उपन्यास भाग—१०
दैहिक चाहत –१०
आर. एन. सुनगरया,
टाऊनशिप में साधारणत: चहल-पहल कम ही रहती है, दोपहर को तो और-घौर सन्नाटा छा जाता है। मोबाइल की वैल सुरीली होते हुये भी कर्कस ध्वनि की भॉंति सुनाई देती है। शीला के मोबाइल की वैल कब से सन्नाटा चीर रही थी; वह हाथ पोंछते-पोंछते भागते हुये, मोबाइल ऑन करती है।
‘’हैल्लो ! हॉं......तनूजा, बोल !’’
‘’मॉम !’’
‘’बोल ना...।‘’ शीला झुंझलाई, ‘’बता.....सब ठीक तो है।‘’
‘’बडि़या हूँ......और तनया भी अच्छी है।‘’
‘’कुछ खास वजह मोबाइल लगाने की.......।‘’ शीला ने पूछ ही लिया, ‘’संकोच क्यों....।‘’
‘’मॉम।‘’ तनूजा ने बताया, ‘’तुम्हारा एक वाक्य हमें खटक रहा है, चुभ रहा है, बैचेन कर रहा है।‘’
‘’खटक-चुभ-बैचेन.........क्या कहती हो।‘’ शीला ने अचम्भित होकर कहा, ‘’क्या बात है।‘’ मन्द-मन्द हंसी की ध्वनि।
‘’तुमने पिछले टाइम।‘’ तनूजा ने याद दिलाया, ‘’…कि बिछुड़ने का समय निकट है...।‘’ आगे पूछा, ‘’किसको और क्यों जुदा-विदा.......।‘’
शीला के हंसने की आवाज के साथ, ‘’अरे मेरी गुडि़या रानी.........।‘’ लाड़-दुलार-प्यार-स्नेह से भरपूर ध्वनि मिश्रित करके बताया, ‘’तुम दोनों हृदय के टुकड़ों का कन्यादान करके, अपनी-अपनी ससुराल विदाई करके मुक्ति पाना है। यही सामाजिक परम्परा है..........।‘’
‘’हम कहीं नहीं जायेंगी.........।‘’ बचपना दिखाया।
‘’तुम्हारे पिताजी भी मेरे साथ इसी दिन की आस में थे।‘’
‘’कुछ तो तोड़ होगा मॉम......अभी आप ऐसा ना सोचो.......फिलहाल रखती हूँ।‘’ तनूजा ने झट मोबाइल कनेक्शन काट दिया।
मोबाइल पटककर झटके से, हॉस्टल के बेड पर पीठ के बल चित्त लेट गई। आँखें मूँदते ही अतीत में समा गई............
............फुहार की भॉंति बारिश क्षीण होकर वातावरण को सर्द कर रही थी........कि तनया तीव्र वेग से लिपट-चिपट गई, दबोच कर सॉंसों की गर्माहट युक्त चूमा-चाटी, ताबड़-तोड़, अनवरत शुरू कर दी, तनूजा गुदगुदाहट में कुछ बोल नहीं पा रही है। अस्पष्ट स्वर ही मुँह से निकल रहे हैं, खण्ड–खण्ड........अरी सुन तो.......सांस तो ले ले......सम्हलने तो दे.........मैक्सी अस्त–व्यस्त हो गई। कोई देख लेगा तो.........बदन पर कोई, कुछ वस्त्र बचा है..........सब सिमट गया यहॉं-तहॉं.......
