सार्जेंट सलीम सजधज कर होटल सिनेरियो के पार्किंग में कार पार्क करके जब ऊपर पहुंचा तो उसका मूड बड़ा अच्छा हो रहा था। एक तो मौसम सुहाना था, दूसरे आज होटल सिनेरियो में इटैलियन फेस्टिवल था। सार्जेंट सलीम धीमे स्वर में एक पुराने फिल्मी गाने पर सीटी बजा रहा था।
होटल सिनरियो को थीम के हिसाब से ही इटैलियन अंदाज में सजाया गया था। होटल की बिल्डिंग पर लेजर लाइट से एक इटैलियन ग्रुप को डांस करते हुए दिखाया गया था। ग्रुप की लड़कियों के हाथों में वहां का नेशनल फ्लैग था। गेट पर मौजूद गार्ड ने भी इटली की परंपरागत ड्रेस पहन रखी थी। उसने काली पैंट पर सफेद शर्ट और उसके ऊपर लाल रंग का वास्कोट पहना था। कमर में कपड़े का लाल रंग का बेल्ट था। पैरों में लांग बूट थे।
होटल के अंदर के पर्दे भी इटैलियन डिजाइन के ही थे। आज यहां ट्रांटेल्ला नैपोलेटाना डांस का खास प्रोग्राम रखा गया था। यह इटली का पारंपरिक नृत्य है। आम तौर पर समूह में होने वाले इस डांस में बारी-बारी से पैर को आगे पीछे करते हैं। उसके बाद कपल एक-एक पैर उठा कर और आपस में हाथों को जोड़ कर राउंड लगाते हैं।
सलीम को आज के डांस में बहुत दिलचस्पी नहीं थी। उसकी वजह यह थी कि उसे ग्रुप डांस जरा कम ही पसंद आते थे। उसका कहना था कि ग्रुप डांस में नर्तकी की खूबसूरती और कपड़ों पर ज्यादा फोकस नहीं किया जाता है। ग्रुप डांस में सभी एक जैसे होते हैं। एक जैसी ड्रेस में।
वह तो यहां इटैलियन फूड की वजह से आया था। इसे इटली से विशेष तौर से बुलाए गए कुक तैयार कर रहे थे। सलीम का मकसद आज डिनर में इटैलियन फूड ही खाने का था। बस जरा सी मुश्किल थी। उसे यहां अकेला ही आना पड़ा था।
उस ने इंस्पेक्टर सोहराब को साथ लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। सोहराब कोई किताब पढ़ने में मशगूल था। वह दो दिन से लाइब्रेरी में ही था। पढ़ते हुए रात को वहीं सो भी जाता था। यहां तक कि लंच भी वहीं कर रहा था। अलबत्ता डिनर हमेशा की तरह सलीम के साथ ही करता था।
सलीम जब होटल सिनैरियो के डायनिंग हाल में दाखिल हुआ तो वह खचाखच भरा हुआ था। आज सनडे था और डांस का स्पेशल प्रोग्राम भी। इस वजह से काफी थी।
सलीम ने एक उचटती हुई नजर हाल में बैठे लोगों पर डाली और फिर अपनी रिजर्व सीट पर जा कर बैठ गया। उसने जेब से पाइप और पाउच निकाला और उसमें वान गॉग की तंबाकू भरने लगा। पाइप जलाने के बाद दो-तीन कश लेने के बाद उस ने एक बार फिर आसपास के लोगों पर नजर मारी। उसे नजदीक की किसी भी टेबल पर कोई खूबसूरत लड़की नजर नहीं आई। उस ने सोचा क्यों न पाइप पर ही फोकस किया जाए!
उसने पैरों को फैला लिया और पाइप के हलके-हलके कश लेने लगा। पाइप की खुश्बूदार तंबाकू की महक आस-पास फैल रही थी।
पाइप पीने के बाद उसने वक्त खराब किए बिना खाने का आर्डर किया और वाशरूम की तरफ चला गया। वहां से लौटा तो एक अधेड़ औरत को अपनी टेबल पर बैठे हुए पाया। कुछ देर के लिए उसकी भौहें तन गईं और वह उसे उठाने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन फिर कुछ सोच कर रुक गया। उसने कुर्सी पर बैठते हुए बहुत रूमानी अंदाज में कहा, “हैलो सैनोरीटा!”
