इसी तरह हकीम पुर गांव अब पुरी तरह से बदल चुका था।
रमेश हर रविवार को हकीम पुर गांव में जाता था और वहां अपने अस्पताल का कामकाज का सारा देखरेख करके फिर लौट आते थे।
रमेश जब भी उस अस्पताल को देखते थे उसे अम्मा और बाबूजी की बातें याद आती जैसे अम्मा बोल रही है कि रमेश बेटा आज आलु के परांठे के संग मीठी गुड़ वाली आम की चटनी।।
अम्मा अब ना मिलेगा तेरे हाथों का स्वाद, अब ना मिलेगा तेरे बातों का रस, अब ना मिलेगा तेरे इंतज़ार का फल।।
रमेश ने अपनी आंखें पोछते हुए बस में बैठ गए।
जो भी अस्पताल से मिलता वो दवाईयां और जरूरत का सामान खरीदने के बाद जो पैसे बचाते थे वो रत्ना और रवि के बैंक एकाउंट में डाल देते थे।
रमेश घर लौट आए और फिर सब साथ बैठकर खाना खा लिया और फिर रत्ना बोली चाचू अब
की बार हकीम पुर गांव हम भी जायेंगे।
रमेश बोला अच्छा बच्चों अब की बार अम्मा जी के जन्मदिवस पर हम लोग हकीम पुर गांव जायेंगे और वहां पर पुजा पाठ करवायेंगे और फिर सभी को तुम्हारी दादी के पसन्द का भोजन करायेगे।
चंदू बोला हां बेटा हर साल तो अम्मा जी का भेजा हुआ मनीआर्डर और उपहार लेकर सभी को दिखाती थी और बोलती थी कि ये देखो सब मेरा रमेश हर साल अम्मा के जन्मदिन पर विशेष कुछ ना कुछ भेजता है ये मेरा सौभाग्य है।
रमेश रोते हुए कहा हां मुझे उर्मी हमेशा कहा करती थी कि अम्मा तुम्हारे तोहफा से इतना खुश हो जाती है अगर तुम आ जाते तो क्या बात थी।
रत्ना बोली चाचू सब लोग क्यों चले गए कहा गए?
रमेश बोला हां बेटा वो सब चले गए।
फिर रोज की तरह सभी अपने अपने काम पर निकल गए।
चंदू भी अपने काम करने लगा।
चंदू को भी अक्सर ये एहसास होता कि अम्मा जी कुछ बोल रही है।
रमेश को भी ऐसा ही प्रतीत होता रहता था कि अम्मा कुछ कहना चाहती है।
एक दिन रमेश अखबार पढ़ते हुए अचानक कुछ याद आया तो उसने अलमारी में से वो चिट्ठी की पोटली निकल कर देखने लगा और तभी उसे एक चिट्ठी में कुछ अम्मा जी की कहीं बात याद आ गई।
लिखा था कि बेटा मुझे हमेशा से कश्मीरी शाल की बहुत लालसा है,हो सके तो इस बार वो ही भेजना।
रमेश बोला ओह अम्मा इस बार बहुत बड़ी चुक हो गई और फिर बोला कि मुझे किसी भी तरह वो कश्मीरी शाल खरीदने होंगे वो भी २०औरतो के लिए।।
कहते हैं कि अगर कोई प्रिय सदस्य चला जाए तो उसकी जो भी इच्छा हो उसे पुरी करनी चाहिए।
अगले दिन सुबह रमेश आफिस नहीं जाकर अलिगढ के सबसे बड़े दुकान पर पहुंचा और फिर कश्मीरी शाल दिखाने को कहा।
दुकान दार ने बहुत सारा कश्मीरी शाल दिखाने लगें पर एक भी पसंद नहीं आया और फिर उसने अम्मा जी का वो चिट्ठी याद किया उसमें लिखा था गुलाबी रंग की शाल और उस पर रंग बिरंगी फुलों से सजा हो।
फिर रमेश ने दुकान दार को बोला कि ऐसा ऐसा चाहिए।
फिर दुकान दार वैसा ही दिखाने लगें और बहुत देर तक खोजते हुए उसे वैसा ही शाल मिल गया।
फिर रमेश ने बारह शाल पैक करने को कहा और फिर काउंटर पर पैसे देकर शाल लेकर निकल गया।
घर पहुंच कर ही सबसे पहले बच्चों से बात किया कि स्कूल में क्या क्या हुआ।
उसके बाद खाना खा कर सो गए।
रमेश आधी रात उठ बैठा और फिर बोला अम्मा क्या कहना चाहती है फिर सपना में आई थी।
फिर रमेश रोने लगा हे भगवान किस बात की सजा मिली मुझे। मेरे परिवार के साथ ऐसा क्यों हुआ?
फिर किसी तरह रमेश करवटें बदलते हुए सो गए।
क्रमशः