वेडरूम में ठण्डक और सुगन्धित सॉंसों का मिश्रण, वातावरण को रोमान्टिक बना रहा था। तनूजा भी तनया की शरारतों में संलग्न हो गई, मर्जी और मन-मुताविक मजा लेने भरपूर अवसर गंवाना नहीं चाह रही है। अगन की गर्म लपटें, पलट रही हैं, उठ-उठकर अपने गिरफ्त में लेकर, सॉंसों के साथ परिवेश में गर्मजोशी को उत्प्रेरित कर रही हैं। दो बदन गर्माहट में एकाकार होकर, गुत्थम-गुत्था होकर अल्टी-पल्टी बेतरतीब गुलॉंटिया मार रहे हैं। आहिस्ता–आहिस्ता तन-मन-बदन में उठे मादक उफनते उबाल को मन भरकर-छक्क कर, इन्ज्वाय करके संतृप्त–शॉंत करना चाहती हैं। आये दिन यह नशा उत्तरोत्तर चरम बिन्दु को स्पर्श करने के प्रयास में है। उफ्फ ! ज्वाला का भड़कना, फिर शॉंत होना, गज़ब सुकून छोड़ जाता है। तुरन्त राहत पाने हेतु।
तनूजा करवट लेते हुये लेटी है, तनया ने कूल्हे को हल्के बल पूर्वक झिंझौड़ते हुये, ‘’तनु....तनु.......उठ........क्या बड़बड़ा रही है।‘’
तनूजा ने अर्धनिंद्रा में ऑंखें खोंलीं, ‘’अरे तू तो, लिपटी हुई थी मुझसे........।‘’ दायॅं-वायँ मुण्डी घुमाकर, देखा।
‘’तनु तू- कोई सपना देख रही थी।‘’ तनया ने बताया, ‘’मैं तो अभी-अभी आई........थोड़ी लेट जरूर हुई आने में......।‘’
तनूजा झट-पट पालथी मार कर बैठ गई।
‘’क्या सोचा।‘’ तनया ने पूछा।
‘’मेरी तो हिम्मत......जबाव दे रही है।‘’ तनूजा ने अपनी असमर्थता जताई।
‘’यही तो मेरी दशा है।‘’ तनया ने भी हथियार डाले।
‘’वैसे तो हर तरह की बातें करते रहे हैं खुलकर बगैर संकोच-शर्म के बिना मर्यादा का ध्यान रखे।‘’ तनूजा ने आगे कहा, ‘’दृढ़ता पूर्वक स्पष्ट विस्तार से सारे तथ्यों का खुलासा करना होगा। इशारों-इशारों में बहुत चर्चा हो चुकी है। बेनतीजा। शीघ्र ही यह राग छेड़ना होगा।‘’
‘’शुरू कैसे करें........।‘’ तनया ने, कठिनाई बताई, ‘’एक बार प्रारम्भ हो जाय, फिर तो खुल जायेंगे लाज, शरम, हया अथवा परदादारी के द्वार, हर पहलू पर बारीकियॉं, गम्भीरता व्यक्त करने और समझाने हेतु दरवाजा खुल जायेंगे।‘’
तनूजा-तनया ने किशोरवय की अटखेलियॉं, धूमा-मस्ती, उत्तरोत्तर शरीर के विकास के पूर्णत: की सीमा लॉंघकर जब यौवन की चौखट पर पैर रखा तब आभास हुआ कि जवानी की ज्वाला प्रज्वलित होती है, तब एहसास के अदृश्य साये घेर लेते हैं, जैसे किसी चाहने वाले ने बाहों में भर लिया हो ! जिस्मानी जरूरतों को पंख उभर आते हैं, उड़ते रहो, निर्धारित कराते रहो एक-के-बाद पड़ाव, कुदरत की प्रत्येक न्यामत......सजीव, सुन्दर, सुहानी, सपनीली लगने लगती है।
भौतिकवादी-उपभोगता वादी प्रवृतियॉं सार्थक संदेश देती हुई प्रतीत होती हैं। संस्कार, संस्कृति, मर्यादाऍं, भविष्य की विभीषिकाऍं। दुष्परिणाम, बर्बादी के मन्जर इत्यादि-इत्यादि दुष्विचारों के सैलाबों की भयावय लहरें भयग्रस्त करती हैं। बुद्धि, विवेक, व्यक्तित्व सुचरित्रता सब-के-सब कमजोर महसूस होने लगते हैं। ये कैसा जीवन प्रवाह का ठहराव है, तूफान है, उफान है, भंवर है अथवा बवन्डर है। आखिर क्या है माजरा, समझना कठिन है ! जो सम्पूर्ण अस्तित्व को ग्रस लेना चाहता है। जिन्दगी के इसी अभूतपूर्व बदलाव, जो समग्र हैसियत पर भारी पड़ रहा है।
एैसी ही अनगिनत फीलिंग्स के विस्तार से अवगत करना चाहती हैं, तनूजा-तनया। साथ ही जानने की जिज्ञासा है कि मॉम के जीवन चक्र में भी ऐसा दौर कभी आया होगा ! अथवा बारम्बार आता है ! तो इस कुदरती क्रिया-प्रतिक्रिया का संतोष जनक मुकाबला कैसे करती हैं। जिन्दगी की यह अन्गयारी आवश्यकता के समोचित समाधान पर परमज्ञान प्राप्त करने का एक मात्र स्रोत मॉम ही हो सकती हैं। जो अपने तार्किक, विवेकी खोज परक अनुभवों से हमें मार्ग दर्शित करेंगे; स्वाभाविक समस्या का सार्थक समाधान बतायेंगी, गूढ़ गुर सिखायेंगी, दुनियादारी का एक अनिवार्य-अत्यावश्यक पहलू है। जिसको पहचाने बगैर जीवन को वास्तविक नैसर्गिक-सुख का रसास्वादन, आत्मियक आनन्द को ग्रहण कर पाना टेढ़ी खीर है। सफल समागम का मूल आधार है एवं परिपूर्णत: का प्रमाण है। प्राकृतिक पावन प्रसाद प्राप्त करना ही जीवन की सार्थकता है।
तनूजा-तनया ने संयुक्त रूप से सोचा, उनकी मॉम शीला ने क्रूर यथार्थ को भुगता है। अपनी जवान हसरतों को, भावनाओं को, कुदरती उबलते जिस्मानी उफान को, अमूल्य शाश्वत भोग-विलास की लालसा एवं प्यास-पिपासा को दमन भट्टी में झोंक कर मटिया मेट-राख हुये, चक्षुओं से झरते सावन से अपने-आपको भिगोया होगा ! उफ्फ ! सहन शक्ति को सलाम, मॉम !