महिला ने चौंक कर उसकी तरफ देखा और फिर थोड़ा नाराजगी से कहा, “मेरा नाम सैनोरीटा नहीं है।”
“दरअसल आप जैसी हसीन औरत का नाम सैनोरीटा ही होना चाहिए।” सलीम ने उस की आंखों में देखते हुए कहा।
सलीम की इस बात पर उस औरत के चेहरे पर एक लाली सी आकर गुजर गई। वह महिला 45 साल पार कर चुकी थी। कोई खास खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उसकी बड़ी-बड़ी नशीली आंखें ध्यान खींच लेती थीं।
“मैं इतनी ही खूबसूरत हूं!” महिला ने थोड़ा शर्माते हुए कहा।
“आप न सिर्फ खूबसूरत हैं, बल्कि आप में गजब की कशिश भी है।”
“फ्लर्ट मत करो।” महिला ने मुस्कुराते हुए कहा।
“क्या आप मेरे साथ डांस करेंगी।” सलीम ने उस से गुजारिश करने वाले लहजे में पूछा।
“श्योर!” महिला ने कहा और उठ कर खड़ी हो गई।
सलीम भी सीट से उठ गया। सार्जेंट सलीम को मालूम था कि उस का आर्डर आने में आधा घंटा लगेगा। उस से खाने का इंतजार नहीं हो रहा था। टाइम काटने के लिए उसने यह दिल्लगी कर ली थी।
वह महिला का हाथ थामे बड़ी शान से बालरूम की तरफ जा रहा था। ऐसा लगता था कि दोनों में बरसों का प्यार हो। कई लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा रहे थे। अलबत्ता सलीम को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह अपनी जिंदगी अपने ही तरीके से जीने का आदी था।
सलीम महिला के साथ बहुत तेज डांस कर रहा था। अपनी उम्र की वजह से वह सलीम की तेजी का साथ नहीं दे पा रही थी। नतीजे में जल्द ही वह थक गई। उसने सलीम से वापस चलने के लिए कहा।
“अभी तो सिर्फ दस मिनट ही हुए हैं।” सलीम ने डांस फ्लोर से वापस लौटते हुए कहा।
“ओके... दूसरा राउंड थोड़ी देर बाद।” महिला ने एक कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
सलीम भी उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। वेटर दोनों के सामने एक-एक ग्लास पानी रख कर चला गया। महिला ने ग्लास उठा कर दो घूंट पानी पिया और अपनी सांसों पर काबू पानी की कोशिश करने लगी।
सलीम ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा, “आप की शादी हो गई।”
“अभी नहीं। कोई मिला ही नहीं।” महिला ने जल्दी से जवाब दिया फिर पूछा, “और आप की?”
“मुझे भी कोई नहीं मिला।” सलीम ने रूमानी अंदाज में कहा।
“वॉव...!” महिला ने खुश होते हुए कहा, “अपना मोबाइल नंबर दीजिए।”
“मैं फोन यूज नहीं करता हूं।” सलीम ने कहा।
शायद सलीम की बदनसीबी ही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी और महिला उसे घूरने लगी। सलीम ‘एक्सक्यूज मी’ कहते हुए वहां से खिसक लिया। वह वहां से सीधे वाशरूम चला गया। वहां से लौटा तो देखा महिला अपनी सीट पर नहीं थी। सलीम खुश हुआ कि चलो बला टली। उस के बाद वह डायनिंग हाल में अपनी रिजर्व सीट की तरफ बढ़ गया। वहां उसे दूर से ही अपनी टेबल पर महिला बैठी हुई नजर आ गई। सलीम की समझ में नहीं आया कि अब क्या करे। आज उसका मसखरापन वबाले जान बन गया था।
वह होटल से बाहर की तरफ निकल गया। वहां उस ने पाइप सुलगा लिया। एक कोने में खड़े हो कर वह पाइप पीता रहा। तकरीबन दस मिनट इसी तरह से गुजर गए। वह फिर अपनी टेबल की तरफ चल दिया। वह महिला उसे सीट पर बैठी हुई फिर नजर आई।
सलीम की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से पीछा कैसे छुड़ाया जाए। उस का मूड खराब हो चुका था। वह वापस कार पार्किंग की तरफ लौट आया। वहां से कार निकाली और घर की तरफ रवाना हो गया। इटैलियन फूड का अरमान धरा का धरा रह गया।
घर पहुंच कर उस ने झाना को आवाज लगाई। झाना भागा हुआ आया। सलीम ने उस से कहा, “जोरों की भूख लगी है... जल्दी से खाना लगाओ।”
सलीम ने वाश बेसिन में हाथ साफ किए और जा कर डायनिंग टेबल पर बैठ गया। कुछ देर बाद झाना हाथ में सलाद की प्लेट और एक डिश रख गया। डिश में मूंग की खिचड़ी रखी हुई थी।
मूंग की खिचड़ी देख कर सलीम आग बगूला हो गया, “अबे यह क्या है?”
