Tyag in Hindi Moral Stories by amit kumar mall books and stories PDF | त्याग

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त्याग

बात कुछ दशक पुरानी है। जब नौकरी की तलाश में इलाहाबाद जाने वाला हर छात्र , यह मानता था कि वह कलेक्टर जरूर बनेगा और धर्मवीर भारती के गुनाहों के देवता की कर्म भूमि पर, उसे भी कोई लड़की , दोस्त बनकर जरूर मिलेगी , केयर करेगी , प्यार भी करेगी क्योकि उस समय तक कदाचित , जस्ट फ्रेंड , हाफ गर्लफ्रैंड और गर्ल फ्रेंड का प्रचलन नही था , जैसे आज है।
राकेश उन हज़ारो छात्रों में से एक था , जो इलाहाबाद में कलेक्टर बनने आया था । उसकी पृष्ठभूमि भी उन हज़ारो लोगो की तरह थी जिनके पिताजी खेती करते थे और खेती से इतना ही मिल पाता था कि उनका जीवन चलता रहे । लड़कियों की शादी में जमीन बंधक रखना पड़ता था और कभी कभी तो बेचना पड़ता था । एक जोड़ी बैल, एक गाय , एक भैंस, एक बछरू दरवाजे पर थे। खेती के लिये 10 बीघा जमीन थी । बड़ा वाला बीघा था। किंतु 10बीघा में बांगर , कछार , और बगीचा - सब था।कछार में एक फसल होती थी। बगीचा आम का था , जो तीन साल के लिये ठेके पर उठा दिया जाता था।जिसमे हर साल डेढ़ कुंतल आम और हज़ार रुपए मिलता था , जिससे प्रेमचंद जी के शब्दों में , परिवार का धरम और मरजाद चलता था।
पैसिंजर ट्रैन में ,मेल से कम पैसे का टिकट लगता था , इसलिये राकेश पैसिंजर ट्रेन से ही, गांव से इलाहाबाद आता था। घर से गांव के सड़क की दूरी , डेढ़ किलोमीटर था अर्थात लगभग एक मील पर सड़क थी । वहां पहुंचकर पुल की रेलिंग पर बैठकर, बस का इंतजार करता। बस पर चढ़ाने के लिये कभी कोई घर से आता तो उससे बात करता , यदि कोई घर से न आता तो सड़क पर भैंस चराने वाले गांव के लड़कों से बाते कर ,समय पास करता। बस निकटवर्ती कस्बे पहुँचाती ।वहाँ से लूप लाइन की ट्रेन पकड़ ,जंक्शन रेलवे स्टेशन पहुचता था , फिर वहाँ से ,इलाहाबाद की पैसेंजर मिलती थी। इतने लंबे यात्रा में केवल घर की पूड़ी , आलू की सूखी सब्जी और आम का अचार साथ देता था।इन सभी चीजों को एक पत्तल में बांधकर , एक झोला में रखकर, घर से निकलते समय अम्मा पकड़ा देती थी।
इलाहाबाद में उसका कमरा , अन्य छात्रों की तुलना में बड़ा था- क्योंकि पूरा शरीर फैलाकर लेटने के बाद भी हाथ भर , जगह रह जाती थी , और हाथ उठाने पर भी हाथ की उंगलिया छत से नही टकराती थी। तीन रूम पर एक बाथरूम था। बाथरूम इतना बड़ा था कि बैठकर ,पैंट को फैलाकर कपड़े का साबुन लग जाता था और नहाने के बाद , बिना दीवाल से भिड़े ,तौलिये से शरीर पोंछ भी लिया जाता था।इसी कमरे में बैठकर , टिफ़िन वाले के डब्बे का खाना खा कर संघ लोक सेवा आयोग के सबसे प्रभावशाली सेवा - आई ए एस में चयनित होकर , नाम कमाना चाहता था।
बी ए में अच्छे नम्बर आये लेकिन उसके भरोसे एम ए में दाखिले के बाद भी , सेक्शन के किसी लड़की ने या लड़को के प्रभावशाली ग्रुप ने ध्यान नही दिया । एम ए में को एड था अर्थात सह शिक्षा थी। सेक्शन में उन्ही लड़को की, लड़कियों में पूछ थी जिन्होंने स्नातक में पहला या दूसरा या तीसरा स्थान प्राप्त किया हो , या स्पीकिंग अंग्रेजी बहुत अच्छी हो , या डिबेट चैम्पियन हो या परिवार का दमदार बैकग्राउंड हो । दुर्भाग्य से , राकेश के पास यह कुछ भी नही था।
