Love Essay - Part 3 in Hindi Love Stories by Anand Tripathi books and stories PDF | प्रेम निबंध - भाग 3

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प्रेम निबंध - भाग 3

यह उन दिनों की बात है जब लोग कहा करते हैं कि संभल के चलो वरना जवानी में पैर फिसल जाएंगे। बस कुछ उनको ही फॉलो कर रहा था मैं।
लेकिन मेरे साथ कुछ अजीब घटने वाला था यह मुझे खुद नहीं पता था।
उस दिन मैं सुबह नहा धोकर आराम से स्कूल गया वहां पढ़ाई किया गपशप मारा और बहुत से दोस्तो के साथ बात चीत भी हुई। टीचर से शाबाशी भी मिली लेकिन मन अशांत था मेरे अंदर कुछ ना कुछ तो चल रहा था जो कि मुझे ही नहीं पता था इतना जरूर पता था। की आज मेरे बगल वाले रूम में कोई मेहमान आने वाला है बस इसी का इंतजार मुझे था लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वहां पर कोई लड़की मेहमान बनकर आने वाली है लेकिन फिर भी मैं काफी उत्सुक था मन में कई बातें चल रही थी कौन आएगा कैसा होगा कौन होगा कैसा व्यवहार होगा और भी बहुत कुछ दिन जैसे तैसे करके कट गए लेकिन शाम होते-होते मैं और भी ज्यादा अचंभित होने लगा मन की प्रगाढ़ता बढ़ने लगी और मुझे कुछ ना कुछ तो महसूस भी होने लगा यहां पर एक बात कहते हैं कि जब आप किसी से मिलने वाले होते हैं या किसी के संपर्क में आने वाले होते हैं तो अचानक से उसकी हवा कहीं ना कहीं आप को छूने लगती है और ऐसा ही हुआ उस दिन मेरे साथ मैं मस्त अपनी चाल में विद्यालय की छुट्टी पाकर और तीखे रास्तों पर भाई और पैरों की थाप लगाए हुए चला रहा था मुझे क्या पता था कि घर पहुंचने के बाद मुझे कुछ आश्चर्य मिलेगा। नीली बूसत नीली पैंट और हवा में लटकती हुई छोटी सी टाई मैं चला रहा था घर पहुंचा और मैंने धीरे से घर के दरवाजे को खटखटाया जैसे लगा हो कोई अचानक से सामने आ गया और जो दरवाजा खोलने आया था और सामने से जिस ने दरवाजा खोला वह कोई आया नहीं बल्कि कोई आई थी फिर क्या था बहुत देर तक मैंने उसकी आंखों में देखा और देखते रह गया उधर से बहुत ही हल्की और सुरीली आवाज में एक मीठा सा जवाब आता है अंदर आइए मैं गेट को दोबारा से बंद कर देती हूं मैंने नहीं सुना, फिर अचानक से एक बार और उन्होंने मुझसे कहा क्या हुआ अंदर आइए ना मैं हड़बड़ा उठा सपनों से बाहर आया मैंने कहा जी बिल्कुल मैं अंदर आता हूं आप गेट में कुंडा दे दीजिए और मैं शिरडी से होते हुए अपने कमरे में चला जाता हूं इतना आभास हो गया कि की मैंने इसको कहीं पहले देखा है लेकिन ऐसा कुछ था नहीं बस मेरे मन का वहम था। वह भी ऊपर आ गई और अपने कमरे में चली गई लेकिन मेरा मन जिस तरह से उनके लिए तड़प रहा था कि मैं दोबारा देखूं और उनसे कुछ बातें करूं लेकिन करता भी कैसे जान पहचान तो नहीं थी फिर मैं अपने काम में लग गया हाथ पैर और मुंह धुला। और मां के कहने पर खाना खाने बैठ गया आधी अचकन और आधी ही बाजू की कमीज पहने मैं बैठा हुआ था मुझे लग रहा था अभी इतनी सी उम्र में मुझे यह सब