“खिचड़ी... हुजूर खिचड़ी।” झाना ने घिघियाते हुए कहा, “आज बड़े साहब का खिचड़ी खाने का मूड था।”
“अबे मेरे मूड का क्या!” सलीम ने लगभग चीखते हुए कहा।
“आप तो इटैलियन खाने गए थे।” झाना ने कहा।
झाना की यह बात उसे ताने की तरह लगी। उस के जेहन में एक गंदी सी गाली कुलबुलाने लगी। वह कुछ देर तक खामोशी से खिचड़ी की डिश को देखता रहा। उस के बाद उस ने बड़े अंदाज से कहा, “तुम खिचड़ी नहीं पास्ता कारबोनारा हो।”
इस के बाद वह बड़े चाव से खिचड़ी खाने लगा और झाना हंसता हुआ चला गया।
सुबह सलीम की नींद सोहराब के फोन की घंटी की आवाज से खुली थी। सलीम के फोन रिसीव करते ही दूसरी तरफ से सोहराब की आवाज आई, “उठ जाइए बरखुर्दार! कुछ लड़कियां आप से मिलने आई हैं।”
यह सोहराब के फोन का नहीं, बल्कि लड़कियों के आने की सूचना का असर था कि अगले पांच सेंकेड में सार्जेंट सलीम वाशरूम में था। वह इस तेजी से फ्रेश हुआ कि जब वह ड्राइंग रूम में पहुंचा तो सोहराब भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सका।
ड्राइंग रूम में हाशना किसी लड़की के साथ बैठी हुई थी। सलीम ने हाशना को पहचान लिया था। वह पिछले केस में एक अहम किरदार के तौर पर सामने आई थी (पढ़िए शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर)।
हाशना ने सलीम को विश किया। सलीम के आते ही सोहराब ने कहा, “आप लोग बातें कीजिए, मुझे कुछ काम है।”
सोहराब के जाने के बाद सलीम दोनों के सामने सोफे पर बैठ गया। हाशना ने साथ आई हुई लड़की से सलीम का परिचय कराते हुए कहा, “गीतिका यह हैं मशहूर जासूस मुजतबा सलीम... और सलीम साहब यह मेरी दोस्त गीतिका हैं।”
“हैलो सर!” गीतिका की आवाज में थोड़ी घबराहट थी।
“हैलो गीतिका!” सलीम ने जवाब में कहा।
“यह एक परेशानी में हैं... इसलिए मैं इन्हें आप के पास ले आई।” हाशना ने सलीम की तरफ देखते हुए कहा।
“जी बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं।” सार्जेंट सलीम ने पूछा।
तभी झाना नाश्ता ले कर आ गया और गीतिका कुछ कहते-कहते रुक गई। नाश्ता लग जाने के बाद सलीम ने कहा, “पहले नाश्ता कर लेते हैं, उसके बाद बात करते हैं।”
गीतिका सलीम से क्या मदद लेने आई थी?
क्या वाकई गीतिका किसी मुश्किल में फंस गई थी?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’...