खुले मैदान के पास बड़े बरगद के पेड़ के नीचे एक झुण्ड कुत्ते गुर्राते हुए घूम रहे हैं । रात खत्म होने वाला है और आसमान धीरे धीरे साफ हो रहा है । अभी सूर्य की किरणें नहीं निकली लेकिन कुछ रात जगे चिड़िया बीच - बीच में आवाज़ कर रहे हैं ।
कुत्तों का झुण्ड कुछ खोज रहा है । उनके स्वाभाविक भौंकने की आवाज के उलट वो सभी गूं - गूं करके उस बरगद के पेड़ के नीचे एक विशेष जगह अपने नाखुनों से मिट्टी खोद रहे थे । पांचो कुत्ते ही अपने पैर से खोदते हुए और भी ज्यादा गुर्रा रहे हैं । पास ही बड़ा सड़क है उसपर एक छोटा ट्रक शहर की तरफ जा रहा था । सड़क से ही चाँद की रोशनी में दिख रहा है कि पेड़ के नीचे कुत्तों का झुंड कुछ कर रहा है । अस्वाभाविक कुछ है हालांकि यह समझा नहीं जा रहा लेकिन उनके गुर्राने की आवाज और पागलों की तरह मिट्टी खोदने को देख स्वाभाविक नहीं बोला जा सकता । ट्रक आकर रुका रास्ते के पास , ट्रक नहीं इसे छोटा
पिकअप ट्रक बोला जा सकता है । उसी में से एक आदमी निकल पेड़ की तरह आगे बढ़ा । रोशनी स्पष्ट नहीं है इसीलिए हाथ में एक टॉर्च लेकर वो आगे बढ़ रहा है ।
" हट , हट " बोलकर उन कुत्तों को भगाने लगा । कुत्तों ने अचानक मिट्टी खोदना बंद कर दिया ।
टॉर्च की रोशनी जिधर से आ रही है उधर ही एक साथ पांचों कुत्ते देखने लगे । कुत्तों ने फिर से गुर्राना शुरू कर दिया । यह देख ट्रक से आए आदमी ने चलना बंद कर दिया । वह आदमी समझ गया है कि कुछ ही दूर खड़े पांच कुत्तों ने उसपर हमला कर दिया तो वह नहीं बचेगा । लेकिन फिर भी उसने कौतूहल वश टॉर्च की रोशनी को कुत्तों के ऊपर से हटाकर गड्ढे की तरफ करते ही वह डर से कांपने लगा । वह आदमी चिल्ला नहीं पा रहा , शरीर में मानो ताकत नहीं है । उसके पैरों तले जमीन खिसक गई है सामने के गड्ढे को देखकर ...उसे ऐसा लगा कि अभी वह बेहोश हो जाएगा ।
इसी समय गाड़ी से हॉर्न की आवाज सुनाई दी । गाड़ी के अंदर से एक आदमी चिल्लाया ,
- " क्या हुआ ? वहाँ पर क्या है ? "
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कुछ दिन पहले ही दुर्गा पूजा समाप्त हुआ है । अक्टूबर महीने के हल्की ठंडी हवा में मनीष को चाँद की रोशनी बहुत सुंदर लग रहा है ।
मनीष पीडब्ल्यूडी इंजीनियर है । कुछ दिन पहले ही वह इस जगह पर ट्रांसफर होकर आया है । किस्मत अच्छा था इसीलिए बाजार में ही उसे इस फ्लैट में रूम मिल गया था । यहां बाजार ही थोड़ा भीड़ वाला इलाका है । एक थाना है , पोस्ट ऑफिस है , एक छोटा टॉकीज है और कुछ छोटे रेस्टोरेंट्स भी हैं । लगभग सब कुछ ही है लेकिन दिन का भीड़ व लोगों का शोर रात में न जाने कहां गायब हो जाते हैं । जितना रात बढ़ता है उतना ही ज्यादा बाजार के रास्ते सुनसान हो जाते हैं ।
बाजार पार होते ही एक तरफ नदी और दूसरी तरफ सड़क धीरे - धीरे शहर की ओर जा रहा है । उधर ही आधा घंटा बाइक से जाने पर मनीष का ऑफिस है ।
यहां नदी के किनारे चंडी घाट नामक जगह है । वहाँ पर एक जागृत देवी काली मंदिर है । यहां नवरात्र में धूम - धाम से पूजा होती है और देवी मां का आशीर्वाद लेने दूर-दूर से लोग भी आते हैं ।