इस स्थिति ने ,राकेश को प्रेरित किया कि वह और अधिक पढ़ाई में जुटे , आई ए एस - पी सी एस बने ताकि वह इस श्रेणी में आकर ,घर वालो का सपना पूरा कर सके ,क्षेत्र जवार में नाम हो , साथ ही साथ यहाँ लड़कियों से दोस्ती और सेक्शन के लड़कों के मुख्य ग्रुप के दोस्ती का हकदार बन सके।
राकेश ने एम ए की पढ़ाई के साथ साथ कोचिंग भी शुरू कर दी । दोनो जगहों पर पढ़ाई का बोझ बहुत था , लेकिन उसने अपने भीतर जुनून को जागृत रखने का प्रयास करता रहा, ताकि उसे गांव वालों, क्षेत्र जवार के लोगो तथा अपने सेक्शन के सहपाठियो के नजर में मान्यता हो। वह जानता था कि संघीय लोक सेवा आयोग / लोक सेवा आयोग की चयनित अभ्यर्थियों की सूची में नाम आते ही नाम , स्टेटस , यश , क्लास - सेकण्डों में मिल जाता है।राकेश बी ए में रोज 4,- 5 घंटे पढ़ता था । लेकिन अब उसने यह पढ़ाई बढ़ाकर 11 घंटे कर दिया। इसलिये क्लास में भी उसका आना, थोड़ा अनियमित हो गया। इन दो सालों में गांव भी , केवल चार बार गया। और गांव गया तो , पहले की तुलना में , बहुत कम दिन रुका।
पुरानी लगातार पढ़ाई , दो सालो के कठोर परिश्रम और कोचिंग के गाइडेन्स के कारण आई ए एस के पहले अटेम्प् में उसे 314 वी रैंक मिली।इस प्रकार उसे आई ए एस परीक्षा के माध्यम से 29 प्रकार की सेवाओं में होने वाले चयन में ,क्लास वन की सेवा मिली। पहले अटेम्प में 314 वी रैंक मिली। राकेश के दोस्तों , उसके कोचिंग के टीचर्स और राकेश को भी विश्वास था कि अभी तीन अटेम्प बाकी है , इसलिए आई ए एस बनना तो पक्का है, यदि किसी कारणवश आई ए एस नही मिला , तो आई पी एस तो पक्का है।
रिजल्ट निकलने के दिन और बाद में दोस्तो , जूनियर्स, कोचिंग वालो ने ही नही, बल्कि मोहल्लेवालों ने भी बधाई दी। एम ए के कई लड़को और लड़कियों ने बधाई दी ।
मकान मालिक , जो हर पहली को ही केवल किराया लेने आता था , ने आकर राकेश को बधाई दी। चौराहे के राजू चाय वाले ने राकेश के लिये ताजा चाय बनाया ।टिफ़िन वाले ने ,पहली बार डिब्बे के खाने के बारे में राकेश से ,सुझाव मांगा। आस पास की छतों पर खड़ी लड़कियां , राकेश को घूरते देखकर भी , पहले की तरह भागी नही बल्कि राकेश को घूरने पर हल्की स्माइल दी।कई बार मांगने पर घर से आने वाला खर्चा, बिना मांगे बढ़ गया । और सबसे ज्यादा तो लाइन लगी , वर देखहरुओ की।बड़े बड़े लोग - बड़ी बड़ी गाड़ियाँ - गर्दा उड़ाती। सब वरदेखहरु से राकेश, यही अनुरोध करता कि अगला अटेम्प दे देने दीजिये , उसके बाद शादी पर निर्णय, किया जाएगा ।लड़के तो राकेश के रूम पर अक्सर आते थे, पहली बार , क्लास की दो तीन लड़कियों ने राकेश के कमरे पर आकर बधाई दी।
लगभग एक - दो माह तक राकेश ने इस स्थिति का भरपूर मजा लिया , मान , मान्यता , पूछ , वी आई पी होने का सुख और मैं कुछ हूँ - इस बात का कॉन्फिडेंस आया । राकेश गांव भी गया , रिश्तेदारी भी गया - हर जगह ,घूम घूम कर बधाई लिया।
अगला अटेम्प देना था ।इसलिये इलाहाबाद लौट कर , राकेश ने फिर पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू किया । तभी कोचिंग ( जहां राकेश आई ए एस परीक्षा की कोचिंग ले रहा था) के मालिक, राकेश के कमरे पर पहली बार आये। बधाई दिया और उन्होंने पूछा,
- आगे का क्या विचार है ??
राकेश ने कहा ,
- ज्वाइनिंग में अभी एक साल है .. इसलिये
सेकंड अटेम्प की तैयारी। ... आई ए एस तो बनना है ... न।
- क्या रणनीति रहेगी ?
