नया शहर, नया दिन, सुबह की खिली खिली धूप, आसमान में चह-चहाते हुए पंछियों की मधुर आवाज, और इंटर्नशिप का पहला दिन। मुग्धा की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था।
" गौरी आंटी हम हॉस्पिटल के लिए निकल रहे हैं'- दरवाजा बंद करते हुए मुग्धा ने आवाज लगाकर आंटी को बताया।
"अरे सुनो बच्चे ये तुम्हारा टिफिन लेकर जाओ मैंने रेडी कर दिया है और सुनो आज पहला दिन है और मुंबई शहर भी नया है तुम्हारे लिए तो आज तुम्हें वीर हॉस्पिटल छोड़ देगा"- गौरी आंटी ने टिफिन देते हुए कहा।
"वीर.... आंटी वो कौन आई मीन सॉरी बट हमें नहीं पता था कि यहां आप लोगों के अलावा कोई और भी...."
मुग्धा की बात को बीच में ही काटकर गौरी आंटी ने अपनी नजरें चुराते हुए कहा-"अरे हां बच्चे वो कल तुम थकी हुई थी ना इसलिए और वीर भी बाहर गया हुआ था तो तुम्हें बता नहीं पाईं, रुको मैं अभी उसे बुला देती हूं"
गौरी आंटी वीर को आवाज देकर बुलाए उससे पहले ही कैजुअल शर्ट, जींस, और बिखरे हुए बालों में हाथ में चाबी घुमाते हुए वीर कमरे से बाहर निकलता है।
"मां, मैं नीचे गाड़ी के पास वेट कर रहा हूं" - कहते हुए वीर सीधा सीढ़ियों से नीचे उतर जाता है। मुग्धा को हेलो या वेलकम करने की बात तो दूर उसने तो उसकी की तरफ देखा तक नहीं।मुग्धा उसे बस सीढ़ियों से उतरते हुए देखती रही।
" वीर बहुत ही शांत और अकेले रहना पसंद करने वाला लड़का है इसलिए ज्यादा किस से मिलता जुलता नहीं है पर तुम फिकर मत करो वो तुम्हें हॉस्पिटल पहुंचा देगा और रास्ता भी समझा देगा "- गौरी आंटी ने थोड़ा सा हिचकीचाते हुए कहा।
वीर का ऐसा बिहेवियर मुग्धा को पहले तो थोड़ा अजीब लगा मगर गौरी आंटी के अलावा वो यहां किसी और को जानती भी तो नहीं थी इसलिए जवाब में अपनी पलकें नीचे झुका कर वो भी आंटी के आशीर्वाद लेकर सीढ़ियों से उतर जाती है।
पार्किंग में पहुंचते ही मुग्धा देखती है कि गाड़ी से पीठ लगाकर वीर वही उसका इंतजार कर रहा था। मुग्धा के आते ही उसने दरवाजा खोल दिया और उसे अंदर बैठने के लिए इशारा किया। मुग्धा उसके जेंटलमैन वाले बिहेवियर को थोड़ी देर देखती रही फिर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ थैंक यू बोलकर गाड़ी में बैठ जाती है।
घर से हॉस्पिटल लगभग 15 मिनट की दूरी पर ही था।पूरे रास्ते में न तो मुग्धा ने वीर से कुछ कहा ना ही वीर ने कुछ बात की, बस गाड़ी चलाने के बहाने नजरभर उसे देख लेता था।वहां पर पहुंचने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा और देखते ही देखते मुग्धा पहुंच जाती है मुंबई के सबसे फेमस हॉस्पिटल में यानी कि R.V.K. हॉस्पिटल।
"हम चलते हैं, बाय"-गाड़ी से उतरते हुए मुक्ता ने कहा।
"अच्छा सुनो" - थोड़ी सी झिझक के साथ वीर ने उसे रोकते हुए कहा।
"जी..."- मुग्धा जाते-जाते रुक जाते हैं और वीर की तरफ देख कर कहती है।
"मैं यह कह रहा था कि शाम को कितने कितने बजे लेने आऊ?"- बिना बात घूमाये वीर ने सीधे ही पूछ लिया।
वीर के चेहरे क्या भाव बता रहे थे कि इतना सा सवाल करने में भी उसे बहुत नर्वसनेस फील हो रही थी।
मुग्धा समझ नहीं पा रही थी कि वीर बस फॉर्मेलिटी के लिए ही पूछ रहा था या सच में उसे लेने आने में कोई दिक्कत नहीं थी... मगर वैसे भी मुक्ता किसी को तकलीफ नहीं देना चाहती थी इसलिए उसने बड़ी ही विनम्र आवाज में कहा-"अरे नहीं! कोई बात नहीं हम आ जाएंगे आप तकलीफ मत लीजिए"-
इतना कहकर मीरा हॉस्पिटल के गेट की तरफ चलती है।
" नहीं वो शाम को मुझे इसी एरिया में थोड़ा काम है तो मैं यहीं रहूंगा,धेर इज नो प्रॉब्लम!अगर आपको ठीक लगे तो हम साथ जा सकते हैं आप बस मुझे वक्त बता दीजिए कि कितने बजे आप..."
