गौरी दोपहर में बच्चो को पढ़ा कर वापस घर लौट रही थी, अनाथालय से उसका घर लगभग दो किलो मीटर की दूरी पर था, रास्ते में वो ध्रुव के साथ बिताये उन सारे पलों को याद करते हुए आ रही थी, और वो यह सब सोचने में इस कदर मशरूफ थी के सामने से आ रही गाड़ी की हॉर्न भी उसे सुनाई नहीं पड़ रही थी, गाड़ी का ड्राइवर उसके पैर के बिलकुल करीब आकर ब्रेक लगाता हैं, गौरी सामने से आते गाड़ी को अचानक से देखकर डर जाती हैं, उसके हाथ में जो किताबे थी वो सारी उसके हाथ से छूट कर गाड़ी के ऊपर गिर गयी थीं, वो गाड़ी किसी और की नहीं बल्कि जाने माने बिजनेस मैन का बेटा राजवीर सिंघानिया की थी, राजवीर अपने पापा के बिज़नस के सिलसिले में आया था, कल कोर्ट की सुनवाई थी रघुवीर सिंघानिया की बनायीं हुई वसीयत के मुताबिक राजवीर अपने बिज़नेस में एक बार भी डिसीजन नहीं ले पाया था और नाही वो ऑफिस गया था अभी तक, पिछली बार उसे लास्ट चांस दिया गया था जब वो नूजीलैंड में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ था, इस बार उसके पापा के वकील ने बहुत मुश्किल से यह चांस दिलवाई थी मीटिंग अटेंड करने के लिए, इसीलिए वो अपने पापा के ड्राइवर महेश अंकल के साथ जा रहा था, गौरी का उससे टकराना महज एक इत्तेफ़ाक था लेकिन राजवीर अपने रास्ते की रुकावट समझ कर अपने जुबान पर काबू न रख सका,
राजवीर-" ब्लडी गवार लड़की तुम्हे सामने से आ रही इतनी बड़ी गाड़ी दिखाई नहीं देती........ आज का दिन ही बेकार हैं न जाने और क्या क्या देखना होगा"
गौरी- "हमें नहीं दिखी गाड़ी तो आपको भी एक लड़की आती हुई नहीं दिखी, यही से गाड़ी निकालना ज़रूरी था और इतनी जगह दिखाई नहीं देती आपको"
राजवीर-"हाउ डेयर यू टू से दैट, तुम अपनी आँख बंद करके क्यूँ चल रही हो सड़को पर"
गौरी-" हम अपनी आँख बंद करके नहीं चल रहे बल्कि आप लोगो को गाड़ी चलाने नहीं आती"
राजवीर-"अंकल इस बत्तमीज़ लड़की को बोल दो मुझसे मुँह न लगाएं"
गौरी-"आपके अंदर तमीज हैं की एक लड़की से कैसे बात करते हैं, एक गाड़ी नहीं ले लिया की खुद को जाने क्या समझने लगे हो "
ड्राइवर-"ऐ लड़की जाके अपना काम कर, तुझे नहीं पता तू किससे मुँह लगा रही हैं"
गौरी -"मुझे जानना भी नहीं हैं, होंगे किसी अमीर बाप के बिगड़ैल औलाद"
राजवीर-"शिट मैन शिट....... लीव अंकल हम भी किससे मुँह लग रहे है, एक पैर तो सही से काम कर नहीं रहा और ज़ुबान देखो कैसे चलती हैं इसकी"
राजवीर की यह अल्फाज़ गौरी के दिलो में कांटो की तरह चुभ गए थे लेकिन करे भी क्या घर जल्दी पहुंचना था उधर ध्रुव के आने का समय भी हो रहा था, गौरी अपने गुस्से पर काबू करके उन किताबो को उठा कर घर की तरफ चल दी, उधर राजवीर भी अपनी गाड़ी लेकर ऑफिस पहुंच गया, घर जाने के बाद गौरी के दिमाग में राजवीर की ही बातें गूंज रही थी सोच रही थी "एक और मौका मिले ताकि उस लड़के को सबक सिखा सकूँ, खुद को ना जाने क्या समझता था", शाम के समय ध्रुव और मीता को लेने गौरी और ध्रुव का छोटा भाई आकाश रेलवे स्टेशन गए, मीता सुन्दर थी पहनावे से लग रहा था बड़े घराने से थी, ध्रुव का चेहरा ख़ुशी से खिला हुआ था क्यूंकि वो जानता था गौरी ने मीता को उसके घर में रुकने में बहुत मदद की हैं, गौरी के मुँह पर भले ही ध्रुव और उसके रिश्ते को लेकर ना थी लेकिन दिल ही दिल उसे बहुत चाहती थी मीता को देख कर उसे अजीब सी बेचैनी भी होती थी लेकिन अपना दर्द कहे भी तो किस से, ध्रुव की ख़ुशी और मीता के लिए प्यार उसके आँखों से साफ़ झलक रहा था और गौरी खुद भी तो यही चाहती थी के ध्रुव किसी अच्छी लड़की से शादी करे और शायद इसकी यह ख़्वाहिश पूरी भी होने वाली थी, मीता ने ध्रुव और अपने रिश्ते का ख़ुलासा गौरी से किया, गौरी ने उसके इस फ़ैसले को सराहा और ज़िन्दगी भर ध्रुव का साथ देने के लिए वादा भी करवाया।
अगले दिन सुबह छह बजे
ध्रुव, मीता को अपना गांव दिखाने ले जा रहा था लेकिन वो यह भी चाहता था उसकी बचपन की दोस्त गौरी भी उसके साथ जाए, गौरी तो उसे पहले माना करती हैं लेकिन ध्रुव के ज़िद के आगे हार मान जाती हैं, गौरी, ध्रुव और मीता तीनो टमटम की सवारी लेते हैं और पुरे गांव का चक्कर लगाने लगते हैं उधर राजवीर अपनी फैक्ट्री पहुँचता हैं वहा वो आधे घंटे लेट पहुँचता हैं, पूरी फैक्ट्री का मुआयना करने के बाद वो दुबारा ऑफिस जाता हैं वहा उसके फैक्ट्री के सभी हेड स्टाफ पहले से पहुंचे हुए थे, रघुबीर के मरने के बाद उसकी फैक्ट्री पिछले डेढ़ महीने से लॉस में जा रही थी और इसी के सिलसिले में आज मीटिंग रखी गयी थी क्यूंकि अगर इसी तरह चलता रहेगा तो उसके सभी फैक्ट्री की ओनरशिप अपने आप ट्रस्ट के पास चली जाएगी, राजवीर जो कि पहली बार इस फैक्ट्री में कदम रखा था सारी बातें उसके सिर के ऊपर से जा रही थी लेकिन बेचारा करता भी क्या बहुत ध्यान से अपने स्टाफ की बातें सुन रहा था, सारी बातें सुनने के बाद वो सिर्फ हाँ में हाँ मिलाता रहा।
उसकी यह हाँ किसी चमत्कार से कम नहीं थी, अगले एक सप्ताह तक उसके फैक्ट्री का काम बहुत चला, राजवीर इसे अपनी उपलब्धि मान कर बहुत खुश हुआ और इस ख़ुशी को सेलिब्रेट करने के लिए अपनी गर्लफ्रेंड के साथ गोवा चला गया लेकिन कहते हैं न ऊंट के मुँह में जीरा वैसे ही राजवीर का वह एक डिसिशन था, व्यवसाय को आगे चलाने के लिए सिर्फ एक रणनीति काफी नहीं थी, राजवीर एक छोटी सी जीत की ख़ुशी छाती पीट-पीट कर मना रहा था, जब उसके बैंक में उसके लॉयर का ताला लगा तब जाके वो वापस बांद्रा आया, फिर से पुराने फ़्रस्ट्रेशन के साथ वो ऑफिस में हाज़री लगाने चला जाता था लेकिन इस बार उसका हाँ में हाँ मिलाना कोई काम नहीं आया, उसके कंपनी का शेयर बहुत तेज़ी से गिरता जा रहा था इस तरह अपने दौलत को जाते देख राजवीर अपनी नींद और सुकून खोता जा रहा था।
इक्कीस मई के दिन फैक्ट्री में एक इमरजेंसी बैठक रखी गयी, बैठक का मुख कारण था उसके स्टाफ लोगो का काम छोड़ कर जाना और उनके भय का कारण था इस फैक्ट्री का किसी और के हाथ में चले जाना, ऑफिस जाने के लिए राजवीर सुबह जल्दी उठ गया था, सुबह-सुबह ही बाकी स्टाफ पहुंच गए थे राजवीर भी ड्राइवर के साथ ऑफिस के लिए निकल गया, रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद पूरा रोड लोगो ने जाम कर रखा था कारण था एक गाड़ी वाले ने एक बुज़ुर्ग रिक्शेवाले को ठोकर मर दी थी जिसमे वो बुरी तरह जख़्मी हो गया था और उसका रिक्शा भी टूट गया था, राजवीर अपने ड्राइवर को पता करने के लिए भेजता हैं की आखिर लोगो ने रोड जाम क्यूँ कर रखा हैं, ड्राइवर उस भीड़ में घुस कर पता लगाता हैं और देखता हैं उस भीड़ के बीच सिर्फ एक ही लड़की की आवाज़ आ रही थी जो उस बूढ़े रिक्शे वाले के तरफ से बोल रहीें थी और वो लड़की थी गौरी, ड्राइवर जाकर राजवीर को सारी बातें बताता हैं, राजवीर गुस्से में अपने पर्स में पड़े पैसे निकालता हैं और उस भीड़ में जाकर उस रिक्शे वाले के हाथ में रख देता हैं और रास्ते से हटने के लिए कहता हैं, गौरी राजवीर को देख कर पहचान गयी थी और राजवीर भी उसे पहचान गया था वो उसको घूरते हुए अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गया इससे पहले गौरी कुछ बोलती वो अपनी गाड़ी का शीशा ऊपर करके वहां से निकल गया, गौरी गुस्से में वहां से चली गयी, राजवीर अपनी फैक्ट्री में जाकर वहां के कर्चारियों से बात करता हैं और इन मुश्किल घडी में उसका साथ न छोड़ने के लिए रिक्वेस्ट करता हैं, बात चीत के दौरान एक कर्मचारी सवाल करता हैं-
