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मीरा अब इस कैद में रहते हुए ऊब चुकी थी। यहाँ से भागना नामुमकिन था। अगर वह सुइट का दरवाज़ा खोलकर कॉरीडोर में कदम भी रखती तो फौरन सीसीटीवी कैमरे की पकड़ में आ जाती। सिक्योरिटी अलर्ट मोड पर आ जाती। जब पहले दिन उसे यहाँ लाकर रखा गया था तो उसने ऐसी कोशिश की थी। तब फौरन ही सिक्योरिटी गार्ड ने आकर उसे अपनी गन प्वाइंट पर ले लिया था।
इस कैद में वह उस परिंदे की तरह फड़फड़ा रही थी जो आसमान में उड़ने का आदी रहा हो और उसे अचानक पिंजड़े में रहना पड़ रहा हो। सबसे बड़ी उलझन इस बात की थी कि वह यह नहीं जानती थी कि उसके साथ क्या होने वाला है। पहले तो उसे लगा था कि अंजन उसकी जान ले लेगा। पर इधर कई बार मौका होने पर भी उसने ऐसा नहीं किया। पिछली बार जब उसने अंजन को इतना भला बुरा कहा था तब भी उसका हाथ उसकी गर्दन तक आकर रुक गया था। जिस तरह से बेबस होकर वह यहाँ से गया था उससे मीरा समझ गई थी कि वह उससे प्यार करता है।
अंजन उससे अभी भी प्यार करता है जानने के बाद मीरा और भी अधिक उलझन में पड़ गई थी। वह जानती थी कि अंजन इस समय मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। उसका अपना भविष्य खुद ही खतरे में है। पूरी संभावना है कि पुलिस उसे गिरफ्तार कर ले। ऐसे में उसके साथ वह अपना भविष्य कैसे जोड़ सकती थी। वह सोच रही थी कि जिस नाव का डूबना तय हो उस पर सवार होना बेवकूफी ही कहलाएगा।
वह अंजन के साथ अपना भविष्य नहीं जोड़ना चाहती थी। पर समस्या यह थी कि इस समय वह कोई भी फैसला लेने के लिए आज़ाद नहीं थी। उसके साथ क्या होने वाला है यह वक्त को तय करना था। ऐसे में वक्त काटना उसके लिए कठिन हो रहा था।
डोरबेल बजी। मीरा को लगा कि यह समय खाना लेकर आने का तो है नहीं। इसका मतलब यह अंजन होगा। वह परेशान हो गई कि अब वह क्या करने आया है। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने सागर खत्री खड़ा था। सागर खत्री अंदर आते हुए बोला,
"उम्मीद है सब समय पर मिल जाता होगा। कोई दिक्कत नहीं होगी तुमको।"
मीरा ने व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कहा,
"नहीं इस आरामदायक पिंजड़े में सबकुछ मिल जाता है। बस पंख फैलाने को नहीं मिलते हैं।"
उसका तंज़ सुनकर सागर खत्री हंस दिया। उसके बाद गंभीर होकर बोला,
"बात तो है तुम्हारे अंदर। अभी भी तेवर बाकी हैं।"
मीरा ने भी उसी अंदाज़ में उत्तर दिया,
"यह यकीन हो गया है कि जान नहीं बचनी है। इसलिए डर छोड़कर तेवर अपना लिया।"
"अच्छा किया। अब अगर तेवर की जगह समझदारी से काम लोगी तो ऐश से रहोगी।"
अपनी बात कहकर सागर खत्री अजीब तरह से मुस्कुराया। उसकी आँखों में हवस थी। मीरा समझ गई कि उसका इशारा क्या है। उसने गुस्से में कहा,
"मुझे इस तेवर के साथ मरना अधिक पसंद है।"
उसका यह जवाब सुनकर सागर खत्री का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। दांत पीसते हुए बोला,
"बेवकूफ हो तुम। अभी खुद ही कह रही थी कि पिंजड़े में हो। पंख नहीं फ़ैला सकती हो। तो यह क्यों नहीं समझ रही हो कि मैं चाहूँ तो कुछ भी कर सकता हूँ। मेरे इस किले के बाहर तुम्हारी चीख पुकार नहीं पहुँच सकती है। इसी के भीतर तुम घुट कर रह जाओगी। फिर भी मैंने तुम्हें ऑफर दिया।"
वह रुका। मीरा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा। बालों से पकड़ कर उसका चेहरा अपनी तरफ करके बोला,
"तेवर नहीं समझदारी तुम्हारे काम आएगी।"
उसकी धमकी से मीरा डर गई थी। पर अंतिम हथियार के तौर पर उसने कहा,
"तुम्हें पता है ना कि अंजन मुझे कितना चाहता है। वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं।"
उसकी यह बात सुनकर सागर खत्री पागल की तरह हंसने लगा। उसकी यह हंसी मीरा को और डरा रही थी। कुछ देर जी भरकर हंसने के बाद वह चुप हो गया। अचानक उसकी आँखों में हैवानियत उतर आई थी। वह बोला,
"जिसकी तुम बात कर रही हो आजकल वह मेरी दया पर जी रहा है। उसकी हालत ऐसी है कि अगर मैं उसे अपने जूते चाटने को कहूँ तो वह भी कर देगा।"
उसने मीरा को परे ढकेल दिया। वह लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी। सागर खत्री ने उसी हैवानियत से कहा,
"तुमको एक मौका देकर जा रहा हूँ। अच्छी तरह सोच लो। मेरी बात मान लोगी तो आराम में रहोगी।"
यह कहकर वह चला गया।