मनीष इस समय जिस छत पर टहल रहा है वह फ्लैट तीन तल्ले का है । बाजार से 100 मीटर दूर है और इस फ्लैट में ज्यादा रूम नहीं है । ग्राउंड फ्लोर में मकान मालिक रहते हैं । मनीष ने वहां पर एक लड़की को देखा है । मकान मालिक एक बड़े तांत्रिक हैं । उनका नाम तांत्रिक गोविंद है । मनीष ने देखा है कि कई लोग अपने समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास आते हैं । वो ग्राउंड फ्लोर के दो रूम में रहते हैं परिवार में कितने लोग हैं वह नहीं जानता । उसके ऊपर पति - पत्नी और एक छोटे लड़के के साथ दो रुम लेकर एक परिवार रहता है । और तीसरे तल्ले पर अमित एक रूम में रहता है । अमित का बाजार में एक इलेक्ट्रिक का दुकान है । tv , पंखा , रेडिओ इन सबको ठीक करता है और साथ में मोबाइल भी रिचार्ज करता है । 26 - 27 उम्र होगा , बहुत ही मिलनसार व हंसमुख लड़का है । लेकिन बहुत ही नशा करता है । उसके पास वाले रूम में मनीष रहता है । हर फ्लोर में एक कॉमन बाथरूम और रूम बहुत ही बड़े हैं । एक आदमी आराम से रह सकता है । छत पर ऊपर एक छोटा सा अटारी है । उसका टूटा ताला दरवाजे पर झूल रहा है । उसमें झांकने से दिखता है कि वह कबाड़ , टूटे समान व पुराने किताबों से भरा हुआ है । लेकिन उसमें इतना धूल भर गया है कि उसके अंदर जाने का किसी को मन नहीं ।
मनीष प्रतिदिन रात को खाने के बाद यहां छत पर टहलता है । रात 11 बजे के बाद पूरा इलाका सुनसान हो जाता है कोई गाड़ी नहीं चलता बीच-बीच में एक- दो ट्रक शहर की ओर से आते हैं इसके बाद फिर वही सुनसान इलाका ।
इस अटारी में न जाने कितने इतिहास समेट कर रखे गए हैं । हल्के कोहरे से ढंके इस इलाके में अकेले छत पर खड़े होकर सोचने से मनीष के रोंगटे खड़े हो जाते । लेकिन एक सिगरेट जलाकर वह खुद को संभाल लेता है ।
सामान्य दिन वह ऑफिस से लौटने के बाद 9 बजे खाना खा लेता । इसके बाद रूम में आकर रात के 10 बजे छत पर जाता । अमित भी उस समय छत पर आता है । उसे भी अकेला अच्छा नहीं लगता एक बैचलर के साथ होने से उसका भी समय बीत जाता । आधे घंटे छत पर रहता फिर न जाने कहाँ चला जाता है । मनीष कुछ देर मोबाइल चलाता अथवा अपनी मां को फोन करता व किताब पढ़ते हुए 11 बजे के आसपास नीचे जाकर रूम में सो जाता । लेकिन आज वह छत पर आया है रात के 11 बजे क्योंकि आज
उसके छत पर आने का एक विशेष कारण है । इस समय के लिए उसने दो दिन प्रतीक्षा किया है ।
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पॉलीथिन से मुड़े हुए मृत शरीर के पास झुककर इंस्पेक्टर रवि ने कुछ देर छानबीन किया । इसके बाद मृत शरीर से चेहरा ना हटाते हुए उन्होंने घरवालों से पूछा ,
- " कब हुआ यह सब ? "
उपस्थित भीड़ में से एक आदमी ने आगे आकर उत्तर दिया - " रात को देरी से घर लौटता है किसी दिन खाता है और किसी दिन बिना खाए ही सोने चला जाता है । कल वह किस समय आया मैं नहीं जानता । सामने का दरवाजा खुला ही रहता है वही लौटकर बंद करता था । कल रात को कोई आवाज भी नहीं सुनाई दिया । सुबह उसकी मां जब चाय देने गई तब यह सब दिखा । किसने किया , कब किया कुछ भी नहीं जानता । "
