कोरोना काल में बच्चों को संभालना भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के समान है। बच्चों को क्या चाहिए? प्यार-दुलार और खेलने की सुविधा। रोटी, कपड़ा और मकान तो सभी मनुष्यों को चाहिए। बाद वाली बातें उन्हें मिलेंगी ही। प्यार-दुलार और खेलने के साथी - दादा-दादी तो आजकल के बच्चों भाग्य में नहीं है। कारण समय एकाकी परिवार का है। संयुक्त परिवार का चलन करीब-करीब समाप्ति की ओर है। अतः अकेले रहने का दुःख या सुख उठाना है। वैसे आजकल माता-पिता ही दादा-दादी बन जाते हैं। नाना-नानी तो उन्हें प्राप्त हो ही जाते हैं। अपने रिश्तेदारों की एक सूची बनाकर देखा तो पाया कि अधिकांश के घर उनके ससुराल के सामने बने हैं। अतः मामा-मामी, मौसा-मौसी, नाना-नानी से बच्चे जन्म के पहले ही परिचित हो जाते हैं। खैर, चर्चा बच्चों को लेकर कर रहे हैं। सोचना यह है कि हम उनके साथ में क्या- इंटरनेट पर कार्टून के अलावा भी बहुत कुछ है जो आप साथ बैठकर देख सकते हैं। पुरानी एलबम्स, पुरानी बातें उनसे साझा कर सकते हैं। दादा-दादी के किस्से उन्हें सुना सकते हैं। उनसे कुछ छिपाएं नहीं है। शान के साथ उन्हें बता सकते हैं। ऑनलाइन क्लास में भी उनके साथ बैठ सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि शिक्षकों के साथ हम अभद्रता न करें। बहुत शिक्षक ऑनलाइन क्लास में अपने को सहज महसूस नहीं करते। उन्हें ऑनलाइन क्लास थोडा अटपटा लगता है। किसी भी हाल में हम बच्चों को अकेला बिल्कुल भी न छोड़ें। यदि बच्चे कुशाग्र बुद्धि के हैं तो उसे सृजनात्मक कार्यों में लगा सकते हैं। यदि बच्चे कार्य में लगे रहेंगे तो कुछ नुकसान नहीं होगा। हम केवल सिर्फ बच्चे का नहीं अपना भी दिनचर्या बनाकर रख लें। साथ ही उस पर अमल करें। दिनचर्या में खाने-पीने-खेलने और सोने का समय तय हो। बहुत-से घरों में देखा है कि महिलायें दिन के दो बजे स्नान करती हैं। रात के बारह बजे खाती हैं। सुबह के आठ बजे उठती हैं। इससे तो पूरा क्रम ही चौपट हो जाएगा। बच्चों पर इस दिनचर्या का विपरीत प्रभाव पड़ता है। लॉकडाउन में इन दिनों सबसे महत्वपूर्ण बात है टीवी-मोबाइल का कम उपयोग। दिनभर में कोई दो घंटे ऐसे निकालें जब घर के सभी सदस्य मोबाइल, टीवी पूरी तरह से बंद रखें। यह वह समय होगा जब आप सभी आपस में मिलेंगे, बातें करेंगे और बिना व्यवधान वक्त बिताएंगे। इससे परिवार के साथ बच्चों का सम्बन्ध और मजबूत होगा। उन्हें स्क्रीन टाइम लिमिट करने का महत्व भी बताएं, ताकि वे उसे खुशी-खुशी स्वीकार करें। उन्हें वो गेम्स खेलने के लिए मोटिवेट करें, जिसमें स्क्रीन का इनवॉल्वमेंट न हो। उनमें जीवन-मूल्यों के प्रति एक विश्वास का माहौल विकसित करना होगा। निर्णय लेने, सोचने, आदि क्षमता के बारे में बच्चों को बता सकते हैं। घर के मुद्दों पर उन्हें शामिल कर उनकी राय ले सकते हैं। खाना भी साथ खाना है। ध्यान रखना है कि किसी भी हालत में बच्चों से बिगड़कर बात नहीं करें। कई जगह चीखकर-चिल्लाकर बातें करते देखा है। बच्चे भी उसका ध्यान नहीं देते हैं। आज के समय में बच्चों को मार खाना पसंद है लेकिन झुकना पसंद नहीं है। पहले वाली बात अब नहीं रही। अब बच्चों का दिल बहुत जल्दी टूट जाता है।
