगी तो वो किस कन्धे पर अपना सिर रखकर रोतीं होगीं,श्रीधर बोला।।
सही कहते हैं आप! ये तो मैनें कभी सोचा ही नहीं,राज बोली।।
तो कभी समय मिलें तो जरूर सोचिएगा,श्रीधर बोला।।
जी,मुझे तो लगता था कि दीदी बहुत ही कठोर दिल की हैं,राज बोली।।
ये आपकी गलतफहमी है,सभी इन्सान को किसी ना किसी का सहारा चाहिए होता है वो चाहें कितना भी मजबूत क्यों ना हों,श्रीधर बोला।।
जी, मैंने कभी ये जानने की जुरूरत ही नहीं समझीं,राज बोली।।
पता है आपको,वो भी कभी कभी अपने-आप को बहुत तन्हा महसूस करतीं हैं,श्रीधर बोला।।
जी,अब मैं जब ठीक हो जाउॅगीं तो उनका बहुत ख्याल रखूंगी, उन्हें सभी चिन्ताओं से दूर कर दूंगी,राज बोली।।
ये हुई ना बात! मुझे आपसे यही आशा थी,मैं तो यही चाहता हूं कि आप दोनों बहनें एक-दूसरे को समझें,एक दूसरे की परेशानियों को समझें,राज बोली।।
जी,आपकी शिकायत जुरूर दूर होगी,राज बोली।।
मैं यही चाहता था,तो फिर अब मैं चलता हूं,देखिए ना अब तो अंधेरा भी होने को आया है,दीदी घर पर इन्तज़ार करतीं होगीं,श्रीधर बोला।।
जी,आप जा सकते हैं,अब ना रोकूंगी,राज बोली।।
और श्रीधर के जाते ही राज उसकी बातों में खो गई,वो सोचने लगी कि कितना अच्छा इन्सान है,आजकल के जमाने में कौन किसी के बारें में इतना सोचता है,ये तो बिना स्वार्थ के ही हम बहनों की इतनी फिक्र करता है,वाकई में दिल का बहुत ही अच्छा है।।
राज अपने बिस्तर पर बैठकर ये सोच ही रही थी कि देवनन्दिनी,राज के लिए रात का खाना लेकर अस्पताल आ पहुंची और राज को ऐसे गुमसुम देखकर बोली।।
क्या बात है? हमारी बहना! किस सोच में डूबी है।।
अरे,दीदी! आप आ गईं,राज बोली।।
पहले तू बता कि तू किस सोच में डूबी थी, नन्दिनी ने पूछा।।
कुछ नहीं,दीदी! बस आपके बारें में सोच रही थी,राज बोली।।
अच्छा,मेरे बारे में क्या सोचा जा रहा था भला, नन्दिनी ने पूछा।।
यही कि अब आपको शादी कर लेनी चाहिए,राज बोली।।
अच्छा! तू तो आज बहुत बड़ी बड़ी बातें कर रही हैं, कुछ ऐसा वैसा तो नहीं खा लिया, नन्दिनी बोली।।
ना दीदी!बस भेलपूरी खाई थीं,राज अचानक बोल गई और फिर नन्दिनी का चेहरा देखकर डर कर बोली.....
श्रीधर बाबू ले आए थे तो क्या करती मैं?
डर मत! मैंने ही उनसे भेलपूरी ले जाने को कहा था, नन्दिनी बोली।।
सच दीदी! आप कितनी अच्छी हो तो फिर कल उनसे समोसे लाने को कहिएगा,राज बोली।।
ऐ....कुछ ज्यादा हो रहा है,नन्दिनी बोली।।
ठीक है तो भेलपूरी ही भिजवा दीजियेगा,राज बोली।।
तू अपनी शरारतों से बाज़ नहीं आएगी,तूने तो कसम खा रखी है, नन्दिनी बोली।।
दीदी! आपको पता है अगर मैं शरारतें ना करूं तो मर जाऊं शायद,राज बोली।।
मरें तेरे दुश्मन और खबरदार! जो आज के बाद ऐसी मनहूस बातें कीं तो मुझसे बुरा कोई ना होगा, नन्दिनी बोली।।
गलती हो गई दीदी! माफ़ कर दो,राजहंसिनी बोली।।
अच्छा.... अच्छा...चल...चल... ज्यादा बातें मत बना,आज मैं तेरे लिए अपने हाथों से जीरा आलू बनाकर लाई हूं, ज्यादा तीखा और चटपटा नहीं है लेकिन तू खाएगी तो तुझे अच्छा लगेगा,देवनन्दिनी बोली।।
अब आपने इतने प्यार से बनाया है तो मैं तो जरूर खाऊंगी,राज बोली।।
चल तो मैं हाथ धोकर आती हूं फिर साथ मिलकर खाना खाएंगे...और इतना कहकर नन्दिनी हाथ धोने चली गई,
उधर श्रीधर घर पहुंचा और सुलक्षणा ने उसे हाथ मुंह धोकर खाना खाने के लिए कहा....
सुलक्षणा ने श्रीधर के लिए खाना परोसा और वो खाने लगा लेकिन आज उसका ध्यान खाने पर नहीं था,पता नहीं वो क्या सोच कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था,उसका ऐसे मुस्कुराना देखकर सुलक्षणा से ना रहा गया और वो श्रीधर से पूछ ही बैठी....
क्यों रे! खाना कैसा बना है?आज सब्जी में नमक थोड़ा कम है।।
हां,दीदी! नमक थोड़ा कम है,जरा नमक तो लाना,वैसे सब्जी बहुत अच्छी बनी है,श्रीधर बोला।।
अब तो पता लग गया कि सच में तेरा ध्यान खाने पर नहीं है,सब्जी में नमक कम नहीं ज्यादा है पगले!,सुलक्षणा बोली।।
वो मैं कुछ सोच रहा था,श्रीधर बोला।।
जरा मैं भी तो सुनूं, कि तू किसके बारें में सोच रहा है,सुलक्षणा ने पूछा।।
वो कुछ नहीं, अस्पताल गया था राज जी से मिलने तो भेलपूरी लेकर गया था, उन्हें खाता देखकर मुझे हंसी आ गई तो वही बात ध्यान में आ गई,श्रीधर बोला।।
अच्छा,तो आजकल राज के बारें में बहुत सोचा था रहा है,सुलक्षणा बोली।।
ना जीजी!ऐसा कुछ ना है,जैसा तुम सोच रही हो,श्रीधर बोला।।
मैं सही सोच रही हूं,और इतना कहकर सुलक्षणा भी मन्द मन्द मुस्कुराने लगी।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा....