Aag aur Geet - 17 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | आग और गीत - 17

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आग और गीत - 17

(17)

राजेश पहाड़ियों में था ।

उस जगह पर था जहां से मेकफ और मदन नष्ट होने वाले हवाई जहाज के काठ कबाड़ उठा लाये थे । वापसी के समय ही उसने यह समझ लिया था कि टकराव अवश्य होगा, क्योंकि वापस जाने की आज्ञा मिल चुकी थी और बिना सफलता प्राप्त किये वापस जाना संभव नहीं था ।

जहां हवाई जहाज के काठ कबाड़ मिले थे, वहां अब तो कुछ नहीं था मगर ऐसी वस्तु मिल गई थी जिसने उसे उलझन में डाल दिया था, और वह वस्तु थी सुरंगे बिछाने के तार ।

वह तार वैसे ही थे जैसा उसे आडिटोरियम में मिला था ।

उन्हीं तारों के सहारे राजेश आगे बढ़ता चला गया । जब अंधेरा हो गया तो उसने टार्च जला ली और उसकी रोशनी में आगे बढ़ने लगा । वास्तव में वह यह देखना चाहता था कि तारों का सिलसिला कहां जाकर समाप्त होता है या इनका सिलसिला कहां से आरंभ हुआ है ।

दूसरी और उसके सामने देश की फौजी चौंकियां थीं, फासिले के विचार से तो वह इतनी निकट थीं कि अगर राजेश वहां से पत्थर का टुकड़ा फेंकता तो वह उन्ही पर गिरता मगर मध्य में असमतल पहाड़ियां थीं ।

धीरे धीरे राजेश को यह विश्वास होता गया कि बाकायदा सुरंगें बिछाई गई है और इनके कारण काफ़ी तबाही आ सकती है, कई जगह यह सुरंगें अपूर्ण थी जिसका यही अर्थ हो सकता था कि सुरंगें बिछाने का काम जारी है ।

अब वह केवल यह देखना चाहता था कि किस स्थान से उन्हें आपरेट किया जायेगा, अतः उन्ही के सहारे जब वह पहाडियों से नीचे उतर रहा था तो उसी समय टामीगन की तड़तडाहट सुनाई दी थी ।

राजेश चौंक कर खड़ा हो गया । फायरिंग की आवाज़ें उसी ओर से आई थीं जिधर उसकी टीम वालों ने छोलदारियां लगा रखी थी ।एक क्षण के लिये तो वह बौखला कर रह गया था, मगर दुसरे ही क्षण उसके चेहरे से दरिंदगी झलकने लगी । दांत पीसता हुआ वह इस प्रकार दौड़ा जैसे सफ़ेद इमारत को धराशयी कर देगा ।

अचनाक उसे फिर रुक जाना पड़ा क्योंकि सफ़ेद इमारत अर्थात महल के पिछले भाग की ओर उसे मंद सी पिली रोशनी नजर आई थी । रोशनी कुछ इस प्रकार इधर उधर हो रही थी जैसे कोई आदमी मशाल हाथ में उठाये हुये उसे हिला रहा हो । वह समझ गया कि वह निशाता ही हो सकती है, क्योंकि उसने उससे वही मिलने ला वादा किया था ।

वह इत्मीनान के साथ मुडा और महल के पिछले भाग पर पहुंचने के लियी चल पड़ा ।

मगर कुछ हो दूर गया होगा कि उसे मैदान में कई मशालों की रोशनी नजर आई । वह फिर रुक गया और उन्ही मशालों को देखने लगा जो धीरे धीरे उसी ओर बढ़ती चली आ रही थी जहां वह रुका था ।

और फिर उसने देखा कि कुछ आदमियों ने कुछ आदमियों को अपने घर में ले रखा है । घेरे के चारों ओर चार आदमी मशालें लिये हुये है और यह काफिला महल की ओर जा रहा है ।वह वहीँ एक चट्टान की आड़ में बैठ गया और जरा सा सर निकाल कर उसी आने वाले काफिले की ओर देखने लगा ।

निशाता की ओर भी ध्यान लगा हुआ था मगर उसको इस बात का विश्वास था कि जब तक वह नहीं पहुंचेगा तब तक निशाता वहीँ रहेगी, जायेगी नहीं, वैसे निशाता के प्रति उसे यह उलझन अवश्य थी कि आखिर निशाता तमाशा देखने क्यों नहीं आई थी ।

आने वाला काफिला क्रमशः निकट आता जा रहा था ।

फिर वह काफिला इतना निकट आ गया कि मशाल की रोशनी में काफिले के हर आदमी की सूरतें नजर आने लगीं, सबसे पहले उसने बेन्टो को पहचाना जो काफिले के आगे आगे अकड़ता हुआ चल रहा था, फिर उसने अपने तमाम साथियों को भी पहचान लिया जिनकी मुश्कें कासी हुई थी । वह सोचने लगा कि आखिर यह हुआ कैसे, सबके सब कैसे गिरफ़्तार हो गये, क्या मोंटे ने गद्दारी की ।

यह सोचता रहा और काफिला उसके सामने से गुजरता रहा ।

जब वह सब महल के बिलकुल निकट पहुंचने वाले हुये तो राजेश पत्थर की ओट से बाहर निकला और महल की ओर बढ़ने लगा । निगाहें काफिले ही पर जमी हुई थी ।

जब काफिला महल में दाखिल हो गया तो राजेश दौड़ने लगा । वह जल्द से जल्द महल के पिछले भाग पर पहुंच जाना चाहता था क्योंकि अब निशाता ही एक ऐसी रह गई थी जो उसके काम आ सकती थी, उसकी सहायता कर सकती थी । साथी तो गिरफ्तार ही हो गये थे, मगर अब उसका दिल भी धड़कने लगा था, कुओंकी मशाल की वह रोशनी अब नजर नहीं आ रही थी जिसको उसने निशाता की मशाल की रोशनी समझा था । वह सोच रहा था कि अगर निशाता न मिली तो क्या होगा, इन्तजार करते करते निराश होकर कहीं वापस न चली गई हो ।

मगर जब वह महल के पिछले भाग की ओर पहुंचा तो खुशी के कारण खिल उठा, क्योंकि कोई मशाल लिये खड़ा था मगर वह ऐसी जगह खड़ा था कि महल के सामने से आने जाने वालों को मशाल की रोशनी नहीं दिखाई दे सकती थी । यद्यपि मशाल वाले का चेहरा नहीं दिखाई दे रहा था मगर राजेश को विश्वास था कि वह निशाता ही होगी ।

अचानक उसके मनमे यह संदेह उत्पन्न हुआ कि वह निशाता के बदले कोई ओर भी तो हो सकता है, संभव है निशाता को किसी ने देख लिया हो, वह गिरफ़्तार कर ली गई हो फिर उसे यातनायें देकर उससे सब कुछ पूछ लिया हो और अब उसे गिरफ़्तार करने के लिये कोई दूसरा आदमी मशाल लिये हुये खड़ा हो ।

“देखा जायेगा ।” वह मन ही मन बडबडाया और फिर ज़मीन पर लेट गया और पेट के बल रेंगता हुआ मशाल की रोशनी की ओर बढ़ने लगा ।

जिसने भी मशाल उठा रखी थी उसकी पीठ उसी ओर थी जिधर से राजेश रेंगता हुआ चला आ रहा था, इसलिये राजेश देखा नहीं जा सकता था ।

जब राजेश मशाल की रोशनी के निकट पहुंचा तो एक बार फिर हर्षित हो उठा, क्योंकि मशाल लिये निशाता ही खाड़ी थी । मशाल की रोशनी निशाता के चेहरे पर साफ़ तौर से पड़ रही थी ।

राजेश उसके निकट पहुंच कर खड़ा हो गया मगर निशाता को पता न चल सका । उसकी निगाहें अब भी सामने ही की ओर लगी हुई थीं और उसके चेहरे पर परेशानी के गहरे लक्षण थे ।

राजेश ने पीछे से उसकी दोनों आंख बंद कर लीं ।

निशाता के हाथ से मशाल छूट कर नीचे गिर गई, साथ ही वह चीखी भी थी ।

“कौन ? ”

“मैं हूँ ।” राजेश ने कहते हुये उसकी आँखों पर से हाथ हटा लिये ।

निशाता पल्टी और फिर राजेश से लिपट कर सिसकियाँ भरने लगी ।

“चुप हो जाओ ।” राजेश ने उसे अलग करते हुये कहा “अगर किसी के कानों में आवाज पड़ गई फिर हम दोनों गिरफ़्तार कर लिये जायेंगे ।”

निशाता मौन हो गई । कदाचित बात उसकी समझ में आ गई थी ।

“यह तुम रोने क्यों लगी थी ।” राजेश ने पूछा ।

“तुमने इतनी देर क्यों कर दी ।” निशाता ने पूछा ।

“मोबरानी के आदमियों ने मेरे साथियों को पकड़ लिया था और उन्हें बंदी बना कर महल में लाये है । उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा था कि वह हट जायें तो मैं तुम्हारे पास आऊँ, बस इसी में देर हो गई ।”

“सच कह रहे हो ना ।” निशाता ने पूछा ।

“बिलकुल सच ।” राजेश ने कहा फिर पूछा “तुम तमाशा देखने क्यों नहीं आई थी ? ”

“कैसे आती ।” निशाता ने कहा “मेरा बाप पकड़ लिया गया है, सब ने कोशिश की कि उसे छोड़ दिया जाये मगर वह उजली भेड़ राजी नहीं हुई । वह मेरे बाप को मार डालना चाहती है ।”

“चिंता न करो, मेरे साथियों के साथ वह भी छूट जायेंगे ।” राजेश ने कहा फिर पूछा “तुम मुझे अंदर ले चलोगी ? ”

“अवश्य हमारे बहुत से साथी हो गये है ।”

“तुमने हमारा तमाशा दूर से भी नहीं देखा ? ”

“नहीं ।” निशाता ने कहा “मगर तुम बार बार यही सवाल क्यों कर रहे हो ? ”

“बात यह है कि जिसने हमें तमाशा दिखाने की आज्ञा दिलवाई थी मैं उसके बारे में जानना चाहता हूँ, क्या तुम उसे जानती हो ? ”

“क्यों नहीं, वह मोबरानी का सबसे बड़ा सलाहकार है ।”

“उसने तुम्हारी सहायता नहीं की ? ”

“मोबरानी इस समय दुसरे के अधिकार में है, किसी की कोई बात सुनती ही नहीं । उसे उल्लू का मॉस खिला दिया गया है ।”

“अच्छा यह बताओ कि महल में जहां कैदी रखे जाते है वह स्थान तुम जानती हो ? ”

“हां, जानती हूँ ।” निशाता ने कहा ।

“इस समय वहां कितने कैदी है ? ” राजेश ने पूछा ।

“अब तक तो केवल दो ही थे ।” निशाता ने कहा “एक वह जो हवाई चिड़िया से बच गया था और दूसरा मेरा बाप, तुम्हारे साथी पता नहीं वहीँ ले जाये गये है या कहीं और, वहीँ से तुम महल ले खास हिस्से में भी पहुंच सकते हो ।”

“तुम मेरे साथ रहोगी ना ?” राजेश ने पूछा ।

“हां, मैं न रहूंगी तो तुम पहुंचोगे कैसे ?”

“कोई हमें रोके टोकेगा तो नहीं ?”

“नहीं ।”

“यह तुम कैसे कह सकती हो ?”

“इसलिये कह रही हूं कि मैंने सबको मिला लिया है । मगर यह तो बताओ कि तुम अकेले करोगे क्या ?”

“साथ तो रहोगी ही, देख लेना ।”

“अच्छा तो फिर चलो ।” निशाता ने कहा और राजेश को लिये हुए महल में दाखिल हो गई ।

इमारत के अंदर दाखिल होने पर राजेश को यह अनुमान हुआ कि प्राचीन काल के किसी आक्रमणकारी राजा ने सामयिक रूप से छावनी के तौर पर बनवाई गई होगी जो अब कबायलियों का महल कहलाने लगी थी ।

कई स्थानों पर हाथ में मशालें लिये हुए औरतें खड़ी नजर आ रही थी मगर न तो राजेश को उन्होंने रोका था और न उससे कुछ पूछा था । इससे राजेश ने यही नतीजा निकाला था कि निशाता ने यह बात सच ही कही थी कि उसने लोगों को मिला लिया है ।

महल के ऊपरी भाग पर पहुंचने के बाद निशाता एक ओर बनी हुई सीढ़ियों की ओर बढ़ी ।

“अब कहां चल रही हो ?” राजेश ने पूछा ।

“तहखाने में ।” निशाता ने कहा ।

“तहखाने में क्या है ?”

“कैदी है ।”

राजेश ने फिर कुछ नहीं कहा और निशाता के पीछे चलता रहा ।

जहां से सीढ़ियाँ आरंभ हो रही थीं वहां अत्यंत खौफनाक शक्ल वाले दो आदमी दोनों ओर खड़े थे और एक एक औरतें हाथों में जलती हुई मशालें लिये खड़ी थीं । राजेश ने सोचा यहां कुछ न कुछ अवश्य होगा । इसलिये उसने बहुत ही मंद स्वर में निशाता से कहा ।

“यह दोनों आदमी कुछ गड़बड़ तो नहीं करेंगे ?”

“नहीं । तुम निश्चिंत रहो ।” निशाता ने कहा “यह भी हमारे साथी हैं ।”

दोनों सीढ़ियाँ उतरने लगे ।

राजेश ने महल में दाखिल होते समय यह तो देखा था कि जिन तारों को वह देख चुका था वह महल के अंदर तक आये थे । मगर उसके बाद वह तार फिर उसे कहीं नहीं दिखाई दिये थे । इससे उसको विश्वास हो गया था कि जो भी कार्रवाई की जायेगी वह महल ही के किसी प्रमुख स्थान से की जायेगी ।

तहखाने में उसे दो आदमी दिखाई दिये । जिनमें से एक निशाता का बाप था और दूसरा वह आदमी था जो बहुत ही रहस्यपूर्ण कागजात लेकर एक अत्यंत जटिल मिशन पर उसी हवाई जहाज से जा रहा था जो यहां दुर्घटना का शिकार हो गया था ।

दोनों उदास और ज़ख्मी थे । वह आंखें बंद किये पड़े थे । आहट पाकर उन्होंने आंखें खोल दी थीं । निशाता का बाप निशाता को देखते ही उठ कर खड़ा हो गया था और निशाता को लिपटा लिया था । उसकी आंखों से आंसू भी बह रहे थे और स्वर में क्रोध और आवेश था । वह कह रहा था ।

“बेटी ! मर जाना मगर यह सफ़ेद कुत्ते जो कहें वह कभी न करना ।”

“ऐसा ही होगा बाबा !” निशाता ने कहा फिर जरा सा बगल हटती हुई बोली “उनसे मिलो बाबा ।”

निशाता के बाप ने राजेश की ओर देखा फिर निशाता से पूछा ।

“यह कौन है बेटी ?”

“यह वही आदमी हैं बाबा जिनके बारे में मैंने तुम्हें बताया था ।”

निशाता का बाप आगे बढ़ा और राजेश के सर पर हाथ फेरता हुआ भर्राये स्वर में बोला “जुग जुग जियो बेटा ! तुमने मेरी बेटी की इज्ज़त बचाकर हमें ख़रीद लिया है । हम बाप-बेटी तुम्हारा यह एहसान जिन्दगी भर नहीं भूल सकेंगे ।”