(41)
अलीशिया गुस्से में भरी बैठी थी। वह मीरा को किसी भी तरह अपने रास्ते से हटाने के बारे में सोच रही थी। वह मीरा से मिलकर उसे धमकाना चाहती थी। वह अपने कमरे से बाहर निकली। सागर खत्री के बारे में पता किया। वह कहीं गया हुआ था। वह सीधा सिक्योरिटी रूम में गई। उसने सिक्योरिटी रूम में तैनात इंचार्ज से कहा कि उसे सागर खत्री का एक बहुत ज़रूरी मैसेज लेकर मीरा के पास जाना है। सिक्योरिटी इंचार्ज को पहले उस पर यकीन नहीं हुआ। अलीशिया ने गुस्सा दिखाते हुए कहा कि वह सागर खत्री के आने पर उसे बता देगी कि उसे मीरा के पास नहीं जाने दिया गया। कुछ सोचने के बाद सिक्योरिटी इंचार्ज ने उसे जाने की इजाज़त दे दी।
मीरा बहुत परेशान थी। सागर खत्री उसे अपनी रखैल बनाना चाहता था। वह सोच रही थी कि अगर उसने गलती ना की होती तो अंजन उसे अपनी पत्नी बनाता। पर अब तो वह खुद इतना मजबूर है। उसके लिए कुछ भी नहीं कर पाएगा। उसे घुट घुट कर सागर खत्री की कैद में रहना पड़ेगा।
डोरबेल बजी तो मीरा यह सोचकर सिहर गई कि सागर खत्री होगा। उसने डरते हुए दरवाज़ा खोला। सामने एक अंजान औरत खड़ी थी। अलीशिया उसे ढकेल कर अंदर चली गई। दरवाज़ा बंद कर दिया। बिना कुछ बोले मीरा को एक ज़ोरदार थप्पड़ लगा दिया। मीरा उसके इस व्यवहार से चकित थी। वह गुस्से में बोली,
"क्या बदतमीजी है ? कौन हो तुम ?"
अलीशिया ने उसके बाल पकड़कर कहा,
"मेरे सागर पर डोरे डाल रही हो। मुझे बदतमीज़ कहती हो। तुमने अगर उसका पीछा नहीं छोड़ा तो तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगी।"
मीरा ने अपने आप को छुड़ाया। फिर गुस्से में बोली,
"कौन हो तुम ? यह क्या बकवास कर रही हो ?"
अलीशिया ने कहा,
"मेरा नाम अलीशिया है। सागर मेरा है। अभी तक वह मुझसे बहुत प्यार करता था। पर जबसे तुम आई हो उसने मेरी तरफ ध्यान देना ही छोड़ दिया। तुमने उसे अपने जाल में फंसाकर मुझसे दूर कर दिया है।"
मीरा समझ गई कि यह सागर खत्री की प्रेमिका होगी। सागर खत्री के उसकी तरफ आकर्षित होने के कारण अपने अाप को असुरक्षित महसूस कर रही है। उसने सोचा कि शायद वह उसके काम आ सके। उसने बड़ी शांति के साथ कहा,
"तुमको गलतफहमी हो रही है। मुझे सागर से कोई लेना देना नहीं है। मैं तो उसकी कैद में हूँ। मजबूर हूँ। वह मुझे अपनी रखैल बनाना चाहता है। मैं तो यहाँ से भाग जाना चाहती हूँ।"
अलीशिया ने गुस्से में कहा,
"झूठ बोल रही हो तुम। सागर मुझे बहुत चाहता है। तुम उसे अपनी ओर खींचना चाहती हो।"
मीरा ने बिना उत्तेजित हुए उसी तरह शांति से कहा,
"ज़रा सोचो.... मैं तो यहाँ से निकल नहीं पाती हूँ। फिर उसे अपने जाल में कैसे फंसाऊँगी। वही है जो मेरे पास आया था। उसने मेरे सामने प्रस्ताव रखा कि मैं उसकी बन जाऊँ। पर मैं ऐसा नहीं चाहती। मैं मजबूर ना होती तो पहले ही यहाँ से भाग गई होती। मेरा दम घुटता है यहाँ।"
अलीशिया पर मीरा की बात का कुछ असर हुआ। वह कुछ शांत पड़ी। मीरा ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा,