कोचिंग मालिक ने फिर पूछा ।
- जो पिछले साल थी ... इस साल पढ़ाई के घंटे और बढ़ाऊंगा।
राकेश ने जबाब दिया ।
कोचिंग मालिक बोले ,
- तुम्हारी 314 वी रैंक आई हैं , तो इससे ...यह स्पष्ट है कि तुम्हारी तैयारी पूरी है। अब तुम्हे अपने को और माँजना है। ..... और इसके लिये यह बेहतर रहेगा , तुम अपना सब्जेक्ट कोचिंग में पढ़ाना शुरू कर दो ... तुम कमरे पर तो पढ़ोगे ही, .. कोचिंग में ... वहाँ स्टूडेंट्स तुम्हसे तरह तरह के प्रश्न पूछेंगे। ... इसी बहाने तुम्हारे सब्जेक्ट पूरी तरह तैयार हो जाएगा।
राकेश चौंका। कोचिंग में राकेश स्टूडेंट था और अब राकेश को कोचिंग में पढ़ाना था। यह परिवर्तन भी खुशी दे रहा था। तभी कोचिंग मालिक की धीमी आवाज सुनाई पड़ी ,
- और ... तुम्हारा ,यहाँ का पूरे साल का खर्च, भी निकल आएगा।
सुखद परिवर्तनों में , एक परिवर्तन यह भी था। मन को काबू में रखकर राकेश ने कहा ,
- सर् , यहाँ चाय की व्यवस्था नही है। चौराहे पर चलते हैं।
- तो ,
कोचिंग मालिक, चाय के प्रस्ताव को इग्नोर करते हुए बोले।
- सर् , कल कोचिंग आता हूँ। वही बात करते हैं।
राकेश बोला।
- कल नही , तुम परसो 11 बजे आओ।
कोचिंग मालिक बोले।
राकेश ने पूछा ,
- 11 बजे ! ... 11 बजे तो कोचिंग के क्लास शुरू हो जाते हैं। .. आप भी कभी कभार पढ़ाने चले जाते हैं।
- तुम परसो 11 बजे आओ। .. वही अपना निर्णय बताना।
कोचिंग मालिक बोले।
राकेश ने चौराहे पर चाय पिलाकर ,उन्हें विदा किया। राकेश के बार बार मना करने के बाद भी चाय का पैसा , कोचिंग मालिक ने दिया।
दो दिन के गहन मंथन में , सभी दोस्तों , जूनियर , सीनियर्स की राय यही थी कि कोचिंग में पढ़ाना उचित है ,क्योकि ... सब्जेक्ट पूरी तरह से तैयार हो जाएगा , नए स्टूडेंट्स से बिषय की अपटूडेट नॉलेज मिलती रहेंगी , ज्ञान दान का पुण्य मिलेगा , पैसा भी मिलेगा - घर पर आश्रित नही रहना पड़ेगा। लेकिन ... राकेश के लिये एक और वजह बहुत महत्वपूर्ण थी - सम्मान मिलेगा , मान्यता मिलेगी , पूछ होगी । दो साल की कोचिंग में उसने यह खुद देखा था।
निर्धारित तिथी को , 10 बजे , राकेश के कमरे पर कोचिंग मालिक का ड्राइवर पहुँचा,
- सर् ।
- तुम , यहाँ कैसे ?
- साहब (मालिक ) ने भेजा है।
- 11 बजे कोचिंग पहुँचना है । मैं पहुँच जाऊंगा। मझे सायकल से 35 मिनट लगता है।
राकेश बोला।
- साहब ने आपको कार में लेकर आने को बोला है। .... आप तैयार हो ले। मैं , बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ ।
यह बोलते हुए , ड्राइवर बाहर चला गया।
राकेश तैयार तो हुआ लेकिन आज तैयार होने समय कुछ अधिक लगा ।राकेश कोचिंग मालिक की कार में बैठकर 11 बजे कोचिंग पहुंचा।वहाँ पर उसके स्वागत के बैनर टंगे थे , जिसमें लिखा था कि आई ए एस परीक्षा में सफल अभ्यर्थी श्री राकेश का स्वागत । जिस कोचिंग में 2 साल पढ़ने के दौरान केवल टीचर , अकाउंटेंट , तथा 4-6 लड़के जानते थे , वहीं ,वह आज वी आई पी हो गया।,पहले कोचिंग मालिक उसको नही जानते थे , लेकिन वह उनको जानता था। कोचिंग के गेट पर माला पहनाकर उसे , कोचिंग के सबसे बड़े कमरे , जिसे कई लड़के हाल भी कहते थे , ले जाया गया। उसे मुख्य अतिथि की कुर्सी मिली । कोचिंग मालिक एक और तथा सर् लोग दूसरी तरफ बैठे।सामने कोचिंग के सभी लड़के लड़कियां बैठी।
सर् लोगो की ओर से मेरे सर् ने तारीफ करते हुए मेरा स्वागत किया । न्यू स्टूडेंट्स की ओर से, रुपाली ने,( जिसका उस समय तक नाम नही जानता था), स्वागत करते हुए अनुरोध किया गया कि मैं अपने तैयारी के बारे में शेयर करू। मैं रिएक्ट करने वाला ही था कि , कोचिंग मालिक बोले ,
- आप लोगो की बात राकेश जी ने मान लिया है।अब ये यहाँ आप लोगो को पढ़ाएंगे।
सभी स्टूडेंट्स ने तालियों के साथ , कोचिंग मालिक के कथन का स्वागत किया। मैंने, स्वागत समारोह के लिये सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। फिर हम लोग कोचिंग मालिक के कमरे में बैठ गए।चाय स्नैक्स के लिये। सर् लोग अपने क्लास चले गए, तब मैंने जाने की इजाज़त मांगी।
कोचिंग मालिक बोले ,
- आराम से जाइये। मेरी कार आपको छोड़ आएगी । ...वैसे मैं एक बात कहना चाह रहा हूँ।
- जी।
- अब आप आई ए एस अलाइड हो गए हैं। .. पद की गरिमा का ध्यान आपको रखना पड़ेगा .... अब सायकल से कोचिंग आना ,पद के अनुरूप नही जंचेगा।
- लेकिन .. मेरे पास तो साइकल ही है ।
- दो तीन दिन आप मेरी कार से आएंगे - जाएंगे। इस बीच , आपकी नई मोटरसाइकिल आ जाएगी।
- उसके पैसे ?
- आपकी फीस में समायोजित हो जाएगा।
कोचिंग मालिक के कमरे से , उनके कार तक पहुँचने में कई लड़कियां ने व्यक्तिगत बधाई दी ,
लेकिन रुपाली का अपने दो सहेलियों के साथ बरामदे में इन्जार करना और फिर बधाई देना , अच्छा लगा।
आई ए एस का परिणाम घोषित होने के बाद के दो महीने , बादलों की तरह उड़ने जैसे गुजरे। सकून , सुरक्षा , सम्मान , मान्यता , पूछ और पैसा - सब कुछ। एक रिजल्ट ने सब बदल दिया । अब बादलो पर रहते हुए , पुनः सेकण्ड अटेम्प के लिये तैयारी बहुत आवश्यक था। इसके लिये राकेश ने अपने को पुनः नियमित पढ़ाई करने का तय किया। 14 घंटे रोज पढ़ाई । लेकिन अब पढ़ना , इतना आसान नही था। कोचिंग मालिक ने नई मोटर सायकिल भी भेज दिया , और मकान मालिक ने उसे अपने गैराज में खड़ा करने की अनुमति भी दे दी।
राकेश टाइम टेबल बनाया , सुबह 5 से 9 पढ़ाई, फिर नाश्ता करके तैयार होकर 11:30 बजे कोचिंग। 2क्लास । 3बजे कोचिंग से घर। चौराहे पर चाय और 6से 11 पढ़ाई। टाइम टेबल तो बन गया । मैने पूर्ण मनोयोग से इस पर चलने का प्रयास भी शुरू किया , लेकिन व्यवधान तो अब आने शुरू हुए।
पहले मुझे सुबह के नाश्ते में लगभग पौन घण्टा और शाम की चाय में एक घंटा लगता था। लेकिन अब तो डेढ़ घंटे लगने लगे। चाय की दुकान पर मिलने वाले छात्रों की संख्या बढ़ गयी , दूसरी ओर परीक्षा विषयक परामर्श मांगने वाले बढ़ गए। वरदेखहरु , जब आते , तो घण्टा दो घण्टा उसमे भी लगता। स्थानीय लोग और मित्रो द्वारा दावत पर बुलाये जाने की फ्रीक्वेंसी बढ़ गयी ।एक दावत में कम से कम 2 - 3 घंटे लगते। कलिया और रोटी का खाना खाना, समय का नुकसान करता। फिर कभी कभार सिगरेट के सूटके , और कभी कभी जौ का पानी यानी कि बीयर।पूरा टाइम टेबल बिगड़ जाता।
उधर कोचिंग में अलग तरीके से समय का नुकसान होता था । पहुचने पर ,कोचिंग मालिक के कमरे में चाय नाश्ता लेना पड़ता । क्लास के बाद ,स्टूडेंट्स की जिज्ञासा और परामर्श की मांग और इन सबके बीच रुपाली द्वारा लगभग रोज कोई न कोई प्रश्न तार्किक ढंग से पूछना , बताने पर प्रति प्रश्न पूछना और संतुष्ट होने पर धन्यवाद देना,आदि में भी समय बहुत लगता ।इस प्रकार टाइम टेबल के अनुसार पढ़ाई नही हो पा रही थी ।
रुपाली की स्पोकन अंग्रेजी बहुत अच्छी थी , उसने एक बहुत अच्छे को एड स्कूल में होस्टल में रहकर , इंटर तक कि पढ़ाई की । इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के महिला छात्रावास में रहकर उसने बी ए कर अब एम ए कर रही थी तथा आई ए एस की तैयारी कर रही थी। पढ़ने , सलीके से रहने में , अच्छी और स्टूडेंट से बात चीत में ,वह सदैव व्यवहार कुशल दिखी।
करीब एक माह के क्लास के बाद , रुपाली ने क्लास के बाहर , राकेश को रोक कर बोला,
- सर , इस सब्जेक्ट में कुछ किताबें सजेस्ट कर दे।
राकेश ने बताया -
- मैं क्लास में तो बता चुका हूं ... फिर भी .. यदि याद नही है तो नोट करो ।
राकेश बताता गया और वह अपने नोटबुक में लिखती गयी।
चार दिन बाद , रुपाली , क्लास के बाहर , फिर मिली।
- सर् , अभी मुझे सिविल (आई ए एस परीक्षा ) देने में दो साल है। ...... किताब का , हर साल नया एडिशन आ जाता हैं। अगर इस समय मैने किताब खरीद लिया तो दो साल बाद वह अपटूडेट नही रहेगा ।अगर आप चार दिन के लिये अपनी किताब दे दे , तो मैं पढ़ लूँगी या फ़ोटोकॉपी करा लूँगी।
- यह किताब है और मैं दे भी दूंगा। लेकिन यहाँ कोचिंग में या क्लास में देना - उचित नही होगा। इस क्लास में 37 और बाद वाले बैच में 42 बच्चे हैं।दोनो बैच के 79 स्टूडेंट्स में से केवल एक को , कोचिंग में किताब देना , उचित नही होगा।मेरे लिये सारे स्टूडेंट्स बराबर है।
राकेश ने बताया।
- सबके पास यह किताब है , फिर भी , सर् , आपको ऐसा लगता है , तो मैं आपके कमरे पर आकर किताब ले लूँगी।
रुपाली बोली।
यह बात राकेश को अच्छी लगी लेकिन , उसने , यह जानते हुए कि वह होस्टल में रहती है , पूछा ,
- तुम कहाँ रहती हो ?
