मेरा नाम अश्वनी सिंह है। मैंने 10 साल तक अलग-अलग जगहों पर छोटे-बड़े कई काम किए। इसके बाद मैं कुछ धन एकत्र कर पाया। होटल लाइन, बैंक लाइन, टीचिंग लाइन, फ्रीलान्सिंग आदि में मैं निपुण हो गया।
किराए के घर में रहता - रहता मैं ऊब गया था। अब मैंने स्वयं का घर खरीदने की सोची। मैंने मित्रों व प्रॉपर्टी डीलर्स से पता किया तो उन्होंने मुझे कई घर दिखाए।
आखिर मुझे एक बंगला पसंद आ गया। क्योंकि यह कौड़ियों के दाम बिक रहा था। मैंने इसे खरीद लिया। मैंने घर की साफ सफाई व रेनोवेशन करवाया।
आज घर की गृह - प्रवेश की घड़ी है। पंडित जी ने हवन पूजन आदि किया। मेरे कई मित्र व परिचित हैं। सबको मैंने इस शुभ घड़ी पर बुलाया था।
अचानक गार्डन से चीखने - चिल्लाने की आवाजें आने लगी। सभी लोग गार्डन की तरफ दोडे। एक प्रेमी जोड़ा गार्डन में एकांत की खोज में गया था।
प्रेमी की गर्दन किसी ने काट कर अलग डाल दी थी। और प्रेमिका दहशत से बेहोश हो गई थी।
मैं - अरे भाई यह क्या हुआ?
सभी लोग ( समवेत स्वर में) - हां भैया क्या हुआ?
मैं - यह सब किसने किया?
सभी लोग - ये किसने किया होगाा?
दो- तीन औरतें जो भीड़ में थी अचानक इस सदमे से गश खाकर गिर गई और बेहोश हो गई।
तभी अचानक पुलिस की गाड़ी आ गई। दो तीन पुलिसवाले उसमें से उतरे।
इस्पेक्टर - यह सब किसने कियाा।
मैं - पता नहीं।
इस्पेक्टर - सच - सच बताओ। तुम लोगों ने क्यों मारा। नहीं तो सबको जेल में सडा दूंगा।
मैं -इंस्पेक्टर तमीज से बात करो। यह मत भूलो कि तुम ठाकुर अश्वनी प्रताप सिंह के सामने खड़े हो।
इंस्पेक्टर - अरे आप तो बुरा मान गए ठाकुर साहब। यह तो हमारा पूछताछ का तरीका है।
अब वह नम्रत से पूछताछ करने लगा। लेकिन वही ढाक के तीन पात ही उसके हाथ लगे।
लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया तथा मृतक की प्रेमिका को हॉस्पिटल भेज दिया गया।
कुछ दिनों में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई। डॉक्टर्स का कहना था कि यह किसी बहुत विशाल जानवर के द्वारा हुआ है । स्वयं की बात पर डॉक्टर भी विश्ववास नहीं कर पा रहे थे क्योंंकि इतना विशाल जानवर जो कि इंसान का सिर धड़ से अलग कर दें इस शहर में नहीं आ सकता था।
कुछ दिनों में मृत युवक की प्रेमिका भी होश में आ गई थी। पूछताछ में उसने बताया कि एक विशाल बनमानुस जैसे प्राणी ने हमला किया और गायब हो गया। पुलिस वालों ने सोचा शायद बेचारी के दिमाग पर इस घटना का कुछ ज्यादा ही नकारात्मक असर पड़ गया है। इसलिए इसका दिमाग हिल गया है।
खैर कुछ दिन पूछताछ वगैरह चलती रही। आखिर पुलिस ने इस केस की फाइल को नतीजा न देखकर बंद कर दिया। धीरे-धीरे सभी लोग इस बात को भूल से गये।
एक रात में अपने लैपटॉप पर एक कहानी लिख रहा था कि अचानक मुझे अपनी गार्डन में कुछ घुरघुराने की आवाज सुनाई दी। मैंने अपने कमरे में बने मंदिर से कुल देवता की तलवार उठाई और गार्डन की की तरफ चल पड़ा।
तभी धप की आवाज हुई और एक कटा हुआ हाथ मेरे सामने गिर पड़ा। इस हाथ को बड़ी निर्दयता पूर्वक किसी इंसान के शरीर से अलग किया गया था। मैं आगे बढ़ता गया। आगे किसी के पैरों के बड़े-बड़े निशान के लिए जमीन पर थे। क्योंकि कुछ समय पहले बारिश हुई थी। अतः जमीन गीली थी। यह निशान किसी हाथी के पैरों के निशान जितने बड़े थे। मेरे मन में सिहरन सी दौड़ गई। परंतु अपने कुलदेवता स्मरण कर मैं आगे बढ़ता गया।