"5:00 शाम को 5:00 बजे"- वीर की बात खत्म होने से पहले ही मुक्त आना है मुस्कुराते हुए कहा।
वीर भी उसकी इस मुस्कुराहट को देखकर हल्का सा मुस्कुरा कर उसे जाते हुए देखता रहा.....
गेट से ऐंटर करते ही मुग्धा ने देखा कि उसके सामने था एक बहुत बड़ा सा कंपाउंड और उस कंपाउंड के एग्जिट बीच में थी एक ४ मंजिली ऊंची इमारत,उस इमारत के बिल्कुल पास में ही था एक गेस्ट हाउस, किसी पुरानी हवेली जैसा था वो गेस्ट हाउस। जिसके दरवाजे पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था "अपना घर"
उस घर की बनावट और ऊपर से दरवाजे पर टंगे हुए बोर्ड पर लिखी हुई ये प्यारी सी बात घर की खूबसूरती को चार चांद लगा रहे थे।
"इतना खूबसूरत गेस्ट हाउस वो भी हॉस्पिटल के पास?"- मुग्धा मन ही मन बोल पड़ी।
उस हॉस्पिटल में आने वाले हर नए इंसान चाहे वो डॉक्टर हो या मरीज़ उसके लिए यह सवाल बनकर रह जाता था कि आखिर इस हॉस्पिटल के पास गेस्ट हाउस का क्या काम....
मुग्धा भी यहीं सवाल मन में लिए हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगती है।जैसे-जैसे मुग्धा हॉस्पिटल की तरफ जा रही थी उसके दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। हॉस्पिटल में एंटर करने के लिए एक बड़ा सा कांच का दरवाजा था और दरवाजे के ठीक सामने था रिसेप्शन टेबल, वहां पुछने पर उसे इंटर्न्स रूम में वेट करने के लिए कहा जाता है।
हॉस्पिटल की चकाचौंध किसी 5 स्टार होटल से कम नहीं थी मुग्धा को चारों तरफ कमरे ही दिख रहे थे। हर एक नर्स वहां पर किसी ना किसी पेशेंट की सेवा में लगी हुई थी कुछ डॉक्टर्स वहां पेशेंट को चेक रहे कर रहे थे और कुछ उनका हौसला बढ़ा रहे थे।
पता नहीं ऐसा क्या था उस हॉस्पिटल की हवा में कि चारों तरफ पेशेंट होने के बावजूद वहां पर बस पॉजिटिविटी ही फैली हुई थी। लॉबी के सामने ही एक गणेश जी की बहुत सुंदर मूर्ति भी थी। मुग्धा वहां पर हाथ जोड़कर इंटर्नश रुम की तरफ आगे बढ़ती है।
मुग्धा वहां पहुंच कर देखती है कि रूम में पहले से ही 3 लोग बैठे हुए थे। मुग्धा अंदर वही रखी हुई बैंच पर जाकर बैठती है।
"है आई एम नेहा"
"हाय आई एम अंजलि"
" हाय रूद्र हियर"
मुग्धा की तरफ देखते हुए सब ने बारी-बारी अपना इंट्रो दिया।
" हेलो, हमारा नाम मुग्धा है"- एक हल्की सी मुस्कान के साथ मुग्धा जवाब दिया।
" हे हे हे! सॉरी फॉर बीइंग लेट, हाय गाइस सुधीर हियर"- किसी ने दरवाजे से ऐंटर होते ही अपना इंट्रो दिया तो सबका ध्यान उसकी तरफ चला गया।
ब्लैक शर्ट, फोल्डेड स्लिव, गोरा रंग, काली गहरी आंखें और पर्सनालिटी कुछ ऐसे कि कोई भी लड़की अगर एक बार उसे देख ले तो उसके इस चेहरे को भूल ही ना पाए।उसकी मौजूदगी ने चारों तरफ पॉजिटिव वाईब्स फैला दिए थे। कोई भी उसे देखकर ये अंदाजा लगा सकता था कि सुधीर एक बहुत ही मनचला लड़का है। कमरे में दाखिल होते ही वो नेहा के बिल्कुल बगल में जाकर बैठ जाता है।