- होस्टल में ।
- फिर मैं , वहीं आकर तुम्हे यह किताब दे दूँगा।
-मेरे लिये खुशी की बात होगी।
अगले दिन तैयार होकर , राकेश शाम को 5 बजे होस्टल पहुँचा। चिट भिजवाने पर , रुपाली बाहर आयी।रुपाली थी तो घरेलू कपड़ो में , लेकिन अच्छी दिख रही थी। नमस्कार दुआ के बाद , उसने किताब ले ली और इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि वह चाय नही पिला पा रही है। अधिकतर बातें उसी ने की , स्कूल - कालेज की। राकेश श्रोता बना रहा।लेकिन जब तक राकेश लौटे , पूरे 35 मिनट बीत गए थे।
पांच छ दिन बाद , रुपाली ने उस किताब से कई प्रश्न क्लास में पूछे। जिनमे से कुछ के जबाब तो अच्छी तरह से दिया लेकिन एक सवाल में कम्फर्ट नही महसूस किया। उस दिन लगा कि यह सिर्फ खूबसूरत ही नही है , बुद्धिमान भी है ।
पांच दिन बाद उसने क्लास के बाहर , पूछा,
- सर् , किताब कैसे लौटाऊं।
- मैं तुम्हारे होस्टल आकर ले लूंगा।
- ओ के सर् .... ।
शाम को राकेश रुपाली के हॉस्टल पहुंचाऔर किताब लेकर वापस लौटा । इस बार बातो ही बातों में एक घंटा बीत गया था , यह एहसास रात में सोते समय , राकेश को हुआ। राकेश को यह भी याद आया कि आज रुपाली पहले से अच्छी लग रही थी।
ऐसे ही दो किताब दो बार मे रुपाली ने मांगी , जिसे राकेश ने उसके होस्टल जा कर उसे दिया और उसके पढ़ लेने के बाद वापस लाया । इस तरह वह कई बार गर्ल्स हॉस्टल गया औऱ हर बार एक घंटे से अधिक रूका । राकेश को यह तो एहसास हो रहा था कि जिस दिन गर्ल्स होस्टल से लौटता है, उस दिन एकाध घंटे चुपचाप पड़ा रहकर सोचता रहा - क्या यह समझ नही आया।
लगभग एक माह बाद , रुपाली ने कोचिंग के गलियारे में रोककर अनुरोध किया
- सर् , संडे को मेरा बर्थडे है। मैं आपको इनवाइट कर रही हूं ....... प्लीज आइयेगा जरूर।
- संडे को तो , मुझे कोचिंग में पढ़ाना है ... वैसे , जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनाएं।
मैं बोला।
- सर् , ... आपको आना ही होगा ... होस्टल के पास के रेस्टोरेंट में है , शाम को चार बजे ..उस समय .. आपका क्लॉस नही रहेगा।
- कौन कौन रहेगा।
- कुछ क्लास के फ्रेंड , दो कोचिंग के और आप। यही कोई दस लोग रहेंगे।
- तुम लोग जन्मदिन मनाओ , मैं वहाँ अनफिट रहूंगा। ....मेरी वजह से बाकी स्टूडेंट्स भी असहज महसूस करेंगे। .... मेरी वजह से पार्टी मत खराब करो।
- सर् , केवल एक शर्त पर आपकी यह बात मानूँगी
- बोलो
- फिर ,... अगली छुट्टी में ट्रीट मैं दूंगी । सिविल लाइंस के किसी रेस्टोरेंट में। उसमे कोई स्टूडेंट्स नही रहेगा । .... यदि आपको यह मंजूर हो तो , तब तो संडे को मत आइयेगा। नही तो संडे को मैं आपके कमरे से ,आपको यहाँ लाऊंगी।
- ठीक है । अगली छुटटी में , ट्रीट देना।
उस दिन रात को सोते समय , राकेश की आंखों में , रुपाली का चेहरा और बाते - घंटो जेहन में घूमती रही।मन अकारण प्रसन्न लगा।
