सर पर आंचल लेना आन्या को बिल्कुल पसंद नहीं था। एक तो सारी संभालनी ही मुश्किल थी उसके लिए, ऊपर से घर के कामों की जिम्मेदारी। अब आंचल संभाले या काम। मगर मम्मीजी का कहना था कि कम से कम छत पर या बालकनी में जाओ तो आंचल जरूर रखा करो सर पर। जब कोई गेस्ट आए या तुम बाहर निकलो तब भी खयाल रखना पल्लू का। आन्या बाहर तो कहीं जाती नहीं। सुमित अपने काम में व्यस्त रहता और उसे कोई शौक भी नहीं था पत्नी के साथ घुमने फिरने का। कभी फुर्सत होती भी तो वो सिर्फ सोता रहता था घर पर। आन्या को कभी जरूरत होती तो मांजी के साथ ही सर पर पल्लू रखकर जाती थी बाहर। घर पर जब कपड़े डालने छत जाती तब वो मांजी के डर से सर ढंकती तो थी पर वो टीकता नहीं, गिर जाता था। उसे वक्त का भी खयाल रखना होता, खाना जो बनाना रहता था। इसलिए बिना सर ढंके ही पल्लू कमर में फंसा जल्दी जल्दी कपड़े डालकर नीचे आ जाती थी। मांजी आन्या पर पूरी नजर रखती थीं। वो पीछे से चुपके चुपके जाकर या कभी कभी बाहर से आते समय उसे बिना सर पर आंचल रखे छत पर कपड़े डालते या उतारते हुए देख लेतीं और घर पर बवाल मचातीं। दोनों बेटे भी मां से सहमत रहते। परिवार में कलह का एक कारण ये भी बन गया था। इसके अलावा नाईटी पहननी है तो सिर्फ बेडरूम तक। ऐसे में सुबह आन्या को वापस सारी पहननी पड़ती और तब काम निपटाती थी। मम्मीजी ने शुरूआत से ही सिर्फ सुबह का नाश्ता बनाने का जिम्मा लिया हुआ था जिसे वो आन्या पर अपना अहसान समझती थी। उस पर भी आन्या से कभी सिलबट्टे पर मसाले पिसवाना या कभी साग सब्जी धोने के लिए कहना आम बात थी। फिर, मां जी के लिए पूजा के बर्तन भी साफ हर रोज करती थी। मांजी हर कहीं बात-बात पर सुबह का नाश्ता 'मैं बनाती हूं, सुबह ये लेट उठती है और कुछ करती नहीं, सिर्फ खाना बनाती है', कहना नहीं भूलती थी। आन्या जब ये सुनती तो उसे बहुत बुरा लगता था। वो बातें उसके दीमाग में बैठ जाती थीं जिससे वो परेशान रहती। उधर सुमित भी सिर्फ अपने काम में व्यस्त रहता और जरा भी कोई टेंशन हो, कोई भी बिज्नेस मैटर या घरेलू मैटर। बस, भूखा रहता और सुबह उठकर काम पर चला जाता था। आन्या बहुत समझाती पर वो नहीं समझता था। वो रातभर मनाती खाना खाने के लिए तब खाया करता। कई-कई बार तो उसने न सिर्फ मनाए बल्कि, आधी रात को खाना बनाकर भी खिलाए। हर रोज तेल मालिश की आदत थी सुमित को, सासु मां ने बताया था कि वो रोज रात को सोने से पहले उसकी मालिश किया करती थीं सो अब वो ड्यूटी तुम्हारी (आन्या की) हो गई। आन्या को किसी की भी तेल मालिश करना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन फिरभी, उसने बखूबी वो जिम्मेदारी निभाई। वो जितने काम करती सासु मां उतने और ताने देतीं। " देखो किचन का कपड़ा कितना गंदा है, अमित के कपड़े धोने हैं, मेरी साड़ियां कई दिनों से पड़ी हैं। उधर साफ करना बाकि है, इधर करना है, ये नहीं हुआ, वो नहीं करती हो, तुम करती क्या हो? सिर्फ खाना ही तो बनाती हो न।" संडे को घर पर और कभी कभी दूसरे दिन भी होतीं मम्मीजी मगर बजाय उसकी हेल्प करने के सिर्फ ताने देतीं या किसी गेस्ट से या फिर बेटों से बुराईयां करती रहतीं। जो बेटे घर पर हैं और एक जो बेटा बाहर है, साथ ही बेटी से भी जो अपने ससुराल में थी, फोन पर भर भर कर आन्या के बारे में झूठी शिकायत करती थी। सासू मां अपने मायके में भी आन्या को लेकर झूठी शिकायतें फैलाई हुई थीं। आन्या हमेशा सोचती कि आखिर क्यों वो ऐसा करती हैं? क्या मिलता है उन्हें ये सब करके। मन में ऐसी उलझन पालते हुए सारा काम निपटाती रहती। इसलिए कभी कभी चिढ़कर पलटवार कर देती थी। मगर, जब कभी वो मांजी को जवाब देती, सुमित और अमित से नमक मिर्च लगाकर ब्यौरा देती। आन्या बिना कसूर के ही घरवालों की नाराजगी का सामना करती साथ ही सारा काम भी। वो हंसना भूल गई थी। ऐसे में उसने तय किया कि अगर उसका बच्चा उसके साथ होगा तो उसे फिर से जीना आ जाएगा। पर तब वो ये नहीं जानती थी कि मम्मीजी ने यहां भी कुछ शातिराना सोच रखा था। आन्या ने जब एक बेहद खुबसूरत बेटी को जन्म दिया तब भी मांजी और घर वालों को इस बात का अफसोस रहा कि वो लड़की है, लड़का नहीं। मगर बाद में सबने उसे भरपूर प्यार दिया। शायद पहला बच्चा था इसलिए। बच्चे के जन्म के बाद आन्या के मायके से कोई नहीं आया जबकि शादी के वक्त कई रिश्तेदार इकट्ठे थे। सुमित ने सोचा कि कोई कजन ब्रदर भी जरूर आएगा, उम्मीद थी उसे। पर कोई नहीं आया। वो हुआ यूं कि शादी के वक्त ही लेनदेन में कमी होने के कारण मांजी ने खूब खरी-खोटी सुनाई थी, गंदी-गंदी गालियों के साथ आन्या के परिवार वालों को। किसी तरह शादी हो भी गई फिरभी रस्में निभाने के लिए अड़चनें ला रही थीं सासु मां, बहु(आन्या) की विदाई नहीं कर रही थीं। उनका कहना था कि परिवार के जिस सदस्य ने शादी तय कराई, पहले वो आकर फैसला कराए और वो आ नहीं रहे थे क्योंकि उन महाशय ने मांजी का विकराल रूप देख लिया था शादी के वक्त। जैसे-तैसे आन्या की विदाई हो भी जाती तो बार बार एक अलग नौटंकी शुरू कर देती थी मांजी। वापस ससुराल में आन्या को घुसने नहीं देंगे। पंचायती कराएंगे। उन सारे ड्रामे में सुमित के साथ उनका पूरा परिवार साथ देता था। और ये सब फोन पर ही ह़ोता। कहती थीं मांजी, सुमित के जरीये। आन्या के मायके में इन बातों से खलबली मच जाती थी और उसे ऐसा फिल होता जैसे वो पूरी तरह अकेली है। बेटी को साथ लिए रहती फिरभी ससुराल वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति, वो तो मानो, सिर्फ एक चाभी वाला खिलौना है, अपनी मां का।