"मेरी और तुम्हारी दोनों की किस्मत दांव पर लगी है। मैं तो मजबूर हूँ। सागर की कैद में हूंँ। तुम ही कुछ करो। मैं सागर की रखैल बनकर नहीं रहना चाहती हूँ।"
अलीशिया को अब इस बात का यकीन हो गया था कि मीरा सचमुच सागर खत्री से दूर भागना चाहती है। मीरा का यहाँ से चले जाना ही उसके लिए फायदेमंद था। पर वह भी मजबूर थी। उसने कहा,
"मेरी भी स्थिति तुम्हारे जैसी ही है। बड़ी मुश्किल से सिक्योरिटी इंचार्ज को झूठ बोलकर यहाँ आई हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ।"
मीरा समझ गई कि इस समय अलीशिया जिस स्थिति में है उसका फायदा उठाकर यहाँ से निकला जा सकता है। उसने कहा,
"मुझे मजबूरी में ना चाहते हुए भी सागर की बात माननी पड़ेगी। फिर वो तुम्हारे ऊपर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देगा। फिर हम दोनों ही एक आदमी के कारण दुख भोगेंगे। मेरे लिए ना सही अपने लिए कुछ करो। फिलहाल तुम्हारी स्थिति मुझसे अच्छी है।"
मीरा की यह बात अलीशिया को सही लगी। अगर उसे सागर खत्री के जीवन में जगह बनाए रखनी थी तो मीरा को यहाँ से भगाना ज़रूरी था। लेकिन इस काम में खतरा था। उसने कहा,
"मैं क्या कर सकती हूँ। तुम्हारे पास आने के लिए ही मुझे कितनी कठिनाई हुई। अगर सागर को पता चल गया तो मुझे मार डालेगा।"
मीरा ने कहा,
"वो तो तब भी नाराज़ होगा जब उसे पता चलेगा कि तुम यहाँ मेरे पास आई थी। अगर मुझे कोई रास्ता नहीं मिलेगा तो मुझे उसकी बात माननी पड़ेगी। हो सकता है कि बाद में उसकी रखैल बनकर मुझे इस सबकी आदत पड़ जाए। पर यह तय है कि तुम उसकी नज़रों से हट जाओगी। तब वह तुम्हें यहांँ से निकाल भी सकता है।"
यह सुनकर अलीशिया गुस्से में बोली,
"उससे पहले मैं तुम्हें मार दूँगी।"
मीरा ने सख्त लहज़े में कहा,
"बेवकूफी की बात मत करो। मुझे मार देना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा। मुझे मार देने से तुम्हारी समस्या हल नहीं होगी। सागर तुम्हें मार देगा। लेकिन अगर तुम भागने में मेरी मदद करो तो हो सकता है कि वह फिर से तुम्हारे नज़दीक आ जाए। मैंने तो अपने आप को भाग्य के हवाले कर दिया है। अब जो भी होगा सह लूँगी। तुम सोचकर देख लो।"
अलीशिया को मीरा की बात समझ आ रही थी। पर अभी इतनी जल्दी कुछ तय नहीं कर पा रही थी। उसे जल्दी जाना भी था। डर रही थी कि सागर खत्री ना आ जाए। उसने मीरा को कोई जवाब नहीं दिया। चुपचाप वहांँ से चली गई।
अलीशिया ने जाते समय कुछ कहा नहीं था। लेकिन मीरा समझ रही थी कि जो कुछ भी उसने कहा था उसका असर उस पर हुआ था। अब बस वह भगवान से मना सकती थी कि अलीशिया उसे भगाने का रिस्क लेने को तैयार हो जाए। एक बार वह यहाँ से निकल जाए तो फिर एक नई ज़िंदगी शुरू करने के बारे में सोचेगी।
अंजन सागर खत्री की राह देख रहा था। उसने तय कर लिया था कि वह बिना किसी संकोच के सीधी सीधी बात करेगा। सागर खत्री से पूँछेगा कि वह उसकी मदद करेगा या नहीं। लेकिन बहुत देर हो गई थी सागर खत्री अभी तक लौटकर नहीं आया था। हार कर वह अपने कमरे में जा रहा था कि तभी अलीशिया आ गई। अंजन को देखकर उससे बोली,
"वह लड़की जो ऊपर है तुम्हारी गर्लफ्रेंड है ?"
