क्या दादाजी! आप फिर से आज सिगरेट लेकर बैठ गए,तरुन ने अपने दादाजी से कहा।।
इतने दिन हो गए,तुम लोगों के मना करने पर मैनें सिगरेट को हाथ नहीं लगाया लेकिन आज बहुत मन कर रहा है बेटा! मिस्टर चोपड़ा बोले।।
लेकिन आपको पता है ना! कि आप किस बिमारी से जूझ रहे हैं,तरून ने पूछा।।
हाँ,बेटा! तभी तो मन कर गया,क्या पता मेरी जिन्दगी का आखिरी दिन कब आ जाएं,मिस्टर चोपड़ा बोले।।
दादाजी! आपको कैंसर हुआ है और वो भी आखिरी स्टेज पर हैं आप! फिर भी ये जह़र आपने अपने मुँह पर लगाया,तरून ने कहा।।
जानता हूँ....सब जानता हूँ...इसलिए तो आज का दिन सुकून से गुजरना चाहता था,मिस्टर चोपड़ा बोले।।
लेकिन ये सुकून आपकी जान भी तो ले सकता है,तरून बोला।।
तो क्या हुआ? जिन्दगी के आखिरी दिन सुकून होगा और होगी मेरें चेहरे पर करोडों की मुस्कुराहट,अगर एक सिगरेट इतना कमाल कर दे तो मेरी नज़र में ये तो कुछ बुरा ना होगा,मिस्टर चोपड़ा बोले।।
मिस्टर चोपड़ा की बात सुनकर तरून का मन कुछ पसीज सा गया,उसे लगा कि अगर एक सिगरेट दादाजी को मन की शाँति दे सकती है तो सिगरेट पीने में कोई बुराई नहीं और उसने अपने दादा जी से कहा कि केवल आज के दिन उन्हें छूट है वो कुछ भी कर सकते हैं और कुछ भी खा सकते हैं।।
मिस्टर चोपड़ा ,तरून की बात सुनकर बहुत खुश हुए और बोले तो आज मुझे अपनी पसंद का खाना भी खाना है,जिसे खाए हुए महीनों हो गए।।
अपने दादा जी की खुशी के लिए तरून ने आज उनकी सभी फ़रमाइश़े पूरी कर दी और उसने देखा कि आज उसके दादा जी के चेहरें पर अ़जीब सा सुकून था जो महीनों से उनके चेहरे पर उसने नहीं देखा था।।
अब रात हो चुकी थी,ठंड का मौसम था इसलिए मिस्टर चोपड़ा बोलें___
चल तरून ! आज बगीचे में आज जलाकर कुछ देर बातें करते हैं।।
तरून मान गया और अपने दादा जी के लिए बगीचें में आग जलाई और दोनों दादा पोते ने खूब ढ़ेर सारी बातें की।।
मिस्टर चोपड़ा ,तरून से बोले....
पता है तरून! आज एक अजीब सा एहसास हो रहा है,आज मैनें सबकुछ अपने मन का किया,ना जाने क्यों आज सुबह से ये लग रहा था कि ये मेरी जिन्दगी का आखिरी दिन है।।
ये कैसी बातें करतें हैं आप दादाजी! आज आप इतने स्वस्थ लग रहे हैं,इतने खुश लग रहे हैं तो आज कैसे आपकी जिन्दगी का आखिरी दिन हो सकता है,तरून ने कहा।।
सुकून है तभी तो ऐसा एहसास हो रहा है,दुःख में मरे तो क्या मरें,मज़ा तो तब हैं ना! जब मरते समय भी चेहरे पर मुस्कान हो,मिस्टर चोपड़ा बोले।।
आपकी बातें तो मेरी समझ के परे हैं दादाजी!तरून बोला।।
तभी घर के लैंडलाइन की घण्टी बजी और तरून बोला कि दादा जी आप यहीं बैठिए,मैं फोन रिसीव करके आता हूँ.....
तरून जब फोन करके मिस्टर चोपड़ा के पास लौटा तो वो अपनी कुर्सी पर अचेत लेटे थे चेहरे पर एक मुस्कुराहट लेकर,उन्हें देखकर तरून के होश उड़ गए क्योंकि मिस्टर चोपड़ा की रूह अब इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी,शायद आज उनकी जिन्दगी का ये आखिरी दिन था जो उन्होंने अपने सारें शौक पूरे करके दिलखुश और गर्मजोशी के साथ गुजारा।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा....