Dusari Aurat - 2 - 2 in Hindi Love Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | दूसरी औरत... सीजन - 2 - भाग - 2

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दूसरी औरत... सीजन - 2 - भाग - 2

होली की छुट्टियाँ बीते दो दिन हो चुके थे मगर आज भी सुमित न जाने क्यों कॉलेज नहीं आया था? इस बात से परेशान सपना डीबीएस कॉलेज के कैम्पस में बड़ी ही बेचैनी के साथ इधर-उधर घूम रही थी और फिर अब वो सुमित को फोन भी तो नहीं कर सकती थी क्योंकि होली के दिन सुमित का फोन रंग की भरी हुई बाल्टी में गिरने के कारण खराब हो चुका था जिसकी सूचना स्वयं सुमित नें सपना को अपनी माता जी के फोन से फोन करके दी थी !

चहलकदमी करती हुई अचानक ही सपना न जाने क्या सोचकर तेज कदमों से चलकर कैम्पस के बाहर आ गई और फिर उसनें कॉलेज के गेट पर ही खड़े एक रिक्शेवाले को इशारे से बुलाकर बर्रा-दो चलने को कहा। बीस से पच्चीस मिनट में ही सपना अब सुमित के रूम के बाहर खड़ी थी। उसनें अपने बैग में से निकालकर पच्चीस रुपये उस रिक्शेवाले भईया को दिये और अब वो बड़े ही संकोच के साथ सुमित के रूम का दरवाजा खटखटाने लगी। वो सोच रही थी कि पता नहीं सुमित अभी वापिस लौटा भी होगा या नहीं और अगर नहीं लौटा तो...अभी कहीं उसकी जगह उसके दोस्त सुरेश नें दरवाजा खोला तो!! आखिर कहेगी क्या वो उससे?

सपना इस उधेड़बुन से अभी निकल भी न पायी थी कि तभी रूम का दरवाजा खुल गया और सामने सुमित खड़ा था। इससे पहले कि सपना, सुमित से कुछ पूछ पाती कि सुमित पीछे मुड़कर अंदर कमरे की तरफ़ बढ़ गया और जब तक सपना दरवाजा बंद करके सुमित के पास आयी तब तक वो अपने बेड पर लेट चुका था। सपना उसे देखते ही समझ गई कि वो बीमार है फिर उसने सुमित के माथे पर हाथ से छूकर देखा तो वो बहुत जोर से तप रहा था। सपना, सुमित से बिना कुछ कहे एक कटोरे में पानी ले आयी और उसने अपने बैग से अपना रूमाल निकालकर उसे पानी में भिगोकर सुमित के माथे पर ठंडी पट्टी के माफिक रखना शुरू कर दिया। इस बीच उन दोनों के बीच बहुत ही थोड़ी सी बात हुई !

ठंडी पट्टियां रखने से कुछ देर में ही सुमित को काफी आराम मिल गया जिसके कारण उसकी आँख लग गई। सुमित को सोता हुआ देखकर सपना धीरे से अपनी जगह से उठी और फिर बड़े ही आहिस्ता से रूम का दरवाजा घुमाकर वो बाहर निकल गई!

"उठो सुमित चाय पी लो और कुछ खा लो फिर तुम्हें दवा भी लेनी है न !", सपना नें सुमित को जगाते हुए कहा और फिर उसनें सुमित को उसकी बाजुओं को सहारा देकर उसे बिठाया!

अरे,ये सब.......

ये सब क्या ? मैं मेडिकल-स्टोर से तुम्हारे लिए बुखार की दवा और ये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर आयी हूँ। अब तुम ज्यादा बातें मत करो,अपनी दवा लो और बस आराम करो। आगे तीन दिनों तक ये सिलसिला यूं ही चलता रहा और फिर एक बार पुनः वो दोनों कॉलेज में एक साथ थे।

आय लव यू , सुमित नें सपना का हाथ पकड़कर उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा।

"क्यों ? मैंने तुम्हारी सेवा की इसलिए!!", सपना नें सुमित को छेड़ते हुए कहा।

अच्छा जी! तो क्या इससे पहले हमनें आपसे कभी आय लव यू नहीं कहा,हम्म!!

नहीं....कहकर सपना वहाँ से भागने लगी और सुमित उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे-पीछे भागा ।

हंसी-मजाक के इस दौर में जब वो दोनों हाँफकर एक जगह बैठे तो सपना नें सुमित को उसकी अकांउट्स की जॉब के बारे में बताया जो कि उसे उसके इन्सटीट्यूट से ही उसे दो साल का डिप्लोमा कम्पलीट कर लेने के बाद ऑफर हुई थी।

तुम पागल हो क्या ?

क्यों सुमित, इसमें पागल होने वाली क्या बात है ?

"यार इस विषय पर पहले भी हमारी कई बार बात हो चुकी है। अब मैं तुमसे कितनी बार एक ही बात दोहराऊं कि मुझे तुमसे जॉब नहीं करवानी याररररर!!", सुमित चीख पड़ा और सुमित के इस बर्ताव पर सपना फौरन वहाँ से उठकर चल दी इसपर सुमित नें न तो उसे एक भी बार रोकने की कोशिश ही की और न ही वो उसके पीछे ही गया !

आज पूरे तीन दिन बीत गए थे लेकिन इस दौरान न तो सपना का ही कोई फोन सुमित के लिए आया और न ही सुमित नें ही उसे कोई फोन किया। इन दोनों के एग्जाम भी हो चुके थे तो अब कॉलेज में भी इनका मिलना नहीं हो पा रहा था।

रात को खाना खाते वक्त सुमित के रूम-पार्टनर सुरेश नें जब उसे ये बताया कि इस बार गाँव में उसकी माँ उससे सुमित के कानपुर में किसी लड़की से कोई सम्बंध की बात पूछ रही थीं तो सुमित कुछ देर के लिए सकते में आ गया और बोला कि अच्छा!! और माता जी क्या कह रही थीं तुझसे??

"और क्या कहना है बस यही सब कि शहर की लड़कियां बड़ी ही चालक होती हैं और हम जैसे भोले-भाले गाँव के लड़कों को फंसा लेती हैं और भी न जाने क्या-क्या ज्ञान बाँट रही थीं,चाचाजी!", सुरेश नें उत्तर दिया!

फिर तूने क्या कहा ?

अरे कहना क्या था ? हमनें कह दिया कि चाचाजी ऐसी कोई बात नहीं है,अरे हम लोगों को तो पढ़ाई-लिखाई से इतनी फुर्सत ही कहाँ जो हम इन सब पचड़ों में पड़ें, सही कहा न मैंने??

हम्म!! बिल्कुल सही, इतना कहकर सुमित चुपचाप वहाँ से उठकर अपने बिस्तर पर जाकर आँख बंद करके लेट गया,हालांकि उसकी आँखों से नींद आज कोसों दूर थी। वो सारी रात बस करवटें बदलता रहा और कभी अपनी माँ तो कभी सपना के बारे में सोचता रहा। एक बार उसे ये ख्याल भी आया कि क्या माँ वाकई सही सोच रखती है,इन शहरी लड़कियों के बारे में और क्या ये शहर की सपना, आधुनिक विचारों की लड़की कभी मेरे या मेरे परिवार के साथ सामंजस्य बिठा पायेगी??

सोचते-सोचते सुबह के पाँच बज गए और फिर सुमित फुर्ती से उठकर कहीं जाने के लिए तैयार होने लगा। शायद आज उसनें किसी फैसले पर पहुँचने का अपना पूरा मन बना लिया था !!

आँटी जी , नमस्ते !

नमस्ते बेटा, अंदर आ जाओ !

"नहीं, आँटी मैं यहीं ठीक हूँ । आप बस ज़रा सपना को बुला दीजिए , मुझे उससे कुछ ज़रूरी बात करनी है ।", सुमित बड़ी ही शालीनता के साथ सपना की माँ से बोला ।

मगर बेटा वो तो घर पर नहीं है । वो बस अभी दस मिनट पहले ही तो निकली है । क्या तुम्हें नहीं पता उसनें वो अपने पवन सर का ऑफिस ज्वाइन कर लिया है न ! ! इससे पहले कि सपना की माँ और कुछ कहती, सुमित वहाँ से तेज कदमों से चल पड़ा ।

अब वो सपना के ऑफिस के सामने खड़ा था हालांकि वो अंदर नहीं गया और न ही उसनें सपना को कोई कॉल ही की । अब इंतज़ार करते हुए उसको कई घंटे बीत चुके थे,सुबह से शाम हो गई ।

भूंखे-प्यासे , गुस्से में जलते हुए सुमित की नज़र जैसे ही अपने ऑफिस से निकलती हुई सपना पर पड़ी , सुमित का पारा और भी चढ़ गया और वो सीधे ही सपना के सामने जाकर खड़ा हो गया ।

तुम यहाँ ?

क्यों ? क्या मैं यहाँ नहीं आ सकता ?

नहीं, मेरा मतलब कि तुमनें पहले से बताया नहीं था, न !

"हाँ तो बिना बताए हर एक काम करने का लाइसेंस तो बस सपना मैडम के पास ही है न !", सुमित नें चिढ़कर कहा !

सपना , सुमित के इस रवैये से बहुत ही असहज महसूस कर रही थी क्योंकि इस समय उसके कुछ कॉलीग्स भी उसके साथ में थे । इससे पहले कि दोनों के बीच होने वाला सवाल-जवाब,बहस और बहस से झगड़े में बदलता , सपना , सुमित का हाथ पकड़कर उसे खींचती हुई एक कोने में ले गई !

"सपना , तुम मेरे साथ ऐसा करोगी ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था", सुमित नें सपना का हाथ झटकते हुए कहा ।

आखिर ऐसा क्या कर दिया मैंने , सुमित ? और अगर तुम ये चाहते हो कि मैं अब साँसें भी तुम्हारी इजाज़त से लूँ तो सॉरी यार सुमित मैं ये नहीं कर पाऊँगी और न ही मैं ये करना ही चाहती हूँ !

"अच्छा तो इसका मतलब कि तुम्हें अब मुझसे घुटन होने लगी है,क्यों ? और अब मैं तुम्हारी साँसों का हिसाब भी रखने लग गया हूँ , वाह भाई वाहहह...मतलब कि उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे", सुमित नें ये बात बड़ी जोर से ताली बजाते हुए कही ।

याररररर...सुमित प्लीज़ अब तुम ये अपनी थर्ड क्लास सोच और थर्ड क्लास बातें फिर से मत शुरू कर दो,प्लीज़....सपना चीख भी रही थी और अब वो सुमित के सामने अपने दोनों हाथ भी जोड़े हुए थी जिसनें सुमित के गुस्से को आग में घी का काम करके और भी बढ़ा दिया ।

उन दोनों की बहस अब रौद्र रूप धारण कर चुकी थी । सुमित बोलता ही जा रहा था और वहाँ अब कुछ लोगों की भीड़ भी तमाशबीन बनकर इकट्ठी होना शुरू हो गई थी । मामला हाथ से निकलते देख सपना वहाँ सुमित को चीखता,गुस्साता और झल्लाता छोड़ चुपचाप एक रिक्शा कर निकल गई ।

उस दिन के बाद सुमित नें कई बार सपना से बात करने की कोशिश की लेकिन उसनें न तो सुमित का फोन ही कभी पिक किया और न ही पलटकर उसे खुद कभी फोन किया । समय बीतता गया और हालात बदलते गए । फिर एक दिन सुमित को अपने दोस्त सुरेश की गर्लफ्रैंड,जो कि सपना की क्लासमेट थी , से पता चला कि सपना की शादी तय हो गई है और अगले महीने उसकी सगाई है ।

सुमित चाहता तो सपना के घर जाकर उससे बात कर सकता था या फिर सुरेश की गर्लफेंड के हाथ से उसे कोई मैसेज भिजवा सकता था मगर सुमित नें ऐसा कुछ भी नहीं किया क्योंकि शायद वो कहीं न कहीं अब सपना को अपनी जिंदगी के फ्रेम में फिट होता हुआ नहीं देख रहा था जिसके चलते वो चुपचाप बैठ गया और उसने अपनी तरफ़ से इस रिश्ते को बचाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की परिणामस्वरूप सपना की सगाई का दिन भी आ गया और फिर शादी का भी !