अंजन समझ नहीं आया कि अचानक वह यह क्यों पूँछ रही है। उसने कहा,
"तुम्हारा मतलब मीरा से है। वो मेरी गर्लफ्रेंड थी। लेकिन उसने मुझे धोखा दिया।"
"जानती हूंँ। लेकिन अब उसकी वजह से मेरी जिंदगी पर असर आ रहा है।"
अंजन समझ गया कि वह ऐसा क्यों कह रही है। फिर भी उसने कहा,
"उसका तुम्हारी ज़िंदगी से क्या लेना देना ?"
अलीशिया चिढ़कर बोली,
"उसकी वजह से सागर मुझसे दूर हो रहा है। वह उसे अपनी रखैल बनाना चाहता है। तुम्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है ?"
यह सुनकर अंजन के दिल में दर्द हुआ। लेकिन उसे छिपाकर बोला,
"जिसने मुझे धोखा दिया उसके साथ कुछ भी हो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
अलीशिया ने कहा,
"लेकिन मुझे फर्क पड़ रहा है। उसकी वजह से सागर के दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी।"
अंजन यह समझ नहीं पा रहा था कि यह सारी बातें करके अलीशिया उससे चाहती क्या है। उसने कहा,
"साफ साफ बताओ। तुम मुझसे क्या चाहती हो ?"
"मैं चाहती हूँ कि तुम मीरा को यहाँ से ले जाओ। जिससे सागर का मन उसकी तरफ से हट जाए।"
एक क्षण के लिए अंजन ने उसकी बात पर विचार किया। फिर बोला,
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम्हारे साथ या उस मीरा के साथ क्या होता है। मैं सागर से दुश्मनी क्यों लूँ।"
अपनी बात कहकर अंजन कमरे में चला गया। अलीशिया को उम्मीद थी कि मीरा की खातिर शायद अंजन उसकी मदद करे। पर उसकी बात सुनकर वह निराश हो गई।
अपने कमरे में लौटकर अंजन अलीशिया की बात पर विचार करने लगा। सागर खत्री मीरा के साथ जो करना चाहता था वह उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उसे ऐसा लगता था कि यह उसकी हार है। पर वह कुछ नहीं कर पा रहा था। इस समय उसके लिए खुद को उस मुसीबत से निकालना ज़रूरी था जिसमें वह फंसा था। अभी उसे सागर खत्री की बहुत ज़रूरत थी। वह उसके खिलाफ नहीं जा सकता था।
हालांकि जब अलीशिया ने कहा कि सागर खत्री मीरा को रखैल बनाना चाहता है तो उसे ऐसा लगा था कि जैसे सागर खत्री उसके आत्मसम्मान को पैरों तले कुचलना चाहता है। वह अंदर ही अंदर तड़प उठा था। पर अलीशिया के सामने उसने अपने दिल की बात उजागर नहीं की। उसने ऐसा दिखाया कि जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अपने कमरे में आने के बाद उसका मन उसे धिक्कार रहा था। उसके मन में आ रहा था कि क्या वह वही अंजन है जो कभी शेर की तरह जीवन जीता था। किसी की मजाल नहीं होती थी कि उसके साथ कुछ गलत बात कर सके। आज वह गीदड़ बना हुआ है। सागर खत्री उसके आत्मसम्मान को चुनौती दे रहा है। पर उसमें विरोध करने की हिम्मत नहीं है।
उसे लग रहा था कि भले ही मीरा उसकी ना हो। लेकिन उसके सामने ही अगर सागर खत्री उसे अपनी रखैल बना लेता है तो वह उसकी मर्दानगी पर एक गाली की तरह होगा।
यह विचार आते ही वह तड़प उठा।