अगली छुट्टी में , दोनो , सिविल लाइन्स के रेस्टोरेंट में मिले।दुबारा बर्थडे केक तो नही कटा लेकिन घंटो बातें हुईं - कुछ रुपाली के परिवार की और कुछ राकेश के परिवार की। कुछ राकेश के संघर्ष की । राकेश के स्ट्रगल को सुनकर , रुपाली की आंखे भर आईं। उस दिन राकेश को पहली बार लगा कि उसने बहुत कुछ सहकर , यह रैंकिंग हासिल की है। उस दिन राकेश ने ही अधिकतर बोला , लेकिन रेस्टोरेंट से उठते समय तक , उसे यह एहसास हो गया था कि रुपाली बुद्धिमान , खूबसूरत और व्यवहार कुशल होने के साथ साथ , एक बहुत संवेदनशील और जज्बाती लड़की है और वह उसकी बहुत कद्र करती है।
रेस्टोरेंट से निकलने के बाद , उसने मोटर साइकल से होस्टल छोड़ने का अनुरोध किया,
- सर् । बुरा न माने तो यहाँ से रिक्शे से होस्टल जाने में घण्टा भर लगेगा। आप उधर जा ही रहे हैं , अगर छोड़ देंगे, तो समय बचेगा।
- ठीक है।
पहली बार रुपाली मेरे मोटरसाइकिल पर मेरे साथ बैठी । कोई अपराधबोध , राकेश को नही हुआ। न जाने क्यों , रुपाली को बिठाकर बाइक चलाने में राकेश को अच्छा लगा।रुपाली द्वारा किताब के मांगने और लौटने के बहाने दोनो का मिलना और बाते करना , जारी रहा।एकाध बार ,जिद करने पर राकेश ने रुपाली को अपना कमरा भी दिखा दिया।
तब तक आई ए एस का दूसरे अटेम्प का रिजल्ट आ गया , जिसमे राकेश ने मेंस नही क्वालीफाई किया। यह राकेश के लिये सदमे से कम नही था । लोग राकेश के सामने तो कुछ नही कहते , लेकिन पीठ पीछे ताना मारते कि पहली बार तो ,भाग्य से 314 वी रैंक राकेश को मिल गयी ।
राकेश ने , इस स्थिति में अपने को उबारने का प्रयास किया। चाय का सामान कमरे पर रख दिया और चाय के लिये चौराहे पर निकलना बन्द कर दिया। दोस्तो , जूनियर्स को भी इग्नोर करने लगा ।कोचिंग भी , समय से जाना और समय से लौटना शुरू कर दिया।रुपाली से भी , राकेश ने कटना शुरू कर दिया। रुपाली कई बार ,राकेश से किताब नोट्स के बहाने बात करना चाहती किन्तु राकेश इग्नोर कर देता। राकेश ने तय किया कि वह पढ़ाई में पूरी ताकत भी लगायेगा। छुट्टियों त्योहार में घर नही जाएगा।
अगले त्योहार में वह घर नही गया। बगल के कमरे वाले सभी लड़के घर जा चुके थे। कोचिंग में भी तीन दिन की छुट्टी थी ।वह रात में 3 बजे तक पढ़कर सोया ।सुबह 10 बजे उठकर ,राकेश कमरे में चाय बना रहा था कि रुपाली आ गयी। रुपाली ने बात पढ़ाई से शुरू की लेकिन बात घूमते घूमते राकेश के मेंस के रिजल्ट पर आ गयी।
- आप ने अच्छा नही किया
- क्या
- मेंस के रिजल्ट से, आपने, अपने संबंधों को जोड़ दिया। ...
- ऐसी बात नही है।
- ऐसी ही बात है सर्
- आपका कही भी हो या न हो , आप मेरे , हर समय आदर्श है और रहेंगे। मेंटर है और रहेंगें।
-, यदि मैं खुद मेंस क्वालीफाइ नही कर पा रहा हूँ ,तो तुम्हारा मेंटर क्या बनूँगा?तुम्हारा आदर्श क्या बनूँगा?
इतना बोलते बोलते राकेश की आवाज भर्रा गयी ।
रुपाली बोली
- सर् , आप दुनिया को सिखाते है और आप ही इतना हताश होंगे तो कैसे होगा?