ख्याल क्यों आ रहे हैं लेकिन मन तो मन है वह माने तब ना और वह मन मुझे उन तक खींच ही ले गया खाना पानी खा कर छत पर चला गया थोड़ी सी शांति मन को आई मैंने सोचा होगा कोई हमें क्या है अभी मेरी यह सब करने की उम्र ही क्या है उसमें 11वीं में था हालांकि 17 से 18 साल के आसपास का था लेकिन फिर भी मेरे हिसाब से वह भी एक उम्र नहीं थी प्रेम की उस की पराकाष्ठा को समझने की और उसमें डूब जाने की इसलिए मैंने वह सब छोड़ कर और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू किया जैसे जैसे दिन बीतते गए और मैं पहुंच गया मुझे यह नहीं था कौन क्या कर रहा है कौन कैसा है मुझे अपने से मतलब था लेकिन जब जब वह सामने आती तब तब मेरे पैर बह जाते और मैं उनसे बचने के लिए धार्मिक किताबें पढ़ता और भी कई सारे तंत्र विद्या करता था एक दिन उनकी बड़ी बहन ने मुझे आवाज दी और बुलाया और कहा आनंद तनिक यहां आओ मैं बहुत सहमा सा था डरा सा था क्योंकि मैंने किसी को कुछ कहा ही नहीं ना कि उसे मेरी कोई बात हुई है अभी तक ऐसा इसलिए था क्योंकि हमारा समाज उसी विचारधारा का है कि अगर आप एक पल के लिए किसी लड़की से बात कर लेते हैं या उसका हाल-चाल पता करते हैं तो वह समाज के लोगों ने की आंखों में खटक ने लगता है आपका ऐसा कोई मनसा नहीं होती है फिर भी लोग निगाहें गलत करते हैं और बुराइयां फैलाते हैं लेकिन मैं इन सब से परे था मुझे लग रहा था कि मैंने कुछ गलत थोड़ी किया है और यह सोच कर मैं उनके कहने पर उनके कमरे में जा धमका वह पहली बार था जब मैं किसी लड़की के इतना करीब था उनकी बहन बोली भैया इनको कोई कोर्स करना है तो क्या आप इन को बताओगे की इनके लिए क्या ठीक रहेगा और क्या नहीं मैं काफी हैरान था उस दिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कहां हूं एक अजीब सा पल अजीब सी उलझन कि मैं उनको क्या बताऊं कुछ समझ नहीं आ रहा एक पल के लिए रुक जाता था फिर थोड़ा सा बोलता था लेकिन कुछ देर बाद में उन्होंने मुझसे पूछा क्या हुआ मैंने कहा कुछ भी तो नहीं उन्होंने कहा फिर कुछ बता क्यों नहीं रहे मैंने उनको तब बताया कि आप इनको कंप्यूटर और सिलाई का कोर्स करवा दीजिए मेरी बात मान कर उन्होंने उनका एडमिशन पास के एक इंस्टीट्यूट में करवा दिया फिर क्या था वो रोज़ सुबह को क्लास जाती और वहां से आती थी।
यह सिलसिला 1 साल के लिए चल पड़ा और मैं भी अपने काम में बिजी रहा बीच-बीच में उनसे मेरी जान पहचान धीरे धीरे बढ़ने लगी कभी भी मैंने इतना नहीं सोचा था हुई लड़की मेरी कभी इतना करीब होगी लेकिन इसमें हमारा दोस्त नहीं होता है सब मन का दोष होता है एक बार इश्क हो जाए फिर वह रोग बन जाता है आप उसके बिना रह नहीं सकते हैं अब हर रोज मेरी सुबह उनसे गुड मॉर्निंग कहने से लेकर और गुड नाईट तक चलती थी मुझे नहीं पता था कि यह सब क्या हो रहा है लेकिन जो भी हो रहा था मेरे मन को बड़ा सुकून मिल रहा था वह बहुत खुश थी और उनकी खुशी में मैं भी काफी खुश था
क्रमशः