आज सपना की शादी है । सुमित चुपचाप अपने कमरे में बैठा है और फिर अचानक ही वो बहुत खुश हो जाता है । सबसे पहले वो खुशी-खुशी अपने गाँव में फोन लगाकर अपनी माता जी से खूब बातें करता है और फिर उसके बाद एक-एक करके अपने हर एक दोस्त को फोन मिलाकर उन सबको आज अपने रूम पर इनवाइट करता है । इसके बाद वो सुरेश को बाजार भेजकर खूब सारा नाश्ते का सामान मंगवाता है ।

ऐ सुरेश , सुन एक पेटी दारू भी लेकर आ आज ।

सुमित तू पागल हो गया है क्या ? अरे ! आज तक तूने कभी पान भी नहीं खाया और आज तू दारू पियेगा पागल !

"सुरेश...यार तुझे मेरी कसम ! अच्छा चल अगर तू कहता है तो मैं बस थोड़ी सी पियूँगा और फिर यार आज हम सब दोस्त इकट्ठा भी हो रहे हैं फिर यार पता नहीं तुम कहाँ,हम कहाँ और वैसे भी दोस्त अब कानपुर से तो अपना दाना-पानी उठ ही गया न", सुमित नें अपनी आँखों की नमी को छुपाकर मुस्कुराते हुए कहा....चल अब जा और जल्दी आ !

एक तरफ़ शहनाइयों से सपना का जगमगाती झालरों से सजधजा हुआ घर रौशनी से नहाया हुआ गूंज रहा था तो दूसरी तरफ़ सुमित अपनी जिंदगी में आज एक काला अध्याय जोड़ रहा था !

पूरी रात सुमित नें अपने दोस्तों के साथ बेतहाशा जाम पर जाम छलकाए और कई बार तो उसनें इतनी पी ली कि उसे उल्टियां भी करनी पड़ीं ।

सुमित पूरी रात अपने दोस्तों के साथ पीता रहा और हंसता रहा । रात बीत चुकी थी और सुमित के सारे दोस्त भी अपने-अपने घर जा चुके थे ।

सुमित सोकर उठा और उसकी नज़र सामने की दीवार पर टंगे हुए कैलेंडर पर गई फिर वो अचानक ही आज की तारीख बदलने के रोंगटे खड़े कर देने वाले एहसास से भर उठा जिसके बाद वो बहुत ज़ोर से चीख पड़ा......सपनानननाआआआआ.... और इस चीख के साथ ही वो फूटफूटकर रो पड़ा ! वो इतना रो रहा था कि एक बार को तो सुरेश भी डर गया ।

अचानक ही सुमित को न जाने क्या सूझी कि वो अपनी बाइक स्टार्ट करके उसे बेतहाशा भगाता हुआ ले गया ,ये देखकर किसी अनहोनी के डर से आशंकित सुरेश भी अपना स्कूटर लेकर सुमित के पीछे हो लिया ।

कुछ देर में ही सुमित सपना के घर के बाहर खड़ा था मगर वहाँ अब कुछ भी नहीं बचा था शायद सपना अपने पैरों के निशान तक भी अपने साथ समेटकर ले जा चुकी थी ! !

बहुत बड़ी गलती हो गई यारररर...बहुत बड़ी गलती....बिलखते हुए सुमित के मुँह से बार-बार बस यही शब्द निकल रहे थे और सुरेश बस अपने दोस्त को सम्भालने की नाकाम कोशिश कर रहा था !

दिल कर गई पत्थर का ,
वो शीशे से अरमान साथ ले गई!
छोड़ गई बस ये बेजान बुत,
वो मेरी जान मेरी जान ले गई!

आगे की कहानी अगले भाग में.... क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