अंतिम बात को बोलते हुए आदमी लगभग रोने ही लगा था । देखकर समझा जा सकता है कि वह विक्टिम के पिताजी हैं । भीड़ में एक महिला सोफे पर अवचेतन होकर बैठी है । बहुत रोने के बाद थकी हुईं दिख रही हैं । शायद वही विक्टिम की मां हैं ।
इंस्पेक्टर रवि ने सभी से पूछताछ करके बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए व्यवस्था करने का ऑर्डर देकर नीचे चले आए । घर के बाहर आकर फोन निकाल उन्होंने किसी को कॉल लगाया । सुनकर पता चला कि बड़े ऑफिसर को कॉल लगाकर केस का डिटेल दे रहे हैं ।
" सर , इस इलाके में इसे लेकर लगातार तीन हत्याएं हुईं है । ऐसा इसके पहले यहां पर कभी नहीं हुआ । तीनों हत्याओं में कोई भी समानता नहीं है और हत्या करने का ढंग भी अलग है । पहला हरिहरपुर में सड़क किनारे बरगद के पेड़ के नीचे काट कर जमीन के अंदर गाड़ दिया था । दूसरी हत्या गले में रस्सी डालकर तालाब में फेंक दिया था और इस बार चेहरे पर पॉलिथीन से सांस रोककर मारा गया है । तीनों मैं कोई कनेक्शन नहीं है लेकिन मेरा मन कह रहा है कि हत्या की रात वहाँ जो भी था वह एक ही आदमी है । तीनों में केवल एक समानता है कि जिनकी हत्या हुई उनकी उम्र 35 से 40
के बीच में था । वैसे कोई स्थाई काम नहीं करता था । एक समय बहुत ही बदतमीज था लेकिन कुछ साल पहले ठीक हुआ । शायद किसी को हानि पहुंचाई थी उसी का वह बदला
ले रहा है ।....हां सर , खोजबीन कर रहा हूं । पहले के दो व्यक्ति के फॉरेंसिक रिपोर्ट से हत्यारे के बारे में कोई इंफॉर्मेशन नहीं मिला । इसमें क्या होता है देखता हूं लेकिन मेरा मन कह रहा है कि शायद एक और हत्या की संभावना
है । कोई कनेक्शन नहीं है फिर भी मेरा सिक्स सेंस बोल रहा है सर और हम उस हत्या को रोक नहीं सकते यह सोचकर और भी बुरा लग रहा है । नहीं सर मुझे ऐसा लग रहा है मैं यही बोलना चाहता हूं । ठीक है सर "
इतना बोलकर फोन को इंस्पेक्टर रवि ने पैंट में रख लिया ।
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मनीष ने दशहरा के अगले दिन ड्यूटी ज्वाइन किया था । सात दिन पहले वह इस फ्लैट में आया था । यहां किसी को नहीं पहचानता । पूरी तरह नई जगह इसीलिए केवल बाइक लेकर ऑफिस जाता है और लौटकर अपने काम से मतलब रखता । फ्लैट के नीचे एक चाय की दुकान है वहाँ सुबह के समय चाय पीता और कुछ दूर ही होटल है । वहीं से प्रतिदिन का भोजन करता । इस बाजार में सब कुछ मिलता है इसीलिए कोई असुविधा नहीं होती ।
लेकिन अमित किस समय दुकान खोलता है । कब रूम में रहता है किस दिन कहां अपने दोस्तों के साथ घूम रहा है मनीष को इस बारे में कुछ भी नहीं पता । असल में अमित का दुकान अच्छा चलता है । बीच- बीच में शहर से नए इलेक्ट्रॉनिक सामान लाकर अपने दुकान में रखता है । लोग खरीदते भी है उसके समानों का अच्छा सेल है । पैसे हमेशा रहते हैं इसीलिए शायद रात को अपने दोस्तों के साथ पीने - खाने कार्यक्रम करता होगा ।
जो भी है इससे मनीष को कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन सोचने वाली बात केवल एक है कि जब वह काम के लिए रूम से निकलता है अथवा लौटता है तो अमित एक बार जरूर मिल जाता । टेलीपैथी है क्या ? एक भी दिन मिस नहीं होता । यह कैसे संभव है ?
अमित कहता कि उसे शहर अच्छा नहीं लगता इसीलिए यहां पर दुकान खोला है । बीच-बीच में उसकी कुछ बातें मनीष को विश्वास ही नहीं होता । लेकिन लड़का दिल से अच्छा है ।
अब असल मुद्दे पर आता हूं ।
पहले दिन जब मनीष यहां पर आया तो उसने एक लड़की को देखा था ग्राउंड फ्लोर के कमरे में जाते हुए । उस लड़की के अंदर अपनी ओर आकर्षित करने की एक अद्भुत क्षमता है । उसके तरफ एक बार देखकर नजर हटाने का मन नहीं करता । इन 7 दिनों में लगभग 10 बार मनीष ने उस लड़की को देखा है । उस लड़की की उम्र लगभग 23 - 24 होगा । केवल सुंदर है यही नहीं उससे शायद ज्यादा ही कुछ है । वह रंग में ज्यादा गोरी नहीं है । बाल ज्यादा लम्बे नहीं कंधे से थोड़े बड़े । पतला फिट शरीर लेकिन उसकी गढ़न और भी आकर्षक है । घनी काली आंखें और नजरें कातिलाना है । दोनों होंठ तो और भी मायावी हैं । कहानियों की तरह होठों पर तिल नहीं है लेकिन पतला गुलाबी , लाल लिपस्टिक क्या पता । हर बार वह मनीष के सामने अचानक ही आ जाती है । कुछ सेकंड के लिए आँखे दो से चार फिर दोनों अपने काम से आगे निकल जाते । आमने सामने कभी नहीं मिली कि वह जाकर उससे कुछ बातें करे । इसके अलावा इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में रहकर उसमे जो समय बिताया है उसमें दूर तक किसी लड़की का कोई साया नहीं मिला । इसीलिए सामने आने पर वह क्या बोले उसे खुद ही नहीं पता ।
फ्लैट के मेन गेट से अंदर आते ही सीढ़ी है और सीढ़ी से आगे जाने पर उस लड़की का कमरा है । उसके पिताजी को मनीष ने कई बार देखा है बहुत ही गंभीर व कठोर चरित्र के दिखते हैं । इसीलिए मनीष को उस तरफ जाने का साहस नहीं होता । सीढ़ी द्वारा सीधा चला जाता है अपने रूम में । पिछले 2 दिन से वह ध्यान दे रहा है कि रात को छत से आने के बाद मनीष जब 11 बजे के आसपास सोने जाता है उस समय छत पर कोई रहता हैं , टहलता हैं , शायद फोन से बात भी करता है और एक लड़की के हंसने की आवाज कभी-
कभी सुनाई देती । कल रात को जब टहलने की आवाज बंद हुई उस समय जल्दी से दरवाजा खोलते ही मनीष ने देखा वह लड़की सीढ़ियों से नीचे जा रही थी । उतरते हुए उसने मनीष को एक बार पीछे मुड़कर देखा । धीमी रोशनी में जितना भी मनीष ने उसे देखा उतना रात की नींद उड़ाने के लिए काफी था । लेकिन इतने पास से मिलकर भी वह बात नहीं कर पाया । इसी का वह अफसोस करने लगा । आज इसीलिए वह रात के 11 बजे छत पर आया है । मनीष जानता है कि वह लड़की इसी समय छत पर आती है । आज वह जरूर बात करेगा । कम से कम नाम ही पूछ लेगा ।
लेकिन अचानक एक बात उसे याद आई और दिल टूट गया । वह लड़की इतनी रात को किसके साथ बात करती होगी । जरूर बॉयफ्रेंड से इसीलिए इतनी रात तक जागकर क्या फायदा । हां होगा बॉयफ्रेंड लेकिन बात करने में क्या हर्ज है ।
लेकिन सब गुड गोबर , लड़की की जगह अमित छत पर आ गया ।
" तुम इस समय यहां पर ?" आश्चर्यचकित होकर मनीष ने पूछा ।
" तुम पहले नहीं आए इसलिए मैं भी थोड़ा देर से आया । इस घर में तुम्हारे साथ ही केवल बात हो पाती है । इसके अलावा इस फ्लैट में कौन - कौन रहता है मुझे कुछ भी नहीं पता । केवल मैं यहां पर सोने के लिए आता हूं । "
अमित से उसे कोई बैर नहीं लेकिन आज उस वक़्त वह किसी दूसरे की प्रतीक्षा कर रहा था इसलिए उसे थोड़ा बुरा लगा ।
मनीष बोला - " तुमको मैं आते जाते देखता हूं । "
" मेरे सोने का कोई टाइम नहीं है भाई , शायद जब तुमसे मिलता हूं उसी समय मैं सोकर उठता हूं । "
इसके बाद वह अटारी के पास वाली सीढ़ी से उतरते हुए बोलता रहा , - " आज शायद मेरा यहां आना सही नहीं हुआ । सही कहा न । गुड नाइट बॉस "
उत्तर सुने बिना ही अमित नीचे चला गया । आश्चर्य , मन की बात भी पढ़ लेता है क्या यह लड़का ?
मनीष यही सोचते हुए छत पर खड़ा रहा ।…..
अगला भाग क्रमशः.....