- मैं हताश नही हूँ। मैं दुःखी हूं , नाराज हूँ - केवल अपनी पढ़ाई से , अपने तैयारी से और अपने से।
- सर् ,अपने को कोसना बंद कीजिये । आपके दो अटेम्प बचे हैं । अभी सारी उम्मीदे बाकी है। ... सर् , आप वही है जिसने फर्स्ट अटेम्प में 314वी रैंक लाए है।
रुपाली बोली।
न जाने क्यों यह सुनकर ,राकेश के आँसू निकल पड़े।और आँसू देखते ही रुपाली ने तुरंत राकेश को गले लगाकर कन्सोल करना शुरू कर किया । बाद में रुपाली भी रोने लगी।
उस दिन रुपाली राकेश के कमरे में 5घंटे से अधिक रुकी । दोनो ने टिफिन शेयर किया , चाय शेयर किया। अंत मे दोनो ने तय किया कि और खूब मेहनत से पढ़ाई करेंगे और दोनों एक दूसरे का सहारा बनेंगे । अगले एग्जाम में राकेश का तीसरा और रुपाली का फर्स्ट अटेम्प रहेगा । साप्ताहिक रूप से कंबाइंड स्टडी करेंगें। उस दिन राकेश और रुपाली का रिश्ता टीचर स्टूडेंट से बदलकर घनिष्ठ दोस्तो का हो गया।
दिन बीतते गए , पढ़ाई चलती रही और दोनों ने पब्लिकली एक दूसरे को फ्रेंड से ज्यादा नजदीक मानने लगे। राकेश वक्त बेवक्त रुपाली के होस्टल पहुँच जाता और रुपाली हर दूसरे तीसरे राकेश के कमरे पर आ जाती। दोनो अब ज्यादेतर साथ रहते, साथ मे पढ़ते और कभी कभार सिनेमा भी देखते । उन दोनों को जानने वाले स्टूडेंट्स में ,ये बात फैल गयी थी कि इस एग्जाम के बाद दोनों शादी कर लेंगे।
अगले आई ए एस के मेंस का रिजल्ट आ गया। दोनो ने मेंस क्वालीफाइ किया। अब तो दोनो को ,सब लोगो ने हाथो हाथ लिया। लेकिन रुपाली पर सबका विशेष ध्यान था ,
- रुपाली भी पहले अटेम्प में क्वालीफाइ कर गई
- राकेश सर् की भांति , रुपाली ने , पहले अटेम्प में , आई ए एस क्वालीफाइ किया ।
- राकेश सर् की गाइडेंस थी, रुपाली को क्वालीफाइ करना ही था ।
- दोनो , लगभग एक साल से , कंबाइंड स्टडी कर रहे थें। यह तो होना ही था।
-रुपाली पढ़ने में तेज तो थी ही , राकेश सर् के नोट्स व गाइडेंस भी पा गयी , क्वालीफाइ कर गयी
दोनो ये सब सुनते मुस्कराते , और साक्षात्कार की तैयारी में लग गए। दोनो ने कंबाइंड तैयारी की , ड्रेस तैयार कराया , दोनो का इंटरव्यू अच्छा रहा ।
आई ए एस का फाइनल रिजल्ट आया । रुपाली को आई ए एस प्रॉपर मिला 100 वी रैंक के भीतर - 89 रैंक। राकेश को मिला 405 वी रैंक । पहले से भी नीचे की रैंकिंग ।रिजल्ट रात को निकला था। दूसरे दिन कुछ जूनियर्स दोस्त अधूरे मन से बधाई दिये किन्तु गर्मजोशी नही दिखी।उसे रुपाली का शिद्दत से इंतजार था लेकिन शाम तक रुपाली नही आई ।पहले सोच मैं क्यो जाऊं उसे आना चाहिये। ठीक है , अब वह आई ए एस हो गयी है , लेकिन गाइड तो उसी ने किया है, अपने नोट्स दिये , किताबे दी ,फिर दोनों इतने करीब थे , रुपाली को यह सब तो याद होगा ही । फिर लगा , फर्स्ट अटेम्प में , आई ए एस प्रॉपर होना बड़ी उपलब्धि है। होस्टल की लड़कियां उसे घेरे होंगी। दोस्त बधाई दे रहे होंगे। बिजी होगी।वह भी तो जा सकता है।
शाम को फूलों का गुलदस्ता लेकर राकेश , रुपाली के होस्टल पहुँचा। विज़िटर एरिया में , ही रुपाली दिख गयी। लड़के लड़कियों से घिरी बधाई ले रही थी। विज़िटर एरिया में जितने भी लोग थे , सबका ध्यान रुपाली की ओर था।गर्ल्स होस्टल की वह पहली लड़की थी जो फर्स्ट अटेम्प में आई ए एस प्रॉपर हुई थी। विजिटर एरिया में मौजूद किसी का ध्यान उसकी ओर नही गया आज सबका ध्यान रुपाली की ओर था।
राकेश ,जब काफी पास पहुँचा , तब रुपाली ने राकेश की ओर देखा। राकेश को देखकर , उसने हाथ से वही रुकने का इशारा किया। राकेश वही रुक गया। थोड़ी देर में , स्टूडेंट्स के उस झुंड से निकलकर रुपाली पास आयी। राकेश ने फूलो का गुलदस्ता देते हुए , बधाई दिया। रुपाली ने गुलदस्ता फेकते हुए बोली,
- सर् , यह फेयर नही हुआ ,.. आप को आई ए एस प्रॉपर न मिलना , ..उचित नही है
- होता है .. कभी कभी
राकेश बोले।
विज़िटर एरिया में अब सभी लोगो का ध्यान रुपाली और राकेश पर जा पहुंचा।यह जोड़ी पहले से चर्चित रही और इस बार दोनो का सलेक्शन भी हो गया था।
रुपाली बोल रही थी ,
- आपके नोट्स पढ़कर , आपके गाइडेंस में पढ़कर , जब मुझे आई ए एस प्रॉपर मिल सकता है तो आपको तो मिलना ही चाहिये
- जो होना था , हो गया। तुम इस पल को एन्जॉय करो
राकेश बोला।
- नही सर् ! आपका प्रॉपर में नही हुआ है .. मैं कैसे खुश होऊँ।
यह कहकर रुपाली रोने लगी।
विजिटर एरिया में मौजूद लोग चकित थे कि रुपाली आई ए एस प्रॉपर होने के बाद भी रो रही है ?आज तो उसकी जिंदगी का महत्वपूर्ण दिन है। आज उसके लिये खुशी का दिन है।
राकेश उसे चुप कराते , उदास होकर बोले ,
- यही भाग्य में लिखा है.. तुम या मैं , क्या कर सकते हैं ?
