दुख
खाट पर लेटी लीला बड़ बड़ाई।किस बात का?तारा को छोड़ देने का।गलत।भला ऐसा क्या था तारा मेंेे, जो वह उसके लिए दुखी हो।क्या तारा को छोड़ कर वह जी नही सकती?अब तक जीती रही है,तो आगे भी जियेगी।
पश्चाताप।
अपने निर्णय पर।सवाल ही नही उठता पछतावे का।उसने निर्णय अचानक या जल्दबाजी में नही लिया था।निर्णय लेने से पहले वह हर तरह से संतुष्ट हो ली थी।वह जल्दबाजी मे कोई कदम नही उठाना चाहती थी।यह बात भी अचानक,अप्रत्याशित रूप से उसके दिलो दिमाग मे नही आई थी।पहले उसके मन मे सन्देह जागा।फिर धीरे धीरे सन्देह विश्वास में बदल गया था।विश्वास होने पर भी तारा को छोड़ने का निर्णय नही लिया था।चुपचाप सहती रही।अंदर ही अंदर घुटती रही।जब रहा नही गया तब दूसरा रास्ता,साधन ढूंढ लिया था।
लेकिन तारा को यह मंज़ूर नही था।इसलिए उसे तारा से घृणा हो गई।साला प्राकृतिक चीज पर रोक लगाना चाहता था। तारा तारा तारा उसकी याद में उसका सिर भन्ना गया।वह खाट से उठी और सीढिया चढ़कर ऊपर छत पर जा पहुंची।
अक्टूबर।साफ खुला आसमान।आसमान से अंधेरे की हल्की हल्की परते धरती पर उतरनी शुरू हो गई थी।वातावरण में हल्की हल्की ठंड व्याप्त होने लगी थी।उसे स्वच्छ शीतल हवा सुखद लगी थी।लेकिन यहां भी तारा उसके सामनेआ खड़ा हुआ।
साला।उसने घृणा से मुंह बिदकाया।पतिव्रता देखना चाहता था।वह छत की मूढ़गली पर बैठ गई।
जब वह छोटी थी।तब शादी को गुड्डे गुड़ियों का खेल समझती थी।पर कब बडी हुई तब किसी की शादी देखती,तो उसके दिल मे भी उमंग उठती।हर कुंवारी लड़की की तरह वह भी सपना देखती।कोई राजकुमार आएगा और उसे बहता ब्याहकर ले जाएगा।उसका छोटा सा घर संसार होगा।लेकिन उसका देखा सपना पूरा नही हो सका।कुंवारे मन की साध मन मे ही रह गई।वह दुल्हन तो बनी लेकिन
बचपन मे ही वह अनाथ हो गई थी।रिश्ते के चाचा ने उसे पाला था।चाचा तो सही थे लेकिन चाची।उसका व्यवहार बड़ा कर्कश था।चाची को लीला बिल्कुल नही सुहाती थी।जब तक चाचा रहे सब कुछ ठीक रहा।वह जवान हो चुकी थी।उनके गुज़रते ही चाची ने शादी का नाटक रचकर उसे बेच डाला।
अपने बिक जाने की बात उसे सुहागरात को पता चली थी।जब वह सुहागसेज पर बैठी अपने पति मदन के आने का ििइंतजआर कर रही थी।पति की जगह परपुरुष को देखकर चौंकी थी।उसने हल्ला मचाया,उससे बचने का प्रयास किया।भागना भी चाहा पर दरवाजा बाहर से बन्द था।जिस अस्मत को उसने वर्षो तक सम्हाल कर रखा।इसे उसके पति ने ही बेच डाला था।रात भर रोती रही और भेड़िये के जुल्म सहती रही।
सुबह मदन के आने पर उसने उसे उल्टा सीधा बका तो उसे मारते हुए बोला,"पूरे एक लाख में खरीदा है,तुझे।तेरी जैसी कई ब्याहता है मेरी।"
उस दिन पहली बार उसने जाना था कि जिस आदमी को नौ महीने पेट मे रखकर औरत जन्म देती है।उसी औरत का आदमी व्यापार भी करता है।कितना नीच है आदमी जिसे पत्नी बनाता है।उसी को चंद रुपयों के लिए दूसरे मर्द को परोसता भी है।देनदार लेनदार अपनी ही जननी औरत का सौदा करते है।मदन जिसे वह पति समझती थी।दलाल था,औरत का।
चाची जो खुद भी औरत थी ने उसे भेड़िये की मांद में पहुंचा दिया था।उसे कैद करके रखा गया था।हर रात को वह बिकने लगी।जो भी रात में आता अपने रुपये की कीमत वसूल करके चला जाता।दो साल तक वह मुम्बई रही।फिर एक सेठ उसे खरीद कर दिल्ली ले आया।