"साहब हम रुक जायेंगे लेकिन आप बताइये किस उम्मीद पर रुके, आप तो कभी-कभी यहाँ आते हैं हमारे पहले वाले मालिक ठीक थे, हम किसी ट्रस्ट के साथ काम नहीं करना चाहते हैं, हम सब आपके साथ मिलकर काम करना चाहते हैं अगर आप हमारे लिए इस फैक्ट्री को किसी और के हाथ में जाने से बचा ले तो"
राजवीर इतनी गंभीर बातें पहली बार सुन रहा था लेकिन यह बाते उसके होश उड़ा रहे थे, वो समझ रहा था की यह लोग भी उसके पापा की तरह इसकी अच्छाई चाहते हैं और यह लोग इसके साथ मिलकर काम करना चाहते हैं, राजवीर अपने मन से गढ़ कर एक टूटी-फूटी प्लान बताता हैं जिससे कोई खास फ़ायदा होने वाला नहीं था लेकिन उसके कर्मचारी उसकी हालात देख कर पिघल जाते हैं और एक मौका राजवीर को देते हैं, राजवीर अभी कुछ दिन पहले ही अपने पार्टी और अय्याशी वाले माहौल से बाहर आया था, अपनी दौलत को बचाने के लिए कुछ भी करना चाहता था साथ में उसे गरीब मजदुर के चेहरे भी दिख रहे थे जो उसके प्रति बहुत वफादार थे इस बार उसके वो बे-तुके सुझाव फैक्ट्री के बहुत काम आये, उसके कर्मचारी दिल लगा कर काम कर रहे थे पहले के मुकाबले उसके कारोबार में काफी बढ़त होने लगी थी, राजवीर की सैकड़ो शुगरमिल की फैक्ट्री थी, जिसका हेडब्रांच बांद्रा में था, कॉन्फ्रेंस के ज़रिये वो अपने ऑफिस से बाकी सभी ब्रांच के मैनेजर से बात करता था, राजवीर के बताएं गए सुझाव काफी कारगर साबित हुए, उस दिन से राजवीर हर एक-दो दिन बाद आकर अपने ऑफिस में बैठता था और आगे के लिए प्लानिंग करता रहता था, राजवीर अपने व्यवसाय के प्रति पहले से काफी बदल गया था वो इस बात को अच्छे से समझता था उसके सभी कर्मचारी उसके कहने पर कुछ भी कर सकते थे वो उनके इस विश्वाश को तोडना नहीं चाहता था, हालात फिर पहले जैसे होने लगी थी राजवीर अपने आँखों के सामने लॉस होते हुए देख रहा था, इसी सोच में डूबा राजवीर अपने सोफे पर बैठा हुआ था, ड्राइवर अंकल राजवीर को उदास देख कर पूछते है,
"बेटा जी, आप इतने परेशान क्यूँ हैं, आपके चेहरे पर यह मायूसी अच्छी नहीं लगती हैं"
"अंकल कैसे होगा, बहुत कोशिश कर रहा हूँ लेकिन फिर भी मैं इस काबिल नहीं हो पा रहा हूँ के सही ढंग से पापा के सपने पुरे कर सकूँ, पापा ने बहुत कोशिश किया था अपने जैसा बनाने के लिए लेकिन मैं, (आहे भरते हुए) मैं तो अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त था तब"
"बेटा जी, इस तरह उदास मत होइये, सब सही हो जायेगा, एक बात मेरे मन में खटक रही हैं पता नहीं आप यह सब मानेंगे या नहीं लेकिन कुछ तो बात हैं"
"कौन सी बात अंकल आप भी बता ही दीजिये, वैसे भी दिल पर बहुत बोझ हो रखा हैं एक और सही"
"नहीं ऐसी वैसी बात नहीं हैं, बेटा जी आपको याद हैं जब आप ऑस्ट्रेलिया से वापस आने के बाद पहली दफा ऑफिस गए थे तब एक लंगड़ी लड़की हमारी गाडी के सामने आ गयी थी"
"या, आई रिमेम्बर........उस मुंहफट लड़की को कैसे भूल सकता हूँ, वो जो उस दिन रिक्शे वाले के लिए रोड पर हंगामा कर रही थी"
"जी, वही लड़की........"
"कहना क्या चाहते हैं उस गवार लड़की को याद दिला कर"
"हमें ऐसा लग रहा हैं जब-जब वो लड़की आपसे टकराई हैं न तब-तब आपके काम में बहुत फ़ायदा हुआ, हमें........"
"(बीच में बात काटते हुए) - ओह कमऑन.......इम्पॉसिबल टू बिलीव ऑन दिस"
" कभी-कभी हमें उन बातो पर भी यकीन करना पड़ता हैं जो नामुमकिन हैं"
"लेटस गो....... हमें मीटिंग में जाना हैं"
Continue.............
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