हमारे बच्चे जैसा कि हम सभी ने महसूस किया है कि कोरोना को लेकर काफी सहमे-सहमे से रहते हैं। वे कोरोना संक्रमण के प्रति काफी संवेदनशील रहते हैं। उनके अंदर अनिश्चितता की स्थिति बनती है। एक अनजाना भय से वे डर जाते हैं। जाहिर है जब बच्चे डरे हुए रहेंगे तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होगी। बच्चे अवश्य कमजोर हो जायेंगे। कई अन्य बीमारियों से वे परेशान हो सकते हैं। अतः परिवार के सदस्यों का उत्तरदायित्व है कि बच्चे हमेशा हँसते-खेलते रहें। उनका जीवन तो बचाना ही है। साथ ही साथ प्रसन्न रखना है। कोई भी भुत-प्रेत आदि की कहानी बच्चों को न सुनाएँ। संभव हो तो रामायण-महाभारत की प्रेरक कहानी बच्चों को सुनाएँ। यदि बच्चे सुनना पसंद नहीं करते हैं तो उपरोक्त धर्मग्रंथों पर आधारित धारावाहिक को दिखा सकते हैं। रामायण की शिक्षा बच्चों में अवश्य ही सकारात्मक प्रभाव डालने में उपयोगी साबित होगी। श्रीराम के सभी भाई आपस में जुड़े रहने के लिए तत्पर रहते हैं। महाबली हनुमान में भक्ति कमाल की है। उसी प्रकार महाभारत तो महासागर ही है। यदि बच्चों की रूचि हम इसमें लगा सके तो फिर क्या कहने? धर्म तथा राजनीति का जैसा सम्बन्ध इसमें आया है – वह अन्यत्र नहीं मिलता है। साथ ही साथ जीवन-मूल्य के लिए इसमें गीता है ही। गीता के बारे में तो कोई संशय की जरूरत ही नहीं है।
बच्चों के सवालों का उत्तर देना भी के कला है। बहुत से माता-पिता झल्ला उठते हैं। वे भूल जाते हैं कि बच्चे मासूम होते हैं। उनके सवालों का अनमना उत्तर उन्हें परेशान कर सकते है। नचिकेता वाली कहानी हमें याद रखनी है। वाजश्रवा ने झुंझलाकर उत्तर दिया तो नचिकेता सीधे मृत्यु- देवता के पास चला गया। अतः हम जो भी जानकारी साझा करें वह बिल्कुल प्रामाणिक हो। साथ ही वह सहज तथा सरल हो। अब छोटे बच्चों को गीता यदि समझानी है तो वह सरल शब्दों में ही समझानी पड़ेगी। बोध कहानियों को पंचतंत्र आदि के माध्यम से हम समझा सकते हैं। एकदम विशद व्याख्या तो बच्चे को समझ में आएगी नहीं तथा हमारी कवायद बेकार में जायेगी।
बच्चों को सरकारी योजना के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए। एक बच्चा ऑक्सीजन की कमी के बारे में पूछ रहा था। उसे दूर करने के लिए सरकार क्या कर रही है? प्रश्न सुनकर मैं अचंभित हो गया। तत्काल उसे ऑक्सीजन एक्सप्रेस के बारे में बताया। अपने देश में सनसनी फैलानेवाली ख़बरों को अधिक दिखाया जाता है। अच्छे क़दमों की जानकारी भी मीडिया को जनता के साथ साझा करना चाहिए। जैसे ही बच्चे को ऑक्सीजन एक्सप्रेस के बारे में बताया तो वह आश्वस्त हुआ। एक मुस्कान उसके चहरे में तैर गयी। मैंने भी राहत की सांस ली। समाजसेवी संगठनों द्वारा किये गए कार्यों के बारे में भी बताया। कैसे गुरूद्वारे सब में लंगर की व्यवस्था भूखे, दीन-हीन लोगों के लिए की जा रही है। इससे उन्हें संतुष्टि मिलती है। समाज के लिए कुछ करने की भावना भी बलवती होती है।
बच्चों की दैनिक गतिविधियों पर भी ध्यान देना है। उन्हें यदि सकारात्मक किस्म का कोई शौक आया है तो करने देना है। उदाहरण के लिए यदि बच्चे बागवानी करना चाहते हैं तो करने देना है। इसमें कुछ बुराई नहीं है। ध्यान यह रखना है कि इस वक्त का कितना हम सकारात्मक इस्तेमाल कर सकते हैं। यही निवेश हमें आगे फल देगा। यदि आज हम चूक गए तो फिर पछताने से कुछ फायदा भी नहीं मिलने वाला है। जीवन अहम् है तथा भागमभाग है। अतः इस भागमभाग जीवन से प्रकृति ने कुछ समय परिवार के साथ बिताने के लिए दिया है।
अतः संक्षेप में हम यही कह सकते हैं कि हर हाल में बर्दाश्त करते हुए बच्चों को सम्भालना है। शेष ईश्वर पर छोड़ देना है। जो होने का है वह होना है।