बरसात में नहायी डामर की काली सड़क नागिन सी पसरी पड़ी थी।कभी कभी कोई कार शोर मचाती हुई देवेन के आगे से गुज़र जाती थी।कुछ देर बाद सामने से लाल रंग की बस आती हुई नजर आयी।बस देवेन के सामने आकर रुकी थी। लाल रंग की साड़ी पहने चारुलता उसमे से उतरी थी।काफी देर से देवेन उदास खड़ा था लेकिन चारुलता की देखते ही उसकी आँखों मे चमक आ गई थी।ऐसे बिगड़े मौसम में भी चारुलता ने अपना वादा निभाया था।देवेन मुस्कराते हुए आगे बढ़ा और उसका हाथ पकड़ लिया था।
"तुम्हे आये देर हो गई?"देवेन का हाथ थामे उसके साथ चलते हुए चारुलता बोली थी।
"ज्यादा नही,"देवेन साथ चल रही चारुलता को निहारते हुए बोला,,"तुम्हारे आने की मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नही थी।मैं सोच रहा था।ऐसे बिगड़े मौसम में तुम्हारे घरवाले तुम्हे घर से बाहर नही निककने देंगे।"
"मना करने वाला कोई नही है।मैं अकेली हूँ,"चारुलता बोली,"कोई अगर होता भी तय मैं तुम्हे दिया हुआ वादा नही तोड़ती।"
"तुमने कभी नही बताया कितुं यहाँ अकेली रहती हो।"
"ऐसा कभी अवसर ही नही आया।"बरसात से भीगी सड़क पर चलते हुए चारुलता बोली थी।
समुद्र का पानी भयंकर गर्जना कर रहा था।समुद्र में लहरे उठती और किनारे से टकराकर वापस लौट जाती।दूर जहाँ तक नज़र जाती सिर्फ पानी ही पानी नज़र आ रहा था।मुम्बई देश का महानगर और आर्थिक राजधानी है।देवेन शंका प्रकट करते हुए बोला,"तुम्हारे माता पिता ने कैसे अकेला छोड़ रखा है?"
"वे बेचारे तो कब के ट्रेन एक्सीडेंट में। चारुलता ने अपने माता पिता की मौत के बारे में बताया था।
"ओ हो देवेन ने अफसोस प्रकट करते हुए बोला,"तुमने शादी क्यो नही की?"
"बड़े अरमानो से मेरे माता पिता ने मुझे दुल्हन बनाया था।"चारुलता का गला भर्रा गया था।
"तुम विवाहित हो?"चारुलता का सुना सपाट चेहरा और सुनी मांग देखकर देवेन आश्चर्य से बोला था।
चारुलता ,देवेन की बात का आशय समझते हुए बोली,"मेरा तलाक हो चुका है।"
"क्यो?"देवेन बोला,"ऐसी सूंदर औरत को किस मूर्ख ने तलाक दे दिया।"
तलाक राघवन ने नही मैने उसको दिया था।
"तुमने?"साथ चल रही चारुलता उसे एक अबूझ सी पहेली लग रही थी।वह उसे कुंवारी समझ रहा था।लेकिन सहसा मासूम कली से बासी फूल बन गई थी।उसके साथ काम करते हुए भी वह उसके बारे में कुछ नही जान सका था।
"देवेन मैने बहुत कोशिश की थी कि राघवन को तलाक नही दू।उसे शराब पीने की बुरी आदत थी।मुझे सुहागरात को ही उसकी इस आदत के बारे में पता चल गया था।पर मैंने इसे इसलिए बुरा नही माना कि आजकल के युवाओ को इसकी लत लग चुकी है।इसे स्टैट्स सिम्बल समझ जाने लगा है।मुझे अपने पर विश्वास था।इसलिए मन ही मन मे मैने निर्णय लिया था कि उसकी इस आदत को मैं छुड़ाकर ही दम लुंगी।
रोज रात को वह नशे मे झूमता हुआ घर आता।मैं पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए उसे सहारा देती।उसके कपड़े बदलती।खाना खिलाती और रात को न चाहते हुए भी समर्पित होकर उसके शरीर की भूख मिटाती।
सुबह जगने पर जब उसकी शराब की खुमारी उतर चुकी होती।मैं प्यार से उसे समझाती।वह मेरी बातें ध्यान से सुनता और शराब के हाथ भी न लगाने का वादा करता।"
चारुलता अपनी आपबीती सुनाते हुए यकायक चुप हो गई
(क्रमश शेष अंतिम भाग मे)