शीला ने अपनी नितांत निजि ज्वलंत सजीव धरोहर से अपने-आपको वंचित रखा। जो विशाल त्याग-बलिदान से कम नहीं, जिन्दगी के सर्वश्रेष्ठ नैसर्गिक लम्हों रसास्वादन से अपने आपको स्वैच्छा से विरक्त करना स्वयं पर अत्याचार, शोषण करते हुये जीवन पर्यन्त काम-इच्छा को बल पूर्वक दवाये रखना दुष्कर कर्म है।
पश्चाताप एवं आत्मग्लानि से तनूजा-तनया का दिल-दिमाग भर गया, ‘’ये कैसे अनदेखा हो गया। मॉम ने हमारे समग्र विकास के लिये स्वयं को तपस्वी बना जीती रही, मुस्कुराती रही, हमारी खुशियों का कारण बनती रही....।‘’ दोनों बेटियों ने संयुक्त रूप से महसूस किया।
तनूजा-तनया ने दोनों हाथ एक-के-ऊपर एक रखकर संकल्प लेते हुये निश्चय किया कि अब से बल्कि इसी क्षण से मॉम को नीरस जिन्दगी के पतझड़ से बहारों भरी खुशहाल जीवन में ले जायेंगे, यही हमारी प्रथम प्राथमिकता होगी, तत्पश्चात ही हम दोनों अपनी शादी-विवाह के बारे में सोचेंगे। सर्वप्रथम मॉम अनिवार्य रूप से तुम्हारा अकेलापन घर गृहस्थी बसाकर दूर करेंगें। मॉम तुमने हमारे लिये, अपनी जिन्दगी की जवॉं रंगीन बहारों को तिलांजलि दे दी, हम तुम्हारे, सम्पूर्ण खोये हुये बीरान लम्हों को, हंसते-खिलते, खुशबूदार, खूबसूरत दिलकश यादगार नजारों में बदल देंगे। जो तुमसे कभी जुदा नहीं होंगे..........।‘’
‘’उफ्फ ! मॉम हमसे अनजाने में यह स्वार्थपूर्ण हादसा हो गया। जिसमें तुम्हारी सारी शाश्वत कुदरती विरासत का हृास हो गया। इसकी क्षति-पूर्ती ही हमारा मुख्य मकसद है। सिर्फ तुम हमें अपने प्रायश्चित करने का खुशी-खुशी मौका दो......!‘’
तनूजा-तनया ने गहन सोच-विचार मनन-मंथन, खोज-खबर इत्यादी-इत्यादी को ध्यान में रखकर योजनाएँ दर योजनाऍं बनानी प्रारम्भ कर दीं। घन्टों वाद-विवाद करके प्लानिंग सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं पर दोनों बहनों में तर्क-वितर्क-कुतर विस्तार से चर्चाऍं होती रहती समाचार-पत्र शादी-विवाह की संस्थाऍं और इन्टरनेट पर सर्च जोरों पर पहुँच पाना कठिन हो रहा था।
बेडरूम पर तकिये से टिककर बैठी तनूजा, आगे पैर पसारे हुई थी, तनया उसकी गोद में लेट गई और चेहरे को निहारते हुये बोली, ‘’क्यों ना मॉम के मन-मस्तिष्क–मंशा की टौह ली जाये उसकी इच्छा का अंदाजा लगाया जाय, मॉम को भॉंप कर अपना सर्च आसान हो सकेगा।‘’
तनया का प्रस्ताव, तनूजा ने तत्काल कार्य रूप देने के लिये स्वीकार कर लिया, ‘’यही ठीक है, उनकी पसन्द-नापसन्द का भी आभास हो जायेगा.............।‘’
न्न्न्न्न्न्न्
क्रमश:---११
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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