" हाय स्वीटी, मेरे बगैर क्यों आ गयी? हम दोनों साथ में आते ना?"- सुधीर ने आंख मारते हुए मजाकिया आवाज में कहा।
"सट् अप यार सुधीर कॉलेज नहीं है ये हमारा, हॉस्पिटल है। नाउ जस्ट बिहेव योर सेल्फ"- नेहा ने हक से एक प्यारी सी डाट लगाते हुए सुधीर से कहा।
सुधीर नेहा की बात पर हंस ही रहा होता है कि अचानक उसकी नजर उसके ठीक सामने बैठी हुई मुग्धा के मासूम से चेहरे पर ठहर जाती है,और वक्त बस वही थम जाता है। मुग्धा का वो मासूम सा चेहरा, उसकी झुकी हुई पलकें, प्यारी सी मुस्कान। थोड़ी देर के लिए तो मुग्धा को देखने में सुधीर अपनी पलकें तक झपकाना भूल जाता है। मुग्धा भी नजर उठाकर उसकी तरफ देखती है। सुधीर के एसे देखते रहने से मुग्धा थोड़ा अनकंफरटेबल फील करने लगती है। सुधीर को खोया हुआ देख नेहा उसे आवाज लगाती है, सुधीर एकदम से चौंककर नेहा की तरफ देखने लगता है।
"कहा ना ये हमारा कॉलेज नहीं हैं हॉस्पिटल है, एंड वी आर इंटर्नश हियर तो काम पे ध्यान दोगे तो ज्यादा अच्छा होगा"- सुधीर का मजाक उड़ाते हुए नेहा ने कहा।
सुधीर और नेहा कॉलेज में एक साथ थे और बहुत अच्छे दोस्त भी ऊपर से उन दोनों के घर भी आसपास ही थे। उनकी इतनी गहरी दोस्ती की तो लोग मिसाले देते थे।
सभी लोग एक दूसरे से पहचान और बातें करने में बिजी थे कि तभी दरवाजे पे किसी की दस्तक हुई.....
"हेलो एवरीवन"- सब लोग दरवाजे की और देखने लगते हैं।
6 फीट का एक लंबा चौड़ा नौजवान वहां खड़ा था। फॉर्मल कपड़े, रंग सावला पर उतना ही आकर्षक कोई अगर एक बार देख ले तो भूल ना पाए।सादगी तो उसके चेहरे पर ही दिख रही थी, मगर आवाज में इतना दम कि अगर वो बोले तो आसपास के सब लोग चुप हो जाए।
" आप लोगों की बातें अगर खत्म हो गई हो तो अब हम काम पर ध्यान दे सकते हैं राइट?"- कहते हुए उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है।
" सो इंटर्नश आई एम डॉ नितिन कश्यप। अ सीनियर डॉक्टर एंड आल्सो ध ट्रस्टी ऑफ धिस V.R.K. हॉस्पिटल"- डॉ कश्यप ने खुद को इंट्रोड्यूस करते हुए कहा।
सब मिलकर उन्हें गुड मॉर्निंग विश करते हैं मगर उन सभी आवाज में से एक आवाज ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया, वो आवाज उन्हें चुभ सी गई थी, गुस्से से भरी उनकी नजरें चारों तरफ उस आवाज को ढूंढ रही थी कि तभी पीछे खड़ी हुई डरी सहमी सी मुग्धा के ऊपर जाकर रुक गई।
"व्होट ध हेल आर यू डूइंग हियर, यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है चली जाओ यहां से इसी वक्त"- मुग्धा को देखते ही डॉक्टर कश्यप गुस्से में चिल्ला पड़े।
डॉक्टर कश्यप के गुस्से को देख कर पहले से ही सेहमी हुई मुग्धा और डर गई। वो समझ नहीं पा रही थी कि डॉक्टर कश्यप उस पर गुस्सा क्यों कर रहे हैं क्योंकि वो तो आज पहली बार उनसे मिल रही थी। मुग्धा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या थी उनके इस गुस्से की वजह.....