सागर खत्री के जाने के बाद मीरा फर्श पर पड़ी अपनी मजबूरी पर रोने लगी। सागर खत्री उसे जिस तरह की ज़िंदगी देना चाहता था वह तो अंजन के साथ रहने से भी अधिक भयानक थी। वह मजबूर थी। इस समय वह कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं थी। अपनी मजबूरी में वह ऊपरवाले से खुद के लिए मौत मांगने लगी।
मुंबई में जो कुछ भी हो रहा था उसकी खबर अंजन को लग चुकी थी। उसने सागर खत्री से रिक्वेस्ट की थी कि वह उसकी मदद करे। वह मुंबई में अपनी पहचान के कुछ लोगों से बात करके इस स्थिति से निकलने की कोशिश करना चाहता है। सागर खत्री ने उसकी मदद करने के बदले में शर्त रखी थी कि वह मीरा के बारे में उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर ले। अंजन के पास कोई और रास्ता नहीं था। अपने आप को इस मुसीबत से बचाना उसके लिए बहुत ज़रूरी था। उसने उसकी बात मान ली।
सागर खत्री की इस हरकत पर अंजन के मन में उसके लिए नफरत ने जन्म ले लिया था। अभी तो उसके लिए सब सहना मजबूरी थी। पर उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि जैसे ही वह अपनी पुरानी स्थिति में लौटेगा, इस बात का बदला ज़रूर लेगा।
इस समय वह बहुत छटपटा रहा था। वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी उसका मुंबई में बैठे उन लोगों से संपर्क हो जाए जिनसे उसे सहायता की उम्मीद थी। पर सागर खत्री ने अभी तक इस सिलसिले में कुछ नहीं किया था। वह बहुत परेशान था। समझ नहीं पा रहा था कि सागर खत्री कुछ करना भी चाहता है या उसे बेवकूफ बना रहा है। उसने सागर खत्री से बात करने का मन बनाया।
सागर खत्री अपने बिस्तर पर लेटा मीरा के बारे में सोच रहा था। वह अपने और मीरा के विषय में बहुत रंगीन कल्पनाएं कर रहा था। उसके पास लेटी अलीशिया उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए कभी उसके बालों को सहला रही थी तो कभी उसे चूम रही थी। मीरा के खयालों में खोए हुए सागर खत्री को उसका यह सब करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने एक दो बार उसे रोकने की कोशिश की। पर अलीशिया नहीं मानी। इससे चिढ़ कर सागर खत्री ने उसे धक्का देकर बिस्तर से नीचे गिरा दिया।
ज़मीन पर गिरी अलीशिया स्तब्ध सी उसकी ओर देख रही थी। सागर खत्री ने अपनी उंगली उसकी तरफ करके गुस्से में कहा,
"खबरदार जो आज के बाद मेरी बात को नज़रंदाज़ किया। उठाकर उसी गंदगी में फेंक आऊँगा जहाँ से आई हो।"
यह कहकर वह गुस्से में कमरे से बाहर चला गया।
इधर कई दिनों से अलीशिया महसूस कर रही थी कि सागर खत्री का मन उससे हट गया है। सागर खत्री के कारण ही उसे यह ऐशो आराम मिला था। वह नहीं चाहती थी कि वह उसके आकर्षण से बाहर जाए। इसलिए उसे रिझाने की हर कोशिश करती थी। पर सागर खत्री उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देता था।
जाते समय वह उसे धमकी दे गया था कि जिस जगह से उसे उठाकर लाया है वहीं छोड़ आएगा। अलीशिया उसके बटलर की बेटी थी। बहुत आकर्षक थी। पर एक बहुत बुरी शादी में फंस गई थी। वहाँ मार पिटाई, गाली गलौज और पैसों की तंगी थी। सागर खत्री ने उसे उस नर्क जैसी ज़िंदगी से निजात दिलाई थी। वह वापस उसी ज़िंदगी में नहीं जाना चाहती थी। उसकी धमकी से वह डर गई थी।
अलीशिया को भी अंदाज़ा हो गया था कि सागर खत्री में आए इस बदलाव का कारण वह लड़की है जो तीसरी मंजिल के सुइट में कैद करके रखी गई है। उसे यह भी पता था कि वह अंजन की प्रेमिका है जिसने उसे धोखा दिया था। पर अंजन उसे उसके किए की सज़ा नहीं दे रहा है।
मीरा के कारण उसकी ज़िंदगी में यह मुश्किल वक्त आया था। अलीशिया के मन में मीरा के लिए नफरत पैदा हो गई थी। वह उस लड़की को सबक सिखाना चाहती थी जो उसकी तबाही का कारण बन रही थी।
अलीशिया फर्श पर बैठी थी। अचानक उसे लगा कि मीरा बिस्तर पर आराम से लेटी है। उसकी तरफ देखकर हंस रही है। फिर वह बिस्तर पर उठकर बैठ गई। अलीशिया की तरफ उसी अंदाज़ में उंगली उठाई जैसे सागर खत्री ने उठाई थी। फिर उसी के अंदाज़ में बोली,
"यह बिस्तर मेरा है। तुम उसी फर्श के लायक हो। कभी सागर के नज़दीक आने की कोशिश मत करना।"
अपनी कल्पना में अलीशिया ने जो कुछ देखा उससे वह गुस्से से पागल हो गई। वह उठी। पागलों की तरह बिस्तर से चादर, तकिए निकाल कर ज़मीन पर फेंक दिए। ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी कि वह मीरा को कामयाब नहीं होने देगी।