File Race (Satire) in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | फाईल दौड़ (व्यंग्य )

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फाईल दौड़ (व्यंग्य )

फाईल दौड़ (व्यंग्य )
हमारे बाबू साहब अपने ऑफिस में बैठे पान की जुगाली कर रहे थे कि बस अचानक चार फाईलें में अपने आरंभ स्थल यानी स्टार्टिंग प्वाइंट यानी टेबल पर पहुंचकर स्थान लेने लगी। शाम होते ना होते फाईलें वार्म अप होकर दौड़ के लिए तैयार होने लगी । फाईलों को लग रहा था कि यह एक साधारण दौड़ है जिसमें अपनी दौड़ को समाप्त करके अपने लक्ष्य तक सामान्य तरीके से पहुंच जाएंगी । इन फाईलों को यह नहीं मालूम था की टेबलों के दूसरी ओर बैठे हुए उतने सज्जन नहीं है ,जितने भी दिखाई देते हैं । ये सारे महाशय फाईलों को दौड़ाने नहीं रोकने में माहिर है ।‌ बाबू साहब ने शाम होते ही सारी फाईलों को बांध कर रख दिया ।
दूसरे दिन बाबू साहब काम ना होने के कारण बोर हो रहे थे । इस पूरे बोरियत को दूर करने के लिए वे दो बार पान दुकान के चक्कर लगा आए है । उसने सोचा चलो इन बंधी फाईलों को देखा जाए । अब उन्हें फाइलों में चेहरे देखने लगे । पहली फाईल उठाई तो उसमें उन्हें कुर्ता और धोती पहने सर पर गमछा बांधे झुर्रियों से भरा दीन-हीन सा चेहरा हाथ जोड़ता हुआ सा महसूस हुआ । बाबू साहब जानते हैं कि ऐसे हाथ जोड़ने वाली फाईलों का क्या होता है । दूसरी फाईल में उन्हें आप जैसा एक मध्यमवर्गीय चेहरा दिखाई देने लगा । आपका चेहरा जब भी बाबू साहब देखते हैं वे जानते हैं कि आप अपने छोटे-मोटे काम तो परिचय और बड़े लोगों के संपर्क की ड़ींगों के आधार पर करवाने का प्रयास करते हैं । उसके बाद कुछ रुपए पैसे की बात करते हैं । कुछ तो ईमानदारी का पुतले बन कर लड़ने -झगड़ने और शिकायत वगैरह पर उतारू हो जाते हैं, वैसे इन सब से ना तो फाईलें दौड़ती हैं और ना आज दौडेंगी ‌।
तीसरी फाईल का पेट कुछ मोटा सा है ;हाथ में सूटकेस और टैब है । यह सब ठेकेदार सा ठाठ लगता है। इस फाईल को अधिक रोका नहीं जा सकता । हां यह जरूर है कि इस फाईल के एक-एक दिन की कीमत अच्छी होगी । बाबू के मुंह से निकल निकल ही गया "यह तो काम की चीज है ।" चौथी फाईल को छूते ही वे झटका खा गए ,उन्हें तो बस चक्कर ही आ गए । फाईल का चेहरा देखकर कांपने लगे । उन्हें अब लगने लगा कि कल इसको ना देख कर बहुत बड़ी गलती हो गई। बिना कुछ बोले और देर किए फाईल के साथ मझोले बाबू के पास पहुंचे फाइल को दिखाते हुए बोले "क्या करते हो यार.... इतनी देर कर दी; अभी ही मंत्री जी का फोन बड़े साहब को आया था और हां और ठेकेदार वाली फाइल भी जल्दी कर देना ।"
