अध्याय छ:
ध्यान मार्ग
अनुभव— दादी जी, आपने कहा था कि भगवान की प्राप्ति के लिए कई मार्ग हैं । आपने मुझे सेवा कर्तव्य-मार्ग
और आध्यात्मिक ज्ञान-मार्ग के विषय में बताया । कृपया मुझे अन्य मार्गों के बारे में बतायें ।
दादी जी— तीसरा मार्ग ध्यान-योग का है । जो भगवान के साथ मिल कर एकात्म होकर एक हो जाता है,उसे योगी कहते हैं । योगी का मन शांत होता है और पूरी तरह से प्रभु के साथ जुड़ा हुआ । योगी का अपने मन , इंद्रियों और इच्छाओं पर पूरा नियंत्रण होता है । क्रोध और लोभ से वह पूरी तरह वह मुक्त होता है । योगी के लिए माटी का ढेला, पत्थर, हीरा, सोना सब एक समान होता है। वह हर चीज़ में भगवान और भगवान में हर चीज़ को देखता
है । योगी हर व्यक्ति को समान दृष्टि से देखता है, चाहे वह मित्र हो चाहे शत्रु, घृणा करने वाला हो या संबंधी, संत हो या पापी। बुरे से बुरे समय में भी योगी का मन शांत रहता है।
अनुभव— क्या बच्चों के लिए ध्यान-योग का कोई सरल सा उपाय है, दादी जी ?
दादी जी— हॉं है, मन ही तुम्हारा सबसे अच्छा साथी मित्र है और मन ही सबसे बड़ा शत्रु भी । मन उनके लिए मित्र है, जो उसे नियंत्रण में रखते हैं और उनके लिए शत्रु है।जिनका नियंत्रण उस पर नहीं रहता इसलिए तुम्हें इस शत्रु को वश में करने का प्रयत्न करना चाहिए । मन हवा की भाँति है, बहुत ही चंचल और नियंत्रण करने के लिए कठिन।
किंतु तुम नियमित रूप से ध्यान-योग का अभ्यास करके इसे वश में कर सकते हो । गुरु नानक ने कहा है —- मन को जीत लो , तो तुम सारे संसार को जीत लोगे ।
ध्यान-योग का सरल उपाय——-
ध्यान करने का सबसे स्कूल जाने या सोने से पहले का है । अपने ध्यान या पूजा के कमरे में बैठ जाओ । अपनी छाती, रीढ़, गर्दन और सिर को सीधा करो , निश्चल और दृढ़ । अपनी ऑंखें बंद करो और कुछ मंद -गहरी सांसे लो। अपने प्रिय देवी-देवता का ध्यान करो और उनका आशीर्वाद मांगो । मन ही मन ओम् का पॉंच मिनट जाप करो। यदि तुम्हारा मन इधर-उधर भागने लगे तो उसे धीरे से अपने इष्ट देवी - देवता पर वापिस लगाओ ।
हमारे धर्म -ग्रंथों में ध्रुव नाम के एक बालक की कथा है, जिसने ध्यान-मार्ग द्वारा अपनी इच्छा पूरी की।
कहानी (6) ध्रुव की कथा
ध्रुव राजा उत्तानपात और रानी सुनीति का बेटा था । राजा उत्तानपात को अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि से गहरा प्यार था । ध्रुव की मॉं सुनीति के प्रति उसका दुष्टता का व्यवहार था ।
एक दिन जब ध्रुव पॉंच वर्ष का था, तो उसका सौतेला भाई उनके पिता की गोद में बैठा था । ध्रुव ने भी वहाँ बैठना चाहा, किंतु उसकी सौतेली माँ ने उसे रोक दिया और घसीट कर एक ओर कर दिया ।
वह बहुत ही बेरुख़ी से ध्रुव से बोली, “यदि तुम्हें अपने पिता की गोद में बैठने की इच्छा थी, तो अपनी मॉं की जगह मेरी कोख से जन्म लिया होता । कम से कम भगवान विष्णु से प्रार्थना तो करो कि वह इस बात को संभव बनायें।”
ध्रुव को अपनी सौतेली माँ के अपमान भरे वचनों से बहुत गहरा दुख पहुँचा, वह रोता हुआ अपनी मॉं के पास गया । उसकी मॉं ने उसे ढाढ़स बँधाया और अपनी सौतेली माँ की बात को गंभीरता से लेकर भगवान श्री विष्णु की उपासना करने को कहा, जो सब जीवों के सहायक है ।
ध्रुव ने पिता का राज्य छोड़ कर भगवान विष्णु के दर्शन करने के साथ वन की राह ली। वह ऊँचे स्थान पर जाना चाहता था । मार्ग में उसे नारद मुनि मिले। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के विष्णु रूप की पूजा करने के लिए बारह अक्षरों का मंत्र दिया,
“ओम् नमो भगवते वासुदेवाय” ।
ध्रुव ने छ: मास तक भगवान श्री विष्णु की पूजा की।
भगवान श्री विष्णु देव ने उसे दर्शन दिए । भगवान विष्णु ने ध्रुव को वचन दिया कि ध्रुव की मनोकामना पूरी होगी और उसे ध्रुव तारा के उच्चतम दैवी स्थान प्राप्त होगा ।
ध्रुव राज्य में लौट गया । जब राजा बूढ़ा हो गया तो उसने राज्य ध्रुव को देने का निर्णय किया । ध्रुव ने बहुत वर्षों तक राज्य किया और अंत में भगवान विष्णु द्वारा वरदान पाकर ध्रुव नक्षत्र पहुँच गया । कहा गया है कि सारा आकाश मंडल नक्षत्र और तारों से बना है। सभी ध्रुव तारा के इर्द-गिर्द घूमते हैं । आज तक जब भी भारतीय लोग ध्रुव तारा को देखते हैं, तो पवित्र मन वाले दृढ़ निश्चयी भक्त ध्रुव को याद करते हैं ।
अनुभव— जो योगी इस जीवन में सफल नहीं होता, उसका क्या होता है ?
दादी जी— योगी का किया हुआ कोई भी आध्यात्मिक अभ्यास कभी भी व्यर्थ नहीं जाता । असफल योगी का पुनर्जन्म आध्यात्मिक या धनी परिवार में होता है । वह उस ज्ञान को पुनः आसानी से प्राप्त कर लेता है— जो उसने पिछले जन्म में अर्जित किया था और जहां उसने योग छोड़ा था वहीं से आगे चल कर वह पूर्णता प्राप्त करने का पुनः प्रयत्न करता है । कोई भी आध्यात्मिक प्रयास व्यर्थ नहीं जाता ।
अध्याय छ: का सार — सर्वश्रेष्ठ योगी बनने के लिए सब जीवों को अपने जैसा देखो। दूसरों के सुख-दुख को अपना समझो।
ध्यान-योग का बहुत सरल तरीक़ा ओम् जाप के प्रयोग का है ।
क्रमशः ✍️