MOHPAASH in Hindi Short Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | मोहपाश

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मोहपाश

आज का समय कलियुग कहा जाता है। वेद-पुराणों में युग चार युगों की अवधारणा है। उस कड़ी में यह चौथा और अंतिम युग है। इससे पहले तीन युग आकर चले गए, जो सत, त्रेता, द्वापर रहे थे। वैसे कलियुग में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिससे इस युग को अच्छा तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता।

आज अपराध बढ़ रहे हैं, दुर्घटनाएं अधिक हो रही हैं और सबसे बड़ी और हैरान करने वाली बात बच्चे अपने माता-पिता के ही नहीं हो रहे हैं। पुराने समय में जब बेटा पैदा होता था तो पिता कहते थे कि 'यह हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा'। आज बेटा सहारा बनता भी है लेकिन जब सहारा देने का वक्त आता है तो छोड़ कर चला जाता है।

वैसे इतिहास में इस धरा से जो जानेवालों की जब कहानी पढ़ते हैं तो पाते हैं कि प्रायः युवा युद्ध में ही वीरगति को पाते थे। बहुत ही कम युवा अकालमृत्यु को प्राप्त होते थे। आज के समय में सुबह का निकला यदि शाम को वापस आ जाए तो ईश्वर को अवश्य धन्यवाद देना चाहिए। समय अजन्मा है – कब, क्या हो जाए – कोई नहीं कह सकता। इस संसार में मोह-माया का बंधन सभी को जकड़े रहता है। जवान बेटे की मौत के बाद एक वृद्ध माता-पिता मोहजाल में फंस कर अपने बेटे के आने की राह देखते है।

मेरे ममेरे भाई का जो अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे, का देहावसान दुर्गापूजा में अष्टमी के दिन एक सड़क दुर्घटना में हो गयी थी। उनके जाने के लगभग एक वर्ष के बाद मुझे ननिहाल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। ननिहाल में सब कुछ ठीक से चल रहा था। सारी बातें पटरी पर आ गयी थीं। मुझे लगा कि अब दुःख की पुरानी बातों को सब भूल गए होंगे। लेकिन मेरी सोच गलत साबित हुई।

रात का वक्त था। सभी सो रहे थे। बाहर बरामदे में एनटीपीसी की सार्वजनिक ज्योति से उजाला फ़ैल रहा था। तभी मामीजी अपनी खांसी को रोकते हुए बोली, “ मुरारी रुको! उतर रही हूँ। आकर दरवाजा खोलती हूँ। लगता है, ‘वह’ आ गया है।”

नहीं, कोई नहीं आया है। – बूढ़े मामा दूसरे कमरे से ही बोले।

मामी – “अरे, आप जाकर दरवाजा खोलिए तो सही, अभी मुझे उसकी आवाज सुनाई दी है”।

कह तो दिया, कोई नहीं है। – अब मामा के स्वर में थोड़ी झुंझलाहट थी।

शायद नीचे अपने दोस्तों से बात कर रहा होगा। मामी मानने के लिए तैयार नहीं थी।

यदि आया है तो भीतर भी अवश्य आयेगा। आप बेमतलब में सभी की नींद खराब कर रही हैं।

आप जाकर दरवाजा तो खोल दीजिए – मामी फिर याचना भरे स्वर में बोल रही थी।

अब मुझे लगा कि उठकर देखना चाहिए। मामी के पास गया। उनसे उनका हाल पूछा। मुझे लगा कि वे शायद नींद में डर गयी होंगी। मगर वे जग रही थीं।

अब मुझसे रहा नहीं गया। हृदय को कठोर कर उन दोनों को कहा, “अभी तक आप दोनों सोए नहीं? रात बहुत हो गयी है। आप दोनों की बातचीत सुनकर उठकर आया। अब सो जाइए। कल ‘भैया’ के वार्षिक श्राद्ध के लिए भी तैयार होना है।

अब मामी निर्निमेष देख रही थी।