लो साहब फाईलों की दौड़ प्रारंभ हो गई । कुछ फाईलें अभी भी प्रारंभ स्थल पर और कुछ फर्राटा दौड़ लगाने लगी । नेताजी की फाईल शाम होते ना होते चार-पांच टेबल पार कर बड़े साहब की टेबल पर थी । ठेकेदार की फाईल अब छोटे साहब के पास है । आप पाठक याने मध्यम वर्ग की फाईल आवक -जावक पार कर पाई है । बेचारी फाईल अभी भी वही पड़ी है ।
धोती कुर्ते वाले बुजुर्ग कुछ दिनों से रोज ही दफ्तर आते हैं । उनके सामने उनकी फाइल ढूंढी जाती है । फाईल है कि मिलती नहीं । वे बेचारे चले जाते हैं । फाईल अभी भी वहीं है पहली टेबल की दाहिनी दराज में । नेताजी वाला काम तो तीसरे दिन ही हो गया लेकिन नेताजी नाराज हैं । वे कहते हैं "बताइए हमारे काम को तीन दिन लग गए ये लोग आम जनता को कितना परेशान करते होंगे।" नेताजी के ऑफिसिया चमचों ने छोटे बाबू पर देर होने का दोष माढ़ दिया और बताया कि उसने एक दिन फाईल अपने पास रखी थी । उस छोटे बाबू की तो शामत आ गई अब वह अपना स्थानांतरण रुकवाने के लिए रोज ही नेता जी के पैर छूता रहता है।
ठेकेदार को कोई जल्दी और कोई देर का सवाल नहीं था। एक दिन कार से सीधा ऑफिस पहुंचा छोटे ,मझोले और बड़े जितने प्रकार के बाबू होते हैं से मिला। मिलना क्या लिफाफे थे और कुछ मिठाइयां डिब्बे सबको खैरात सा बांटता जा रहा था। उसके सामने सब भिखमांगों की तरह खड़े थे। यह सब उसने ऑफिस के छोटे ,मझोले और बड़े साहबों के साथ भी किया । जाते-जाते उसने पूछा "कब आऊं?" बड़े साहब बोले "अरे आपको तकलीफ करने की जरूरत नहीं है‌। हम तो दो-तीन दिन में कागज पहुंचा देंगे ।"
अब साहब एक फाईल जो मिलती ही नहीं और दूसरी है जिसमें लगातार आपत्तियां लगाई जाती है । एक दिन कहा गया एक कागज कम है। अगले दिन बताया यहां "का" के स्थान पर "की" होना चाहिए । आदि ....आदि.... इस दौड़ को प्रारंभ हुए बहुत समय हो गया । दो फाईलें दौड़ खत्म कर आराम कर रही है । वो बुजुर्ग जब भी आता है उसकी फाईल खोजी जाती है या खोजने का नाटक किया जाता है । आप मध्यम वर्ग की फाईल कछुए की गति से अभी भी दौड़ में शामिल है । जब उसके सारे "का" और "की" समाप्त होंगे तब वह अपने लक्ष्य पर पहुंचेगी लेकिन "का" और "की" है कि खत्म होने का नाम ही नहीं हो रहे । अब आप या मैं परेशान होकर क्या करते हैं ? बस फाईल के पीछे उस मध्यमवर्ग ने भी शिकायत का सहारा लिया । आफिस में शिकायत की फाइल पहले वाली फाइल से भी मोटी हो गई। वह मध्यमवर्गीय चेहरा बड़ा ही ठीढ़ है । अब वह धरना ,आंदोलन और भूख हड़ताल जैसी धमकियां देने लगा है । ऑफिस के अंदर बैठे लोग जानते हैं कि इन हथकंड़ों से कितना काम बनता है और कितना बिगड़ता है । ये सब अभी जारी है और रहेगा । कई छोटे, मझोले और बड़े बाबू और साथ ही साथ छोटे ,मझोले और बड़े साहब मुझसे नाराज हैं । आखिर मेरी हिम्मत कैसे हुई उनके इस पुनीत कर्म को सार्वजनिक करने की । अब देखना होगा कि मेरी कोई फाईल कैसे दौड़ती है ?
आलोक मिश्रा "मनमौजी"