- कर सकते हैं । ... जिस परीक्षा में आपके साथ अन्याय हुआ है उस परीक्षा के सलेक्शन को मैं छोड़ सकती हूँ। सर् , मैं इस्तीफ़ा दे दूंगी।
यह सुनते ही राकेश के साथ साथ विज़िटर एरिया में मौजूद सभी लोग चौक गए। राकेश सहित सबने बहुत मनाया तब वह मानी कि वह इस्तीफा नही देगी।मिलने का समय समाप्त हो गया था, थके कदमो से अपने कमरे पर राकेश लौट आया। अगले दिन रुपाली के होस्टल जाने का उसका मन नही हुआ और न रुपाली आयी।
तीन चार राकेश कमरे में ही बंद रहा । उसके अगले दिन शाम को गर्ल्स हॉस्टल जाने पर पता चला कि रुपाली अपने पेरेंट्स के पास चली गयी ।
लगभग 2 माह बाद , एक दिन कोचिंग पढ़ाने पहुंचा तो पता चला कि आज रुपाली का सम्मान समारोह है।कोचिंग में रुपाली के सम्मान में बैनर पोस्टर टंगे थे।
राकेश हतप्रभ हो गया - " रुपाली शहर में है - न तो मुझसे मिलने आई , न मुझे अपने आने के बारे में बताया । आई ए एस प्रॉपर में हुए चयन ने क्या सब बदल डाला ? वे लोग साल भर से इतने घनिष्ठ थे - साथ खाते थे , साथ पढ़ते थे ,साथ घूमते थे , एक दूसरे को सपोर्ट करते थे , एक दूसरे का दुख सुख बांटते थे । उसी रुपाली का ऐसा व्यवहार । उसे समझ नही आ रहा था , वह आहत ज्यादा है कि दुःखी ज्यादा । अपने दुख , कष्ट , क्षोभ , हर अपमान से निर्वेद होकर सोचने लगा - रुपाली तो ऐसी नही थी ?
रुपाली आयी । वह पहले से अधिक खुबसूरत दिख रही थी । रुपाली ने अपने उदबोधन में एम ए के अध्यापकों , कोचिंग के सभी अध्यापकों , दोस्तो - सभी को धन्यवाद दिया। कोचिंग से निकलते समय उसे बाहर छोड़ने के लिये , कोचिंग मालिक , कोचिंग के सारे अध्यापक , कुछ उसके दोस्त साथ साथ बाहर आये । बाहर उसने , मेरी तरफ देखकर, कोचिंग मालिक से कहा ,
- राकेश सर् का एक एहसान है ... आई ए एस का रिजल्ट निकलने के अगले दिन ,मैं इस्तीफा दे रही थी , इन्होंने रोक दिया !
सब चौकें । मैं चुप था।मुझे छोड़ कर कोचिंग के सभी अध्यापको ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा ,
- आई ए एस प्रॉपर सेवा से इस्तीफा !!!
- रुपाली ने बताया था कि इस बार आई ए एस में उसकी रैंकिंग 89 आई थी , तो उसे होम कैडर तो मिलेगा नही। आई ए एस प्रॉपर में सलेक्शन हो गया है तो बिना इस्तीफा के, आई ए एस एग्जाम, आगे देने को मिलेगा नही। ...रुपाली सोच रही थी कि जब पहले अटेम्प में 89 वी रैंक आ गयी तो अगले साल के अटेम्प में अंडर टेन पोजीशन आ जाएगी । तब उसे होम स्टेट कैडर मिल जाएगा।....., लेकिन राकेश जी ने समझाया ,मैंने भी समझाया कि वह त्यागपत्र न दे। ऐसा रिस्क न ले।
कोचिंग मालिक बोले।
मैंने रुपाली की ओर देखा। रुपाली मुझे इग्नोर कर , बाकी सभी की ओर देखते हुए मुस्कराते हुए कार का फाटक खोलकर , मेरी ओर घूमते हुए बोली ,
- सर् , एक अटेम्प है। अभी भी बहुत कुछ बाकी है।