mind vs heart in Hindi Short Stories by राजेश ओझा books and stories PDF | दिमाग बनाम दिल

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दिमाग बनाम दिल



मंहगू, छोटे भाई सहतू को जैसे ही हमेशा की तरह थाने से छुड़वा कर लाया ,घर वाले पिल पड़े..पत्नी बोली..


"तुम्हारे तो बीबी बच्चे हैं नही..बस जो कमाओ सब इन्हीं के ऊपर उड़ा दो"


महंगू कोई जवाब ना देकर नल पर हाथ मुह धोने चले गये थे..


महंगू के पिता जब मरने को हुये थे तो महंगू को अपने पास बुलाकर बोले थे..


"महंगू तुम बड़े हो..सहतुआ नालायक निकल गया..उसे अपने भविष्य की चिन्ता नही है..उसे भाई की तरह नही अपने बेटे जैसा रखना.."


बाप की अन्तिम इच्छा पूरी करना मंहगू के लिये चारोधाम के पुण्य जैसा था..नालायक सहतू को ढर्रे पर लाने के लिए महंगू ने हर वह प्रयत्न किया जो एक बाप कर सकता है..पर स्वभाव की प्राकृतिक अवस्था यह है कि वह बदलती नही..'कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नही होती'..सहतू को न सुधरना था न सुधरा..बड़े बुजुर्गों ने सलाह दी..'बैल कितना भी विगड़ैल हो जुआठा गले में पड़ते ही सुधर जाता है..विवाह कर दो इसका '..


विवाह तो कर दिया पर 'राम लगाइन जोड़ी, एक आंधर एक कोढ़ी ' सहतू की बहुरिया सहतू से बीस निकली..महंगू की दुलहिन जब कलह और किचकिच से परेशान हो जातीं तो खाना-पीना छोड़ देतीं..पर महंगू से कुछ न कहतीं..

खाना-पानी छोड़ना ही आसान लगता..


महंगू धर्म संकट में थे..एक तरफ अपनी पत्नी और अपने बच्चे..दूसरी तरफ बाप को दिया हुआ वचन..घर का कलह जब जीवन समाप्त करने की हद तक पहुँच गया तो महंगू ने सहतू के लिये अलग मकान बनवा दिया..

खेती-पाती ठीक थी..गुजारा ठीक से चल रहा था..भले ही सहतू के घर का भी खर्चा उन्हें उठाना पड़ता पर घर में किसी चीज की परेशानी नही थी..


पड़ोसी के घर में सुख आ जाने से अगले पड़ोसी के घर की शान्ति खदबदाने लगती है..कुछ कुछ बदचलन होने लगती है..पड़ोसियों ने महंगू की दुलहिन का कान भरना शुरू किया..'पूरी जिन्दगी का ठेका ले रखे हो तुम लोग , तुम्हारे भी एक लड़का है,कुछ उसके लिये भी सोचा है कि नही '

महंगू की दुलहिन पर असर हुआ..उन्होंने विरोध भी किया पर ना मंहगू को मानना था ना माने..जैसे कर रहे थे वैसे ही करते रहे..वे अक्सर लोगों से कहते-'मरने पर बाप से नजर मिला सकूंगा अब '..पर सहतू के चाल चलन की वजह से महंगू के घर का वजट गड़बड़ा जाता..इस बार उसे छुड़ाने की पैरवी में बिटिया के दहेज के लिये रखे पैसे में से महंगू को कुछ निकालना पड़ा..जिससे पूरा परिवार मंहगू के विरोध में खड़ा हो गया..महंगू जैसे ही नल से हाथ मुह धोकर आये और चाय मांगी तो पत्नी गरजते हुये बोलीं..

"जाकर सहतू के यहाँ चाय मांगो..यहाँ कौन बैठा है आपका "


महंगू बोले कुछ नही बस आंख में आंसू लिये पत्नी को देखते रहे..पत्नी ने कहा "फिर नाटक शुरु आपका..काहे हम सबको भावनात्मक कलाबाजी दिखा रहे हो..?"


मंहगू उठे..पत्नी के पास आकर धीरे से बोले.."अब तुम भी नही समझोगी मुझे..तुम्हारी बात मेरी बुद्धि मानती है..पर दिल नही मानता..क्या करूं.. सहतुआ भी उसी कोख से पैदा हुआ है जिस कोख से मैं पैदा हुआ हूँ.. भाई है मेरा क्या करूं..? "

कहकर अपने कमरे में चले गये..महंगू की दुल्हिन जानती थीं कि वे वचन से बंधे हैं.. वचन के चलते प्राण जाने तक का पौराणिक आख्यान उन्होंने संत महात्माओं के मुह से सुन रखा था..सोचते ही सिहर गयीं और तुरंत मंहगू के लिये चाय बनाने चली गयीं..

पूरा परिवार बैठा एक दूसरे को देखता रह गया




राजेश ओझा